यूज़ एंड थ्रो
अँग्रेज़ी के तीन शब्द
और आत्म-ग्लानि से मुक्ति
कितनी आसानी से
कचरे की तरह निकाल दिया
अपने जीवन से मुझे
मुक्त कर लिया अपनी आत्मा को
मेरा ही सिद्धांत कह कर
मेरे ही जीवन का फलसफा बता कर
शायद सच ही कहा था तुमने
मैं भी तो आसानी से छोड़ आया
माँ बापू के सपने
दादी का मोतियाबिंब
दद्दू के पाँव दबाने वाले हाथ
राखी का क़र्ज़
दोस्तों के क़हक़हे
गाँव का मेघावी स्वाभिमान
मेरे से जुड़ी आशाएँ
अपना खुद का अस्तित्व
अर्जुन की तरह
पंछी की आँख ही नज़र आती थी मुझे
तुम्हारे रूप में
क्या है ये यूज़ एंड थ्रो
सभ्यताओं का अंतर्द्वंद
आधुनिकता की होड़ में ओढ़ा आवरण
नियम बदलता समाज
अपने आप को दोहराता मेरा इतिहास
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
या मेरा ही जूता मेरे सर
Aapki rachanane gahri soch me daal diya! Every thing is discard able...every one is redundant..Jo ham auron ko denge,wahi to payenge! Bahut sahi kaha aapne!
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha aapne....
जवाब देंहटाएंsochne ko vivash karti aapki ye rachna,,,,
bahut badhiya..
kunwar ji,
यूज़ एंड थ्रो ...कितनी बड़ी सच्चाई लिखी है आपने चंद पंक्तियों में....हर रचना मन के अंदर उतर जाती है....कुछ देर तक सोचने पर मजबूर कर देती हैं आपकी रचनाएँ.....एक एक शब्द बिलकुल सटीक...वार करता सा ..
जवाब देंहटाएंtit for tat....
जवाब देंहटाएंमां-बाप को भुलाकर कोई सुख-शान्ति नहीं पा सकता..
आपकी रचना बहुत अच्छी है..
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
जवाब देंहटाएंया मेरा ही जूता मेरे सर
यूज एंड थ्रो का सिद्धांत , रचना का सार इन्ही पंक्तियों में सिमट आया है। आधुनिकता
की कशमकश को बड़े अच्छे से प्रस्तुत किया है ।
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
जवाब देंहटाएंया मेरा ही जूता मेरे सर
यूज एंड थ्रो का सिद्धांत , रचना का सार इन्ही पंक्तियों में सिमट आया है। आधुनिकता
की कशमकश को बड़े अच्छे से प्रस्तुत किया है ।
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
जवाब देंहटाएंया मेरा ही जूता मेरे सर
यूज एंड थ्रो का सिद्धांत , रचना का सार इन्ही पंक्तियों में सिमट आया है। आधुनिकता
की कशमकश को बड़े अच्छे से प्रस्तुत किया है ।
gahraee liye ek dil ko choo jane walee rachana....bahut pasand aaee .
जवाब देंहटाएंyawad jeeved, sukham jeeved,
जवाब देंहटाएंrinam kritwa, ghritam pibet .
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल यही है नर्क स्वर्ग,आप की रचना से सहमत है जी
जवाब देंहटाएंतीन शब्दों के इतने बड़े अर्थ को आपने बड़ी ही बखूबी से पेश किया है ,,सच्चाई के समुन्दर में गोते खाती आपकी यह रचना ..विचारणीय पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंविकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
जीवन की सच्चाई को समेटे कुल जमा तीन शब्द।
जवाब देंहटाएं--------
आखिर क्यूँ हैं डा0 मिश्र मेरे ब्लॉग गुरू?
बड़े-बड़े टापते रहे, नन्ही लेखिका ने बाजी मारी।
क्या कहूँ …………निशब्द कर दिया…………………ज़िन्दगी के सच को कितनी बेबाकी से बयाँ किया है…………गज़ब की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
जवाब देंहटाएंया मेरा ही जूता मेरे सर
क्या कहूँ शायद इसी लिए आज सब लोग दुखी और परेशान हैं
यूज एंड थ्रो वाले भूल जाते हैं "what goes around comes around .
जवाब देंहटाएंसटीक रचना एक एक शब्द में जान है.
