स्वप्न मेरे: नीला पुलोवर

रविवार, 5 दिसंबर 2010

नीला पुलोवर

याद है जाड़े कि वो रात

दूर तक फैला सन्नाटा
ज़मीन तक पहुँचने से पहले
ख़त्म होती लेम्प पोस्ट कि पीली रौशनी

कितना कस के लपेटा था साड़ी का पल्लू

हमेशा कि तरह उस रात भी
तुमसे दस कदम दूरी पर था मैं
फिर अचानक तुम रुकीं और मुड़ के देखा
सूखे पत्ते सी कांप रहीं थी तुम

वो रात शायद अब तक की सबसे ठंडी रात थी
और मेरी जिंदगी की सबसे हसीन रात...

कितना खिल रहा था मेरा नीला पुलोवर तुम्हारे ऊपर
जैसे आसमानी चादर ने अपनी बाहों में समेट लिया हो

वक़्त ठहर गया था मेरे लिए उस रात...
.....
.....

फिर अचानक "शुक्रिया" का संबोधन
और बंद दरवाज़े के पीछे से आती हसीं कि आवाजें
तुम भी तो होठ दबा कर वापस भाग गयीं थीं उस पल

पता है उस पुलोवर में
जो तुमने उस रात पहना था
कुछ बाल धंस गए थे तुम्हारे

मुद्दतों तक उन नर्म रेशमी बालों कि छुवन
तेरी बाँहों कि तरह मेरी गर्दन से लिपटी रहीं

पर आज
जबकि तू मेरे साथ नहीं

(और ऐसा भी नही है कि मैं जानता नही था कि अपना साथ संभव नही)

पता नही क्यों
उन बालों कि चुभन सह नही पाता
दिन भर उन बालों को नोचता हूँ
उन्हें निकालने कि कोशिश में लहू-लुहान होता हूँ
पर रात होते होते
फिर से उग आता है तेरे बालों का जंगल


रोज़ का ये सिलसिला
ख़त्म नही हो पाता
और वो नीला पुलोवर
चाह कर भी छोड़ा नही जाता ...

77 टिप्‍पणियां:

  1. ओह!यादों के जंगल को कितना उखाड लो हर बार उग आती हैं और हर बार ज्यादा मात्रा मे ……………किसी खास चीज़ से जुडी यादें तो कयामत तक साथ नही छोडतीं…………आपने तो एक पूरी कहानी ही इस रचना मे समाहित कर दी……………बेहद उम्दा प्रस्तुति।

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  2. आज के मौसमी शब्दचित्र बहुत सुन्दर रहे!
    --
    यादे ही तो जीवन की धरोहर होती हैं!

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  3. बहुत सुन्दर चित्रात्मक कविता
    इस यादो के जंगल को चाहे कितना ही काटो, ये खत्म होने का नाम ही नही लेता।

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  4. यादें और अपूर्ण इच्छाएं इसी तरह सताते हैं ...
    बहुत सुन्दर कविता !

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  5. और वो नीला फ़ुलोवर चाह कर भी छोड़ा नहीं जाता।

    उम्दा अभिव्यक्ति।

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  6. sir ji

    is baar to ek aise safar par hame le gaye ho guru ki kya kaha jaaye ...

    sir , aapko maine guru bana liya hai

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  7. पुलोवर भावों का संवाहक बन गया। भावमयी रचना।

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  8. बशीर साब का शेर याद आ गयाः
    ये ज़ाफरानी पुलोवर उसी का हिस्सा है,
    कोई जो दूसरा ओढे तो दूसरा ही लगे.
    .
    और हाँ! ये रूमानियत की कौन सी पुड़िया खा ली है आपने... बला की कविताएँ निकल कर आ रही हैं..

