शाम बारिश भोर बारिश.
कर रही है बोर बारिश.
तुम कहाँ जाओगी जाना,
हो रही घनघोर बारिश.
टप टपा टप, टप टपा टप,
शोर ही बस शोर बारिश.
मार डाले लोग कितने,
उफ़ ये आदम-खोर बारिश.
डूब जाए ना सभी कुछ,
पृथ्वी के हर छोर बारिश.
कुछ हवाएं चल रही हैं,
होगी अब कमज़ोर बारिश.
दिल भिगोया मिल गए हम,
या ख़ुदा चित-चोर बारिश.
स्वप्न मेरे
स्वप्न स्वप्न स्वप्न, सपनो के बिना भी कोई जीवन है
शनिवार, 7 जून 2025
शनिवार, 31 मई 2025
एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ ...
मुद्दतों से है तुम्हारी आँख में अटका हुआ.
ख्व़ाब है बदनाम आवारा मेरा भटका हुआ.
मखमली सी याद है के पाँव की दस्तक कोई,
दिल के दरवाज़े में हलके से कहीं खटका हुआ.
ढेर सारी नेमतें ख़ुशियाँ उसी में बन्द हैं,
ट्रंक बापू का कबाड़े में जो है पटका हुआ.
हम तरक्क़ी के नशे में छोड़ कर हैं आ गए,
प्रेम धागा घर के रोशन-दान में लटका हुआ.
गुफ़्तगू करते थे खुद से आईने के सामने,
एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ.
ख्व़ाब है बदनाम आवारा मेरा भटका हुआ.
मखमली सी याद है के पाँव की दस्तक कोई,
दिल के दरवाज़े में हलके से कहीं खटका हुआ.
ढेर सारी नेमतें ख़ुशियाँ उसी में बन्द हैं,
ट्रंक बापू का कबाड़े में जो है पटका हुआ.
हम तरक्क़ी के नशे में छोड़ कर हैं आ गए,
प्रेम धागा घर के रोशन-दान में लटका हुआ.
गुफ़्तगू करते थे खुद से आईने के सामने,
एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ.
गुरुवार, 15 मई 2025
उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे ...
चाहत यही है काश वो घर-घर दिखाई दे
वादी में काश्मीर में केसर दिखाई दे
ऐसा न काश एक भी मंज़र दिखाई दे
हाथों में हमको यार के खंजर दिखाई दे
अंदर से जो है काश वो बाहर दिखाई दे
सुख दुख के बीच कोई तो अन्तर दिखाई दे
बादल भी काश सोच समझ कर ले फैंसला
बरसें न गर ग़रीब का छप्पर दिखाई दे
कहते हैं लोग आज भी मेरे लिए यही
अंदर वही बशर है जो बाहर दिखाई दे
इंसान देख ले तो उसे दिख ही जाएगा
सब कुछ तो साफ़ साफ़ ही अंदर दिखाई दे
सिक्कों के साथ मन का ये बच्चा चहक उठा
उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे
ऐसा न काश एक भी मंज़र दिखाई दे
हाथों में हमको यार के खंजर दिखाई दे
अंदर से जो है काश वो बाहर दिखाई दे
सुख दुख के बीच कोई तो अन्तर दिखाई दे
बादल भी काश सोच समझ कर ले फैंसला
बरसें न गर ग़रीब का छप्पर दिखाई दे
कहते हैं लोग आज भी मेरे लिए यही
अंदर वही बशर है जो बाहर दिखाई दे
इंसान देख ले तो उसे दिख ही जाएगा
सब कुछ तो साफ़ साफ़ ही अंदर दिखाई दे
सिक्कों के साथ मन का ये बच्चा चहक उठा
उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे
शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025
जितनी विजय है उतनी ही स्वीकार हार है …
उसने विनम्रता से छुपाई कटार है.
मुख जिसका शिष्टता से ढका इश्तहार है.
किसने किया है साँसों का वितरण बताओ तो,
जीवन मरण का कौन यहाँ सूत्र-धार है.
शालीनता के सूत्र किताबों में छोड़ना,
बदले समय में बस ये सफलता का द्वार है.
