शनिवार से एक हफ्ते की छुट्टी ............ ब्लोगिंग से दूर, दुबई की जलती गर्मी से भी दूर, वतन की भीनी भीनी खुशबू का आनंद लेते. तब तक के लिए ये ग़ज़ल आप सब की नज़र ..............
आरजू वादे, वफ़ा, जुस्तजू और प्यार पर
कितने अफ़साने बने हैं इक निगाहें यार पर
पार कर लेगा तमाम ज़िन्दगी की अड़चनें
रात दिन चलता रहा जो चाकुओं कि धार पर
मोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
झूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
आ गया फिर बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
गीत बन कर महक उठेंगे जो कि तुमने स्वर दिये
छोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर
मोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
जवाब देंहटाएंझूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर
बेहद दिलकश नज्म ......खुबसूरत अंदाज...
regards
Ati sundar.
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )
भाई जी
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे !
राह है, दीवार है, बादल भी है बौछार है,
लेकिन मिट्टी की महक में प्यार है बस प्यार है.
पार कर लेगा तमाम ज़िन्दगी की अड़चनें
जवाब देंहटाएंरात दिन चलता रहा जो चाकुओं कि धार पर
- सुन्दर.
मोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
जवाब देंहटाएंझूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर
बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजी इस प्रस्तुति के लिये बधाई ।
पार कर लेगा तमाम ज़िन्दगी की अड़चनें
जवाब देंहटाएंरात दिन चलता रहा जो चाकुओं कि धार पर
वाह ! क्या खूब लिखें हैं , दिगम्बर भाई .... अपना तो हर पल चाकू की धार पर ही गुजरती है .
बहरहाल , अपने वतन में मेरा अपना-सा स्वागतम स्वीकार कीजिये . सुभ यात्रा
bahut khoob rachna..gazal me bhi aapki kalam mashaallah..bahut sukun deti he dil ko../
जवाब देंहटाएंpahle yah bataiye aap INDIA aa rahe he? aour agar hnaa to MUMBAI ki koi yozana?? ..milane ki tadap he/ ab aap soche....\
Bahut Sundar !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंदिल को छुने वाली लाजवाब रचना।
जवाब देंहटाएंWelcome to india....
जवाब देंहटाएंkab milna hai humse aapka bus ye bata dijiye?
मोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
झूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर
"kaise main likhoon ghazal is aaj ke mahol main ?
ye ghazal to keh rahi hai pyaar kar tu pyaar kar !!"
behtarin rachna
जवाब देंहटाएंWaah.."chhodkar mai aa gaya..!"
जवाब देंहटाएंKitne nazuk bol hain ye!kitne komal bhaav!
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क्या बात है दिगंबर जी बहुत ही खूब कही इस रचना में बहुत पसंद आये आपके ये तेवर... बहुत बहुत बधाई स्वीकारें और भारत आने पे आपका बहुत बहुत स्वागत है... नसीब हमारा होगा तो हम मिल भी लेंगे... सुस्वागतम...
जवाब देंहटाएंअर्श
मोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
जवाब देंहटाएंझूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर ..ek boht shandaar rachna...
सचमुच कमाल के रंग भरे हैं आपने इस रचना में
जवाब देंहटाएं---
मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
अत्यंत भावुक शेर!
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
अत्यंत भावुक शेर!
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर ।।
गीत बन कर महक उठेंगे जो तुमने स्वर दिये
छोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर।।
वाह्! पूरी की पूरी गजल ही बेहतरीन बन पडी है।
आपकी भारतयात्रा सुखद हो!!
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
गीत बन कर महक उठेंगे जो तुमने स्वर दिये
छोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर
wah digambar ji, behatareen bhavon se saji lajawaab rachna, apne ghar aane par shubhkaamnayen. badhai sweekaren.