एक पूरी जीवन यात्रा अंगरेज़ी के एक मुहावरे में समेट दी आपने… बोने और काटने की सच्चाई, नियम और पालन की सच्चाई, कर्मों और फलोंकी सच्चाई... सोचता हूँ, यह आत्मा भी तो शरीर को यूज़ करके थ्रो कर जाती है... नेकी और बदी सब शरीर के नाम डालकर!!
जवाब देंहटाएंsach hi to hai..aur kahne ka tareeka uttam.
जवाब देंहटाएंमुहावरे के सहारे अच्छी रचना रची गई
जवाब देंहटाएंचलिए किसी बेटे ने तो स्वीकार किया कि उसने क्या किया है? चाहे फिर कविता में ही सही। आज कविता लिखी है तो कल मन भी कचोटेगा ही। हम कैसे इतने स्वार्थी बन जाते हैं कि हमें भौतिक चकाचौंध के सामने वास्तविक प्रेम भी दिखायी नहीं देता। कर्तव्य तो भुलाए जा सकते हैं लेकिन प्रेम? अच्छी कविता है, बहुत कुछ कहती हुई सी।
जवाब देंहटाएंयह रचना बहुत अच्छी लगी....
जवाब देंहटाएंक्या है ये यूज़ एंड थ्रो
जवाब देंहटाएंसभ्यताओं का अंतर्द्वंद
आधुनिकता की होड़ में ओढ़ा आवरण
नियम बदलता समाज
अपने आप को दोहराता मेरा इतिहास
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
बहुत बढ़िया!
यथार्थ को चित्रित करती हुई रचना!
आपका कबिता हमेशा सम्बेदना से ओत प्रोत रहता है... कबिता के अंदर उतर कर आप लिखते हैं... एक एक सब्द लगता है आप जीकर देखे हैं... सलाम है आपका अभिव्यक्ति को...हमरा देस में भी ओही चल रहा है... नेता अऊर जनता का खेल... नेता जी यूज करते हैं अऊर थ्रो करके चले जाते हैं जनता को...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं" bahut hi acchi lagi ye aapki gaherai bhari rachana "
जवाब देंहटाएंइस कविता में सचाई तो पूरी ब्यान हुई है, एक अपराधबोध सा भी है जो इस रचना के दर्जे को उंचा उठा रहा है.
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंएकदम सही और दिल कि बात लिख दी है आपने | ठीक इसी टोपिक पर एक साल पहले मैंने भी लिखा था जिसे हिंदी दैनिक अमर उजाला ने छापा था |
रत्नेश त्रिपाठी
क्या है ये यूज़ एंड थ्रो
जवाब देंहटाएंसभ्यताओं का अंतर्द्वंद
आधुनिकता की होड़ में ओढ़ा आवरण
नियम बदलता समाज
बिलकुल सटीक..
आज के समाज का जीवंत चित्रण।
जवाब देंहटाएं---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
गहरे भाव ,गंभीर बात....
जवाब देंहटाएंसचमुच यही है आज का यथार्थ....
मन को छूती झकझोरती,बहुत ही सुन्दर रचना....
क्या है ये यूज़ एंड थ्रो
जवाब देंहटाएंसभ्यताओं का अंतर्द्वंद
आधुनिकता की होड़ में ओढ़ा आवरण
नियम बदलता समाज
अपने आप को दोहराता मेरा इतिहास
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
या मेरा ही जूता मेरे सर
बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती हैं आपकी रचनायें और इस मे तो जीवन के सच को बहुत प्रशन बना दिया
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
या मेरा ही जूता मेरे सर बार बार इन पँक्तियों को पढ कर सोच रही हूँ कि आजकल के परिवेश मे ये पँक्तियां सही बैठती हैं। कर्मो का फल भी और मेरा जूता मेरे सर भी। बधाई इस रचना के लिये।
आपकी हर रचना जबरदस्त होती है । आज के इन्सान की सोच का करारा जवाब
जवाब देंहटाएंक्या है ये यूज़ एंड थ्रो
जवाब देंहटाएंसभ्यताओं का अंतर्द्वंद
आधुनिकता की होड़ में ओढ़ा आवरण
नियम बदलता समाज
अपने आप को दोहराता मेरा इतिहास
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
या मेरा ही जूता मेरे सर...prashn gambheer hai, kaun dega jawab?
