स्वप्न मेरे: ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम ...

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम ...

ख़ुदा धरती को अपने नूर से जब जब सजाता है
दिशाएँ गीत गाती हैं गगन ये मुस्कुराता है

ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है

मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

पहाड़ों पर नज़र आती है फिर से रूइ की चादर
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है

90 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह क्या बात है
    बेहतरीन रचना

    फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

    इस शेर ने मन मोह लिया

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  2. जी हाँ ..ठंड का आगमन हो चुका है...बढ़िया प्रस्तुति वादियों में सर्द है मौसम ... के खबर के साथ....धन्यवाद

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  3. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है

    मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
    गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

    वाह क्या बात है , बेहतरीन ग़ज़ल है ... इसमें तो हर शेर गजब का है ...

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  4. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है

    -बहुत सुन्दर!!

    इसी मौसम का इन्तजार कर रहे हैं..अभी तो नहीं आया.

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  5. आशा भरी रचना .... जीने की उम्मीद जगती है

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  6. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है
    वाह -वाह ...अति सुंदर
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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  7. मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
    गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

    वाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्‍द लाजवाब रचना ।

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  8. बहुत ही सुन्दर ..एकदम कुनकुनाती गुनगुनाती सी रचना.

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  9. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है

    मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
    गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

    पहाड़ों पर नज़र आती है फिर से रूइ की चादर
    हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

    फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

    कौन सा पकडूँ और कौन सा छोडूं………………हर अशरार लाजवाब है ……………भीना भीना , गुनगुना सा अहसास लिये…………पढकर दिल बाग बाग हो गया।

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  10. वाह.....वाह....वाह.....

    लाजवाब !!!

    मन मोह गयी यह सुन्दर रचना...

    ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुँच इसे आनद रस में डुबो गए..

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  11. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

    ....utkrist...manmohak rachna.

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  12. बेहद संदर पंक्तियां…॥
    ख़ुदा धरती को अपने नूर से जब जब सजाता है
    दिशाएँ गीत गाती हैं गगन ये मुस्कुराता है

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  13. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है
    kisi bachche sa nazar aaya hai suraj

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  14. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

    झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
    तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है


    वाह ...आज का मौसम बदला हुआ है ..गुनगुनाती सी गज़ल ...बहुत सुन्दर

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  15. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है
    ... kyaa baat hai ... behatreen !!!

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  16. झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
    तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है

    खूब रंग जमाया है दिगंबर जी इन शेरो ने . मन प्रफुल्ल हुआ पढ़कर .

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  17. aapne to munadi kar di sardion kee...achhi ghazal ho gayi hai ... sare ashaar ... kuch gungune kuch sard the...


    मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
    गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

    bt ise padhte hee ek khubsurat nazaraa aankhon me aa gaya aisa laga.. :)

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  18. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है
    .बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..

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  19. ठंड नजला जुकाम के साथ, शायरी का मौसम भी लेकर आती है ;)
    बड़ी गुलाबी रचना, लिखते रहिये ....

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  20. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है
    खबरदार करती यह खबर ...
    बहुत खूबसूरत रचना

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  21. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है

    मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
    गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

    नासवा साहब, दुबई से आपके कल्पनावों के घोड़ो के टापों की आवाज दिल्ली मे साफ सुन रह हूँ, बहुत खूब !

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  22. एक बेहतरीन और खुशनुमा ग़ज़ल ।

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  23. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

    झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
    तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है

    जाड़े के अशआर के साथ रूमानी touch,

    क्या बात है आपके ग़ज़ल की

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  24. झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
    तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है

    ये मौसम का जादू है या आपकी ग़ज़ल का ।
    बेहतरीन ।

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  25. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है

    वाह बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  26. सूरज की रज़ाई / चाँद की शाल / पहाड़ों की चादर और उसकी खुशबू के अहसास वगैरह वगैरह पे गुणीजन क्या कहेंगे फ़िक्र नहीं ! अपना रिएक्शन महज़ दो लफ्ज़ ...

    'बेहद रोमांटिक'

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  27. दिगम्बर जी! ये कातिक में फगुनहट की बयार!! अबतो मुझे भी अंग्रेज़ी में बोलने का मन करने लगा है.. हाऊ रोमांटिक!!

