याद है जाड़े कि वो रात
दूर तक फैला सन्नाटा
ज़मीन तक पहुँचने से पहले
ख़त्म होती लेम्प पोस्ट कि पीली रौशनी
कितना कस के लपेटा था साड़ी का पल्लू
हमेशा कि तरह उस रात भी
तुमसे दस कदम दूरी पर था मैं
फिर अचानक तुम रुकीं और मुड़ के देखा
सूखे पत्ते सी कांप रहीं थी तुम
वो रात शायद अब तक की सबसे ठंडी रात थी
और मेरी जिंदगी की सबसे हसीन रात...
कितना खिल रहा था मेरा नीला पुलोवर तुम्हारे ऊपर
जैसे आसमानी चादर ने अपनी बाहों में समेट लिया हो
वक़्त ठहर गया था मेरे लिए उस रात...
.....
.....
फिर अचानक "शुक्रिया" का संबोधन
और बंद दरवाज़े के पीछे से आती हसीं कि आवाजें
तुम भी तो होठ दबा कर वापस भाग गयीं थीं उस पल
पता है उस पुलोवर में
जो तुमने उस रात पहना था
कुछ बाल धंस गए थे तुम्हारे
मुद्दतों तक उन नर्म रेशमी बालों कि छुवन
तेरी बाँहों कि तरह मेरी गर्दन से लिपटी रहीं
पर आज
जबकि तू मेरे साथ नहीं
(और ऐसा भी नही है कि मैं जानता नही था कि अपना साथ संभव नही)
पता नही क्यों
उन बालों कि चुभन सह नही पाता
दिन भर उन बालों को नोचता हूँ
उन्हें निकालने कि कोशिश में लहू-लुहान होता हूँ
पर रात होते होते
फिर से उग आता है तेरे बालों का जंगल
रोज़ का ये सिलसिला
ख़त्म नही हो पाता
और वो नीला पुलोवर
चाह कर भी छोड़ा नही जाता ...
ओह!यादों के जंगल को कितना उखाड लो हर बार उग आती हैं और हर बार ज्यादा मात्रा मे ……………किसी खास चीज़ से जुडी यादें तो कयामत तक साथ नही छोडतीं…………आपने तो एक पूरी कहानी ही इस रचना मे समाहित कर दी……………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआज के मौसमी शब्दचित्र बहुत सुन्दर रहे!
जवाब देंहटाएं--
यादे ही तो जीवन की धरोहर होती हैं!
bahut sundar kavita badhai sir
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्रात्मक कविता
जवाब देंहटाएंइस यादो के जंगल को चाहे कितना ही काटो, ये खत्म होने का नाम ही नही लेता।
यादें और अपूर्ण इच्छाएं इसी तरह सताते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता !
और वो नीला फ़ुलोवर चाह कर भी छोड़ा नहीं जाता।
जवाब देंहटाएंउम्दा अभिव्यक्ति।
sir ji
जवाब देंहटाएंis baar to ek aise safar par hame le gaye ho guru ki kya kaha jaaye ...
sir , aapko maine guru bana liya hai
पुलोवर भावों का संवाहक बन गया। भावमयी रचना।
जवाब देंहटाएंबशीर साब का शेर याद आ गयाः
जवाब देंहटाएंये ज़ाफरानी पुलोवर उसी का हिस्सा है,
कोई जो दूसरा ओढे तो दूसरा ही लगे.
.
और हाँ! ये रूमानियत की कौन सी पुड़िया खा ली है आपने... बला की कविताएँ निकल कर आ रही हैं..
मौसम और पुलोवर को महसूस कर यादे तो याद आ ही जाती है
जवाब देंहटाएंमौसम और पुलोवर को महसूस कर यादे तो याद आ ही जाती है
जवाब देंहटाएंपता नही क्यों
जवाब देंहटाएंउन बालों कि चुभन सह नही पाता
दिन भर उन बालों को नोचता हूँ
उन्हें निकालने कि कोशिश में लहू-लुहान होता हूँ
पर रात होते होते
फिर से उग आता है तेरे बालों का जंगल
आज तो गज़ब की प्रस्तुति ....यही पुलोवर .वही रेशमी बाल ...लहुलुहान कर जाते हैं ....बहुत भावप्रधान रचना
वाह कमाल की रचना रच डाली है आपने. श्रींगार रस से शुरू होकर हलके से विभस्त रस के साथ करुण रस पर समाप्ती .
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर कविता.
पुलोवर से ज्यादा महीन है कविता के रुमान की बुनावट !
जवाब देंहटाएंआपकी कविता ने तो चित्र ही खींच दिया जैसे ...वो नीला पुलोवर ...वो बंद दरवाज़ा ...एक दबी हुई खिलखिलाहट....
जवाब देंहटाएंएक और उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाई।
बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंनीला पुलोवर की बुनावट में भूल भुलैया की तरह घूम रहा हूँ . भावपूर्ण अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंकविता तो आप की पहली बार ही पढ़ रहे है, पढते वक़्त फ़िल्मी स्क्रीनप्ले की तरह चित्र बने पलट पर ;)
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये ...
वाह नासवा जी , इक आह सी निकल रही है सीने से ।
जवाब देंहटाएंकितना मीठा अहसास दिलाया है आज ।
अति सुन्दर ।
ओहो..क्या बात है...सांस रोके ही पढ़ गयी जैसे...
