फ़िर कोई खण्डहर विराना ढूँढ़ते हो
मुझसे मिलने का बहाना ढूँढ़ते हो
पौंछ डाला शहर का इतिहास सारा
काहे अब पीपल पुराना ढूँढ़ते हो
इस शहर की बस्तियाँ वीरान हैं
तुम शहर में आबो-दाना ढूँढ़ते हो
गौर से क्यों देखते हो आसमां को
दोस्त या गुज़रा ज़माना ढूँढ़ते हो
मैं जड़ों को सींचता हुं, आब हूँ मैं
क्यूँ अब्र में मेरा ठिकाना ढूँढ़ते हो
रात की चादर लपेटे सोई हैं सड़कें
क्यूँ हादसे,किस्सा,फ़साना ढूँढ़ते हो
लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो
वाह भाई वाह। सुन्दर। मेरी तरफ से भी दो त्वरित पँक्तयाँ -
जवाब देंहटाएंइन्सानियत की बस्ती है जल गयी यहाँ।
न जाने फिर कहाँ तुम आशियाना ढ़ूँढ़ते हो।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत सुन्दर गज़ल है।
जवाब देंहटाएंरात की चादर लपेटे सोई हैं सड़कें
जवाब देंहटाएंक्यूँ हादसे,किस्सा,फ़साना ढूँढ़ते हो
लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो ।
बधाई। बहुत अच्छी गजल
रात की चादर लपेटे सोई हैं सड़कें
जवाब देंहटाएंक्यूँ हादसे,किस्सा,फ़साना ढूँढ़ते हो
लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
तुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो
wwaaah sahi bahut khubsurat gazal teen teen baar padhi jiya bharta nahi,har sher sundar
dil mei utaarti hai sidhe.....
जवाब देंहटाएंdesh ki yadon ko khub samete ho aap.....itni door hokar bhi, dil karib ho....
umda, isse zyada kahna kya?
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गजल िलखी है आपने । कथ्य और िशल्प दोनों दृिष्ट से बेहतर है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-उदूॆ की जमीन से फूटी िहंदी गजल की काव्य धारा-समय हो तो इस लेख को पढें और प्रतिकर्िया भी दें-
जवाब देंहटाएंhttp://www.ashokvichar.blogspot.com
पौंछ डाला शहर का इतिहास सारा
जवाब देंहटाएंकाहे अब पीपल पुराना ढूँढ़ते हो
bahut khoob.....
बहुत सुंदर ...!
जवाब देंहटाएंलहू से लिखा है हर अल्फाज़ मैंने
जवाब देंहटाएंतुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो?
...वाह...वाह... वाह।
लहू से लिखा है हर अल्फाज़ मैंने
जवाब देंहटाएंतुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो?
...वाह...वाह... वाह।
Nice post ji keep it upp
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आनंद आ गया दिगंबर जी. निम्न शेर तो जुबां पर ही चढ़ गया लगता है!
जवाब देंहटाएंमैं जड़ों को सींचता हुं, आब हूँ मैं
क्यूँ अब्र में मेरा ठिकाना ढूँढ़ते हो
"लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
जवाब देंहटाएंतुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो "
इन पंक्तियों ने समाँ बाँध दिया
बहुत ख़ूब
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 04- 08 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएंनयी पुरानी हल चल में आज- अपना अपना आनन्द -
बेहद खूबसूरत गजल. आभार...
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
रात की चादर लपेटे सोई हैं सड़कें
जवाब देंहटाएंक्यूँ हादसे,किस्सा,फ़साना ढूँढ़ते हो
खूबसूरत गज़ल
लहू से लिक्खा है हर अल्फाज़ मैंने
जवाब देंहटाएंतुम ग़ज़ल का मुस्कुराना ढूँढ़ते हो ...अच्छा शेर है!!
बहुत बढ़िया गजल है सर ।
जवाब देंहटाएंसादर
bahut badhiya.
जवाब देंहटाएंkaabil e taareef.
बेहतरीन गजल .....
जवाब देंहटाएंइस लेख को पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आप रहस्यों के बारे में जान सकते है
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