१) रेखाएँ
हर नये दर्द के साथ
बढ़ जाती है
नयी रेखा हाथ में
और लोग कहते हैं
हाथ के रेखाओं में
भविष्य छिपा है ...
२) चाँद
आसमान में
अटका
तारों में
भटका
सूरज के आते ही
खा गया
झटका
३)
साँसों के साथ खींच कर
दिल में रख लूँगा तुझे
सुना है
खून के कतरे
फेफड़ों से हो कर
दिल में जाते हैं
सुंदर क्षणिकाएं,
जवाब देंहटाएंहर क्षणिकाओं ने मन को छू लिया... लास्ट वाली तो वाकई में दिल तक पहुँच गई.... बहुत अच्छी लगीं क्षणिकाएं...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर!
जवाब देंहटाएंअंतिम बहुत ही बढ़िया है...
जवाब देंहटाएंPahli wali to bahut pyari lagi.
जवाब देंहटाएंTeesri wali kafi scientific hai :)
साँसों के साथ खींच कर
जवाब देंहटाएंदिल में रख लूँगा तुझे
सुना है
खून के कतरे
फेफड़ों से हो कर
दिल में जाते हैं ।
बहुत खूब, सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
सभी खानिकाएं लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंसाँसों के साथ खींच कर
दिल में रख लूँगा तुझे
सुना है
खून के कतरे
फेफड़ों से हो कर
दिल में जाते हैं
यह गज़ब लिखा है ..
वाह...वाह...वाह....
जवाब देंहटाएंऔर क्या कहूँ ????
शब्दों से शब्दों का कोई धनी ही इस तरह खेल सकता है...
yahi to hai lafzon ka hunar..beautiful!
जवाब देंहटाएंवाह...वाह.
जवाब देंहटाएंनासवा जी बहुत अच्छा लिख रहे हैं आप.
waah!...sabhi kshanikaaye bahut suMdar hai..
जवाब देंहटाएंसाँसों के साथ खींच कर
जवाब देंहटाएंदिल में रख लूँगा तुझे
सुना है
खून के कतरे
फेफड़ों से हो कर
दिल में जाते
वाह जबर्दस्त्त लिखा है ...
सुना है
जवाब देंहटाएंखून के कतरे
फेफड़ों से हो कर
दिल में जाते ह
सुंदर रचना के लिए साधुवाद
साँसों के साथ खींच कर
जवाब देंहटाएंदिल में रख लूँगा तुझे ....Touching lines !
सारी क्षणिकाएं सुन्दर है...अंतिम वाली तो बस बेमिसाल है...कमाल का लिखा है..
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी,
जवाब देंहटाएंअगर सचमुच दर्द के साथ रेखाएँ बढ रही हैं या बन रही हैं, त ई बात पक्का है कि भविस्य में दर्द नहीं है...क्योंकि तब त रेखाओं के बनने के बाद दर्द पैदा होता...
बेचारा चाँद... सूरज का अत्याचार नहीं सह सका..सच है हर सक्तिसाली, अपने से कमजोर पर अईसहीं जोर आजमाता है.
तीसरा बिना सीर्सक काहे है, दिगम्बर भाई!! थोड़ा ध्यान रखिएगा, फेफड़ों में फिल्टर होता है, कहीं चाँद के तरह अटक गई तो??????????
मन खुस हो गया, आपका ई रचना पढकर!!
दिगम्बर जी अंतिम रचना तो सचमुच हमारे दिल में ही चली गई है। सचमुच बहुत सुंदर है इसे क्षणिका कहने का भी मन नहीं कर रहा। बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह...वाह...वाह....बहुत ही लाजवाब क्षणिकाएं .दिल में उतरी और दिल में ही कहीं खो गयी.
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
हर नये दर्द के साथ
जवाब देंहटाएंबढ़ जाती है
नयी रेखा हाथ में
और लोग कहते हैं
हाथ के रेखाओं में
भविष्य छिपा है ...
iski baat alag hai....
चांद की औकात ही बता दी .क्षणिकाए तीनो लाजबाब है
जवाब देंहटाएंशानदार और सुंदर
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाएँ बहुत ख़ूबसूरत लगीं
जवाब देंहटाएंसभी एक से बढकर एक क्षणिकाएं हैं ...बहुत ही सुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंसही चित्र दिखला दिए आपने इन क्षणिकाओं में!