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  9. मौसम और पुलोवर को महसूस कर यादे तो याद आ ही जाती है

    जवाब देंहटाएं
  10. मौसम और पुलोवर को महसूस कर यादे तो याद आ ही जाती है

    जवाब देंहटाएं
  11. पता नही क्यों
    उन बालों कि चुभन सह नही पाता
    दिन भर उन बालों को नोचता हूँ
    उन्हें निकालने कि कोशिश में लहू-लुहान होता हूँ
    पर रात होते होते
    फिर से उग आता है तेरे बालों का जंगल

    आज तो गज़ब की प्रस्तुति ....यही पुलोवर .वही रेशमी बाल ...लहुलुहान कर जाते हैं ....बहुत भावप्रधान रचना

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  12. वाह कमाल की रचना रच डाली है आपने. श्रींगार रस से शुरू होकर हलके से विभस्त रस के साथ करुण रस पर समाप्ती .
    बहुत बहुत सुन्दर कविता.

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  13. पुलोवर से ज्यादा महीन है कविता के रुमान की बुनावट !

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  14. आपकी कविता ने तो चित्र ही खींच दिया जैसे ...वो नीला पुलोवर ...वो बंद दरवाज़ा ...एक दबी हुई खिलखिलाहट....
    एक और उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाई।

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  15. नीला पुलोवर की बुनावट में भूल भुलैया की तरह घूम रहा हूँ . भावपूर्ण अभिव्यक्ति .

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  16. कविता तो आप की पहली बार ही पढ़ रहे है, पढते वक़्त फ़िल्मी स्क्रीनप्ले की तरह चित्र बने पलट पर ;)
    लिखते रहिये ...

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  17. वाह नासवा जी , इक आह सी निकल रही है सीने से ।
    कितना मीठा अहसास दिलाया है आज ।
    अति सुन्दर ।

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  18. ओहो..क्या बात है...सांस रोके ही पढ़ गयी जैसे...
    नीले पुलोवर सी ही सुन्दर बुनावट है ,कविता की...देर तक कविता का जायका रहता है...मन-मस्तिष्क पर.

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  19. यादों को जितना भी नोंच के फेंकने की कोशिश कीजीये ये पीछा नहीं छोडती.. इस से बेहतर है कि इनके साथ जीने की आदत डाल ली जाये... मैं भी इसी कोशिश में हूं आज कल इस्लिए ये कवित दिल क बेहद करीब लगी ः)

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  20. वो रात शायद अब तक की सबसे ठंडी रात थी
    और मेरी जिंदगी की सबसे हसीन रात...
    अरे ...जीवन भी क्या विरोधाभास है ...बहुत करीब से पहचाना है आपने स्थिति को ...
    बहुत खूब ...
    शुक्रिया ......
    मेरे ब्लॉग पर आकर मुझे उत्साहित करने के लिए

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  21. पता नही क्यों
    उन बालों कि चुभन सह नही पाता
    दिन भर उन बालों को नोचता हूँ
    उन्हें निकालने कि कोशिश में लहू-लुहान होता हूँ
    पर रात होते होते
    फिर से उग आता है तेरे बालों का जंगल

    वाह,वाह, नासवा जी, बहुत खूब, बहुत खूब

    मन के उहापोह को एकदम नए प्रतीकों के माध्यम से आपने व्यक्त किया है।...बधाई।

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  22. बहुत प्यारी नज़्म है नासवा जी !
    मानव मन के अंतर्द्वंद्व को दर्शाती रचना
    बहुत सुंदर !

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  23. वो रात शायद अब तक की सबसे ठंडी रात थी
    और मेरी जिंदगी की सबसे हसीन रात...

    कितना खिल रहा था मेरा नीला पुलोवर तुम्हारे ऊपर
    जैसे आसमानी चादर ने अपनी बाहों में समेट लिया हो

    मेरी क़लम तो ये कहना चाह रही है कि:-
    उफ़ ये जाड़ा,ये मुहब्बत की बातें.
    न जाने कटेंगी भला कैसे रातें .

    ये भी:-
    दिगंबर नासवा जी की क़लम में क्या रवानी है
    जवानी है,जवानी है,जवानी है,जवानी है.

