स्वप्न मेरे: ख्वाबों के पेड़ ...

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

ख्वाबों के पेड़ ...

मेरे जिस्म की
रेतीली बंजर ज़मीन पर
ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं
बसंत भी दे रहा दस्तक
चाहत के फूल मुस्कुराए हैं

भटक रहे हैं कुछ लम्हे
तेरी ज़मीन की तलाश में
बिखर गये हैं शब्दों के बौर
तेरे लबों की प्यास में

अब हर साल शब्दों के
कुछ नये पेड़ उग आते हैं
नये मायनों में ढल कर
रेगिस्तान में जगमगाते हैं

अभिव्यक्ति की खुश्बू को
बरसों से तेरी प्रतीक्षा है

सुना है बरगद का पेड़
सालों साल जीता है ....

64 टिप्‍पणियां:

  1. सुना है बरगद का पेड़
    सालों साल जीता है ....
    बहुत सुन्दर

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  2. अब हर साल शब्दों के
    कुछ नये पेड़ उग आते हैं
    नये मायनों में ढल कर
    रेगिस्तान में जगमगाते हैं

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है...ये अभिव्यक्ति बरगद के पेड़ कि तरह ही रहे

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  3. आपको पढ़ना सदैव अलग एहसास देकर जाता है

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  4. क्या बात है .....बहुत सुन्दर रचना

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  5. सुना है बरगद का पेड़ सालों साल जीता है...एक खूबसूरत भाव के साथ प्रस्तुत कविता बहुत अच्छी लगी. दिगंबर जी महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ....

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  6. ''अभिव्यक्ति की खुशबू को
    बरसों से तेरी प्रतीक्षा है ''..........वाह !!!!!

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  7. एक खूबसूरत भाव के साथ प्रस्तुत कविता बहुत अच्छी लगी.

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  8. aadarniya sir,
    ek bahut hi sundar bhav purn rachana. vaise bargad ki peda ki upma me puree kavita ka nichod hai.
    jiska matalab deerghayu hone se bhi hota hai.
    poonam

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  9. महाशिवरात्रि के पावन पर्व की शुभकामनाएँ!

    सुन्दर रचना के लिए बधाई!

    शंकर जी की आई याद,
    बम भोले के गूँजे नाद,
    बोलो हर-हर, बम-बम..!
    बोलो हर-हर, बम-बम..!!

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  10. waah ..........antim panktiyon mein kya baat kah di........bahut sundar abhivyakti.

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  11. महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ आपने बखूबी प्रस्तुत किया है! उम्दा रचना!

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  12. सुना है बरगद का पेड़
    सालों साल जीता है

    wah kya baat kahi hai....poori kavita ka saar 2 panktyon main samet dia aapne.

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  13. महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!

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  14. सुना है बरगद का पेड़
    सालों साल जीता है ...
    बरगद का पेड़ सालो-साल जीता है और इस्की जड़े बहुत गहरी होती हैं
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  15. मेरे जिस्म की
    रेतीली बंजर ज़मीन पर
    ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं
    बसंत भी दे रहा दस्तक
    चाहत के फूल मुस्कुराए हैं

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  16. मेरे जिस्म की
    रेतीली बंजर ज़मीन पर
    ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं
    बसंत भी दे रहा दस्तक
    चाहत के फूल मुस्कुराए हैं
    Bahut sundar bhavpurn rachna ke liye badhai or saath mein महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!

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  17. भटक रहे हैं कुछ लम्हे
    तेरी ज़मीन की तलाश में
    बिखर गयी है शब्दों की बौर
    तेरे लबों की प्यास में

    बहुत सुन्दर ,खूबसूरत भाव !

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  18. मेरे जिस्म की
    रेतीली बंजर ज़मीन पर
    ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं

    अब हर साल शब्दों के
    कुछ नये पेड़ उग आते हैं

    परिपक्व सोच से परिपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति।
    शिवरात्रि की बधाई।

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  19. अभिव्यक्ति की खुश्बू को
    बरसों से तेरी प्रतीक्षा है

    सुना है बरगद का पेड़
    सालों साल जीता है ....
    ..वाह!
    अच्छी कविता.

