अक्सर ऐसा हुवा है
बहूत कोशिशों के बाद
जब उसे मैं छू न सका
सो गया मूँद कर आँखें अपनी
बहुत देर तक फ़िर सोया रहा
महसूस करता रहा उसके हाथ की नरमी
छू लिया हल्हे से उसके रुखसार को
उड़ता रहा खुले आसमान में
थामे रहा उसका हाथ
चुपके से सहलाता रहा उसके बाल
पर हर बार
जब भी मेरी आँख खुली
अचानक सब कुछ दूर
बहुत दूर हो गया
क्या वो सिर्फ़ इक एहसास था...................
एहसाह जिसे महसूस तो किया जा सकता है
पर जागती आखों से छुआ नही जा सकता
जागती आंखों से छुआ नही जाता
बहुत ख़ूब, गहरी मनोभावना!
जवाब देंहटाएंWaah ! बहुत sundar bhavabhivyakti.
जवाब देंहटाएंमन में आए भाव को हूबहू अभिव्यक्त करने का अच्छा प्रयास। अच्छी लगी आपकी कविता। ..बधाई
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर रचना अपने मन में आए भावों को सजीव चित्रण देने का खूब ज्ञान है आपको
जवाब देंहटाएंमन के भावों को बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है आपने.
जवाब देंहटाएंdua karte hain ki aapka ahesash haqiqat mein tabdil ho
जवाब देंहटाएंaapak sacha pyar aapke karib ho
aise hi man ke bhavo ko shabd dijiyen
taki hum sabko itni khoobsurat rachnayein naseeb ho
आपको बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
इस लेख को पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आप रहस्यों के बारे में जान सकते है
जवाब देंहटाएंRahasyo ki Duniya
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