स्वप्न मेरे: जब कभी ऐसा होगा.......

रविवार, 29 मार्च 2009

जब कभी ऐसा होगा.......

१)

जब कभी ऐसा होगा..............

ये कायनात रुक जायेगी
सांस लेती प्रकृति थम जायेगी
बहती हुयी हवा ठिठक जायेगी
आसमान पर चमकता सूरज अंधा हो जायेगा
पल इक पल को रुक जायेगा
उस पल...............
मैं चुपके से तुझे अपने हाथों में उठा लूंगा
कैद कर लूँगा तेरे मीठे स्पर्श को

२)

जब कभी ऐसा होगा..............

समुन्दर की तेज़ लहरें
पूनम के चाँद से मिलने को बेताब होंगी
चाँद भी ज़मीन के कुछ करीब होगा
उस पल............
तू चुपके से मेरी किश्ती पर चले आना
चाँद पर नानी से कह कर
एक आशियाना बनाया है मैंने

३)

जब कभी ऐसा होगा..............

ये आसमान जमीन के करीब होगा
सितारे मेरी छत को छूने लगेंगे
उस पल..................
तू चुपके से मेरे पहलू में चली आना
हाथ बढ़ा कर ये सितारे मैं तोड़ लूँगा
सजा दूंगा फिर तेरी मांग
हमेशा हमेशा के लिए

४)

जब कभी ऐसा होगा..............

तारों की छाँव में तेरी डोली सजी होगी
चाँद जाने को होगा, सूरज की प्रतीक्षा होगी
बिदाई के राग में शहनाई बज रही होगी
उस पल................
ओस बन कर मैं हरी घास पर बिखर जाऊंगा
तू चुपके से नंगे पाँव गुज़र जाना
तेरा मेरा वो अंतिम मिलन होगा

27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर , अलग किस्तों में अभिव्यक्ति बहुत ही सुखद लगी ।

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  2. namskar digambarji,
    kareeb 4 rachnaye mere jaane ke; baad aapke dvara post ki gai..
    aaj pdhi..bahut sundar abhvyakti he..
    jab kabhi esa hoga....
    ek bhavishya kalpna ke saath vishvaas ka jo taanaa baanaa kavita ke madhyam se aapne vyakt kiya he vo lazavaab he..isme aapki prem shaqti abhivyakt hoti he saath hi apne premi ko param santushti pradaan karti hui panktiya he jiske bhavo me jitne gote lagao kam hi honge..

    2, prakrti canvas par...
    bahut khoob rachna he..sach bhi he unka aks masoomiyat ke saath prakrti me ubhar aayega kyuki ynha to prem hi prem he aour usise nirmaan he prakrti..
    3, maa kaa aanchal ho gaya..
    सो गया फिर चैन से जब लौट कर आया यहाँ,
    गांव का पीपल ही जैसे मां का आंचल हो गया,

    shabd lupt ho jaate he ynha. kya badhiya likha he..javaab hi nahi..
    4, holi ki mangal kamnao ke saath jo rachna he vo thik holi ki hurdang aour masti ki tarah he..
    ye chaaro rachna aapki rachnatmakta ki vividha ko ujaagar karti he..

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  3. तारों की छाँव में तेरी डोली सजी होगी
    चाँद जाने को होगा, सूरज की प्रतीक्षा होगी
    बिदाई के राग में शहनाई बज रही होगी
    उस पल................
    ओस बन कर मैं हरी घास पर बिखर जाऊंगा
    तू चुपके से नंगे पाँव गुज़र जाना
    तेरा मेरा वो अंतिम मिलन होगा
    uff aaj to gazab gazab ke swapnil ehsaason se bani hai saari rachanaye,khubsurat chand sitaron ki tarah chamkili aur fiza mein ishq ghuli si,sach kahen tariff ke liye shabd kam pade,dil ko chu gayi saari ke saari,lajawab.

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  4. मिलन और बिरहा के अलग-अलग रंगों को चित्रित
    करती हुई खूबसूरत नज्म आपकी umda सोच की tarjumani
    करती है ....bhaav-paksh बहुत prabhaavit करता है
    badhaaee svikaarein

    ---MUFLIS---

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  5. खूबसूरत शब्‍दों से सजी सुंदर रचना। पढना अच्‍छा लगा। आभार।

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  6. बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकारें

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  7. BAHOT HI KHUBSURATI SE HAK AADAA KIYA HAI AAPNE... PRASTUTI BHI UTNI HAI KHUBSURATI SE KI HAI JISTARAHSE BHAAVABHIBYAKTI HAI ISME... MILAN AUR VIRAH KA BEJOD SANGAM HAI ...