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  24. बहुत सुंदर भाव, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत सुंदर भाव, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  26. पिछली पोस्ट का असर इस पर भी है या मौसम का ? पर है लाजवाब!!!!

    जवाब देंहटाएं
  27. भावनाओं का सुंदर चित्रण। अच्छी लगी कविता।

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  28. सर्द मौसम से जुडी नीले पुलोवर की यादें ...
    रोज उग आता है उन बालों का जंगल ...
    उन यादों का जंगल ...
    मौसम , याद सब एक साथ साकार हो गए !

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  29. कितना खिल रहा था मेरा नीला पुलोवर तुम्हारे ऊपर
    जैसे आसमानी चादर ने अपनी बाहों में समेट लिया हो

    वक़्त ठहर गया था मेरे लिए उस रात...
    ..... bahut hi pyaara chitra!

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  30. वाह!! वो नीला वाला..पुलोवर...क्या भाव हैं!! उम्दा!

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  31. वाह नासवा जी,
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  32. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करती प्रस्‍तुति ।

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  33. बड़ी सुंदर रचना बुनी आपने ........ भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  34. बहुत सुन्दर रचना ...भावनायो को हुबहू उतारा गया है .....बधाई ...

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  35. बहुत बहुत सुन्दर रचना ..गहरे भाव लिए यह दिल को छु गयी ..........लाजवाब

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  36. न मैने दिया
    न उसने लिया
    बस महसूस किया
    कि मेरा ही था
    वो
    नीला पुलोवर।

    जाड़े में
    कहीं खो गया
    हो गया
    दिगबंर
    अच्छा लगा
    नीला पुलोवर।

    जवाब देंहटाएं
  37. न मैने दिया
    न उसने लिया
    बस महसूस किया
    कि मेरा ही था
    वो
    नीला पुलोवर।

    जाड़े में
    कहीं खो गया
    हो गया
    दिगबंर
    अच्छा लगा
    नीला पुलोवर।

    जवाब देंहटाएं
  38. पता है उस पुलोवर में
    जो तुमने उस रात पहना था
    कुछ बाल धंस गए थे तुम्हारे

    मुद्दतों तक उन नर्म रेशमी बालों कि छुवन
    तेरी बाँहों कि तरह मेरी गर्दन से लिपटी रहीं -----
    सुनहरी यादों को बिलकुल नये बिम्ब से दर्शाया है।

    और वो नीला पुलोवर
    चाह कर भी छोड़ा नही जाता ...
    अच्छी यादें भी कई बार कितना दुखी कर देती हैं नीले पुलओवर की तरह। बेहतरीन भाव। शुभकामनायें।

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  39. बहुत सुन्दर गुलाबी रचना
    पुलोवर नहीं यह पुल है शायद यादों और एहसासों का

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  40. रोज़ का ये सिलसिला
    ख़त्म नही हो पाता
    और वो नीला पुलोवर
    चाह कर भी छोड़ा नही जाता ...

    प्रेम की पराकाष्ठा. बेहतरीन भाव शुभकामना

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  41. 'pata nahi kyon un balon ki chubhan sah nahi pata..........
    gahri anubhootiyon ka ehsas...
    dil ka dard utar aya hai rachna me....
    bahut achchhi rachna.

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  42. ये यादों के जंगल कभी ख़त्म नहीं होते भाई साहब.... बहुत ही शानदार कविता....

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  43. संवेदना के स्वर वाला सवाल अपना भी :)

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  44. गहरे भाव लिए यह दिल को छु गयी ..........लाजवाब

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  45. भावप्रधान.....अच्छी लगी ये कविता.

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  46. yaden ksi share ki mohtaj nhi
    vo to bs aati hai our aati hi chli jati hai .
    koi drvaja , koi khidki , koi sankal koi hthkdi
    inhe aane se na rok pai hai .
    ye to bs aati hai our aati hi chli jati hai .