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  28. अरे अली साहब का कमेण्ट देखे बिना लिख गया... ख़याल टकरा गए! उनसे माफ़ी..वे बड़े हैं कहेंगे इसके जुमला हुकूक महफ़ूज़ नहीं!! :)

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  29. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है

    सुंदर बिम्बों का सफल संयोजन। कुनमुनाता शब्द का बहुत सुंदर प्रयोग।
    एक अत्यंत प्रभावशाली रचना।...बधाई नासवा जी।

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  30. अहसास की खुशबू से माहौल का सुगंधित हो जाना के साथ ही रुई की चादर की उपमा श्रेष्ठ लगी। भोर की उपमा भी रजाई में छुपे सूरज से दी गई है जिसने रचना मनोहारी बन गई है। आपने बहुत अच्छी बात कही कि दिशायें तभी गीत गायेंगी और आसमान तभी मुस्करायेगा जब धरती को ईश्वर अपने नूर से सजाता है।उत्तम अति उत्तम।

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  31. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है

    मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
    गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

    खूबसूरत अहसासों को समेटे भाव प्रवण रचना. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  32. saari ki saari gazl hi bahut hi man ko bha gaiaur shabdo ka behatreen prayog unme char chand laga raha hai.
    dilko bahut bhai--------
    पहाड़ों पर नज़र आती है फिर से रूइ की चादर
    हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

    फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है
    poonam

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  33. आपकी ग़ज़ल का मौसम पर असर है या मौसम का ग़ज़ल पर जो भी है बस लाजवाब है. हर बात इतनी खूबसूरती से कही है की महसूस भी हो रही है

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  34. मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
    गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

    वाह बदलते मौसम पर सुंदर गज़ल...

    गज़ल लिखना तो कोई आपसे सीखे.

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  35. ख़ुदा धरती को अपने नूर से जब जब सजाता है
    दिशाएँ गीत गाती हैं गगन ये मुस्कुराता है
    वाह क्या खूब मतला है...

    ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है
    वाक़ई,
    सर्दी के सूरज का यही ’रवैया’ हो जाता है

    पहाड़ों पर नज़र आती है फिर से रूई की चादर
    हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है
    उम्दा...
    फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है
    ग़ज़ल का सबसे नाज़ुक और प्यारा शेर...बधाई.

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  36. jindagi ka geet hai..aur bahut khhobsurati se tarasha hai aapne..

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  37. मुझे सबसे अच्छा ये लगा..
    फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

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  38. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

    जवाब देंहटाएं
  39. शानदार शानदार और शानदार :)
    सो वेरी रोमांटिक :)

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  40. ख़ुदा धरती को अपने नूर से जब जब सजाता है
    दिशाएँ गीत गाती हैं गगन ये मुस्कुराता है
    हर पंक्ति मन को छूने वाली ....

    जवाब देंहटाएं
  41. पहाड़ों पर नज़र आती है फिर से रूइ की चादर ....
    तीन दिन की बारिश के कारन अब तो ग्वालियर में भी नजर आने लगी है रुई की चादर...

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  42. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

    खूब ग़ज़ल पढ़ी आपने...मनमुग्ध करने वाली बेहतरीन ग़ज़ल...दिगंबर जी, आपकी रचनाओं में जितनी विविधता है वो लाज़वाब होती है.....व्यंग्य भी कह जाते है और भावपूर्ण एहसास भरी प्रस्तुति पर भी आपका अधिकार है....

    आज की प्रस्तुति भी बेहतरीन....बधाई

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  43. झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
    तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है
    वाह नास्वा जी सर्दिओं के आगमन पर सुन्दर गज़ल। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  44. झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
    तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है

    लाजवाब रचना ।

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  45. मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
    गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

    anamika jee ne sach kaha, gajal likhna koi aapse seekhe...:)

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  46. हमारे यहाँ अभी ठंड प्रारम्भ नही हुई है लेकिन इस गज़ल को पढकर अहसास होने लगा है ।

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  47. हवाओं की पालकी में मन गुनगुनाता रहे और गीत गाता रहे। सुन्दर कविता।

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  48. खुदा की ही तो निआमत है जी यह...आपकी कलम से उस नूर का अनुभव भी होता है। खबर ही नहीं सच भी है कि वादियों में सर्द है मौसम..हां पर कश्मीर की वादियों में मौसम का मिज़ाज़ सर्द में गर्म ही रहता है। खैर..बेहतरीन गज़ल है दिगम्बरजी। मुझे यह मन भाया कि-
    फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है।..

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  49. क्या ख़ूबसूरत मौसमी ग़ज़ल है !!
    फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है।
    बार बार गुनगुनाने योग्य.
    और हाँ आपकी पिछली ग़ज़ल भी लाजवाब है, तारीफ़ के लिए शब्द नहीं मिले.

    --

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  50. ख़ुदा धरती को अपने नूर से जब जब सजाता है
    दिशाएँ गीत गाती हैं गगन ये मुस्कुराता है !!

    वाह! मन को आनन्द रस से सराबोर करती रचना....बेहतरीन्!

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  51. बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

    http://saaransh-ek-ant.blogspot.com

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  52. बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

    http://saaransh-ek-ant.blogspot.com

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  53. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है ..

    लाज़वाब गज़ल . हरेक शेर दिल को छू लेता है. बधाई.