क्या है ये यूज़ एंड थ्रो
जवाब देंहटाएंसभ्यताओं का अंतर्द्वंद
आधुनिकता की होड़ में ओढ़ा आवरण
नियम बदलता समाज
अपने आप को दोहराता मेरा इतिहास
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
या मेरा ही जूता मेरे सर
samajik aaina hai jo satya ki jhalak darsha raha hai ,bahut khoob varnan kiya hai .
रचना को अच्छे से निभाया.
जवाब देंहटाएंशायद सच ही कहा था तुमने
जवाब देंहटाएंमैं भी तो आसानी से छोड़ आया
माँ बापू के सपने
दादी का मोतियाबिंब
दद्दू के पाँव दबाने वाले हाथ
राखी का क़र्ज़
दोस्तों के क़हक़हे
गाँव का मेघावी स्वाभिमान
मेरे से जुड़ी आशाएँ
अपना खुद का अस्तित्व
...... तीन शब्द.... ये ही हावी हो रहे है इंसानों की जीवन में... इससे बचना जरुरी है..... कविता में गहराई बहुत थी......
अपने आप को दोहराता मेरा इतिहास
जवाब देंहटाएंइसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
..........................................
कविता का सार इन्हीं पंक्तियों में है.
और जीवन की सच्चाई भी यही है.
इन भावों को अच्छी कविता के रूप में
प्रस्तुत करने के लिए बधाई.
गहरे भाव अन्तर्मन को छूते शब्द, बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंक्या है ये यूज़ एंड थ्रो
जवाब देंहटाएंसभ्यताओं का अंतर्द्वंद
आधुनिकता की होड़ में ओढ़ा आवरण
नियम बदलता समाज
अपने आप को दोहराता मेरा इतिहास
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
या मेरा ही जूता मेरे सर
-बहुत सुन्दर.
sundar prastuti. Badhai!!
जवाब देंहटाएंइसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
जवाब देंहटाएंया मेरा ही जूता मेरे सर
क्या बात है .... बहुत सुन्दर रचना ...
गहन चिंतन के लिए बाध्य करती उत्कृष्ट कविता के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंऔर व्यापक अर्थ में लें तो सबसे बड़ा यूज एंड थ्रो तो ये आत्माएँ करती हैं ...नया शरीर धारण किया...पुराना हुआ तो बदल दिया..!
हाहाहाहा
जवाब देंहटाएंयूज एंड थ्रो का सिद्धांत......जीवन की एक कड़वी हकीकत से रुबरु हुए या उसे पहचाना आखिर। भई हम तो रुबरु होकर समझ पाए थे। जानते थे इस हकीकत को पर जानते हुए भी यूज होते रहे, औऱ फिर...थ्रो तो कर ही दिया जाना था। कई लोगो के सपने तो़ड़ते हुए हम आगे बढ़ते हैं फिर अपने सपने टुटते हुए पाते हैं. या उनकी क्षुद्रता का अहसास काफी देर से होता है। पर कभी कभी ऐसे बड़े सपने जिनमें कई लोगो के छोटे-छोटे सपने पूर्ण होते हों तो आगे बढ़ा जा सकता है।
सफल होने के बाद मां बाप की जिदंगी के कुछ छुपे अरमान जो हमारी वजह से उन्होने देखने छोड़ दिए हों उन्हें पूरा करने का सुकुन भी मिलता है।
तो लब्बोलुआब ये कि हमेशा यूज के बाद थ्रो नहीं करो. .
यूज एंड थ्रो का प्रचलन तब और भयावह बन जाता है जब हम रिश्तों के परिपेक्ष्य मे भी इसे अपना लेते हैं..जब रिश्ते भी उपभोग योग्य वस्तु मान लिये जाते हैं तो उनके एक्सपायर होने मे समय नही लगता..बदलते समाज मे अप्रासंगिक होती जाती चीजों को स्वर देती महत्वपूर्ण कविता...
जवाब देंहटाएंबदलते समाज का बहुत ही प्यारा स्लॉगान है..जो अपने को ही ठक रहा है फिर भी लोग मूक पड़े है..दिगंबर जी एक और सुंदर प्रस्तुति थोड़ा देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ...धन्यवाद जी
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक है भाई ..और सच ऐसा ही होता है ।
जवाब देंहटाएं'सभ्यताओं का अंतर्द्वंद
जवाब देंहटाएंआधुनिकता की होड़ में ओढ़ा आवरण
नियम बदलता समाज '
वक्त के साथ सब कुछ बदल रहा है.रिश्ते भी इसी श्रेणी में आ गए हैं.उनपर स्वार्थ हावी है.
