१)
कोहरे से छन कर आती
लैंप पोस्ट की पीली रौशनी तले
पश्मीना की शाल ओढे
गुमसुम
खंभे से सर टिकाये
खामोश बैठी थी वो रात
ठण्ड से कांपती हवा
तेरे होठों को छू कर
गुज़र गयी थी उस रोज़……
बस तभी से दो आंसू
जमें रहते हैं मेरी पलकों में...........
२)
रूई गिर रही थी उस पल
बर्फ की सफ़ेद चादर पर
फ़र की नीली टोपी पहने
तुमने कुछ कहा था जिस पल
हवा में गिरने से पहले
जम गए थे वो शब्द.........
आज भी जाग उठते हैं वो शब्द
बर्फ की सफ़ेद चादर
जब धीरे धीरे पिघलती है........
नया मौसम भी तो अंगडाई लेता है उस पल
बर्फ की सफ़ेद चादर
जवाब देंहटाएंजब धीरे धीरे पिघलती है........
नया मौसम भी तो अंगडाई लेता है उस पल
जिन्दगी की भी कुछ ऐसे ही मौसम होते है जिसमे कई मौसम आते है और जाते है ...........पर जिन्दगी खत्म नही होती.......बहुत सुन्दर .....
पर इन मौसम को एहसास करने की जरुरत होती है.
उन्दा अभिव्यक्ति
shabdo ka jamna aour pighal kar fir jaagnaa shabdo ka nayaa jivan hi to he/// vo do aansoo bhi palko se ojhal ho jaate he jo kabhi jame the...//ek nai shuruaat///shayad fir isi maahol ko naye andaaz me kahne ke liye//
जवाब देंहटाएंwah/ achha laga kavita ka yah roop bhi///aapki baat hi kuchh aour he//aanand hi aanad//shbdo ke sang pryogo ka khoobsoorat avishkaar...///
बहुत सुन्दर रचनाएं हैं।बधाई।
जवाब देंहटाएंdigambar ji , donon rachnayen bahumoolya.
जवाब देंहटाएंदोनों रचनाएँ उम्दा .
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब रचना. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
dono hi kavitawon ka apna apna hi rang hai khub parvarish kari hai aapne inki... padhte hi bantaa hai... dhero badhaayee sahib...
जवाब देंहटाएंarsh
bahut bahut bahut achchhi rachnayein hain
जवाब देंहटाएंवाह दो बहुत ही उम्दा कविताएँ!आपकी ग़ज़लों को पढ़े जमाना हुआ कोई ग़ज़ल भी छोड़िये न!:D
जवाब देंहटाएंaapki dono rachana khoosurat hai .main to kho gayi thi padhate huye .shaandar bhavpurn .swapan ji ke blog se is rachana ka sukh le payi .
जवाब देंहटाएंआज भी जाग उठते हैं वो शब्द
जवाब देंहटाएंबर्फ की सफ़ेद चादर
जब धीरे धीरे पिघलती है........
नया मौसम भी तो अंगडाई लेता है उस पल
--वाह वाह!!
क्या बात है जनाब!!
नव-गीत की श्रंखला में अनूठी रचनाकारी के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचनाएँ हैं दोनों!दूसरी वाली ज्यादा पसंद आई.
जवाब देंहटाएंbarph ki saphed chaadar ...achchi lagi badhai.
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसूरत और उम्दा रचना लिखा है आपने जिसके लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन , एक बात गर्मी में बर्फ ठंडक पंहुचा रही है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने। पढ़ते ही सारे दृश्य आखों के सामने तैर जाते हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी ये छोटी छोटी और मन को लुभाने वाले ये शब्द हमेशा बहुत ही अच्छे लगते हैं......
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से बहुत ही अच्छा लिखा है..........
इस सुखनवरी के क्या कहने। ऐसा लगता है कि अभी-अभी हमने जिंदगी के सबसे हसीन पल को सीने में कुर्क कर लिया है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने क्षण को शब्दों में कैद कर लिया हो और हम उनके करतब पर मोहित हो रहे हों।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता में शब्द भी बर्फ की रूई की तरह झर रहे हैं। बधाई।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
laaazabab,umda, behtareen aur mere paas shabd hi nahi hai
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है.बधाइयाँ!
जवाब देंहटाएंWah..
जवाब देंहटाएंशब्द कोष और अभिव्यक्ति बहुत ही खूबसूरत है
जवाब देंहटाएंसादर !!
दिगम्बर जी,
जवाब देंहटाएंमेरी पहली यात्रा थी "स्वपन मेरे...." की, इससे पहले आपका नाम बहुत बार टिप्पणियों में पढा था, पर कभी आया नही था।
बहुत ही नर्म-नर्म गीत मखमली मुलायम से या यूँ कह लूँ जिस तरह हाथ पर मक्खन पिघल जाता है उसी तरह ही ये शब्द पढते पढते मानस में घुल जाते है।
बधाई।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
ठण्ड से कांपती हवा
जवाब देंहटाएंतेरे होठों को छू कर
गुज़र गयी थी उस रोज़……
बस तभी से दो आंसू
जमें रहते हैं मेरी पलकों में...........
लगता है किन्हीं कोमल भावनाओं के हिल स्टेशन पर मन पहुँच गया है और बर्फ की ठंडी रिमझिम मे भाव दिल के अंदर जम से गये हैं
तीनो अभिव्यक्तियां बहुत ही लाजवाब हैं बधाई
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंएक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंएक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
आपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
जवाब देंहटाएं__________________________________
आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
बर्फ की सफ़ेद चादर
जवाब देंहटाएंजब धीरे धीरे पिघलती है........
नया मौसम भी तो अंगडाई लेता है उस पल
aapki is kavita ne nishabd kar diya, kabhi kabhi shabdon ki kami kitni khalti hain na ?