    जवाब देंहटाएं
  47. कुछ ऐसी यादें जो बिछड़ कर और भयावह लगाने लगती हैं लेकिन उनसे छुटकारा हम पाना भी चाहे तो मन बस उसी में भटका कर्ता है. जब की हकीकत ये होती है की उनसे दूर होना कौन चाहता है? उनसे जुड़ा रहना कहीं मन को सुकून देता है.

    जवाब देंहटाएं
  48. कुछ ऐसी यादें जो बिछड़ कर और भयावह लगाने लगती हैं लेकिन उनसे छुटकारा हम पाना भी चाहे तो मन बस उसी में भटका कर्ता है. जब की हकीकत ये होती है की उनसे दूर होना कौन चाहता है? उनसे जुड़ा रहना कहीं मन को सुकून देता है.

    जवाब देंहटाएं
  49. बालों कि चुभन सह नही पाता
    दिन भर उन बालों को नोचता हूँ
    उन्हें निकालने कि कोशिश में लहू-लुहान होता हूँ
    पर रात होते होते
    फिर से उग आता है तेरे बालों का जंगल...
    कमाल की नज़्म है नासवा जी, बहुत गहराई लिए हुए.

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  50. नासवा साहब , यादें होती ही है कुछ ऐसी की आसानी से पीछा नहीं छोडती ..... बहुत ही भावपूर्ण कविता.

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  51. कितना खिल रहा था मेरा नीला पुलोवर तुम्हारे ऊपर
    जैसे आसमानी चादर ने अपनी बाहों में समेट लिया हो
    oh !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  52. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

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  53. ग़ज़लों के बाद आयी यह नयी नज़्म भी बहुत खूब लिखी है आप ने . .मन के भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति.

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  54. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. आभार

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  55. पता नही क्यों
    उन बालों कि चुभन सह नही पाता
    दिन भर उन बालों को नोचता हूँ
    उन्हें निकालने कि कोशिश में लहू-लुहान होता हूँ
    पर रात होते होते
    फिर से उग आता है तेरे बालों का जंगल ..
    --- ............. वो आतश है .......... , कि लगाए न लगे और बुझाए न बने !
    आपकी कविताओं को देखने के बाद कह सकता हूँ कि आपने अन्दर का प्रेमीमन शब्दों की दुनिया में सतत क्रीड़ा करता रहता है !

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  56. शिक्षाप्रद कविता। जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझने वालों को कभी बाल नहीं नोचने पडते।

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  57. sir
    yaaden to insaan ke saath jnok ki tarah aisi chipki rahti hain ki bhale hi tasveer dhundhali pad jaaye par apna amit chhap vah chhod hi jaati hai jindagi bhar ke liye.chahe vo sukhad ho ya dukhad.aapki behatreen prastuti dono ka ek saath ahsaas kara gai.man ko kahi chhoo si gai.
    poonam

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  58. सही है जनाब!!!
    "वो जाफरानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
    कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे..."

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  59. आपकी हर रचना एक से बढ़कर एक रहती है.
    इसपे तो बस "आह" ही निकली हमारी :)

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  60. कितना खिल रहा था मेरा नीला पुलोवर तुम्हारे ऊपर
    जैसे आसमानी चादर ने अपनी बाहों में समेट लिया हो
    waah kitni masoom si nazm hai

    bahut pasand aayi

    roj ka ye silsila khatam nahi ho paata bahut gahri ..

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  61. bahut bhavuk abhivykti.........
    par

    :(.........
    udaas kar gayee ye nazm.........

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  62. मैंने अपना पुराना ब्लॉग खो दिया है..
    कृपया मेरे नए ब्लॉग को फोलो करें... मेरा नया बसेरा.......

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  63. और वो नीला पुलोवर
    चाह कर भी छोड़ा नही जाता

    और यही सच है की यादों से पीछा छुड़ाना ही नहीं चाहते...

    बहुत सुंदर शब्दों से अंतर्द्वंद को सजाया है.

    बधाई.

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है