स्वप्न मेरे: न्याय की आशा यहाँ परिहास है

सोमवार, 30 नवंबर 2009

न्याय की आशा यहाँ परिहास है

इस व्यवस्था पर नहीं विशवास है
न्याय की आशा यहाँ परिहास है

कल जहां दंगा हुवा था नगर में
गिद्ध चील पुलिस का निवास है

बस उसी का नाम है इस जगत में
अर्थ शक्ति का जहां विकास है

समझ में आया हुई बेटी विदा जब
घर का आँगन क्यों हुवा उदास है

आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है

54 टिप्‍पणियां:

  1. इस व्यवस्था पर नहीं विशवास है
    न्याय की आशा यहाँ परिहास है

    कल जहां दंगा हुवा था नगर में
    गिद्ध चील पुलिस का निवास है

    Behad Khoob, Naswa sahaab !

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  2. समझ में आया हुई बेटी विदा जब
    घर का आँगन क्यों हुवा उदास है

    आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है
    मानवीय संवेदना की आंच में सिंधी हुई ये पंक्तियां हमें मानवीय रिश्ते की गर्माहट प्रदान करती है।

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  3. बहुत सही सामाजिक चित्रण किया है आपने...... बहुत सुंदर रचना.....

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  4. बहुत सटीक और सामयिक चित्रण किया है आपने.

    रामराम.

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  5. सुन्दर हिंदी ग़ज़ल... आप इसमें फबते हो...

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  6. बस उसी का नाम है इस जगत में
    अर्थ शक्ति का जहां विकास है

    सच्चाई को बयां करती सामयिक पंक्तियाँ ....

    समझ में आया हुई बेटी विदा जब
    घर का आँगन क्यों हुवा उदास है

    बाबुल मेरा नेहर छुटा जाये ......!!

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  7. आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है

    क्या बात कही है...वाह...मुश्किल काफिये बहुत खूब निभा गए हैं आप...बधाई....
    नीरज

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  8. समझ में आया हुई बेटी विदा जब
    घर का आँगन क्यों हुवा उदास है
    आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है !
    वाह बहुत खूब ! आपने समाज का सठिक चित्र प्रस्तुत किया है ! हर पंक्तियाँ उम्दा है!

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  9. aap apane prayas me safal hue .ek damdaar rachana hai ye aapakee.aaj ke samaj ke chitran ke sath hee bitiya kee vidai ke bad kee manah sthiti ek arasaa lag jata hai samany hone me .

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  10. yah aapka doosara chitra..bahut khoob,
    nyaay ko katghare me khadaa karnaa..laazami he, aaj kuchh esaa hi ho gayaa he, dusri baat police ko jo shabd paridhan pahanayaa he vo bhi khoob he, arth shaqti se to ham parichit he hi, aajkal yahi chal rahaa he,
    समझ में आया हुई बेटी विदा जब
    घर का आँगन क्यों हुवा उदास है
    in panktiyo ne chhoo liyaa ji,
    hotho par hansi ka pryaas safal huaa he.

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  11. कल जहां दंगा हुवा था नगर में
    गिद्ध चील पुलिस का निवास है

    bahut sundar varanan.badhai!!

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  12. बस उसी का नाम है इस जगत में
    अर्थ शक्ति का जहां विकास है
    बहुत सही कहा , नस्वा जी।
    सुंदर और सार्थक रचना ।

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  13. कल जहां दंगा हुवा था नगर में
    गिद्ध चील पुलिस का निवास है ....
    haan aam aadmi ke man ki baat aapne is post ke maadhyam se kah di .....

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  14. कल जहां दंगा हुवा था नगर में
    गिद्ध चील पुलिस का निवास है
    समझ में आया हुई बेटी विदा जब
    घर का आँगन क्यों हुवा उदास है

    आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है
    तीनो शेर बहुत ही पसंद आये मगर हंसी कैसे आये? एक तरफ तो आँगन उदास है फिर चील गिद्दों का निवास है और पूरी व्यवस्था ही परिहास बन कर रह गयी है । कुछ भी हो गज़ल तो कमाल है लो हम हंस लेते हैं कम से कम गज़ल तो है इक हंसाने के लिये? बहुत बहुत बधाई

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  15. आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है ।।

    बेहद उम्दा प्रयास.....सुन्दर एवं सार्थक रचना के लिए बधाई!!!!

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  16. बस उसी का नाम है इस जगत में
    अर्थ शक्ति का जहां विकास है

    bilkul sahi kaha. arth shakti hi jan shakti ban chuki hai. digambar ji sabhi sher samyik aur lajawaab/

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  17. कल जहां दंगा हुवा था नगर में
    गिद्ध चील पुलिस का निवास है
    बहुत सही कहा आप ने इस कविता मै आज के हालात को.
    धन्यवाद

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  18. समझ में आया हुई बेटी विदा जब
    घर का आँगन क्यों हुवा उदास है
    आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है !
    prayas kafi behtrin hai rang laaye isi umeed ko jagate huye aasha bhate hai

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  19. समझ में आया हुई बेटी विदा जब
    घर का आँगन क्यों हुवा उदास है
    बहुत खूबसूरत रचना.