वाह बहुत नायाब रचना. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
बेहतरीन ,हकीकत ब्यान कर दी
बहुत अच्छी ग़ज़ल है
जवाब देंहटाएंमगर कुछ गलतियाँ समझ आ रही है
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
आ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
था कि जगह फिर होना चाहिए
गीत बन कर महक उठेंगे जो तुमने स्वर दिये
छोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर
पहली पंक्ति में जो के बाद एक मात्रा कम मालूम हो रही है जो कि लगाने से ठीक हो सकती है
नए शेर इस प्रकार होंगे
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
आ गया फिर बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
गीत बन कर महक उठेंगे जो कि तुमने स्वर दिये
छोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर
"मोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
झूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर "
ये शेर बहुत शानदार है
बाकि ग़ज़ल भी बहुत अच्छी बन पड़ी है ! बधाई!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
गीत बन कर महक उठेंगे जो तुमने स्वर दिये
छोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर
बहुत उम्दा शेर हैं! वाह !वाह!वाह!
khoobsurat gazal ke liye badhaayee.
[Digambar jee ,दुबई की गरमी से बचकर वतन जा रहे हैं...एक हफ्ते बाद भी यही मौसम इंतज़ार करता मिलेगा..:)
इस बार कुछ ज्यादा ही गरमी और धूल चली है.
yatra ke liye shubhkamanayen. ]
Bahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंजा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
सुन्दर और सटीक |
बहुत सुंदर भाव के साथ दिल को छू लेने वाली इस शानदार रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंपार कर लेगा तमाम ज़िन्दगी की अड़चनें
जवाब देंहटाएंरात दिन चलता रहा जो चाकुओं कि धार पर
बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
आ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
गज़ब के शेर !!
बहुत अच्छी ग़ज़ल लगी मुझे...तो आप आ रहे हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....मन को गहराई तक छू लेने वाली मनो-अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंमोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
जवाब देंहटाएंझूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर
bahut bahut sundar .
बहुत खूब........ हर पंक्ति हर भाव दिल को छूता है।
जवाब देंहटाएंbahut hi khoobsoorat bhav........har bhav dil ko choo jata hai.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्दों से सजी इस प्रस्तुति के लिये बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल है.
जवाब देंहटाएंपार कर लेगा तमाम ज़िन्दगी की अड़चनें
रात दिन चलता रहा जो चाकुओं कि धार पर
बहुत खूब!
महावीर शर्मा
श्री दिगम्बर नासवा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
"घर आगमन पर सुस्वागतम"
जब ये तेवर हैं
पार कर लेगा तमाम ज़िन्दगी की अड़चनें
रात दिन चलता रहा जो चाकुओं कि धार पर;
तो फिर फ़िक्र कैसी
आज पढ़े गए पोस्टों में सबसे बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंमोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
जवाब देंहटाएंझूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर
बहुत बढिया
दिगम्बर भाई किस पंक्ति को छोड़ूं किस की प्रशंसा करुं ?
जवाब देंहटाएंवह जिन्दगी की फिलासफी थी;
तो यह ....?
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
आ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर ।
यह एक पथरीला सत्य है
? और यह क्या है ....
जवाब देंहटाएंगीत बन कर महक उठेंगे जो तुमने स्वर दिये
छोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर ।
चातक की याचना ...?
प्रिय से प्रिय की कामना ...?
.......से स्वीकार्यता की अभिलाषा ...?
अन्त में कुछ भावपूर्ण शब्द मिले तो "........" खाली स्थान में मेरी ओर से भर देना पर उनका भाव प्रशंसा और श्रेष्ठ ही होना चाहिये ।
क्यों मैं श्ब्द चयन में असमर्थ हो रहा हूं
गीत बन कर महक उठेंगे जो तुमने स्वर दिये
जवाब देंहटाएंछोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर।।
बहुत लाजवाब शेर लिखे हैं।
बधाई।
आरजू वादे, वफ़ा, जुस्तजू और प्यार पर
जवाब देंहटाएंकितने अफ़साने बने हैं इक निगाहें यार पर
खूबसूरत कविता!!!
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
गीत बन कर महक उठेंगे जो तुमने स्वर दिये
छोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर
bahut hi pyaari rachana hai .saath hi jazbaati bhi .