    ARSH

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  8. जब कभी ऐसा होगा..............

    ये आसमान जमीन के करीब होगा
    सितारे मेरी छत को छूने लगेंगे
    उस पल..................
    तू चुपके से मेरे पहलू में चली आना
    हाथ बढ़ा कर ये सितारे मैं तोड़ लूँगा
    सजा दूंगा फिर तेरी मांग
    हमेशा हमेशा के लिए
    बहुत ही सुंदर भाव से भरे शव्दो से सजया है आप ने अपनी इन कविताओ को बहुत ही सुंदर.
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  9. दिगंबर जी ,
    वैसे तो पूरी रचना ही बहुत भावः पूर्ण है लेकिन इन पंक्तियों ने ज्यादा प्रभावित किया
    ओस बन कर मैं हरी घास पर बिखर जाऊंगा
    तू चुपके से नंगे पाँव गुज़र जाना
    तेरा मेरा वो अंतिम मिलन होगा
    हेमंत कुमार

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  10. ओस बन कर मैं हरी घास पर बिखर जाऊंगा
    तू चुपके से नंगे पाँव गुज़र जाना
    तेरा मेरा वो अंतिम मिलन होगा
    ...अच्छे भाव हैं।

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  11. बहुत ही लाजवाब रचानाएं शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. बहुत अच्‍छे भाव ... बहुत सुंदर रचना है।

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  13. सभी के सभी एक से बढ़कर एक हैं ......

    मैं चुपके से तुझे अपने हाथों में उठा लूंगा
    कैद कर लूँगा तेरे मीठे स्पर्श को ....................... बहुत ही खूबसूरत

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  14. बहुत सुन्दर दिलको छू लेने वाली रचना .
    धन्यवाद

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  15. बहुत ही सुन्दरतापूर्वक भावों को अभिव्यक्त किया है आपने......बधाई

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  16. दिगम्‍बर जी बिछोह और मिलन का शब्‍दों से बहुत कुशलता से बांधा है आपने । अमृता प्रीतम जी की कविता 'मैं मिलूंगी तुझे ' की याद दिला दी ।

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  17. आनंद आया। दिल में हलचल हुई। शब्‍दों ने भीतर गहरे जाकर दसतक दी। भावपूर्ण रचना। बधाई।

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  18. आदरणीय दिगंबर जी ,
    बहुत भावनात्मक कविता ...हर पंक्ति आपके प्रकृति के प्रति लगाव को दर्शाने वाली ..
    बधाई

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  19. अय हाय दिगम्बर जी...
    "ओस बन कर मैं हरी घास पर बिखर जाऊंगा
    तू चुपके से नंगे पाँव गुज़र जाना "

    छू गयी अंदर चारों अभिव्यक्तियाँ...

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  20. चारों रचनाएँ अपनी अभिव्यक्ति में बेजोड़ हैं..

    मगर पंक्तियाँ यह बहुत अद्भुत लगीं !

    'ओस बन कर मैं हरी घास पर बिखर जाऊंगा
    तू चुपके से नंगे पाँव गुज़र जाना
    तेरा मेरा वो अंतिम मिलन होगा '

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  21. तारों की छाँव में तेरी डोली सजी होगी
    चाँद जाने को होगा, सूरज की प्रतीक्षा होगी
    बिदाई के राग में शहनाई बज रही होगी
    उस पल................
    ओस बन कर मैं हरी घास पर बिखर जाऊंगा
    तू चुपके से नंगे पाँव गुज़र जाना
    तेरा मेरा वो अंतिम मिलन होगा

    क्या कहूँ...? आज तो आपने भी बेलफ़्ज कर दिया...!!
    बहुत ही संवेदनशील दिल को छूती हुई ये पंक्तियाँ गहरे तक असर कर गयीं....!!

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  22. ओस बन कर मैं हरी घास पर बिखर जाऊंगा
    तू चुपके से नंगे पाँव गुज़र जाना

    Atyan sundar aur bhavpurna.Badhai.

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  23. नमस्कार!
    वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आप की रचनाएँ, स्टाइल अन्य सबसे थोड़ा हट के है....

    आप मेरे ब्लॉग पर आए और एक उत्साहवर्द्धक कमेन्ट दिया, शुक्रिया.

    …Ravi Srivastava

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