जवाब देंहटाएंसंभवतः दर्द ही हमारा भविष्य गढ़ता है।
जवाब देंहटाएंथोडा देर से आई हूँ पर दुरुस्त वरना इतनी अच्छी क्षणिकाएं मिस कर देती
जवाब देंहटाएंथोडा देर से आई हूँ पर दुरुस्त वरना इतनी अच्छी क्षणिकाएं मिस कर देती
जवाब देंहटाएंदर्द की कोख से भविष्य का ख्याल और सूरज के ताप से सहमें चांद का सवाल तो बेहतर है पर 'उसे' खून आलूदा अपनें दिल में रखूं ? तौबा !
जवाब देंहटाएंलाजवाब। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंपोस्टर!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!
साँसों के साथ खींच कर
जवाब देंहटाएंदिल में रख लूँगा तुझे
सुना है
खून के कतरे
फेफड़ों से हो कर
दिल में जाते हैं
jawab nahi ,bahut hi behtrin lagi ,behad pasand aai sabhi .
तीनों ही क्षणिकाएं बढिया लगी.....
जवाब देंहटाएंलेकिन प्रथम क्षणिका को लेकर एक शिकायत है आपसे कि कृ्प्या ऎसा गजब मत करें..भाई क्यूं हम गरीब पंडितों के पेट पर लात मारने पर तुले हैं..कुछ कमा खा लेने दीजिए :)
हर नये दर्द के साथ
जवाब देंहटाएंबढ़ जाती है
नयी रेखा हाथ में
और लोग कहते हैं
हाथ के रेखाओं में
भविष्य छिपा है ...
-क्या गज़ब कर रहे हो...तीनों एक से बढ़कर एक...वाह!
उफ़ ! बहुत ही गहन अभिव्यक्ति ....आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर क्षणिकायें ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंकाव्य प्रयोजन (भाग-९) मूल्य सिद्धांत, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
बढ़िया है भाई .... घाव करे गंभीर !!
जवाब देंहटाएंहर दर्द के साथ बन जाती है एक नयी रेखा ...
जवाब देंहटाएंआह !
साँसों से खींच कर रख लूँगा दिल में ..
वाह !
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआम तौर पर नही कहती 'दिल को छू गई' जब तक कोई सचमुच 'दिल को ना छू' ले.
जवाब देंहटाएंतीसरी क्षणिका में वो बात है.
ये ख्वाहिश,सपना,सोच ही कम नही कि कोई अपनी साँसों के रस्ते अपने प्रिय को भीतर तक खीच कर दिल में बिठा ले.
शब्दों से खेलना जानते हो या....... सचमुच 'ऐसे' हो दिगम्बर आप?
यदि लिखी गई तीसरी क्षणिका जैसे व्यक्तित्त्व और ह्रदय,मन वाले हो तो ....आश्चर्य! ईश्वर के कितने करीब रहते हो!
बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति है!
जवाब देंहटाएं--
यह सूचना इस लिए दे रहा हूँ क्योंकि चर्चा मंच पत्रिका के आज के अंक में आपकी रचना ली गई है!
http://lamhon-ka-safar.blogspot.com/2010/09/priye-hai-mujhe-mera-pagalpan.html
तीनों ही क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगीं.
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ गज़लकार पुरस्कार प्राप्ति पर बहुत बहुत बधाई.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर क्षणिकाये, लगता है चाँद के भाग्य में केवल झटका ही लिखा है .
जवाब देंहटाएंहर नये दर्द के साथ
जवाब देंहटाएंबढ़ जाती है
नयी रेखा हाथ में
और लोग कहते हैं
हाथ के रेखाओं में
भविष्य छिपा है ...
"कितनी गूढ़ बात कह डाली है आपनी इन पंक्तियों में.......मन उलझ गया है इनमे...."
regards
बेहेतरीन क्षणिकाएं...आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर । आखिरी क्षणिका ने तो दिल ही जीत लिया ।
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाएँ बहुत उम्दा है .
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक .
आभार .
संक्षेप में बहुत कुछ कह दिया है{ बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं बिलकुल गागर में सागर की तरह ! बधाई इतनी शानदार और जानदार अभिव्यक्ति के लिये !
