खुशी या गम हो तेरे आंसुओं में ढलता हूँ
तुझे ख़बर है तेरी चश्मे-नम में रहता हूँ
क्या हुवा जो तेरा हाथ भी न छू सका
तेरे माथे की सुर्ख चांदनी में जलता हूँ
है और बात तेरे दिल से हूँ मैं दूर बहुत
तुम्हारी मांग में सिन्दूर बनके सजता हूँ
मैंने माना तेरी खुशियों पर इख्तियार नही
तेरे हिस्से का गम खुशी खुशी सहता हूँ
============================
तेरा ख्याल मेरे दिल से क्यों नही जाता
जब कभी सामने आती हो कह नही पाता
तमाम बातें यूँ तो दिल में मेरे रहती हैं
तुम्हारे सामने कुछ याद ही नही आता
मैंने माना तेरी खुशियों पर इख्तियार नही
जवाब देंहटाएंतेरे हिस्से का गम खुशी खुशी सहता हूँ
बहुत खूब लिखा है आपने
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंkhoobsoorat rachna. badhai
जवाब देंहटाएंbahot badhiya achhi rachana.... dhero badhai aapko...
जवाब देंहटाएंarsh
है और बात तेरे दिल से हूँ मैं दूर बहुत
जवाब देंहटाएंतुम्हारी मांग में सिन्दूर बनके सजता हूँ
-ये कौन दिशा चले, बाबू?? :)
वैसे अदरवाईज़ बेहतरीन है/ :)
तेरा ख्याल मेरे दिल से क्यों नही जाता
जवाब देंहटाएंजब कभी सामने आती हो कह नही पाता
बहुत खूब
aji kyakahe kaayak ho gaye gazal kebehad sundar
जवाब देंहटाएंआपने बढ़िया कहा है.
जवाब देंहटाएंहर तजुर्बे को सहा है..
इसलिये ब धा ई........
बेहतरीन भाई. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ही बेहतरीन लिखा है ....उत्तम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी, आज ये कोन सी राह पकड ली.
जवाब देंहटाएंलगता है कि अभी बहुत से रूप देखने बाकी हैं आपके........
क्या हुवा जो तेरा हाथ भी न छू सका
जवाब देंहटाएंतेरे माथे की सुर्ख चांदनी में जलता हूँ
bahut umda shabd rachana v bhavpurna
बहुत ही घटिया कविता है। स्त्री विरोधी भी है।
जवाब देंहटाएंमन को छूती, बहुत बहुत बहुत ही सुंदर रचना.....
जवाब देंहटाएंमान लिया जाता है कि ,पुरूष स्त्री को नही समझ पाता और पीड़ा के साथ स्त्री का ही चोली दामन का साथ होता है,पर पुरूष पक्ष की उस मनोव्यथा को आपने इतनी खूबसूरती से उभारा है कि क्या कहूँ.....
सिर्फ़ वाह,वाह और वाह...
क्या हुवा जो तेरा हाथ भी न छू सका
जवाब देंहटाएंतेरे माथे की सुर्ख चांदनी में जलता हूँ
पुरूष के मन का एक नया पक्ष रखती हुई...
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल..
benaam ghajal achchi lagi
जवाब देंहटाएंदिगंबर नासवा जी
जवाब देंहटाएंआपकी रचना में एक नयापन देखने को मिला इसके लिए साधुवाद.
आर्यश्री पर आपका सुझाव उपयुक्त है.
रत्नेश त्रिपाठी
नई दिल्ली
आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ और आज मैं जान पाया कि अब तक कितना खो चुका हूँ...खैर जो मैंने खोया वो आपके पास सुरक्षित है और सब पाने कि कोशिश करूँगा.
जवाब देंहटाएंachhi abhivyakti hai.
जवाब देंहटाएंमैंने माना तेरी खुशियों पर इख्तियार नही
जवाब देंहटाएंतेरे हिस्से का गम खुशी खुशी सहता हूँ
एक शानदार ग़ज़ल. बधाई.
बहुत खूब लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंşırnak
जवाब देंहटाएंağrı
maraş
yalova
zonguldak
DMYD4