अक्सर
गुज़रे हुवे वक़्त की सतह पर
तेरी यादों की काई टिकने नही देती
एक बार फिसलने पर
फिसलता चला जाता हूँ
खुद को समेटने की कोशिश में
और बिखर जाता हूँ
बीते लम्हों के घाव
पूरे जिस्म पर उभर आते हैं
बीती यादों का जंगल
निकलने नही देता है
वर्तमान में जीने की कोशिश
तेरा ख्वाब रोक देता है
उंगलियों की पकड़
मौका पकड़ने नही देती
बाहों में कोई ख्वाब
जकड़ने नही देती
घर की हर चौखट पर
तेरी यादों की दीमक रेंग रही हैं
बीते लम्हों की सीलन
दीवारों पर उतर आई है
अगली बरसात से पहले
हर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
बरसों से जमी काई
खुरच देना चाहता हूँ
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
khubsurat shbado kaa jaal haen aap ki kavita
जवाब देंहटाएंअगली बरसात से पहले
जवाब देंहटाएंहर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
वाह. खूबसूरत..
हर साल की तरह अपने आप से
जवाब देंहटाएंनया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
सुन्दर रचना नासवा साहब !बेहतरीन ख्याल, चलो कुछ ख्वाब इस तरह ही बुन लिए जाये !
sir..hum to bheeg gaye...superb..superb!
जवाब देंहटाएंघर की हर चौखट पर
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की दीमक रेंग रही हैं
बीते लम्हों की सीलन
दीवारों पर उतर आई है
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है
अगली बरसात से पहले
जवाब देंहटाएंहर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
बरसों से जमी काई
खुरच देना चाहता हूँ
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
mujhe bhi aapke shabdo ka jaal behad pasand aaya ,ant to kamaal ka hai ,sapne bache rahe inhi koshisho se .....aur kya kahoon ?
Bahut khoobsoorat rachna
जवाब देंहटाएंvicharo ka adan pradan yeh bhee ek maukhik anubandh hai
जवाब देंहटाएंअगली बरसात से पहले
जवाब देंहटाएंहर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
बरसों से जमी काई
खुरच देना चाहता हूँ
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ...
दिगंबर नासवा जी,
बस इतना ही कहना मुनासिब होगा...
नज़्म लेखन में महारथ हासिल है आपको.
बेहद खूबसूरती से मन के भाव लिखे हैं..यादों को भुलाने की असफल कोशिश..बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंघर की हर चौखट पर
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की दीमक रेंग रही हैं
बीते लम्हों की सीलन
दीवारों पर उतर आई है
...bahut hi sundar bhaav.
घर की हर चौखट पर
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की दीमक रेंग रही हैं
बीते लम्हों की सीलन
दीवारों पर उतर आई है
फिर भी कुछ कर गुजरने की चाह है ...
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
बहुत सुन्दर और सकारात्मक भाव ....बहुत अच्छी प्रस्तुति
वाह , यादों को कितना दर्दीला बना दिया है आपने ।
जवाब देंहटाएंअगली बरसात से पहले
हर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
आशावादी ।
सुन्दर रचना नासवा जी ।
बेहतरीन...ऐसा लगता है मन के भाव बिना किसी अवरोध के सीधे कागज पर छाप दिए हों| बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी… यादों का रीन्युअल है या दर्द का … बहुत सुंदर हमेशा की तरह!!
जवाब देंहटाएंaapke lekhan aapke bhavo ka humsaya hai....mai vyastta ke karan post adhik nahee pad paee aur Arna ke godee me bane rahne se comment likhana to sambhav tha hee nahee........ koi baat nahee 26th sep lout rahee hoo fir samay hee samay hai.........
जवाब देंहटाएंकभी-कभी रचनाकार की रचना पढ़कर कुछ कहने का मूड नहीं बन पाता....इस समय मैं इसी स्थिति में हूँ
जवाब देंहटाएंहर साल आप क्या नया अनुबंध करते हैं यह बात कुछ समझ में नहीं आई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
अगली बरसात से पहले
जवाब देंहटाएंहर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
बरसों से जमी काई
खुरच देना चाहता हूँ
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
--
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
यादें ............... कितनी भी खुरचे मिटती नही
जवाब देंहटाएंसुंदर और उम्दा रचना सर जी ....
