स्वप्न मेरे: मेरा शून्य

सोमवार, 6 सितंबर 2010

मेरा शून्य

नही में नही चाहता
सन्नाटों से बाहर आना
इक नयी शुरुआत करना

ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
लाहुलुहान हो गया हूँ
गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ
बहरा कर देतीं हैं
बीते वक़्त की खुश्बू
साँसें रोक रही है
रोशनी की चकाचौंध
अँधा कर रही है

तुम्हारी देह की मादक गंध
सह नही पाता
खनकती हँसी
सुन नही पाता
गहरी आँखों की कोई
थाह नही पाता
बाहों का हार
नागपाश लगता है
मुझे इस खामोशी में रहने दो
इन अंधेरों में बसने दो
ये मेरा ही शून्य है
इन सन्नाटों में रहने दो ...

70 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो .

    व्यथित मन के भाव ....शून्य में रहने के बजाये शून्य को प्राप्त करना चाहिए ...फिर समग्र अपना हो जाता है ...

    बहुत खूबसूरती से अपने मन की अवस्था को लिखा है ..

    जवाब देंहटाएं
  2. ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
    लाहुलुहान हो गया हूँ
    गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ
    बहरा कर देतीं हैं
    बीते वक़्त की खुश्बू
    साँसें रोक रही है
    रोशनी की चकाचौंध
    अँधा कर रही है
    ......
    मानसिक सन्नाटे को कितनी सूक्ष्मता से लिखा है

    जवाब देंहटाएं
  3. is nirasha ke paar aasha hai ...
    man ki vedna saaf dikh rahi hai
    sundar nazm

    जवाब देंहटाएं
  4. सन्नाटों का सुख, गतिविधियों से अधिक मादक है।

    जवाब देंहटाएं
  5. मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, हमेशा की तरह अनुपम लेखन ।

    जवाब देंहटाएं
  6. मनो भावों का प्राभाव्शाली वर्णन..शून्य में रहने की चाह ..कभी कभी वही सुकून देता है.
    बहुत सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  7. मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो
    --
    दिगम्बर नासवा जी आपने बहुत खूब लिखा है-
    --
    मुबारक हो तुमको महल और दुमहले,
    हमें अपनी कुटिया ही रास आ गई है!
    --
    वाकई में सन्तोष से बढकर
    दुनिया में कुछ भी नही है!

    जवाब देंहटाएं
  8. ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
    लाहुलुहान हो गया हूँ
    गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ
    बहरा कर देतीं हैं
    बीते वक़्त की खुश्बू
    साँसें रोक रही है
    रोशनी की चकाचौंध
    अँधा कर रही है
    ... विचलित मन मे जब शून्य पैदा होता है....उत्तम कृति!

    जवाब देंहटाएं
  9. भाई शब्दों से ऐसा करिश्मा सिर्फ आप ही रच सकते हैं...मन चीर कर रख दिया है...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  10. मन की भावनाओं को कितनी खूबसूरती से लिखा है आपने...

    जवाब देंहटाएं
  11. कभी कभी बीते पलों को याद कर भी सुकून मिलता है ।
    बढ़िया रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  12. आक्रांत मनस्थितियों का आपने प्रभावी चित्रण किया है। साथ ही अन्‍योक्ति से एक गहरा संकेत भी किया है।

    गीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, ... देखिए ...ना!

    जवाब देंहटाएं
  13. दिगम्बर जी... बहुत गहरा भाव बखान दिए आप! जीबन का दर्सन बस कुछ लाइन में लिख दिए. हर आदमी के जीबन में ऐसा समय आता है जब सन्नाटा मन को सांति देता है... एक बार बस उसको उपलब्ध होने का देर है... सब सोर समाप्त हो जाता है अऊर कोनो राजकुमार गौतम बुद्ध बन जाता है... बहुत सुंदर अभिब्यक्ति!!

