प्रस्तुत है आज एक ग़ज़ल गुरुदेव पंकज जी के आशीर्वाद से सजी ....
छोड़ कर खुशियों के नगमें दर्द क्या रखना
लुट गया मैं लुट गया ये राग क्या् जपना
मुस्कुारा कर उठ गया सोते से मैं फिर कल
याद आई थी किसी की या के था सपना
कल सुबह देखा पुराना ट्रंक जब मैंने
यूं लगा जैसे के कोई छू गया अपना
याद पुरखों की है आई आज जब देखा
घर के इस तंदूर में यूं रोटियां थपना
झूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
याद मुझको आ गया अखबार का छपना
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
चार कांधों की जरूरत है जरा उठना
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
वाह बहुत सुन्दर गजल ... बधाई...
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
waah
कल सुबह देखा पुराना ट्रंक जब मैंने
जवाब देंहटाएंयूं लगा जैसे के कोई छू गया अपना
याद पुरखों की है आई आज जब देखा
घर के इस तंदूर में यूं रोटियां थपना
वाह ..बहुत खूबसूरत गज़ल ..
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ !
कल सुबह देखा पुराना ट्रंक जब मैंने
जवाब देंहटाएंयूं लगा जैसे के कोई छू गया अपना
याद पुरखों की है आई आज जब देखा
घर के इस तंदूर में यूं रोटियां थपना
बहुत सुन्दर गजल...
कल सुबह देखा पुराना ट्रंक जब मैंने
जवाब देंहटाएंयूं लगा जैसे के कोई छू गया अपना
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
उफ़ ! क्या गज़ल है ……………बेहद शानदार , लाजवाब्।
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
जवाब देंहटाएंचार कांधों की जरूरत है जरा उठना
--
बहुत ही प्रभावशाली गजल है!
--
आपकी कलम को नमन!
पंकज गुरूदेव को प्रणाम!
--
13 अक्टूबर के चर्चामंच पर इसकी चर्चा है ना!
http://charchamanch.blogspot.com/
झूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
जवाब देंहटाएंयाद मुझको आ गया अखबार का छपना
नतमस्तक हूँ इस रचना के आगे
आभार आपका इस रचना के लिए
शुरूआती लाइंस में कुछ टाइपिंग मिस्टेक सा है जो ध्यान बंटा रहा है
जवाब देंहटाएंकृपया इसका उचित समाधान करें
[इस कमेन्ट को हटा सकते हैं ]
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
जवाब देंहटाएंचार कांधों की जरूरत है जरा उठना
" बेहद सुन्दर ग़ज़ल है, किसी शेर में कसक है, कहीं एहसास की महक, तो कही पुरखों की याद, आखिरी शेर में कोई लावारिस दर्द ही उभर आया है...."
regards
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
जवाब देंहटाएंचार कांधों की जरूरत है जरा उठना ..
very touching.
.
धरा से जुडी , मार्मिक रचना । बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंकल सुबह देखा पुराना ट्रंक जब मैंने
जवाब देंहटाएंयूं लगा जैसे के कोई छू गया अपना
लाजबाब ...बहुत ही बढ़िया.
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
चार कांधों की जरूरत है जरा उठना
बेहतरीन ग़ज़ल| मकता कमाल का है .......दिल से मुबारकबाद|
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
जवाब देंहटाएंचार कांधों की जरूरत है जरा उठना
मार्मिक.........
भावपूर्ण........
बढिया लिखा है साहिब.
झूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
जवाब देंहटाएंयाद मुझको आ गया अखबार का छपना
यह शेर पसन्द आया. आप बहुत मन से रचनाए लिखते है.
bahut khoob........
जवाब देंहटाएंaabhar
बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना धन्यवाद
जवाब देंहटाएंझूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
जवाब देंहटाएंयाद मुझको आ गया अखबार का छपना
वाह वाह बहुत खूब ...बहुत सुन्दर सच्ची बात लिखी आपने ..बहुत पसंद आया यह शेर
बहुत अच्छी गज़ल है..बधाई.
