स्वप्न मेरे: मासूम एहसास

बुधवार, 13 मई 2009

मासूम एहसास

१)

खिड़की के सुराख से निकल
भोर की पहली किरन
चुपके से तेरे करीब आ जाती है
कुछ सोई, कुछ जागी हुयी नींद के बीच
तेरा मासूम चेहरा सिन्दूरी हो जाता है
जो हो सके तो कुछ देर और सोये रहना
मैं आज पूजा के थाल में
दीपक जलाना भूल गया

२)

अपनी हथेली पर
धूप की मखमली चादर लपेटे
तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ
नर्म ओस की बूंदों में
अपना एहसास समेटे
तू चुपके से चली आना
अपनी साँसों में भर लूँगा
धुंवा धुंवा होता तेरा एहसास

३)

अपनी तस्वीर आईने में देखी
अपनी तस्वीर में उनकी तस्वीर देखी
उनकी आँखों में छाई उदासी देखी
उनके चेहरे पे ढलती शाम देखी
फिर सोचा................
ये भी क्या तस्सवुर देखी
अपने महबूब की ही ऐसी तस्वीर देखी

34 टिप्‍पणियां:

  1. SUNDAR KHAYAAL AUR EHSAASAAT KE LIYE BAHOT BAHOT BADHAAYEE...



    ARSH

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  2. वाह भाई बहुत खूबसूरत..तीनों की तीनों ..एक से बढकर एक. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. खिड़की के सुराख से निकल
    भोर की पहली किरन
    चुपके से तेरे करीब आ जाती है
    कुछ सोई, कुछ जागी हुयी नींद के बीच
    तेरा मासूम चेहरा सिन्दूरी हो जाता है
    जो हो सके तो कुछ देर और सोये रहना
    मैं आज पूजा के थाल में
    दीपक जलाना भूल गया


    ....क्या बात है साहब, खूबसूरत... दिल ले गए ये अहसास ..

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  4. जो हो सके तो कुछ देर और सोये रहना
    मैं आज पूजा के थाल में
    दीपक जलाना भूल गया

    वाह जी वाह ...क्या प्रेमाभ्यक्ति है....!!

    तू चुपके से चली आना
    अपनी साँसों में भर लूँगा
    धुंवा धुंवा होता तेरा एहसास

    बहुत खूब ...!!

    अपनी तस्वीर आईने में देखी
    अपनी तस्वीर में उनकी तस्वीर देखी

    आप ऐसे ही अपनी तस्वीर में उनकी तस्वीर देखते रहो....!!

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  5. अपना एहसास समेटे
    तू चुपके से चली आना
    अपनी साँसों में भर लूँगा
    धुंवा धुंवा होता तेरा एहसास
    waah bahut hi sunder,teeno kavita bahut achhi lagi,dusriwalo bahut hi khas.

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  6. खिड़की के सुराख से निकल
    भोर की पहली किरन
    चुपके से तेरे करीब आ जाती है
    कुछ सोई, कुछ जागी हुयी नींद के बीच
    तेरा मासूम चेहरा सिन्दूरी हो जाता है
    जो हो सके तो कुछ देर और सोये रहना
    मैं आज पूजा के थाल में
    दीपक जलाना भूल गया


    --गजब, दिगम्बर!! छा गये. आनन्द आ गया!! वाह!

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  7. तीनों ही रचनाएं एक से एक बढ़ कर हैं। कविता का सौंदर्य यह भी है कि पढ़ने वाला भी उसमें अपना अक्स देखने लगता है या फिर कुछ याद आजाता है, ऐसी रचना के सीमित शब्दों का विस्तृत रूप दिखाई देने लगता है। आपकी तीसरी क्षणिका ने मुझे भी अतीत में भेज दिया जब किसी ने यह कहा था:

    एतबार उस दम हो जज़्बा-ए-इश्क़ का
    जब तेरी सूरत नज़र आए मेरी तस्वीर में।
    एक और:
    क्यों तसव्वर तेरा इतना बढ़ जाता है, कि
    आइना देखो तो चेहरा तेरा नज़र आता है।

    आपकी तीनों कविताएं बहुत अच्छी लगीं।
    बधाई।
    महावीर शर्मा

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  8. दिगम्बर जी गजब का लिखते है आप । अपनी पूरी नज्म मे जान भर दी है आपने । खासकर ये लाजबाब लगा
    अपनी तस्वीर आईने में देखी
    अपनी तस्वीर में उनकी तस्वीर देखी
    उनकी आँखों में छाई उदासी देखी
    उनके चेहरे पे ढलती शाम देखी
    फिर सोचा................
    ये भी क्या तस्सवुर देखी
    अपने महबूब की ही ऐसी तस्वीर देखी

    जवाब देंहटाएं
  9. digambar ji , yun to teenon rachnayen bahut achchi hain parantu teesri ka tasavvur achcha laga. badhai.

    जवाब देंहटाएं
  10. digambar ji , yun to teenon rachnayen bahut achchi hain parantu teesri ka tasavvur achcha laga. badhai.

