आज फ़िर मंथन हुवा है, ज़हर है छिटका हुवा
आज शिव ने कंठ मैं फ़िर गरल है गटका हुवा
देखने हैं और कितने महा-समर आज भी
है त्रिशंकू आज भी इस भंवर में भटका हुवा
पोंछना है दर्द तो दिल के करीब जाओ तुम
दूर से क्यूँ देखते हो दिल मेरा चटका हुवा
राह सूनी, आँख रीति, जोड़ कर तिनके सभी
मुद्दतों से शाख पर है घोंसला लटका हुवा
इक समय था जब समय मुट्ठी मैं मेरी कैद था
अब समय है, मैं समय के चक्र में अटका हुवा
इक समय था जब समय मुट्ठी मैं मेरी कैद था
जवाब देंहटाएंअब समय है, मैं समय के चक्र में अटका हुवा
--आह्ह्ह!!! क्या बात है महाराज..जान निकाल लोगे क्या!! बहुत उम्दा!
समीर भाई
जवाब देंहटाएंसब आप का ही आशीर्वाद है
बहु बढिया गजल है।बधाई।
जवाब देंहटाएंइक समय था जब समय मुट्ठी मैं मेरी कैद था
अब समय है, मैं समय के चक्र में अटका हुवा
पोंछना है दर्द तो दिल के करीब जाओ तुम
जवाब देंहटाएंदूर से क्यूँ देखते हो दिल मेरा चटका हुवा
यथार्थ चिंतन बहुत सुंदर बधाई
पोंछना है दर्द तो दिल के करीब जाओ तुम
जवाब देंहटाएंदूर से क्यूँ देखते हो दिल मेरा चटका हुवा
Lajawab....Waah
Neeraj
पोंछना है दर्द तो दिल के करीब जाओ तुम
जवाब देंहटाएंदूर से क्यूँ देखते हो दिल मेरा चटका हुवा
.......वाह, बहुत अच्छी गजल। बधाई।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंपोंछना है दर्द तो दिल के करीब जाओ तुम
जवाब देंहटाएंदूर से क्यूँ देखते हो दिल मेरा चटका हुवा
क्या कहूँ......लाजवाब........जितना सुंदर भाव उतनी ही सुंदर शिल्प और उतनी ही असरदार शब्दाभिव्यक्ति.
बिल्कुल मन मोह लिया पंक्तियों ने.....लाजवाब ग़ज़ल है.ऐसे ही लिखते रहें ,शुभकामनाएं.
बहुत बढ़िया सर
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