हमारे पाव फ़िर ज़मीन में गड़े हैं
हम पेड़ जैसे रास्तों में खड़े हैं
आदतें आज भी संघर्ष की छोड़ी नही
भूख और प्यास से अभी अभी लड़े हैं
सच्च तो ये है इस खूबसूरत ताज में
ईंट गारे की जगह आदमी जड़े हैं
भूख और प्यास के डर से खुदा भी
झोंपडे छोड़ कर मंदिरों में पड़े हैं
एक सच्चाई है इन खोखले जिस्मों की
छोटे से ज़ख्म मौत आने तक सड़े हैं
होठ सूखे, धंसी आँखें चिथडा सा बदन
जिस्म जैसे किसी पतझर में पत्ते झडे हैं
वो प्यासा था या कोई चोर जो गुजरा यहाँ
तमाम रास्तों में खाली खाली घड़े हैं
digambar bhaaee
जवाब देंहटाएंbahut hee saarthak prastuti.
maiN yahaaN aataa rahoomgaa.
saadar
द्विजेन्द्र द्विज
bahut khub
जवाब देंहटाएंहमारे पाव फ़िर ज़मीन में गड़े हैं
जवाब देंहटाएंहम पेड़ जैसे रास्तों में खड़े हैं
आदतें आज भी संघर्ष की छोड़ी नही
भूख और प्यास से अभी अभी लड़े हैं
सच्च तो ये है इस खूबसूरत ताज में
ईंट गारे की जगह आदमी जड़े हैं
वाह्! क्या खूब लिखा है.बहुत उम्दा...
दिगम्बर जी, आप तो कमाल करते जा रहे हैं.
आदतें आज भी संघर्ष की छोड़ी नही
जवाब देंहटाएंभूख और प्यास से अभी अभी लड़े हैं
सच्च तो ये है इस खूबसूरत ताज में
ईंट गारे की जगह आदमी जड़े हैं
ये ऐसे शेर हैं जिन्हें कहने के लिए ज़िन्दगी का गहरा तजुर्बा होना जरूरी है और साथ ही उस्तादों वाला हुनर भी...और ये दोनों ही इन शेर में बहुत खूबी से नजर आते है...वाह दिगंबर जी वाह...
नीरज
वो प्यासा था या कोई चोर जो गुजरा यहाँ
जवाब देंहटाएंतमाम रास्तों में खाली खाली घड़े हैं
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सच्च तो ये है इस खूबसूरत ताज में
ईंट गारे की जगह आदमी जड़े हैं
-वाह!वाह!बहुत ही उम्दा शेर हैं!
बेहद अनूठा ख्याल,
-ग़ज़ल पूरी ही दमदार बनी है.
बधाई
बहुत अच्छा.........गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएं"भूख और प्यास के डर से खुदा भी
जवाब देंहटाएंझोंपडे छोड़ कर मंदिरों में पड़े हैं"
लाजवाब!
दिगंबर जी, आपको आपके परिवार एवं मित्रों को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई!
बेहतरीन ख्याल हैं इस रचना में... एकदम मौलिक... वाह वाह..
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब रचना.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की बधाई.
रामराम.
वाह वाह!! क्या बात है..गजब. मजा आ गया.
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
आदतें आज भी संघर्ष की छोड़ी नही
जवाब देंहटाएंभूख और प्यास से अभी अभी लड़े हैं
सच्च तो ये है इस खूबसूरत ताज में
ईंट गारे की जगह आदमी जड़े हैं
ये दो शेर ख़ास पसंद आये
अच्छी पोस्ट और गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब रचना.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की बधाई.
आदतें आज भी संघर्ष की छोड़ी नही
जवाब देंहटाएंभूख और प्यास से अभी अभी लड़े हैं
भूख और प्यास के डर से खुदा भी
झोंपडे छोड़ कर मंदिरों में पड़े हैं"
Waah...! yun to her she'r umda hai pr ye jyada pasand aaye...!
bhookh aur pyaas se dar devta bhi
जवाब देंहटाएंjhompde chhod mandir men pade hain
aisa karen to kaisa rahe ; kul mila kar bahut khoobsoorat, uttam.
आपकी सोच मौलिक है....
जवाब देंहटाएंबढिया रचना
आज आपका ब्लॉग देखा.... बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंवाह्! क्या खूब लिखा है.बहुत उम्दा...
जवाब देंहटाएंसच्च तो ये है इस खूबसूरत ताज में
जवाब देंहटाएंईंट गारे की जगह आदमी जड़े हैं
भूख और प्यास के डर से खुदा भी
झोंपडे छोड़ कर मंदिरों में पड़े हैं
एक सच्चाई है इन खोखले जिस्मों की
छोटे से ज़ख्म मौत आने तक सड़े हैं
WAH YE KUCH LAENE PAKAR MAI KUCH CHOCHNE PAR MAJBOOR HO GAYA...AAPNE SACH ME EK BAHUT-BAHUT-BAHUT ACHHI GAZAL LIKHI HAI
kiyaa baat hai bouth he aacha post
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"भूख और प्यास के डर से खुदा भी
जवाब देंहटाएंझोंपडे छोड़ कर मंदिरों में पड़े हैं।"
गजल के शैर का जवाब नहीं।
मौलिक विचारों के साथ एक बढियां रचना।
आभार।
aap ne bahut accha likha hai.
जवाब देंहटाएंAtyant prabhavi abhivyakti. Badhai.
जवाब देंहटाएंसच्च तो ये है इस खूबसूरत ताज में
जवाब देंहटाएंईंट गारे की जगह आदमी जड़े हैं...
wah wah...
bahut kboob.....
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