जवाब देंहटाएंमक्ते का यह शेर तो हिला के रख देता है..
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
चार कांधों की जरूरत है जरा उठना
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
जवाब देंहटाएंचार कांधों की जरूरत है जरा उठना
क्या कहूँ बस लाजवाब...
3/10
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रयास
आदरणीय बंधुवर दिगम्बर नासवा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
शुक्रिया ! करम ! मेहरबानी !
मेरे आग्रह की रक्षा के लिए …
ख़ूबसूरत ग़ज़ल का तोहफ़ा क़बूल है जनाब !
मुस्कुरा कर उठ गया सोते से मैं फिर कल
याद आई थी किसी की या के था सपना
…देख लीजिए , वो कहते हैं न -"इस दिल से तेरी याद भुलाई नहीं जाती …"
झूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
याद मुझको आ गया अखबार का छपना
वाह हुज़ूर वाह !
एक शे'र मुलाहिजा फ़रमाएं -
शख़्स बड़ा बेकार है वो
बिल्कुल इक अख़बार है वो
हा हाऽऽ हाऽऽऽ ठीक कहा न ? :)
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
कोई जवाब नहीं इस शे'र का … यानी लाजव्व्वाब शे'र !!
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
चार कांधों की ज़रूरत है ज़रा उठना
संवेदनहीनता की पराकाष्ठा के बीच जागी हुई इंसानियत का चित्रण
सोचने को विवश कर रहा है …
बहुत गंभीर विषय पर ला'कर ग़ज़ल सौंप दी आपने तो …
पूरी ग़ज़ल प्रवहमान !
बह्र का शानदार निर्वहन !
रवायत और ज़दीदियत के रंग लिए जानदार कहन !
एक मुकम्मल ख़ूबसूरत ग़ज़ल और किसे कहते हैं … ?
कोई उस्ताद ( फ़र्ज़ी नहीं असली वाला :) ) मिला तो पूछ कर बताऊंगा
बहुत बहुत शु्भकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
aadrniy sir ,
जवाब देंहटाएंaapki is gazal ki jitni bhi taarrif ki jaaye vo bahut hi kam padegi.
saari -ki saari gazal hi dil ko chhoo gai------
याद पुरखों की है आई आज जब देखा
घर के इस तंदूर में यूं रोटियां थपना
झूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
याद मुझको आ गया अखबार का छपना
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
चार कांधों की जरूरत है जरा उठना
bahut bahut aabhar is behatreen gazal ke liye.
poonam
बेहतरीन.... शानदार शाहकार....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.... शानदार शाहकार....
जवाब देंहटाएंवाह दिगंबर जी क्या कहूं आपकी इस रचना ने शब्दों की कमी कर दी है मेरे पास |
जवाब देंहटाएंawesome..
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
चार कांधों की जरूरत है जरा उठना
इस के बाद कुछ बाकी नहीं रह जाता कहने को
सुंदर उम्दा गज़ल.
छोड़ कर खुशियों के नगमें दर्द क्या रखना
जवाब देंहटाएंलुट गया मैं लुट गया ये राग क्या् जपना
सही मश्वरा...आगे बढ़ा जाए..
कल सुबह देखा पुराना ट्रंक जब मैंने
यूं लगा जैसे के कोई छू गया अपना...
कमाल का शेर है...वाह...
आपके कलाम को पढ़कर अलग ही अनुभूति होती है.
क्या बात है नासवा साहब ... बेहतरीन शेर कहे हैं ! बधाई !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन॥
जवाब देंहटाएंपहली बार ग़ज़ल देखी आपके ब्लॉग पर... और विश्वास कीजिए,आपकी कविता की गहराई इस ग़ज़ल में भी दिखती है!!मैं किसी एक शेर की तारीफ नहीं कर सकता.. क्योंकि सभी लाजवाब हैं!
जवाब देंहटाएं... bahut sundar ... behatreen, badhaai !
जवाब देंहटाएंआपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
चार कांधों की जरूरत है जरा उठना
अहा इन दोनों शे'रों का क्या कहना बहुत बढ़िया साब , क्या शे'र गढ़े हैं आपने... दिली दाद कुबूल करें ...