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
लाजवाब मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा कि किस किस शेर की तारीफ करूँ
आरजू वादे, वफ़ा, जुस्तजू और प्यार पर
कितने अफ़साने बने हैं इक निगाहें यार पर
अद्भुत बहुत बहुत बधाई इस गज़ल के लिये वतन की यात्रा सुखमय हो
"आरजू वादे, वफ़ा, जुस्तजू और प्यार पर
जवाब देंहटाएंकितने अफ़साने बने हैं इक निगाहें यार पर
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
आ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर"
ग़ज़ल बहुत ही अच्छी लगीं....बहुत उम्दा शेर...बहुत बहुत बधाई
bhehat khoobsurat nazm.......
जवाब देंहटाएंapse request hai ki jab aap laut kar dubai jao to BHARAT mein huye anubhav bhi likhe... achhe anubhav or kadve anubhav dono... plz
apka apna
lokendra
छुट्टी के पूर्व का आपका यह नायब तोहफा काबिले-तारीफ है.
जवाब देंहटाएंग़ज़ल के हर शेर बधाई के हकदार है................
आरजू वादे, वफ़ा, जुस्तजू और प्यार पर
जवाब देंहटाएंकितने अफ़साने बने हैं इक निगाहें यार पर
satya vachan .koi prashn nahi is baat par .
वतन आने से पहले इतनी लाजवाब ग़ज़ल सुना गये आप कि हम तो ढ़ूंढ़ते फिरेंगे आपको यहाँ।
जवाब देंहटाएंदेहरादून भी जा रहे हैं क्या? कश्मीर का चक्कर तो नहीं लग रहा?
एक बहुत ही उम्दा ग़ज़ल!
दिगम्बर जी,
जवाब देंहटाएंछुट्टियाँ मुबारक हो इससे अच्ची दुआ कुछ और नही हो सकती परदेश से वतन लौटने वाले के लिये।
बहुत ही खूबसूरत गज़ल :-
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
आ गया था बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
कमाल कर दिया इस अशआर में।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सुन्दर शब्दों से सजी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंहिंदुस्तान ,,,,,,,,,,,,,आप ................आ .............गए .............इस्तकबाल ..............कहने का हक तो नहीं रखता पर हमें मिलकर कुछ सिखला भी दीजिए ना ..............................
जवाब देंहटाएंपार कर लेगा तमाम ज़िन्दगी की अड़चनें
जवाब देंहटाएंरात दिन चलता रहा जो चाकुओं कि धार पर
यही एक उम्मीद है जो इंसान को इंसान बनाये रखती है.
वाह क्या खूब लिखा है
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया फिर बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
बहुत ही वास्तविकता के करिब लगी........आंखे नम हो गई ......एक से बढकर एक पंक्तियाँ है...........आपकी लेखनी को सलाम करता हूँ देर से आने के लिये माफी चाहता हूँ.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआरजू वादे, वफ़ा, जुस्तजू और प्यार पर
जवाब देंहटाएंकितने अफ़साने बने हैं इक निगाहें यार पर
मोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
झूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर
बहुत खूब नासवा जी , जानदार मतला और निहायत खूबसूरत शेर !पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी बन पड़ी है !
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया फिर बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
गीत बन कर महक उठेंगे जो कि तुमने स्वर दिये
छोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर
वास्तविकता को दर्शाती रचना मन को छू गयी
जो दीवार बोझ से झुकी जा रही है उस दीवार को सहारा देने देखो कोई आ गया।
जवाब देंहटाएंआपकी यात्रा शुभ और मंगलमय हो और जिस उद्देश्य के लिए जा रहे हों वह पूर्ण हो ऐसी मेरी शुभकामनाएं हैं।
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया फिर बोझ पूरे घर का इस दीवार पर ।
वाह दिगम्बर जी,
आपकी इन दो पन्क्तियों में तो भारत का पूरा गांव और एक मज्बूर ग्रामीण पिता की बेबसी…………बहुत सहज शब्दों में अभिव्व्यक्त हुई है।
हेमन्त कुमार
गीत बन कर महक उठेंगे जो कि तुमने स्वर दिये
जवाब देंहटाएंछोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर
वाह बहुत खूबसूरत
मार्मिक रचना. जन्मभूमि-दर्शन के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंगीत बन कर महक उठेंगे जो कि तुमने स्वर दिये
जवाब देंहटाएंछोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर
man ko moh lene vali rachna.
dil se badhai!!