अब तक न ओढ़ पाया जो निष्पक्ष आवरण,
कहता है स्वाभिमान से इतिहासकार है.
हर सत्य के निवास पे कालिख पुती हुई,
वातावरण में झूठ का इतना प्रचार है.
अपना तो सब मेरा है मगर, सबका सब मेरा,
इस बात का जो सार है उत्तम विचार है.
कहने को लगती ठीक है पर सच में दिल को क्या,
जितनी विजय है उतनी ही स्वीकार हार है.
मुख जिसका शिष्टता से ढका इश्तहार है.
किसने किया है साँसों का वितरण बताओ तो,
जीवन मरण का कौन यहाँ सूत्र-धार है.
शालीनता के सूत्र किताबों में छोड़ना,
बदले समय में बस ये सफलता का द्वार है.
अब तक न ओढ़ पाया जो निष्पक्ष आवरण,
कहता है स्वाभिमान से इतिहासकार है.
हर सत्य के निवास पे कालिख पुती हुई,
वातावरण में झूठ का इतना प्रचार है.
अपना तो सब मेरा है मगर, सबका सब मेरा,
इस बात का जो सार है उत्तम विचार है.
कहने को लगती ठीक है पर सच में दिल को क्या,
जितनी विजय है उतनी ही स्वीकार हार है.
रविवार, 6 अप्रैल 2025
शुक्रवार, 28 मार्च 2025
होठों के आस पास ये इक टूटा जाम है …
कोमा कहाँ लगेगा कहाँ पर विराम है.
किसको पता प्रथम है के अंतिम प्रणाम है.
घर था मेरा तो नाम भी उस पर मेरा ही था,
ईंटों की धड़कनों में मगर और नाम है.
कोशिश करोगे तो भी न फिर ढूँढ पाओगे,
अक्सर वहीं मिलूँगा जो मेरा मुक़ाम है.
होता है ज़िन्दगी में कई बार इस क़दर,
दिन उग रहा है पर न पता किसकी शाम है.
घर यूँ जलाया उसने मेरे सामने लगा,
अब हो न हो ये कोई पड़ोसी का काम है.
यादों में क़ैद कर के रखा है तमाम उम्र,
सच-सच कहो ये आपका क्या इंतक़ाम है.
घायल न कर दे मय की तलब इस क़दर मुझे,
होठों के आस-पास ये इक टूटा जाम है.
किसको पता प्रथम है के अंतिम प्रणाम है.
घर था मेरा तो नाम भी उस पर मेरा ही था,
ईंटों की धड़कनों में मगर और नाम है.
कोशिश करोगे तो भी न फिर ढूँढ पाओगे,
अक्सर वहीं मिलूँगा जो मेरा मुक़ाम है.
होता है ज़िन्दगी में कई बार इस क़दर,
दिन उग रहा है पर न पता किसकी शाम है.
घर यूँ जलाया उसने मेरे सामने लगा,
अब हो न हो ये कोई पड़ोसी का काम है.
यादों में क़ैद कर के रखा है तमाम उम्र,
सच-सच कहो ये आपका क्या इंतक़ाम है.
घायल न कर दे मय की तलब इस क़दर मुझे,
होठों के आस-पास ये इक टूटा जाम है.