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  54. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है !!
    वाह क्या बात है ! इतनी मधुर गजल बहुत दिनों बाद पढने को मिली !आभार

    जवाब देंहटाएं
  55. वाह बिरादर क्या बात है। काफी पहले कुछ कुछ ठंड का अहसास इसी तरह होता था। जाने वो ठंड कहां खो गई है। नहीं दोस्त हम ही खो गए हैं. ठंड तो वही है।

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  56. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है ...
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  57. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है
    लाज़वाब गज़ल बधाई!!

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  58. बहुत दिन बाद पढ़ पाया हूँ, क्षमा मांगते हुए आपसे! शुभकामनायें !

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  59. नासवा साहब
    बहुत उम्दा ग़ज़ल.......बस इसीलिए हम आपके दीवाने हैं.....
    बड़ी ख़ामोशी से आप ग़ज़ल का सफ़र जिस खूबसूरती से तय कर रहे हैं.....वो तारीफ और काबिले दाद है.
    ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है
    सूरज के कुनमुनाने का जलवा आप ही बयां कर सकते हैं हुज़ूर.....

    झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
    तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है
    उफ्फ्फ क्या बात है.......
    इन दो शेरों पर अगर उठकर वाह वाह न कर उठूं तो तौहीने ग़ज़ल होगी......
    तो फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है
    और
    मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
    गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

    जवाब देंहटाएं
  60. क्या बात है सर जी ....बहुत बढ़िया -२ शेर लिखे है लिखे हैं आपने.

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  61. वाह ... आपने तो मुझे शिमला की याद दिला दी .... really miss my shimla ..

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  62. बहुत खूबसूरती से प्रक्रति के नजारों को उकेरा है |

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  63. shabdon mein kya tareef karun...bus ji chahta hai aap jahan hain..apke pair chu lun..

    जवाब देंहटाएं
  64. दिगंबर जी,
    नए प्रतिमानों ने आपकी ग़ज़ल में चार चाँद लगा दिये हैं !
    बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बन पड़ी है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  65. झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
    तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है .....

    बेहद रूमानी शेर. मधुर मधुर

    जवाब देंहटाएं
  66. फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है
    बेहतरीन रचना

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  67. ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
    रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है
    ,,,bahut sundar kunmunata ahsas

    जवाब देंहटाएं
  68. "आपकी गज़ल में रवानी है।
    आग के साथ साथ पानी है॥

    सभी अशरार हैं खिले ऐसे-
    ज्यों महक जाती रातरानी है॥"

    डॉ० डंडा लखनवी

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  69. क्या बात है बाऊ जी,
    मैं यहाँ सर्दियां झेल रहन हूँ....
    और आप वहां कबविता का स्वाद ले रहे हैं!
    हा हा हा....
    बहुत उम्दा!
    आशीष
    --
    नौकरी इज़ नौकरी!

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  70. देखिये ना,
    टाईपिंग में भी हाथ काँप रहे हैं!
    हा हा हा....
    झेल रहा हूँ...
    और कविता का स्वाद
    आशीष
    --
    नौकरी इज़ नौकरी!

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  71. दिगम्‍बर तुम्‍हारी बहर पर ये जो सटीक पकड़ आ गई है इसको देख कर शायद सबसे ज्‍यादा मैं खुश हूं । कहन तो तुममें पहले से ही कूट कूट कर भरी है । और सबसे अलग हट कर कहन है । अब बहर का कॉम्बिनेशन सोने पर सुहागा लगा देता है ।

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  72. बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना ! सर्दियों की आमद का इससे खूबसूरत और कोई ऐलान हो ही नहीं सकता ! अति सुन्दर !

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  73. मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
    गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है
    और
    फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
    हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

    सर्दी के आगमन पर इतनी खूबसूरत रचना । वाह वाह वाह ।

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  74. हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है।
    ख़ूबसूरत अशआर , मुबारक बाद।

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  75. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  76. दिगंबर भाई देरी से आया लेकिन आया तो...जगजीत सिंह की गाई एक गज़ल को यूँ कहने को दिल कर रहा है:

    देर लगी आने में मुझको...शुक्र है फिर भी आये तो...

    कमाल की गज़ल कही है आपने...गुरूजी ने बहुत खूब बात कही है...बहर और कहन दोनों शानदार...तहे दिल से कबूल करो हमारी दाद..

    नीरज

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  77. झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
    तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है

    aaj kafi din baad aapke blog tak aana hua bahut si rachnayen bhi padhii ...sab behad khoobsurat lekin ye rachna kuch jyada hi khoobsurat lagii mujhe ...purmani or purkashish

    bandhai swikaren

    जवाब देंहटाएं
  78. हा हा हा बाबु! रूमानी भी होते हैं? लगा बस...दार्शनिक बने रहते हैं.अच्छी रचना है 'चाँद गुलाबी शाल ओढ़े आएगा तो गीत सुन्दर हो ही जायेगा न्.

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