कुछ नही बदला
टूटा फर्श
छिली दीवारें
चरमराते दरवाजे
सिसकते बिस्तर
जिस्म की गंध में घुली
फ़र्नैल की खुश्बू
चालिस वाट की रोशनी में दमकते
पीले जर्जर शरीर
लंबी क़तारों से जूझता
चीखती चिल्लाती आवाज़ों के बीच
साँसों का खेल खेलता
पुराना
सरकारी अस्पताल का
जच्चा बच्चा
वार्ड नंबर दो
जहाँ मैने भी कभी
पहली साँस ली
अस्पताल के बाहर
मुँह चिड़ाता होर्डिंग
हमारा देश - प्रगति के पथ पर
Bahut hi khoobsoorat
जवाब देंहटाएंbada hi teekha vyang...bahut khoob
जवाब देंहटाएंअस्पताल के बाहर
जवाब देंहटाएंमुँह चिड़ाता होर्डिंग
हमारा देश - प्रगती के पथ पर
Yah bhi sach hai..par apne deshme chahe desvasi ho ya pardesi, sarkaari asptaal me kuchh to tavajjo
mil jati hai..pardes me marne ke liyehi chhod diya jata hai! Yah mera wyaktigat anubhav hai!
ek dam sahi jagah chot ki hai..
जवाब देंहटाएंbahut khoob.
(laptop problem de raha hai ..roman men likhne par majboor hoon .)
Desh ki asli sachai bayan kar di naswa ji
जवाब देंहटाएंबहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा... काश की इस सच्ची कविता को अपना मौन सिंह भी पढ़ पाता, बढ़िया प्रस्तुति नासवा साहब !
जवाब देंहटाएंसच्चाई बयान करती , न जाने कितने और साल लगेंगे प्रगति की राह में कदम बढ़ाने के लिए..देश अभी तो राह पर तो आया है लेकिन खड़ा है!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह एक बहुत अच्छी कविता.
--अल्पना वर्मा
"प्रगति" की स्पेल्लिंग ठीक करें... सही स्पेल्लिंग मैंने लिखा है.
जवाब देंहटाएंसागर जी ... धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंहमारा देश - प्रगती के पथ पर .बहुत अच्छी कविता
जवाब देंहटाएं..प्रसंशनीय रचना !!!
जवाब देंहटाएंshbdon ka sundar pravah!
जवाब देंहटाएंhamesha hi bhata hai :)
Wah...achhi rachna..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपने सही कहा है .. प्रगति तो बस कहने के वास्ते है ... हाथी के दांत है ...
जवाब देंहटाएंयह कहाँ देख लिया नासवा जी ?
जवाब देंहटाएंहम तो चमकाने में लगे हैं ।
वैसे दर्द बहुत छुपा है रचना में ।
बहुत ख़ूब दिगंबर भाई .... उम्दा रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शुक्रिया किन्तु कविता में अभी भी यह गलती मौजूद है... वैसे मुझे लगा था आप शीर्षक में भूल जायेंगे :)
जवाब देंहटाएंसागर जी ... बहुत बहुत शुक्रिया ... ग़लती सुधार ली है ...
जवाब देंहटाएंमुझे मालुम है अगर आप रचना पर भी टिप्पणी करेंगे तो सुधार की गुंजाइश ज़रूर निकलेगी ... इसलिए कंजूसी न करें इस बार ...
badi kadvi sachchayi kah di hai.........bahut khoob.
जवाब देंहटाएंसच्चाई से रु-ब-रु करती संवेदनशील रचना.....
जवाब देंहटाएंहमारा देश - प्रगति के पथ पर
जवाब देंहटाएंअजी हमे तो हमेश वेसा ही देखते है जेसा बचपन से देखते आय है भारत को
ek aour naraa he- 'kaam pragati par he' kher..hamara desh vikaas me is mamale me sabase aage he...
जवाब देंहटाएंrachna me samvedna ke ansh bhi he aur ek karaaraa vyang bhi he../ kataaksh bhe he./
aapki khoobi he yah.
