स्वप्न मेरे: भोर के सूरज

बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

भोर के सूरज

किरण के रथ पर सवार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज


तू स्वयं अग्नि शिखा है कर्म पथ पर
तू जो चाहे होम हो जा धर्म पथ पर
स्वयं के बल को निहार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज


मार्ग दुर्गम है बहुत सब जानते हैं
प्रबल झंझावात है सब मानते हैं
कंटकों से तू न हार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज


अग्रसर हो कर समर्पण कर समर्पण
विश्व का तू पुनः कर फ़िर मार्ग दर्शन
दूर कर ये अंधकार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर एवं सारगर्भित गीति रचना
    साधुवाद दिगम्बर जी

    जवाब देंहटाएं
  2. दिगम्बर जी,

    तू स्वयं अग्नि शिखा है कर्म पथ पर
    तू जो चाहे होम हो जा धर्म पथ पर
    स्वयं के बल को निहार भोर के सूरज
    विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज

    बहुत ही सारगर्भित रचना। शब्दों का सुन्दर प्रयोग। बधाई एवं शुभकामना।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. अग्रसर हो कर समर्पण कर समर्पण
    विश्व का तू पुनः कर फ़िर मार्ग दर्शन
    दूर कर ये अंधकार भोर के सूरज
    विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज


    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं!

    जवाब देंहटाएं
  4. अग्रसर हो कर समर्पण कर समर्पण
    विश्व का तू पुनः कर फ़िर मार्ग दर्शन
    दूर कर ये अंधकार भोर के सूरज
    विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
    ..........
    Ati sundar.....

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है