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया फिर बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
yogesh ji ..aapki rachnaon se door hun aajkal kuch uljhano ki vajah se.fir bhi aapka khayal hamesha zehan mein aata hai.
sundar rachna ke liye bandhaii..
bahot kuch kah diya aapki rachna ne
गीत बन कर महक उठेंगे जो कि तुमने स्वर दिये
जवाब देंहटाएंछोड़ कर मैं आ गया कुछ बोल तेरे द्वार पर......
khushnuma pyaar kee tarah ye bol lage,bahut badhiyaa
ये सत्य कथा है..काल्पनिक कुछ नही.....इसलिए तस्वीरें दे रही हूँ ..
जवाब देंहटाएंपूजा , मुख्य किरदार है ..और दी गयी हरेक तसवीर और बयानी , जिस तरह घटीं , उसी क्रम से हैं...
हाँ ..मैंने अपना विश्लेषण या ख़यालात ज़रूर ज़ाहिर किए हैं ...किसी एक कड़ी पे आके , चाह रही हूँ ,कि, कथानकी मुख्य किरदार , कथा की बागडोर ख़ुद अपने हाथ लेले ..नही जानती कि ,वो दिन कब आएगा ..लेकिन इस मालिका में की हरेक तसवीर एक गाथा सुनाती है ... ज़रूरी है,कि, जब पूजा के जीवन के बेहद अन्तरंग लम्हों की बयानी शुरू हो,तब पूजा ख़ुद वो बयाँ करे...
दिगंबर जी ,आपने मेरी बेहद ज़र्रानवाज़ी और हौसला अफ़्ज़ायी की है ..तहे दिलसे शुक्र गुजार हूँ ..मै तो बेहद साधारण -सी व्यक्ती हूँ ...जो इस कहानी की चश्मदीद गवाह है ...! बस इतनाही ..!
Aapke lekhan pe comment karun bhee to kya? Sab kuchh to kaha jaa chuka hai..naye alfaaz nahe milte..!
September 1, 2009 9:40 AM
khubsurat rachanaa!!
जवाब देंहटाएंमोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
जवाब देंहटाएंझूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर
bahut sahi ......
बेहतर ।आभार ।
जवाब देंहटाएंगीत में लहरों सी गति है बहुत भावः पूर्ण अभिवयक्ति
जवाब देंहटाएंdhanyevad jo aap mere blog pr padhare.
जवाब देंहटाएंaap ki rachna pad ke bhoot aacha laga
इस बार कुछ नया पढने आयी थी...लेकिन पुराना भी हर बार नया-सा लगता है..गहराई एक बार में नापी नहीं जाती..आप बेहद अच्छा लिखते हैं..मई ऐसी टिप्पणी करूँ..मतलब sooraj ko diya dikhane jaisa hai..
जवाब देंहटाएंमोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
जवाब देंहटाएंझूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर
जा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
आ गया फिर बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
waah lajawab, kuch sajila andaaz kuch sachhi haqiqat,khubsurat gazal.
मोर फिर नाचा नहीं न प्यास धरती की बुझी
जवाब देंहटाएंझूम कर बादल मगर इतरा रहा बौछार पर
huzoor !! ki maiN aapji di mehfil vich shaamil ho sakdaa haaN....
'muflis' ji de kehan te aap tak aaya haaN ,,, ummeed hai nazare saani farmaaoNge....
panesar
Digamabar ji..... dekhne aaya tha ki aapne kuch naya likha ki nahi? jab aaya to socha kuch kahta hi chaloon......
जवाब देंहटाएंजा बसा बेटा शहर तो कमर फिर झुकने लगी
जवाब देंहटाएंआ गया फिर बोझ पूरे घर का इस दीवार पर
मार्मिक रचना...आभार ।
आपकी लेखनी को सलाम !!!