1)
शब्द जब गूंगे हो जाए
सांस कुछ कहने लगे
चाँद की ओटक से निकल
काली रात सरकने लगे
गुनगुनाती हवा नए साज़ छेड़े
तू चली आये
रात रानी की खुशबू का आँचल ओड़े
तेरी नर्म हथेली
अपने हाथों में लेकर
मैं मुंह छुपा लूँगा.....
तेरे हाथ की रेखाओं में
हमेशा के लिए बस जाऊँगा
2)
जब कभी
स्याह चादर लपेटे
ये कायनात सो जाएगी
दूर से आती
लालटेन की पीली रौशनी
जागते रहो का अलाप छेड़ेगी
दो मासूम आँखें
दरवाज़े की सांकल खोल
किसी के इंतज़ार में
अंधेरा चूम लेंगी
जैसे क्षितिज पर चूम लेते हैं
बादल ज़मीन को
वक़्त उस वक़्त ठहर जाएगा
रविवार, 28 जून 2009
शनिवार, 20 जून 2009
रिसने लगी रोशनी है आफताब से
बहुत दिनों तक प्रेम के उन्मुक्त सागर में डुबकियां लगाते छंद-मुक्त रचनाओं में खो गया था......लीजिये आज फिर से पेश है ग़ज़ल आप सब की नज़र जो आदरणीय पंकज जी के आर्शीवाद से सजी, संवरी है.........
गंध सी झरने लगी है माहताब से,
पंखुरी क्या तोड़ ली तुमने गुलाब से
शाम का सिंदूर राह पर बिखर गया
रिसने लगी रोशनी है आफताब से
कौन ये जाने के दर्द कितना है छुपा
मंडियां झिलमिल हैं हो रहीं शबाब से
फिर कोई ताजा फसाना ढूंढ लेंगें वो
फूल है सूखा हुआ मिला किताब से
बांध के अश्कों को रोक तो लिया गया
झांक रहा दर्द किन्तु है नकाब से
गंध सी झरने लगी है माहताब से,
पंखुरी क्या तोड़ ली तुमने गुलाब से
शाम का सिंदूर राह पर बिखर गया
रिसने लगी रोशनी है आफताब से
कौन ये जाने के दर्द कितना है छुपा
मंडियां झिलमिल हैं हो रहीं शबाब से
फिर कोई ताजा फसाना ढूंढ लेंगें वो
फूल है सूखा हुआ मिला किताब से
बांध के अश्कों को रोक तो लिया गया
झांक रहा दर्द किन्तु है नकाब से
सोमवार, 15 जून 2009
शब्द कुछ भटके हुवे
१)
कोहरे से छन कर आती
लैंप पोस्ट की पीली रौशनी तले
पश्मीना की शाल ओढे
गुमसुम
खंभे से सर टिकाये
खामोश बैठी थी वो रात
ठण्ड से कांपती हवा
तेरे होठों को छू कर
गुज़र गयी थी उस रोज़……
बस तभी से दो आंसू
जमें रहते हैं मेरी पलकों में...........
२)
रूई गिर रही थी उस पल
बर्फ की सफ़ेद चादर पर
फ़र की नीली टोपी पहने
तुमने कुछ कहा था जिस पल
हवा में गिरने से पहले
जम गए थे वो शब्द.........
आज भी जाग उठते हैं वो शब्द
बर्फ की सफ़ेद चादर
जब धीरे धीरे पिघलती है........
नया मौसम भी तो अंगडाई लेता है उस पल
कोहरे से छन कर आती
लैंप पोस्ट की पीली रौशनी तले
पश्मीना की शाल ओढे
गुमसुम
खंभे से सर टिकाये
खामोश बैठी थी वो रात
ठण्ड से कांपती हवा
तेरे होठों को छू कर
गुज़र गयी थी उस रोज़……
बस तभी से दो आंसू
जमें रहते हैं मेरी पलकों में...........
२)
रूई गिर रही थी उस पल
बर्फ की सफ़ेद चादर पर
फ़र की नीली टोपी पहने
तुमने कुछ कहा था जिस पल
हवा में गिरने से पहले
जम गए थे वो शब्द.........
आज भी जाग उठते हैं वो शब्द
बर्फ की सफ़ेद चादर
जब धीरे धीरे पिघलती है........