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  20. समझ में आया हुई बेटी विदा जब
    घर का आँगन क्यों हुवा उदास है
    आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है

    ...आह, बहुत सुन्दर. यही ग़ज़ल की खूबसूरती है भाई.

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  21. nyaay ki aasha yahi parihas hai... sahi kaha bilkul, nyaay k liye aas nahi prayaas honi chahiye...

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  22. बेमिसाल....... दोस्त पूरी की पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी है|
    बहुत बहुत आभार

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  23. आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है
    in pnktiyo ne gajal ko jeevant bana diya .
    bahoot khoob .
    abhar

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  24. आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है
    in pnktiyo ne gajal ko jeevant bana diya .
    bahoot khoob .
    abhar

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  25. आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है
    waah! bahut khuub !

    bahut achchee gazal hai.

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  26. आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है ,
    बहुत सुंदर प्रयास है !
    अगर यह सम्भव हुआ तो !
    ढेर सारी शुभ कामनाएं !

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  27. बहुत बहुत प्यारी गजल ।गजल का प्रयास कि होंठो पर हंसी हो ,निश्छल शब्द का प्रयोग अकारथ नही है क्योंकि हंसी भी कई प्रकार की होती है मुस्कान की तरह जैसे ""उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी ""न्याय की आशा न होना और व्यवस्था पर विश्वास न होना ,हकीकत बयानी ।अर्थ शक्ति का भी (नही) का ही महत्व है यहां । बेटी के विदा होने पर ही अहसास होता है सूनेपन का ।हर शेर लाजवाब

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  28. माफ कीजिएगा, इतनी सुन्‍दर रचना पढ़ने के लिये मैं देर से उपस्थित हुई हर पंक्ति दिल को छूती हुई ...

    समझ में आया हुई बेटी विदा जब
    घर का आँगन क्यों हुवा उदास है
    आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है !

    आभार सहित शुभकामनायें ।

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  29. समझ में आया हुई बेटी विदा जब
    घर का आँगन क्यों हुवा उदास है

    आपकी पंक्तियां "ताजगी' ला देती हैं। यह आपकी खासियत है कि आप कुरूप को भी सुंदर रूप दे देते हैं और जो हमें निराश होने से बचा लेती है। इस मामले में आप बेजोड़ हैं। मुझे विश्वास है कि आपकी यह खासियत दर्ज की जायेगी। शायद यह मम से ममेत्तर के शोध का सुंदर परिणाम है।

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  30. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  31. फिर से पहले की तरह बेहतरीन कल शब्दों में सच की प्रस्तुति एक एक शब्द और लाइन दिल को छू जाती है ..दिगंबर जी आज कल आपके ग़ज़ल कुछ और ही ज़्यादा अच्छे लगाने लगे है.... प्रस्तुति और भाव दोनों लाज़वाब है..बधाई स्वीकारे..

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  32. इस व्यवस्था पर नहीं विशवास है
    न्याय की आशा यहाँ परिहास है
    बहुत शानदार गज़ल. हर शे’र काबिलेदाद.

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  33. aapne isamen bahut gambheer baaten uthayi hain....

    kal jahan dangga hua....karara kataksh hai....

    ghar ka angan.....isamen bahut samvedansheelta hai....

    badhai

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  34. दिगंबर जी
    इस न्याय व्यवस्था पर यकीन तो नहीं .अविश्वसनीयता के कारण ही आजकल आम नागरिक क़ानून हाथ में लेने लगे हैं .

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  35. इस व्यवस्था पर नहीं विशवास है
    न्याय की आशा यहाँ परिहास है
    बहुत अच्छा!

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  36. shukria.
    hindi ke bahut acche qafiyon ka stemal kar rahe hain aap.accha prayas hai.

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  37. आपका प्रयास सफल सुफल और सार्थक हुआ । बहुत ही सुंदर रचना ।

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  38. बस उसी का नाम है इस जगत में
    अर्थ शक्ति का जहां विकास है

    SOU BAAT KI EK BAAT....

    LAJAWAAB RACHNA...

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  39. बस उसी का नाम है इस जगत में
    अर्थ शक्ति का जहां विकास है


    सच में बड़ा बुरा लगता है लोग जब कहते हैं की भारत एक विकासशील देश है, अमेरिका विकसित और नेपाल अविकसित. और इस बात को नापने की इकाई क्या? अर्थव्यस्था .
    :(

    आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
    बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है

    प्रयास सफल रहा, इसके साथ साथ और ग़ज़लों का भी.
    सभी ग़ज़लों के लिए बधाई.

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