अर्श
उत्कृष्ट भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंमन तो बस यहीं रुकने का है।
जवाब देंहटाएंयाद पुरखों की है आई आज जब देखा
जवाब देंहटाएंघर के इस तंदूर में यूं रोटियां थपना
बहुत ही ज़मीन से जुड़े ख़यालात वाली रचना ......
nice.
जवाब देंहटाएंexcellent.
keep it up.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
जवाब देंहटाएंचार कांधों की जरूरत है जरा उठना
-गजब कर डाला..हर शेर ऊँचाई पर...वाह!
कल सुबह देखा पुराना ट्रंक जब मैंने
जवाब देंहटाएंयूं लगा जैसे के कोई छू गया अपना
बहुत सुन्दर .. हर शेर लाजवाब
सुंदर गजल ,जीवन के काफी करीब ।
जवाब देंहटाएंलाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
जवाब देंहटाएंचार कांधों की जरूरत है जरा उठना
क्या बात कही है!
याद पुरखों की है आई आज जब देखा
जवाब देंहटाएंघर के इस तंदूर में यूं रोटियां थपना
ये शेर इस बात का सुबूत है कि आप अपनी धरती से कितना जुड़े हुए हैं
बहुत बढ़िया !
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
चार कांधों की जरूरत है जरा उठना
मार्मिक चित्रण
कल सुबह देखा पुराना ट्रंक जब मैंने
जवाब देंहटाएंयूं लगा जैसे के कोई छू गया अपना
याद पुरखों की है आई आज जब देखा
घर के इस तंदूर में यूं रोटियां थपना
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां, भावमय करती हुई ।
बहुत ही भावपूर्ण गजल ... अच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएं.
www.srijanshikhar.blogspot.com पर " क्योँ जिँदा हो रावण "
बहुत सुंदर भाव |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
sundar bhaav!
जवाब देंहटाएंregards,
panktiyaan bhawoon ko jhakjhor rahi hai..amazing!
जवाब देंहटाएंझूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
जवाब देंहटाएंयाद मुझको आ गया अखबार का छपना ; बहुत खूब एक ऐसा विडियो जिसे सबको देखना चहिये है? अगर हां तो बताएं अवश्य..
Aah!
जवाब देंहटाएंकल सुबह देखा पुराना ट्रंक जब मैंने
जवाब देंहटाएंयूं लगा जैसे के कोई छू गया अपना
क्या बात है...बहुत खूब
याद पुरखों की है आई आज जब देखा
जवाब देंहटाएंघर के इस तंदूर में यूं रोटियां थपना
झूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
याद मुझको आ गया अखबार का छपना
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
वाह क्या खूबसूरत शेर निकाले हैं। आपकी कलम हो और पंकज जी का आशीर्वाद हो फिर भला गजल कैसे अच्छी नही निकलेगी । बधाई आपको।
'झूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
जवाब देंहटाएंयाद मुझको आ गया अखबार का छपना
*****वाह ! वाह! एक नया ख्याल..बहुत खूब!
******बहुत अच्छी ग़ज़ल है.
बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!
जवाब देंहटाएंयाद पुरखों की है आई आज जब देखा
जवाब देंहटाएंघर के इस तंदूर में यूं रोटियां थपना
Beautiful !
.
शिखा वार्ष्णेय और रश्मि रविजा जी के साथ अ़पनी भी सहमति !
जवाब देंहटाएंआपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
दिगंबर जी, ग़ज़ल कुछ दिन बाद पढ़ने को मिली पर मिली तो बेहतरीन....पिछले कुछ दिनों से आपके छ्न्दमुक्त कविताओं में खो गया ..आज इस ग़ज़ल पर निशब्द हूँ..बेहतरें भाव को समेटे एक सुंदर ग़ज़ल....बधाई स्वीकारें
आपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
behatarin ..gazal dil ko chu gayi
------ eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
वाह, नासवाजी..। बेहतरीन गज़ल। गुरुवर के आशीर्वाद से निकली यह किसी भगीरथी से कम नहीं है..।
जवाब देंहटाएंछोड़ कर खुशियों के नगमें दर्द क्या रखना
जवाब देंहटाएंलुट गया मैं लुट गया ये राग क्या् जपना !