नया मौसम भी तो अंगडाई लेता है उस पल
गुरुवार, 11 जून 2009
वक़्त से चुराए कुछ पल
1)
काश मैं वक़्त को रोक लेता
तेरी खुश्बू
इन वादियों में बस जाती
इंद्रधनुष के रंगों में
तू झिलमिलाती
मैं इन रंगों को चुरा लेता
ता उम्र तेरे रंगों में रंगे
जीवन बिता देता
काश मैं वक़्त को रोक लेता
2)
सूरज के सो जाने पर
शाम के मुहाने पर
अँधेरे की चादर लपेटे
रात उतरी है तेरे सिरहाने पर
उठा कर रेशमी रजाई
तू मुखडा दिखा देना
सितारे भी बेताब हैं
तेरे पहलू में उतर आने को
3)
अचानक
नीले आकाश पर
काली बदली का छा जाना
मस्ती में झूमती
बूंदों की ताल पर
मयूर का थिरकना
तेज़ हवा के झौंकों में
तितलियों का लरजना
लगता है
दूर तक फैली इन वादियों ने
तेरे क़दमों की आहट सुन ली
काश मैं वक़्त को रोक लेता
तेरी खुश्बू
इन वादियों में बस जाती
इंद्रधनुष के रंगों में
तू झिलमिलाती
मैं इन रंगों को चुरा लेता
ता उम्र तेरे रंगों में रंगे
जीवन बिता देता
काश मैं वक़्त को रोक लेता
2)
सूरज के सो जाने पर
शाम के मुहाने पर
अँधेरे की चादर लपेटे
रात उतरी है तेरे सिरहाने पर
उठा कर रेशमी रजाई
तू मुखडा दिखा देना
सितारे भी बेताब हैं
तेरे पहलू में उतर आने को
3)
अचानक
नीले आकाश पर
काली बदली का छा जाना
मस्ती में झूमती
बूंदों की ताल पर
मयूर का थिरकना
तेज़ हवा के झौंकों में
तितलियों का लरजना
लगता है
दूर तक फैली इन वादियों ने
तेरे क़दमों की आहट सुन ली
शनिवार, 6 जून 2009
तुम
१)
ख़ामोशी को
लग गयी ज़ुबां
बोलती रही
बीते लम्हों की दास्ताँ
कोहरे की चादर लपेटे
गुज़रता रहा कारवाँ
२)
काश मैं वक़्त को रोक पाता
घड़ी की सूइयों को मोड़ पाता
देखता रहता उम्र भर
पूजा की थाली लिए
पलकें झुकाये
गुलाबी साड़ी में लिपटा
सादगी भरा तेरा रूप........
३)
चाँद जब समुन्दर में उतरे
नूर तारों का
लहरों में बिखरे
तुम आसमाँ पर चली आना
रोक लूँगा यूँ ही इस रात को
तुम चाँद बन कर मुस्कुराना
मैंने सुना है इस धरती का
एक ही चाँद है
ख़ामोशी को
लग गयी ज़ुबां
बोलती रही
बीते लम्हों की दास्ताँ
कोहरे की चादर लपेटे
गुज़रता रहा कारवाँ
२)
काश मैं वक़्त को रोक पाता
घड़ी की सूइयों को मोड़ पाता
देखता रहता उम्र भर
पूजा की थाली लिए
पलकें झुकाये
गुलाबी साड़ी में लिपटा
सादगी भरा तेरा रूप........
३)
चाँद जब समुन्दर में उतरे
नूर तारों का
लहरों में बिखरे
तुम आसमाँ पर चली आना
रोक लूँगा यूँ ही इस रात को
तुम चाँद बन कर मुस्कुराना
मैंने सुना है इस धरती का
एक ही चाँद है
सोमवार, 1 जून 2009
दर्द
१)
सुर्ख पगडंडी पर
तैरता लावा
रिसते हुवे खून से बनी
तेरे माथे की वो लकीर
जिसके उस पार
उतरने की जद्दोजहद
जिस्म के आखरी कतरे तक
जगनू सी चमकती रहेगी
तेरी मांग
२)
तम्हारे पावँ के छाले
अपनी पलकों में सहेज लूँगा
तेरे दिल पर पढ़े ज़ख्म
दस्ते-नाज़ुकी से उठा लूँगा
तेरे दर्द का सहारा लेकर
तुझी से.................
एक रिश्ता जोड़ लूँगा
३)
तेरे माथे पर उभर आयी
पसीने की बूंदें
तेरी आँखों में उभरता
आंसुओं का सैलाब
हल्के हल्के से आती
सिसकियों की आवाज़
तू चुपके से
मेरी बाहों में सो जाना
धीरे धीरे
मीठे सपनों में खो जाना
सुर्ख पगडंडी पर
तैरता लावा
रिसते हुवे खून से बनी
तेरे माथे की वो लकीर
जिसके उस पार
उतरने की जद्दोजहद
जिस्म के आखरी कतरे तक
जगनू सी चमकती रहेगी
तेरी मांग
२)
तम्हारे पावँ के छाले
अपनी पलकों में सहेज लूँगा
तेरे दिल पर पढ़े ज़ख्म
दस्ते-नाज़ुकी से उठा लूँगा
तेरे दर्द का सहारा लेकर
तुझी से.................
एक रिश्ता जोड़ लूँगा
३)
तेरे माथे पर उभर आयी
पसीने की बूंदें
तेरी आँखों में उभरता
आंसुओं का सैलाब
हल्के हल्के से आती
सिसकियों की आवाज़
तू चुपके से
मेरी बाहों में सो जाना
धीरे धीरे
मीठे सपनों में खो जाना
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