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  11. कुछ देर और सोये रहना
    मैं आज पूजा के थाल में
    दीपक जलाना भूल गया
    ये विशुद्ध प्रेम की कविता है जिसे बिना प्रेम किये नहीं लिखा जा सकता । कहते हैं ना जाके पैर न फटी बिवाई वो क्‍या जाने पीर पराई । ये प्रेम की पंक्तियां भी नहीं हैं ये तो प्रेम में डूब कर निकाले गये मोती हैं । जिसे गालिब ने भी कहा कि डूब कर जाना है और खुसरो ने भी कहा कि जो डूबा वो पार । आपकी सारी कविताओं इन तीन पंक्तियों पर निसार । बधाई ।

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  12. ाप चाहे पूज के थाल मे दीपक् जलाना भूल गये मगर हम अपके एह्सास पढ कर टिप्पणी देना नही भूलेंगे बहु्त् ही बडिया लिखा है बधाई

    जवाब देंहटाएं
  13. अपनी हथेली पर
    धूप की मखमली चादर लपेटे
    तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ
    नर्म ओस की बूंदों में
    अपना एहसास समेटे
    तू चुपके से चली आना
    अपनी साँसों में भर लूँगा
    धुंवा धुंवा होता तेरा एहसास
    " निशब्द हूँ , ये पंक्तियाँ बरबस ही दिल मे उतरी जाती हैं.....बेहद भावनात्मक एहसास.."

    regards

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  14. मासूम एहसासों को इतनी मासूमियत से कह देना छू जाता है मन को ! सुन्दर रचना !

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  15. अपनी तस्वीर में उनकी तस्वीर देखी
    उनकी आँखों में छाई उदासी देखी
    उनके चेहरे पे ढलती शाम देखी

    आदरणीय दिगंबर जी ,
    बहुत खूबसूरत रचना सुंदर भावों के साथ ...
    हार्दिक शुभकामनायें .

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  16. खिड़की के सुराख से निकल
    भोर की पहली किरन
    चुपके से तेरे करीब आ जाती है
    कुछ सोई, कुछ जागी हुयी नींद के बीच
    तेरा मासूम चेहरा सिन्दूरी हो जाता है
    जो हो सके तो कुछ देर और सोये रहना
    मैं आज पूजा के थाल में
    दीपक जलाना भूल गया"

    भई वाह्! दिगम्बर जी, सुन्दर प्रेमभिव्क्ति.. हम तो आपके इस रूप से बिल्कुल ही अनभिज्ञ थे.

    जवाब देंहटाएं
  17. गुल्ज़ार की ख़ुशबू उड़ा रहे हैं

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  18. अपनी हथेली पर
    धूप की मखमली चादर लपेटे

    वाह!बहुत ही खूबसूरत मखमली अहसास है!

    तीनो ही रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं.

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  19. कोमल भावों को इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने की मन मुग्ध हो गया.....
    बहुत बहुत सुन्दर रचनाएँ वाह !!!
    पढ़वाने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  20. दिगंबर जी ,
    जबरदस्त कविता है. बहुत ही कोमल और मनभावन.
    मैं आज पूजा के थाल में
    दीपक जलाना भूल गया...
    लाज़वाब /
    अपनी हथेली पर
    धूप की मखमली चादर लपेटे
    तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ
    नर्म ओस की बूंदों में
    अपना एहसास समेटे
    तू चुपके से चली आना
    अपनी साँसों में भर लूँगा
    धुंवा धुंवा होता तेरा एहसास

    भावविभोर .../

    मेरा नमन स्वीकार करे ...

    जवाब देंहटाएं
  21. जो हो सके तो कुछ देर और सोये रहना
    मैं आज पूजा के थाल में
    दीपक जलाना भूल गया"
    प्रेम की इस से सुंदर अभिव्यक्ति और क्या हो सकती है... जब अपने प्रेम को ईश्वर का स्थान दे दिया गया हो ..... वाह बहुत सुंदर

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  22. मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बहुत शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए!
    बहुत ही ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने!

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  23. bahut hi bhavnatmak rachna..........dil ko andar tak kahin bahut hi gahre choo gayi..........kya umda khyal hain.
    waah.........bahut khoob.

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  24. en paktiyo me jo bhawnaye chhupi huyee hai wo kabhi prashanshniye hai...achhi lagi ye panktiya....

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  25. मेरे ब्लॉग स्ट्रक्चर पर टिप्पणी के लिए आभार
    nice poetry

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  26. Wah aapki ye wali Triveni to bhaut achhi lagi

    अपनी हथेली पर
    धूप की मखमली चादर लपेटे
    तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ
    नर्म ओस की बूंदों में
    अपना एहसास समेटे
    तू चुपके से चली आना
    अपनी साँसों में भर लूँगा
    धुंवा धुंवा होता तेरा एहसास

    bahut achha

    जवाब देंहटाएं
  27. तीनों रचनाएं कमाल लेकिन ये तो बस धमाल

    खिड़की के सुराख से निकल
    भोर की पहली किरन
    चुपके से तेरे करीब आ जाती है
    कुछ सोई, कुछ जागी हुयी नींद के बीच
    तेरा मासूम चेहरा सिन्दूरी हो जाता है
    जो हो सके तो कुछ देर और सोये रहना
    मैं आज पूजा के थाल में
    दीपक जलाना भूल गया

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