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुन्दर नासवा साहब ! कहीं दूर दिल के कोने से फूटते शब्द !

    जवाब देंहटाएं
  15. सन्नाटे का आनंद| एकांत का सुख| बहुत सुन्दर...अनुभूतियों को बड़ी सहजता से उकेर दिया है इस कविता में|

    जवाब देंहटाएं
  16. एक समय ऎसा आता है कि सन्नाटा सच मे अच्छा लगता है

    जवाब देंहटाएं
  17. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 7- 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  18. सन्नाटे का अपना आनन्द है. अच्छी रचना.

    जवाब देंहटाएं
  19. मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ...
    Kitna sach hai! Kayi baar dil yahi chahta hai...bas rahne do akele..

    जवाब देंहटाएं
  20. मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो .
    सुंदर अभिव्यक्ति । हमें अपने आप को शून्य की स्थिति में लाना होगा जहां न खुशी उद्वेलित कर सके न दुख ।

    जवाब देंहटाएं
  21. खामोशी को बहुत सुन्दर लफ्जों मे बयान किया है ...........

    जवाब देंहटाएं
  22. आपकी रचनाएँ निःशब्द कर देतीं हैं..... दोबारा पढना अच्छा लगा...

    जवाब देंहटाएं
  23. समय-समय की बात है कभी वही बाहें हार लगती थीं.. :)

    जवाब देंहटाएं
  24. man ke bheetar ki khalish kahin shoonye me atak kar apna astitv dhoond rahi hai.

    bahut sunder shabd diye is mavaad ko.

    जवाब देंहटाएं
  25. खनकती हँसी
    सुन नही पाता
    गहरी आँखों की कोई
    थाह नही पाता
    बाहों का हार
    नागपाश लगता है
    aap bahut hii sundar likhate hain ..itana ki koi padhataa hi chalaa jaye ...

    जवाब देंहटाएं
  26. एक बार फिर पढ़ा:

    मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ..

    ओह! गज़ब!

    जवाब देंहटाएं
  27. गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ
    बहरा कर देतीं हैं
    बीते वक़्त की खुश्बू
    साँसें रोक रही है...

    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ..

    वाकई.... अपने मन की पीड़ा का बाखूबी अहसास कराया आपने. .

    जवाब देंहटाएं
  28. बहुत ही गहराई लिए हुए रचना लिखी है आपने..... बेहतरीन!

    जवाब देंहटाएं
  29. विचलित मन की व्यथा को इससे बेहतर अभिव्यक्ति और कुछ नहीं मिल सकती ! आपकी रचना ने ह्रदय को मथ कर रख दिया !
    ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
    लाहुलुहान हो गया हूँ
    गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ
    बहरा कर देतीं हैं
    बीते वक़्त की खुश्बू
    साँसें रोक रही है
    रोशनी की चकाचौंध
    अँधा कर रही है
    मन की वेदना की बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ! मेरी बधाई स्वीकार करें !

    जवाब देंहटाएं
  30. मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो .
    ...ghaav bahut gahare hain tere...bhaav bahut gahare hai....bahut maarmik.

    जवाब देंहटाएं
  31. ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ...
    " अंतर्मन की रिक्तता और एकांत से बेपनाह मोहब्बत की परिणिति शायद इन्ही शब्दों में होती है......एक अजीब सी सिहरन का एहसास है इनमे.."
    regards

    जवाब देंहटाएं
  32. बेहद शानदार रचना…………………सन्नाटों मे जीने वाले शून्य की खुशबू से महकते हैं ……………यादों को उन्ही मे जी लेते हैं…………………उम्दा भावाव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  33. नही में नही चाहता
    सन्नाटों से बाहर आना
    इक नयी शुरुआत करना
    Chahti hun,ki,nayi shuruaat ho,lekin aisi gum ho jati hun,ki,yatn nahi karti! Badi khoobsoortase aapne aisi sthiti ko bayaan kiya hai!