शुक्रवार, 14 मार्च 2025
होली है …
रंगों में डूब जाइए होली का रोज़ है
फागुन का गीत गाइए होली का रोज़ है
पलकें ज़रा उठाइए होली का रोज़ है
ख़ुद में सिमट न जाइए होली का रोज़ है
कीचड़ नहीं ये रंग हैं ताज़ा पलाश के
यूँ तो न मुँह बनाइए होली का रोज़ है
कुछ लोग पीट-पीट के छाती कहेंगे अब
पानी न यूँ बहाइए होली का रोज़ है
बाहर खड़े हैं देर से आ आइये हज़ूर
हमको न यूँ सताइए होली का रोज़ है
भर दूँ ये माँग आपकी उल्फ़त के रंग में
हाँ है तो मुस्कुराइए होली का रोज़ है
कुर्ता सफ़ेद डाल के ये रिस्क ले लिया
बच बच के आप जाइए होली का रोज़ है
वैसे भी मुझपे इश्क़ का रहता है अब नशा
ये भांग मत पिलाइए होली का रोज़ है
फागुन का गीत गाइए होली का रोज़ है
पलकें ज़रा उठाइए होली का रोज़ है
ख़ुद में सिमट न जाइए होली का रोज़ है
कीचड़ नहीं ये रंग हैं ताज़ा पलाश के
यूँ तो न मुँह बनाइए होली का रोज़ है
कुछ लोग पीट-पीट के छाती कहेंगे अब
पानी न यूँ बहाइए होली का रोज़ है
बाहर खड़े हैं देर से आ आइये हज़ूर
हमको न यूँ सताइए होली का रोज़ है
भर दूँ ये माँग आपकी उल्फ़त के रंग में
हाँ है तो मुस्कुराइए होली का रोज़ है
कुर्ता सफ़ेद डाल के ये रिस्क ले लिया
बच बच के आप जाइए होली का रोज़ है
वैसे भी मुझपे इश्क़ का रहता है अब नशा
ये भांग मत पिलाइए होली का रोज़ है
तरही ग़ज़ल
बुधवार, 26 फ़रवरी 2025
महा शिवरात्रि …
महा शिवरात्रि के पावन दिवस की सभी को बहुत बहुत बधाई …. भोले नाथ की विशेष कृपा सदा सब पर रहे.
अभी कुछ दिन पहले बाबा भीमाशंकर के दर्शन का सौभाग्य मिला और बाबा की विशेष कृपा से कुछ लिखने को प्रभु ने प्रेरित किया … आज महा शिवरात्रि पर रचना के कुछ अँश प्रस्तुत कर रहा हूँ, शीघ्र ही पूरी रचना के साथ प्रस्तुत होऊँगा…जय जय भोले नाथ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
तू उदय न अस्त में शेष है, तू प्रलय विनाश प्रलेश है
तू ही शब्द-अशब्द विशेष है, तू ही ब्रह्म-नाद में लेश है
तू भवेश,अशेष,महेश है, तू ही सर्व-बंध-विमोचनम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्
तू ही संत असंत महंत है, तू क्षितिज है छोर दिगंत है
तू अनादि-आदि न अंत है, तू असीम अपार, अनंत है
तू अघोर घोर जयंत है, तू ही सर्व लोक चरा-चरम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्
तू ही गीत-अगीत प्रगीत में, तू ही छन्द ताल पुनीत में
तू भविष्य में तू अतीत में, तू समय के साथ व्यतीत में
तू ही वाध यंत्र सुगीत में, तू मृदंग नृत्य है तांडवम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्
तू पुराण है तू नवीन है, तू प्रगट भी हो के विलीन है
तू ही चिर-समाधि में लीन है,ये जगत भी तेरे अधीन है
तू ही ज्ञान, ध्यान प्रवीन है, तू ही शंभु-शंभु महेश्वरम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्
#mahashivratri #shivstuti #महाशिवरात्रि
अभी कुछ दिन पहले बाबा भीमाशंकर के दर्शन का सौभाग्य मिला और बाबा की विशेष कृपा से कुछ लिखने को प्रभु ने प्रेरित किया … आज महा शिवरात्रि पर रचना के कुछ अँश प्रस्तुत कर रहा हूँ, शीघ्र ही पूरी रचना के साथ प्रस्तुत होऊँगा…जय जय भोले नाथ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
तू उदय न अस्त में शेष है, तू प्रलय विनाश प्रलेश है
तू ही शब्द-अशब्द विशेष है, तू ही ब्रह्म-नाद में लेश है
तू भवेश,अशेष,महेश है, तू ही सर्व-बंध-विमोचनम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्
तू ही संत असंत महंत है, तू क्षितिज है छोर दिगंत है
तू अनादि-आदि न अंत है, तू असीम अपार, अनंत है
तू अघोर घोर जयंत है, तू ही सर्व लोक चरा-चरम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्
तू ही गीत-अगीत प्रगीत में, तू ही छन्द ताल पुनीत में
तू भविष्य में तू अतीत में, तू समय के साथ व्यतीत में
तू ही वाध यंत्र सुगीत में, तू मृदंग नृत्य है तांडवम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्
तू पुराण है तू नवीन है, तू प्रगट भी हो के विलीन है
तू ही चिर-समाधि में लीन है,ये जगत भी तेरे अधीन है
तू ही ज्ञान, ध्यान प्रवीन है, तू ही शंभु-शंभु महेश्वरम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्
#mahashivratri #shivstuti #महाशिवरात्रि
शनिवार, 22 फ़रवरी 2025
सुबूतों से मिटा कर आ गया हूँ नाम सारे ...