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  20. अभिव्यक्ति की खुश्बू को
    बरसों से तेरी प्रतीक्षा है

    सुना है बरगद का पेड़
    सालों साल जीता है ....
    इतनी गहरी बात को सरल शब्दों मे कैसे कहा जाये ये फन कोई आपसे सीखे। बहुत सुन्दर--- बरग्द के पेड की तरह ही कुछ चाहतें सालोंसाल जीती हैं । महाशिवरात्री की बहुत बहुत बधाई

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  21. बेहतरीन शब्दों में ....लाजवाब रचना....

    आभार....

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  22. भई दिगम्बर जी, बहुत सुन्दर लगी आपकी ये रचना...
    महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!! बाबा भोलेनाथ की आप पर सदैव कृ्पादृ्ष्टि बनी रहे...

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  23. दिगम्बर नासवा जी, आदाब
    मेरे जिस्म की.....रेतीली बंजर ज़मीन पर
    ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं........
    .....अभिव्यक्ति की खुश्बू को.....बरसों से तेरी प्रतीक्षा है..
    लीक से हटकर...सुन्दर लेखन....हमेशा की तरह.....बधाई

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  24. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 13.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
    http://chitthacharcha.blogspot.com/

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  25. ''अभिव्यक्ति की खुशबू को
    बरसों से तेरी प्रतीक्षा है ''
    waah! bahut khoob!
    bahut hi khubsurat rachna hai .

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  26. वाह! क्या बात है..बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!

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  27. बहुत सुन्दर! रेगिस्तान में इसी तरह जगमगाते अंकुर दीखते रहें!

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  28. नसवा जी
    निसंदेह बहुत सुन्दर रचना
    बधाई स्वीकारें

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  29. बहुत खूबसूरती से बया कर दी है दिल की बात
    बहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द .अच्छी फसल लहलहाई खाबों की और वो बरगद का पेड़ वाह क्या बात है!!!!!!!!!!!!!1

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  30. i cant write anythng on it....still trying to......loved every letter every word of it....incredible....thnks for making us read such a lovely creation...it really..............

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  31. desh-kaal-patra se agen .... khwab-vichar-bhavna... shashwat hain, deh se mukt aur aatma ke karib...
    bahut sundar kavita

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  32. मेरे जिस्म की
    रेतीली बंजर ज़मीन पर
    ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं
    बसंत भी दे रहा दस्तक
    चाहत के फूल मुस्कुराए हैं
    shuruaat hi behtreen.

    kitni asani se kah diya apne mushkil baaton ko.
    har taraf fail gai hai
    "abhiwakti ki khooshboo".
    khoobsurt rachana.

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  33. sabne to itni tarif kar di to main bas kawita ke rasaswadan men hi santosh karu


    माननीय ,
    जय हिंद
    महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर यह
    शिवस्त्रोत

    नमामि शमीशान निर्वाण रूपं
    विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं
    निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
    चिदाकाश माकाश वासं भजेयम
    निराकार मोंकार मूलं तुरीयं
    गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं
    करालं महाकाल कालं कृपालं
    गुणागार संसार पारं नतोहं
    तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं .
    मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं
    स्फुरंमौली कल्लो लीनिचार गंगा
    लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा
    चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं
    प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं
    म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं
    प्रियम कंकरम सर्व नाथं भजामि
    प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं
    अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम
    त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम
    भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं
    कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
    सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी
    चिदानंद संदोह मोहापहारी
    प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
    न यावत उमानाथ पादार विन्दम
    भजंतीह लोके परे वा नाराणं
    न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं
    प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो .

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  34. उम्दा.. बेहतरीन, सुन्दर, खूबसूरत और इसके अलावा कौन सा नया शब्द लिखूं जो आपको यकीं दिला सके की कविता सच में पसंद आई.. वैसे ये तो आपका दिल खुद ही बता देगा आपको की कितनी अच्छी बनी है,, :)
    जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

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  35. मेरे जिस्म की
    रेतीली बंजर ज़मीन पर
    ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं
    बसंत भी दे रहा दस्तक
    चाहत के फूल मुस्कुराए हैं

    यह तो आप की खामख्याली है,
    छोड़ आए हैं आप ’वो बंजर’