    जवाब देंहटाएं
  34. कभी कभी ये सन्नाटे ही सृजन की प्रेरणा दे जाते है |
    शून्य और सन्नाटो के बीच का सुन्दर कथन |

    जवाब देंहटाएं
  35. mujhe iss andhere me basne do
    ye mera shunya hai......

    kitni bhaw bhari abhivyakti...
    aapke lekhan ko slam!!

    जवाब देंहटाएं
  36. mujhe iss andhere me basne do
    ye mera shunya hai......

    kitni bhaw bhari abhivyakti...
    aapke lekhan ko slam!!

    जवाब देंहटाएं
  37. ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
    लाहुलुहान हो गया हूँ
    गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ
    बहरा कर देतीं हैं
    बीते वक़्त की खुश्बू
    साँसें रोक रही है
    रोशनी की चकाचौंध
    अँधा कर रही है
    नास्वा साहब ये पंक्तियाँ मन- मंथन कर गयीं...पूरी कविता ही शानदार है मगर ये पंक्तियं तो सोने पे सुहागा हैं. इस प्रभावी रचना अहम तक पहुँचाने का आभार.

    जवाब देंहटाएं
  38. बहुत ही वेदनापूर्ण रचना...मन के सन्नाटों को जैसे आवाज़ दे दी हो...

    जवाब देंहटाएं
  39. मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ...
    ....गहन दुखभरे क्षणों में घोर सन्नाटों भरी मनोस्थिति का मर्मस्पर्शी चित्रण
    ..बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  40. अत्यंत ही प्रभावशाली रचना. शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  41. तुम्हारी देह की मादक गंध
    सह नही पाता
    खनकती हँसी
    सुन नही पाता
    गहरी आँखों की कोई
    थाह नही पाता
    बाहों का हार
    नागपाश लगता है
    मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ...


    very well naswa shahab

    जवाब देंहटाएं
  42. तुम्हारी देह की मादक गंध
    सह नही पाता
    खनकती हँसी
    सुन नही पाता
    गहरी आँखों की कोई
    थाह नही पाता
    बाहों का हार
    नागपाश लगता है
    मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ...
    नासवा जी...
    नज़्म बहुत अच्छी है...
    अलबत्ता...
    ये विरक्ति के भाव!!!

    जवाब देंहटाएं
  43. सर जी बहुत ही उम्दा
    पंक्तियाँ ...............
    ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
    लाहुलुहान हो गया हूँ
    गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ
    बहरा कर देतीं हैं
    बीते वक़्त की खुश्बू
    साँसें रोक रही है
    रोशनी की चकाचौंध
    अँधा कर रही है.

    ये रचना को पढ़कर बहुत अच्छा लगा.

    जवाब देंहटाएं
  44. न रोको आँख मेरी अश्क बहने दो
    मुझे मेरे ज़ुर्म की सजा सहने दो
    कभी कभी शून्य भी बहुत अच्छा लगता है। खुद का खुद मे लौट आना ही ऐसी संवेदनाओं को जन्म देता है। बहुत अच्छी लगी आपकी रचना शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  45. ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
    लाहुलुहान हो गया हूँ
    गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ
    बहरा कर देतीं हैं
    सशक्त अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  46. ye shuny ..asimit hai...kalpnaon ki prakastha se pare ek adbhut soch..ek sundar abhivyakti!

    जवाब देंहटाएं
  47. मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ...

    हाफ सेंचुरी से ऊपर कमेन्ट, फिर कौन आपको शून्य में रहने देगा, हम सब अपनी उल-जलूल टिप्पणियों से आपके सन्नाटे को ,ख़ामोशी को तोड़ते ही रहेंगे..............

    आज के परिवेश में संवेदनशील व्यक्ति के मनस्थिति के सत्य को बयां करती शानदार इस रचना पर आपको हार्दिक बधाई........