करो साबित मेरे सर पे रखे इलज़ाम सारे.
सुबूतों से मिटा कर आ गया हूँ नाम सारे.
वो हारेंगे मगर दोहराएंगे यह बात फिर फिर,
चुनावों के अभी आने तो दो परिणाम सारे.
मुझे मेरे ही बच्चों ने मेरा बचपन दिखाया.
गए मेहमान बाहर, चट हुए बादाम सारे.
किसी से कब वफादारी निभाती हैं ये लहरें,
मिटा डालेंगी गीली रेत से पैगाम सारे.
पसीने की महक से दूर तक नाता नहीं है,
मगर हैं चाहते उनको मिलें आराम सारे.
सलाखों की घुटन कुछ पल कभी महसूस करना,
परिंदे छोड़ दोगे पिंजरे से उस शाम सारे.
भटकता है तो मन है खोजता हर दर पे खुशियाँ,
सुकूने दिल है तो घर में सभी हैं धाम सारे.
#स्वप्न_मेरे
सुबूतों से मिटा कर आ गया हूँ नाम सारे.
वो हारेंगे मगर दोहराएंगे यह बात फिर फिर,
चुनावों के अभी आने तो दो परिणाम सारे.
मुझे मेरे ही बच्चों ने मेरा बचपन दिखाया.
गए मेहमान बाहर, चट हुए बादाम सारे.
किसी से कब वफादारी निभाती हैं ये लहरें,
मिटा डालेंगी गीली रेत से पैगाम सारे.
पसीने की महक से दूर तक नाता नहीं है,
मगर हैं चाहते उनको मिलें आराम सारे.
सलाखों की घुटन कुछ पल कभी महसूस करना,
परिंदे छोड़ दोगे पिंजरे से उस शाम सारे.
भटकता है तो मन है खोजता हर दर पे खुशियाँ,
सुकूने दिल है तो घर में सभी हैं धाम सारे.
#स्वप्न_मेरे
सोमवार, 10 फ़रवरी 2025
परिन्दे ले ही जाते हैं उड़ा कर ...
तस्सवुर खूबसूरत सा छुड़ा कर.
हक़ीकत ले ही आती है उठा कर.
इबादत पर सियासत हो जहाँ पे,
निकल जाओ वहाँ से सर झुका कर. .
उन्हें भी प्यार हमसे हो गया है,
कभी तो बोल दें वो मुस्कुरा कर.
सभी क़ानून इनकी जेब में हैं,
बरी हो जाएँगे सब कुछ चुरा कर.
मिटेंगे दाग़ लेकिन याद रखना,
कमीजें फट भी जाती हैं धुला कर.
न उनको भूल पाए हम कभी भी,
चले आये थे यूँ सब कुछ भुला कर.
शिकारी जाल जितने भी बिछा लें,
परिन्दे ले ही जाते हैं उड़ा कर.
हक़ीकत ले ही आती है उठा कर.
इबादत पर सियासत हो जहाँ पे,
निकल जाओ वहाँ से सर झुका कर. .
उन्हें भी प्यार हमसे हो गया है,
कभी तो बोल दें वो मुस्कुरा कर.
सभी क़ानून इनकी जेब में हैं,
बरी हो जाएँगे सब कुछ चुरा कर.
मिटेंगे दाग़ लेकिन याद रखना,
कमीजें फट भी जाती हैं धुला कर.
न उनको भूल पाए हम कभी भी,
चले आये थे यूँ सब कुछ भुला कर.
शिकारी जाल जितने भी बिछा लें,
परिन्दे ले ही जाते हैं उड़ा कर.
#स्वप्नमेरे
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