मंदी के इस दौर में, सर पर खड़े चुनाव
नेता सारे सोच रहे, कौन सा खेलें दावं
कौन सा खेलें दावं, कौन सा झगड़ा बोयें
जनता पर भी राज करें कुर्सी न खोयें
कहे दिगम्बर नेताओं को दे दो झटका
मंदी के इस दौर मैं, पैसा ज्यों अटका
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आगजनी दंगों के बाद, नेता करते प्रतीक्षा
जांच के आयोग बिठाते, होती रहती समीक्षा
होती रहती समीक्षा, समय चुनाव का आता
जातिवाद का खेल, शुरू फ़िर से हो जाता
कहे दिगम्बर नेताओं का खेल निराला
अपनी ही माँ का आँचल छलनी कर डाला
Kya baat hai digamberji!...aise netaon ko to kursi samet uthhakar fenk dena chaahiye!
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