    गुज़रते हुये ’बासंती-राज्य’ से,
    हो वक्‍त के धारे पे सवार ,

    अब हैं आप ’फ़ाल्गुनी धरा के द्वार’पे,
    हुए हैं’जवां’आपके’ख्वाबों के दरख़्त’,

    गो़याकि इसी लिये इनपे आप की,
    ’चाहत के फूल’हमेंभी नज़र आये हैं।।

    'जै सियाराम ’जी

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  36. आनंद आगया पढ़ कर .....अहसास पूर्ण रचना

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  37. भावनाओं का बहता झरना।

    आपका ब्लॉग ब्लॉगवुड यहाँ जोड़ दिया गया है। शायद आपको जानकर खुशी हो।

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  38. जिस्म की बंजर ज़मीन पर बरगद का पेड़ उगना यानी सपनों की निरन्तरता , फिर भी सपनो की निरन्तरता बनी रहना (हर साल नये पेड् उग आना और हर बार उसके अर्थ बदल जाना )उन सपनों को किसके सामने कहूं ,प्रतीक्षारत हूं बरसों से अपने सपने सुनाने को ।

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  39. Bahut sunder rachana ..........

    अब हर साल शब्दों के
    कुछ नये पेड़ उग आते हैं
    नये मायनों में ढल कर
    रेगिस्तान में जगमगाते हैं
    ye panktiya bahut pasand aaee .

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  40. अभिव्यक्ति की खुश्बू को
    बरसों से तेरी प्रतीक्षा है

    सुना है बरगद का पेड़
    सालों साल जीता है ..


    बहुत ही सुंदर रचना । वेलेन्टाइन दिवस के अनुरूप ।

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  41. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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  42. वेलेंटाइन-डे की शुभकामनायें !

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  43. अभिव्यक्ति की खुश्बू को
    बरसों से तेरी प्रतीक्षा है

    सुना है बरगद का पेड़
    सालों साल जीता है ....

    हर बार बेहतरीन लिखते हैं आप ।

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  44. अनूठे अंदाज़ के शुभकामनायें !

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  45. "suna hai bargad ka ped salon saal jeeta hai"... adbhutaas rachna...

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  46. सुना है बरगद का पेड़
    सालों साल जीता है ...

    बहुत खूब ......!!

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  47. दिगम्बर जी
    नमस्कार
    मुआफ करें बहुत दिनों बाद आना हो पाया .....मन आनंदित हो गया आपकी इस मनभावन प्रस्तुति पर !

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  48. मेरे जिस्म की
    रेतीली बंजर ज़मीन पर
    ख्वाब के कुछ पेड़ उग आए हैं
    बसंत भी दे रहा दस्तक
    चाहत के फूल मुस्कुराए हैं

    How hardworking you are!
    banzzar zameen par
    ped ugaane wali baat
    bahut khoob lagi
    bahut hi pyari aur nayari kavita hai....Mubarkaan
    .....
    GS panesar

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  49. pehle main gum hua
    ab aap gum huye
    ik duje ko bas
    dhoondte hi rahe

    kahaan ho dear

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  50. मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है उम्दा रचना

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  51. अब हर साल शब्दों के
    कुछ नये पेड़ उग आते हैं
    नये मायनों में ढल कर
    रेगिस्तान में जगमगाते हैं
    bahut hi sundar rachna likhi hai aapne ,poori rachna kabile tarif hai .

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  52. अभिव्यक्ति की खुश्बू को
    बरसों से तेरी प्रतीक्षा है

    सुना है बरगद का पेड़
    सालों साल जीता है ।
    आपकी कविताएं मुझे कुछ लिखने को हमेशा प्रेरित करती हैं। धन्यवाद।

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  53. भटक रहे हैं कुछ लम्हे
    तेरी ज़मीन की तलाश में
    बिखर गयी है शब्दों की बौर
    तेरे लबों की प्यास में

    wah!!!!!!!

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  54. क्या भाव क्या साम्य है.

    किस शब्द में कहूँ... सोच रहा हूँ...

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  55. भटक रहे हैं कुछ लम्हे
    तेरी ज़मीन की तलाश में
    बिखर गयी है शब्दों की बौर
    तेरे लबों की प्यास में.....वाह क्या बातहै!!!!!!नसवा जी बहुत सुन्दर रचना
    बधाई स्वीकारें

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  56. विचारों का खजाना है आपके पास जो भी लिखते है बेहतरीन बन जाता है..

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है