- जनमन उपयोगी !
पुरखों की याद का इस तरह जागना ही आज का सच हो गया है !
बहुत ही खूबसूरत गज़ल !
जवाब देंहटाएंहर शेर बहुत ही उम्दा !
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएँ. सम्वेदना से परिपूर्ण.
जवाब देंहटाएंलाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
जवाब देंहटाएंचार कांधों की जरूरत है जरा उठना
is aakhri band ne kamaal kar diya
अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंनिहायत ही प्यारी और खूबसूरती से गाये जाने लायक गज़ल लगी..भीगा-भीगा सा टाइटिल ही मोह लेता है..मगर यह शेर तो और भी कातिल है
जवाब देंहटाएंझूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
याद मुझको आ गया अखबार का छपना
बहुत सुंदर!
निहायत ही प्यारी और खूबसूरती से गाये जाने लायक गज़ल लगी..भीगा-भीगा सा टाइटिल ही मोह लेता है..मगर यह शेर तो और भी कातिल है
जवाब देंहटाएंझूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
याद मुझको आ गया अखबार का छपना
बहुत सुंदर!
गहरा असर छोड़ा इस रचना ने .बधाई.
जवाब देंहटाएंझूठ भी तुम इस कदर सच्चाई से बोले
जवाब देंहटाएंयाद मुझको आ गया अखबार का छपना
बढ़िया लगी ग़ज़ल..........के हर शेर.........
हार्दिक बधाई...
चन्द्र मोहन गुप्त
भई वाह क्या बात है ....बहुत ही सुंदर ...
जवाब देंहटाएंक्या कह जाते हैं आप.....
जवाब देंहटाएंअब क्या कहूँ.......
ईश्वर आपके कलम को इसी तरह प्रखरता दें..
वाह खूब लिखते हैं आप दशैहरे की शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंआपकी आंखों की मिट्टी में न जम जाएं
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं ख्वाब इनके पास मत रुकना
sundar gazal !
.
बेहतरीन.....
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह मन को छुने वाली गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता ,एक भाव और लय लिए हुए ।
जवाब देंहटाएंमुस्कुारा कर उठ गया सोते से मैं फिर कल
जवाब देंहटाएंयाद आई थी किसी की या के था सपना
...........................
लाजवाब !!!!
nawasha ji ye guru dev Pankaj ji kon hai
जवाब देंहटाएंbahut hi sungdar rachnayen hai padh kar apar aanand aaya
dil ko chhu liya
जवाब देंहटाएंहर शेर अच्छा है ,कुछ बहुत अच्छे.
जवाब देंहटाएं'छोड़ कर खुशियों के नगमें दर्द क्या रखना
लुट गया मैं लुट गया ये राग क्या् जपना ' अरे यही तो मेरा फलसफा है जीने का और सबका होना चाहिए.
'कल सुबह देखा पुराना ट्रंक जब मैंने
यूं लगा जैसे के कोई छू गया अपना ' येस बहुत भावुक कर देते हैं ये बंद ट्रंक/ बक्से...जब भी खोलते हैं यादें...किसी का जुड़ाव...किसी के करीब होने का अहसास देते हैं ये.कुछ पुराने फोटो..या...माँ की पुरानी साड़ी.सचमुच के ट्रंक...यादोँ के ट्रंक. भावुक कर देते हो दुष्ट ! मुझे बार बार.गजब लिखते हो.कोई छल कपट...शब्दों का खेल नही यहाँ.एकदम सच्चे भान,भावनाये.
और.............'
लाश लावारिस पड़ी है चौक पर कोई
चार कांधों की जरूरत है जरा उठना' ????क्या लिखूं??? तुम ही बताओ बेटा!
'चार कांधों की जरूरत है जरा उठना'