जवाब देंहटाएंहर नये दर्द के साथ
जवाब देंहटाएंबढ़ जाती है
नयी रेखा हाथ में
और लोग कहते हैं
हाथ के रेखाओं में
भविष्य छिपा है ...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !वाह!
साँसों के साथ खींच कर
जवाब देंहटाएंदिल में रख लूँगा तुझे
सुना है
खून के कतरे
फेफड़ों से हो कर
दिल में जाते हैं ---------------------------
दिगम्बर जी,
क्षणिकायें तो तीनों ही बहुत जोरदार हैं लेकिन तीसरी क्षणिका तो कमाल की है। सुन्दर।
बहुत ही सुन्दर!
जवाब देंहटाएंक्या क्षणिकाएँ हैं । आखरी वाली तो जबरदस्त ।
जवाब देंहटाएंहर नये दर्द के साथ
जवाब देंहटाएंबढ़ जाती है
नयी रेखा हाथ में
और लोग कहते हैं
हाथ के रेखाओं में
भविष्य छिपा है .
क्या सच्ची बात कही आपने नाशवा साहब !
चाँद
जवाब देंहटाएंआसमान में
अटका
तारों में
भटका
सूरज के आते ही
खा गया
झटका...
ये तो थोड़े में ज्यादाकी बात, पंतिम पंक्तियाँ लाजवाब हैं....
शुभकामनाएं...
हर नये दर्द के साथ
जवाब देंहटाएंबढ़ जाती है
नयी रेखा हाथ में
और लोग कहते हैं
हाथ के रेखाओं में
भविष्य छिपा है ...
बेहतरीन क्षणिकाएँ
सुना है
जवाब देंहटाएंखून के कतरे
फेफड़ों से हो कर
दिल में जाते हैं !!!
स्वप्न जब स्वप्न न रह कर धडकन बन जाते हैं !तब ऐसी कविताएँ जन्म लेती हैं ! पढने वाले आभार से भर जाते हैं ! बहुत बहुत धन्यवाद !
सभी एक से बढकर एक!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और लाजवाब क्षणिकाएं लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
हैरान हूँ कैसे रह गयी आपकी ये पोस्ट्! हर नये दर्द के साथ
जवाब देंहटाएंबढ़ जाती है
नयी रेखा हाथ में
और लोग कहते हैं
हाथ के रेखाओं में
भविष्य छिपा है ...
और आख्गिरी ़ाणिका भी दिल को छू गयी। बहुत बहुत बधाई।
bhut umda .
जवाब देंहटाएंक्या बात है ..दिगंबर भैया ..एक से बढ़ कर एक भावपूर्ण क्षणिकाएँ....जादू है आपकी शब्दों में गागर में सागर वाली बात कहें तो कोई अतिशयोक्ति नही है..
जवाब देंहटाएंचाहे ग़ज़ल हो या छ्न्द मुक्त कविता या क्षणिकाएँ हर एपीसोड लाज़वाब होता है..शुभकामनाएँ...सुंदर रचना के लिए ढेरों बधाई....नमस्कार
भाई तारीफ को शब्द नहीं है मेरे पास।
जवाब देंहटाएंदेखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर.बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंek se bad kar ek sabhee dil jeetne walee kshnikae hai.......
जवाब देंहटाएंaabhar .
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें:-
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क्षणिकाएँ क्या है पूरी जिंदगी का सार है
जवाब देंहटाएंनि:शब्द
Bahut khubsuart eak se badhkar eak..badhai...
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक क्षणिका ..बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं२) चाँद
जवाब देंहटाएंआसमान में
अटका
तारों में
भटका
सूरज के आते ही
खा गया
झटका' ये चाँद है ही ऐसा तभी तो इसको 'इंदु' भी कहते हैं.हा हा हा पर.....कब तक रोक सका है सूरज इस चाँद को? चाँद भी झटके खा लेता है खुशी के साथ क्योंकि वो जानता है 'उसे' रौशनी तो इसी सूरज से मिलती है. हा हा हा तीसरी क्षणिका ...... बहुत प्यारी ! लिख चुकी हूँ इसके बारे में.मेरे प्रश्न का जवाब...अब तक नही मिला.