जवाब देंहटाएंइस नारे के साथ कि...... चलो हिन्दी अपनाएँ
आप सभी को हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएँ
आपको बधाई और आभार
pataa nahi kyo tippani nahi ho paa rahi he..chaar baar likh chukaa...kheir..koshish jaari he
जवाब देंहटाएंअगले बरसात के लिये खूबसूरत तैय्यारी ।
जवाब देंहटाएंहर साल की तरह अपने आप से
जवाब देंहटाएंनया अनुबंध करना चाहता हूँ
इच्छाएँ भी...कितना लोहा माँगती हैं..
घर की हर चौखट पर
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की दीमक रेंग रही हैं
बीते लम्हों की सीलन
दीवारों पर उतर आई है
बहुत गहरी संवेदना मे लिखी गयी इस रचना के लिये बधाई।
..इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ.
जवाब देंहटाएं..जीने की उर्जा देता इस बेहतरीन कविता के लिए बधाई।
..लेकिन दुःख भरी यादें भी कुछ न कुछ तो देती ही हैं..कुछ नहीं तो यह एहसास कि इतने दुःख भरे समय में भी हमने जिंदगी की मुश्किलों का सामना कितने साहस से किया!
अगली बरसात से पहले
जवाब देंहटाएंहर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
बरसों से जमी काई
खुरच देना चाहता हूँ
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
सुंदर रचना.बधाई!!
@-.इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ.
जवाब देंहटाएंThe moment it comes in our mind to weave a new dream, means a new birth . One must dream !
...behatreen !!!
जवाब देंहटाएंहर साल की तरह अपने आप से
जवाब देंहटाएंनया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
बहुत गहरी संवेदना बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
घर की हर चौखट पर
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की दीमक रेंग रही हैं
बीते लम्हों की सीलन
दीवारों पर उतर आई है
bahut khoob bahut sunder
घर की हर चौखट पर
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की दीमक रेंग रही हैं
बीते लम्हों की सीलन
दीवारों पर उतर आई है
..........................
सुंदर रचना......बधाई!!
bhavo ki sundar avivayakti..behtareen!
जवाब देंहटाएंओह! मेरी कहानी...क्या गजब उकेरी है!!
जवाब देंहटाएंहिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंमैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
हिंदी और अर्थव्यवस्था-2, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
बहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबरसों से जमी काई
जवाब देंहटाएंखुरच देना चाहता हूँ
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
वाह्……………बेहद खूबसूरत ………………।काश ! ऐसा हो पाये……………ज़िन्दगी को एक नयी दिशा मिल पाये।
सुन्दर पंक्तियॉं
जवाब देंहटाएंएक स्वाभाविक सा सरल सा बहाव है रचना में ...
जवाब देंहटाएंachhi rachna...
जवाब देंहटाएंbehtareen .
इन काइयों को उतार पाना क्या सचमुच संभव है ....?
जवाब देंहटाएंहाँ वर्तमान में जीने की कोशिश तो करनी ही है .....
बहुत गहरे से जोड़ लेते हैं शब्दों को आप ....इस उदासी को और गहरा जाती है आपकी नज़्म .....!!
बहुत सुन्दर बिम्ब चुने हैं आपने भावों को पैनापन देने के लिए...
जवाब देंहटाएंसदैव की भांति मोहक मर्मस्पर्शी रचना...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअगली बरसात से पहले
जवाब देंहटाएंहर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
बरसों से जमी काई
खुरच देना चाहता हूँ
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
......... अंतर्मन में गहराती उदासी को नया सकारात्मकता कलेवर देना बहुत अच्छा लगा..
गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामना
निराशा के बादलों से निकलकर आशा की किरण की और अग्रसर होती हुई सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंमन को छूती कविता |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
वो सुबह कभी तो आयेगी।
जवाब देंहटाएंघर की हर चौखट पर
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की दीमक रेंग रही हैं
बीते लम्हों की सीलन
दीवारों पर उतर आई है
---------------------बेहतरीन कविता की सुन्दर और भावपूर्ण पंक्तियां।
घर की हर चौखट पर
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की दीमक रेंग रही हैं
बीते लम्हों की सीलन
दीवारों पर उतर आई है
waah ! gazab kar diya fir se aapne sir bahut hi sunder abhivyakti "
------ eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! आपकी लेखनी को सलाम! उम्दा रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंखुद को समेटने की कोशिश में
जवाब देंहटाएंऔर बिखर जाता हूँ
बीते लम्हों के घाव
पूरे जिस्म पर उभर आते हैं
गहरे भाव लिये हुये बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जितनी मर्जी खुरच लें ये यादें पीछा कहाँ छोडती हैं । भावनाओं को प्रस्तुत करने काापका अंदाज निराला तो है ही भाने वाला भी है ।
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की काई
जवाब देंहटाएंयादों का जंगल
यादों की दीमक
वाह...क्या विलक्षण प्रयोग किये हैं...कमाल किया है आपने...बहुत बहुत बधाई..
नीरज
बेहतरीन अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें:-
अकेला कलम...
अगली बरसात से पहले
जवाब देंहटाएंहर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
बरसों से जमी काई
खुरच देना चाहता हूँ
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
इतना आसान तो नहीं काई को खुरच देना.
इतना आसान तो नहीं पुराने अनुबंध तोड़ पाना.
सुंदर कृति.
बीती यादों का जंगल
जवाब देंहटाएंनिकलने नही देता है
वर्तमान में जीने की कोशिश ...
बहुत भावपूर्ण रचना
आज सभी अच्छी रचनाएँ पढने को मिल रहीं हैं
जवाब देंहटाएंतेरी यादों की दीमक रेंग रही हैं
जवाब देंहटाएंबीते लम्हों की सीलन
दीवारों पर उतर आई है
unchuye bimbon ka behatreen istamal. Har baar kee tarah behad bhavuk Rachnaa...
सुन्दर रचना नासवा साहब !बेहतरीन ख्याल,
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी… ......... बहुत सुंदर हमेशा की तरह!
जवाब देंहटाएंअगली बरसात से पहले
जवाब देंहटाएंहर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
kya khub kaha hai sir aapne...:)
it is good to plan for new dreams,good wishes,sunder bhav ki kavita.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावोक्ति!...सुंदर अहसास!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावोक्ति!...सुंदर अहसास!
जवाब देंहटाएंअगली बरसात से पहले
जवाब देंहटाएंहर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
बरसों से जमी काई
खुरच देना चाहता हूँ
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता
बहुत ही करीने से तराशे गये ख्वाब हैं..इंशाअल्ला जरूर पूरे होंगे।
उंगलियों की पकड़
जवाब देंहटाएंमौका पकड़ने नही देती
बाहों में कोई ख्वाब
जकड़ने नही देती ..
हर बार नया ख्वाब बुने ...।
जवाब देंहटाएंSeems as if my feelings r described in your words.. n dat too very beautifully...
जवाब देंहटाएंअगली बरसात से पहले
जवाब देंहटाएंहर कमरे को धूप लगाना चाहता हूँ
बरसों से जमी काई
खुरच देना चाहता हूँ
हर साल की तरह अपने आप से
नया अनुबंध करना चाहता हूँ
इक नया ख्वाब बुनना चाहता हूँ
mindblowing creation !
.
यादो की काई,यादों के जंगल सुन्दर प्रतिबिम्ब ....किन्तु यादो की दीमक ???उफ़ जैसे मेरे चारों ओर दीमके रेंगने लगी है और मैं अपने पैरों को समेट कर कुर्सी पर उपर करके बैठ जाती हूँ.विभत्स बिम्ब !
जवाब देंहटाएंइन्हें क्यों खुरचना चाहते हो ?जानते नही सीलन भरी दीवारों पर बड़े सुन्दर मोरपंख उग आते हैं.