यह एक कड़वी हकीकत है जिसे आप ने कविता में प्रस्तुत किया है.
ye niralapan ..ye tajgi..kahin hi milti hai sir..
जवाब देंहटाएंबहुत ही गजब की रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव के साथ .....आभार
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
जवाब देंहटाएंया मेरा ही जूता मेरे सर!!!
आज की सभ्यता पर बहुत ही करारा व्यंग्य लिखा है आपने ! इतनी स्पष्टवादिता के लिए प्रणाम !
बहुत ही बढ़िया रचना ...
जवाब देंहटाएंहमारे समय की त्रासदी को आपने बहुत अर्थपूर्ण और मार्मिक अंदाज़ में कविता में रखा है.उपभोक्तावाद रिश्तों पर भी हावी है. आपकी लेखनी को नमन
जवाब देंहटाएं!
lazawaab ....par jis tarah se teekha waar is kavita ki shuru me mila..wo bat beech me kaheen gayab ho gayi thi ...ant tak aate aate fir wahi rang ....
जवाब देंहटाएंसभ्यताओं का अंतर्द्वंद, यही हो रहा है ...
जवाब देंहटाएंफल निश्चित ही यहीं मिलता है...
संवदना को शब्द देने में आप का जवाब नहीं ....
शुभकामनाएं.....
क्या है ये यूज़ एंड थ्रो
जवाब देंहटाएंसभ्यताओं का अंतर्द्वंद
आधुनिकता की होड़ में ओढ़ा आवरण
नियम बदलता समाज
अपने आप को दोहराता मेरा इतिहास
इसी जीवन में मिलता मेरे कर्मों का फल
या मेरा ही जूता मेरे सर
....Samajik bidambana ko bade hi gahare prashn ke saath uthane ka saarthak prayas kiya hai aapne..
Marmik!
जवाब देंहटाएंJai ho prabhu!
Hamein mat fenkna......
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Its tough to be a bachelor!
samsamyik wishay pr kya lekhani chalaaee hai apne .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ! आजकल यही जीवन का सच है ... हर कोई यूज़ एंड थ्रो सामान में तब्दील हो गया है ... क्यूँ कि इस होड़ में इंसानियत कहीं खो गई है ...
जवाब देंहटाएंआपकी पगडंडी वाली कविता सुन्दर है ... उसे अपने ब्लॉग पर क्यूँ नहीं लगाते?
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंAakhen Kholne Wali Ek Hradaysparshi Kavita ....
जवाब देंहटाएंलोग "संग-दिल" हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंरिश्ते "यूज एंड थ्रो" हो गये हैं।
अपनेपन की तलाश में लोग,
और भी अकेले हो गये हैं।
"ओशो कहते हैं कि किसी भी हाल में इंसान को वर्तमान में जीना चाहिए जिससे बिछुड़ गए उससे बिछुड़ गए जिससे मिले उससे भरपूर मिले....लेकिन ये करना बहुत कठिन होता है...आपकी कविता ने पूरा का पूरा चित्र खींच दिया ...जाने कितने लोग अपने बीते हुए दिनों में पहुँच गए गे..."
जवाब देंहटाएं'यूज एंड थ्रो'.... का इस्तेमाल...वाह!....कब, कौन और कहां करेगा... इसका अंदाजा लगाना मुश्किल ही नहीं, ना मुमकीन है!...दिल को छू लेने वाली रचना!
जवाब देंहटाएंक्या बात है .... बहुत सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
जवाब देंहटाएंjee... yuj aur throo samkaleen sabhyata ka adarsh-karm ban gaya hai...
जवाब देंहटाएंkavi ne to darzkar diya hai, Aane walee pidhiyan evalution karengee ...
जिनके लिए जीवन खेल है ...जीवन से खेलना खेल है ...
जवाब देंहटाएंयूज एंड थ्रो है ...
कडवी हकीकत है ...
गहरी भाव ...टीस ..व्यथित कर गयी ...!
jaise hi aapke blog par aai laga pahale kyon nahi aai....bahut sunder rachna hai.......
जवाब देंहटाएं