आ लौट चलें बचपन में
क्या रख्खा जीवन में
दो सांसों का खेल है वरना
पञ्च तत्त्व इस तन में
लोरी कंचे लट्टू गुड़िया
कौन धड़कता मन में
धीरे धीरे रात का आँचल
उतर गया आँगन में
तेरे बोल घड़ी की टिक टिक
धड़कन धड़कन में
बरखा तो आई फ़िर भी
क्यों प्यासे सावन में
रोयेंगे चुपके चुपके
ज़ख्म रिसेंगे तन में
यूँ तो सब संगी साथी
कौन बसा जीवन में
तेरा मेरा सबका जीवन
सांसों के बंधन में
वो तो मौत झटक के आया
मरा तेरे आँगन में
मेरे सपने चुभेंगे तुमको
खेलो न मधुबन में
अन्तिम सफर तो सब करते
मिट्टी या चंदन में
बहुत बढिया प्रस्तुति। बधाई। लीजिए इसी तर्ज पर कुछ त्वरित पंक्तियाँ मेरी तरफ से-
जवाब देंहटाएंकौन बडा है कौन है छोटा
व्यर्थ फँसे अनबन में
सबको मिलकर ही जीना है
धरती और गगन में
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
बहूत खूब श्यामल जी
जवाब देंहटाएंआपकी त्वरित प्रस्तुति बहुत सुंदर है
आप को अच्छा लगा, प्रस्तुति सफल हो गयी
अन्तिम सफर तो सब करते
जवाब देंहटाएंमिट्टी या चंदन में
जीवन का सच्चा सार...
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसादर.
बहुत ही शानदार प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंसदा जी की हलचल से यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.