    चन्द्र मोहन गुप्त

    जवाब देंहटाएं
  48. सच अक्सर सन्नाटे ही रास आते हैं !!!!उफ्फफ्फ्फ़ कितनी व्यथा है

    जवाब देंहटाएं
  49. Adarneey Digambar sir,

    Apne is rachna men bahut komal bhavnaon ko bahut khubsuratee se shbdon men bandha hai.shubhkamnayen.
    Poonam

    जवाब देंहटाएं
  50. व्यथा है बेचैनी है ,अच्छी प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  51. दिगंबर जी..कोई जवाब नही..एक भावपूर्ण रचना....शब्दों का चयन इतना सुंदर सहज आकर्षण देती हुई कविता पास से गुजरती है..

    खामोशी कभी कभी जीवन में इतनी अच्छी भी लग सकती है कि बाकी हर चीज़ चुभने लगती है..उस कल्पना को आपने जितने सुंदर ढंग से व्यक्त किया तारीफे-काबिल है...छोटे भाई का प्रणाम स्वीकार करें..आज कल आपकी छ्न्द मुक्त कविताएँ दिल जीत लेती है....

    जवाब देंहटाएं
  52. उदास कर गयी आपकी यह रचना भावों की अच्छी अभिव्यक्ति है इस में ...और एक सच भी ..शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  53. बहुत दिनों के बाद आपके ब्लाग पर आ सका लेकिन एक बढ़िया कविता को महसूस करना अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  54. पहली पंक्ति में "मैं" को सुधार लें...गलती से(शायद) वह "में" हो गया है...

    बाकी रचना और आपके लेखन दक्षता की क्या कहूँ...

    बस वाह !!!!

    जवाब देंहटाएं

  55. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

    जवाब देंहटाएं
  56. मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो .

    ..........................
    भावों की अच्छी अभिव्यक्ति....बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  57. आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !

    जवाब देंहटाएं
  58. मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ...

    dil ko chhu gayi ye line

    जवाब देंहटाएं
  59. मार्मिक चित्रण किया है आपने साथ ही सन्नाटे को आत्मसात् कर लिया जाए तो वहीं ज़िन्दगी भी होती है।

    जवाब देंहटाएं
  60. mujhe samay par naa jane kyo poora vishvas hai..........
    ye bade se bade hadse aur dukh ko apane aanchal me le lupt kar deta hai.........karvat badalana bhee iseka swabhav hai...........
    intzar hai khushee bharee nazm ka...........
    best wishes.

    जवाब देंहटाएं
  61. .
    ..मुझे इस खामोशी में रहने दो
    इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ....

    Voice of silence...

    .

    जवाब देंहटाएं
  62. आज काफी दिन बाद आना हुआ ..बहुत ही बेहतरीन रचना पढने को मिली

    जवाब देंहटाएं
  63. ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
    लाहुलुहान हो गया हूँ
    गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ
    बहरा कर देतीं हैं
    बीते वक़्त की खुश्बू
    साँसें रोक रही है
    रोशनी की चकाचौंध
    अँधा कर रही है'
    ये कैसा विरोधाभास है बाबु? ज़ख़्मी याडों के दंश और बहरा कर देने वाली सिसकियों के बीच खुशबू भी?
    'इन अंधेरों में बसने दो
    ये मेरा ही शून्य है
    इन सन्नाटों में रहने दो ..' किसी शायर ने लिखा भी है '.... अँधेरे हमे आज रास आ गए हैं ' अँधेरे कभी कभी अच्छे लगते हैं नन्हे दोस्त पर....ये लील जाते हैं हमे और हमे पता ही नही चलता.इसलिए.....कविता में ज़िक्र करो.जीवन पर हावी ना होने देना. तुम्हारी गंभीर प्रवृति को दर्शाती है ये कविता.पर.....मुझे नही पसंद निराशा के गीत.

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है