सच मे प्रगति के पथ पर अग्रसर है हम
जवाब देंहटाएंbahut sahi kaha hai apne.
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंआज भी सब कुछ वैसा ही है, अंतर सिर्फ इतना है की 40 वाट की बल्ब की जगह 20 वाट के सी ऍफ़ एल ने ले ली है |
जय हो !
रत्नेश त्रिपाठी
bahut hi umdaah rachna..
जवाब देंहटाएंyun hi likhte rahein...
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mere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
अस्पताल के बाहर
जवाब देंहटाएंमुँह चिड़ाता होर्डिंग
हमारा देश - प्रगति के पथ पर
रचना में आपने बहुत सुन्दर खाका खींचा है!
बहुत बढ़िया प्रगति है..
जवाब देंहटाएंलंबी क़तारों से जूझता
जवाब देंहटाएंचीखती चिल्लाती आवाज़ों के बीच
साँसों का खेल खेलता
पुराना
सरकारी अस्पताल का
जच्चा बच्चा
वार्ड नंबर दो
जहाँ मैने भी कभी
पहली साँस ली
agar koi mere desh se poochhe... kaise ho bhai? tau jwaab milega bas "jaise the..." bahut khoob kaha..pasand ayee aapki tippni.
Digamber ji Dubai ke airport par 4 ghante maine bitaye.It was a return journey from England via Dubai on 30th April.dil karta thaa milne ko lekin Dubai ka visa nahi thaa mere paas..
हाँ कुछ लोग प्रगति के पथ पर हैं
जवाब देंहटाएंजो प्रगति हो रही है उसका लाभ किस दिशा को अग्रसर है ये भी किसी से छुपा नहीं है
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना के लिए बधाई
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक बात ........ पर समझता कौन है होर्डिंग लगाने के लिये तो पैसे हैं पर स्वास्थय सुरक्षा के लिये नहीं ये है प्रगतिशील देश
जवाब देंहटाएंलगभग हर किसी की जिन्दगी से जुड़ी सी है आपकी ये कविता सर.. बेहतरीन ख्याल से उपजी, उत्कृष्ट शब्दों की मिट्टी लेकर और बहुत सुन्दर कविता के साँचे में ढाली आपने. पर तजुर्बे की आंच में तपकर उसे चट्टान का सा दृढ बना दिया.
जवाब देंहटाएंpurn viram k liye shift+\ dabaiyega auchha nahi lg raha uske bina post ||||||
जवाब देंहटाएंyaa copy past kr len
kavita k saath ye sab bhi use krenge to rachna nikhrege .,?'
';
सच है, वाकई कुछ नही बदला
जवाब देंहटाएंउफ्फ्फफ्फ्फ्फ़!!!! इतना तीखा व्यंग्य! हिंदी साहित्य के इतिहास से एक जुमला आपकी खिदमत में पेश करता हूँ---"समझदार की मौत है" .
जवाब देंहटाएंनन्हीं सी कविता ने तथाकथित विकास की पोल पट्टी खोल कर रख दी.
व्यंग्य की इस धार पर मैं जल मरा भाई.
jabardast chot naasva ji.....
जवाब देंहटाएंkunwar ji,
वाकई कुछ नही बदला.....
जवाब देंहटाएं"चालिस वाट की रोशनी में दमकते
पीले जर्जर शरीर.."
दिगम्बर जी, आपने सब बयाँ कर दिया
kavita padhkar lambee saans liya.... aur socha yah kee Swarth ne sab kuch chaupat kar diya...
जवाब देंहटाएंव्यंगात्मक से रूप से बहुत ही संवेदनशील कविता.... अन्दर तक छू गई...
जवाब देंहटाएंकुछ नही बदला......
जवाब देंहटाएंऔर
हमारा देश - प्रगति के पथ पर
नासवा जी....व्यवस्थाओं पर ये रचना प्रभावशाली रही.
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! बधाई!
जवाब देंहटाएंअस्पताल के बाहर
जवाब देंहटाएंमुँह चिड़ाता होर्डिंग
हमारा देश - प्रगति के पथ पर
लाजवाब व्यंगात्मक प्रस्तुति!
सच में प्रगति तो सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गई....
अस्पताल के बाहर
जवाब देंहटाएंमुँह चिड़ाता होर्डिंग
हमारा देश - प्रगति के पथ पर
...सीधी-सच्ची बात लिखो तो हो जाता है व्यंग्य..!
...बधाई.
कुछ नही बदला
जवाब देंहटाएंटूटा फर्श
छिली दीवारें
चरमराते दरवाजे
सिसकते बिस्तर
जिस्म की गंध में घुली
फ़र्नैल की खुश्बू
चालिस वाट की रोशनी में दमकते
पीले जर्जर शरीर
बहुत खूब......!
बहुत खूब..देश की प्रगति का अच्छा नमूना दिखाया आपने.. हस्पतालों कि जगह बड़े बड़े नर्सिंग होम, पोस्ट ऑफिस की जगह कूरियर सर्विस ने और पुलिस की जगह प्राइवेट गार्ड हैं.. हमारे देश को प्रगति मुबारक..
जवाब देंहटाएंकड़वा सच और करारा व्यंग्य.
जवाब देंहटाएंदेस का पालनहार लोग को देखिये नहीं देता है कि सच्चाई का है..उ होर्डिंग कि आंख के सामने दम तोडता हुआ हस्पताल जहां उ लोग का नहीं त उनके बाप का जनम हुआ होगा... आपको धन्यवाद कि आप अइसा सोचते हैं..
जवाब देंहटाएंआपकी दोनो रचनायें, आज के हालात को दर्शाती हुई, सुन्दर प्रस्तुती है। काश देश को चलाने वाले, थोड़े से प्रेणना ले पाते ।
जवाब देंहटाएंwah.........kavita bahut kuchh kah gyi.
जवाब देंहटाएंआप ठीक से देखिये आपको प्रगति दिखेगी.अल सुबह हाथ में पानी की बोतल लिए मोबाइल पर बतियाते खुले में शौच को जाते लोग प्रगति की निशानी ही तो हैं. शौचालय भले ही न हों , मोबाइल तो है.
जवाब देंहटाएंदेश की प्रगति की मुहिम को मुंह चिडाती आपकी रचना सार्थक है।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच देखें
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html
दर्दनाक !!!
जवाब देंहटाएंapni vyastata se baahar aaker jo pragati dikhi uski sachchaai jehan me kulbulane lagi....
जवाब देंहटाएंjabardast sach ,ati uttam rachna .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और उम्दा रचना!
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ....लाजवाब...सुपर्ब...
जवाब देंहटाएंअस्पताल के बाहर
जवाब देंहटाएंमुँह चिड़ाता होर्डिंग
हमारा देश - प्रगति के पथ पर ..
...देश का एक कडुवा सच ...
जमीनी हकीकत को बयां करती आपकी रचना मन में एक गहरी टीस उत्पन्न करती हुई......
सार्थक संवेदनशील रचना के लिए आभार.
'प्रगति' के नकली आवरण के पीछे की कडवी सच्चाई को बड़ी बेबाकी से बयान कर दिया है नासवाजी आपने ! देश की दुर्दशा की हालत जानते बूझते भी पता नहीं क्यों आपकी रचना पढ़ कर मन अवसाद से भर गया ! सशक्त प्रस्तुति के लिए आपको बधाई !
जवाब देंहटाएंghuskhori(corruption) aur badhti abaadi ke chalte desh ki pragati namumkin hai!
जवाब देंहटाएंजबरदस्त!!.. अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंमुँह चिड़ाता होर्डिंग
जवाब देंहटाएंहमारा देश - प्रगति के पथ पर
मुँह चिढ़ाते होर्डिंग
ये सच को झुठलाते होर्डिंग
अब तो सच यही है
बहुत सही सुन्दर सार्थक रचना बहुत पसंद आई
जवाब देंहटाएं