जवाब देंहटाएंनीले पुलोवर सी ही सुन्दर बुनावट है ,कविता की...देर तक कविता का जायका रहता है...मन-मस्तिष्क पर.
bhut khoobsurat rachna.....
जवाब देंहटाएंयादों को जितना भी नोंच के फेंकने की कोशिश कीजीये ये पीछा नहीं छोडती.. इस से बेहतर है कि इनके साथ जीने की आदत डाल ली जाये... मैं भी इसी कोशिश में हूं आज कल इस्लिए ये कवित दिल क बेहद करीब लगी ः)
जवाब देंहटाएंवो रात शायद अब तक की सबसे ठंडी रात थी
जवाब देंहटाएंऔर मेरी जिंदगी की सबसे हसीन रात...
अरे ...जीवन भी क्या विरोधाभास है ...बहुत करीब से पहचाना है आपने स्थिति को ...
बहुत खूब ...
शुक्रिया ......
मेरे ब्लॉग पर आकर मुझे उत्साहित करने के लिए
पता नही क्यों
जवाब देंहटाएंउन बालों कि चुभन सह नही पाता
दिन भर उन बालों को नोचता हूँ
उन्हें निकालने कि कोशिश में लहू-लुहान होता हूँ
पर रात होते होते
फिर से उग आता है तेरे बालों का जंगल
वाह,वाह, नासवा जी, बहुत खूब, बहुत खूब
मन के उहापोह को एकदम नए प्रतीकों के माध्यम से आपने व्यक्त किया है।...बधाई।
बहुत प्यारी नज़्म है नासवा जी !
जवाब देंहटाएंमानव मन के अंतर्द्वंद्व को दर्शाती रचना
बहुत सुंदर !
वो रात शायद अब तक की सबसे ठंडी रात थी
जवाब देंहटाएंऔर मेरी जिंदगी की सबसे हसीन रात...
कितना खिल रहा था मेरा नीला पुलोवर तुम्हारे ऊपर
जैसे आसमानी चादर ने अपनी बाहों में समेट लिया हो
मेरी क़लम तो ये कहना चाह रही है कि:-
उफ़ ये जाड़ा,ये मुहब्बत की बातें.
न जाने कटेंगी भला कैसे रातें .
ये भी:-
दिगंबर नासवा जी की क़लम में क्या रवानी है
जवानी है,जवानी है,जवानी है,जवानी है.
गहरी अभिव्यक्ति.................
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुंदर भाव, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
पिछली पोस्ट का असर इस पर भी है या मौसम का ? पर है लाजवाब!!!!
जवाब देंहटाएंभावनाओं का सुंदर चित्रण। अच्छी लगी कविता।
जवाब देंहटाएंसर्द मौसम से जुडी नीले पुलोवर की यादें ...
जवाब देंहटाएंरोज उग आता है उन बालों का जंगल ...
उन यादों का जंगल ...
मौसम , याद सब एक साथ साकार हो गए !
कितना खिल रहा था मेरा नीला पुलोवर तुम्हारे ऊपर
जवाब देंहटाएंजैसे आसमानी चादर ने अपनी बाहों में समेट लिया हो
वक़्त ठहर गया था मेरे लिए उस रात...
..... bahut hi pyaara chitra!
वाह!! वो नीला वाला..पुलोवर...क्या भाव हैं!! उम्दा!
जवाब देंहटाएंवाह नासवा जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
... bahut khoob ... behatreen !!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावमय करती प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबड़ी सुंदर रचना बुनी आपने ........ भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना , बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...भावनायो को हुबहू उतारा गया है .....बधाई ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना ..गहरे भाव लिए यह दिल को छु गयी ..........लाजवाब
जवाब देंहटाएंन मैने दिया
जवाब देंहटाएंन उसने लिया
बस महसूस किया
कि मेरा ही था
वो
नीला पुलोवर।
जाड़े में
कहीं खो गया
हो गया
दिगबंर
अच्छा लगा
नीला पुलोवर।
न मैने दिया
जवाब देंहटाएंन उसने लिया
बस महसूस किया
कि मेरा ही था
वो
नीला पुलोवर।
जाड़े में
कहीं खो गया
हो गया
दिगबंर
अच्छा लगा
नीला पुलोवर।
पता है उस पुलोवर में
जवाब देंहटाएंजो तुमने उस रात पहना था
कुछ बाल धंस गए थे तुम्हारे
मुद्दतों तक उन नर्म रेशमी बालों कि छुवन
तेरी बाँहों कि तरह मेरी गर्दन से लिपटी रहीं -----
सुनहरी यादों को बिलकुल नये बिम्ब से दर्शाया है।
और वो नीला पुलोवर
चाह कर भी छोड़ा नही जाता ...
अच्छी यादें भी कई बार कितना दुखी कर देती हैं नीले पुलओवर की तरह। बेहतरीन भाव। शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर गुलाबी रचना
जवाब देंहटाएंपुलोवर नहीं यह पुल है शायद यादों और एहसासों का
रोज़ का ये सिलसिला
जवाब देंहटाएंख़त्म नही हो पाता
और वो नीला पुलोवर
चाह कर भी छोड़ा नही जाता ...
प्रेम की पराकाष्ठा. बेहतरीन भाव शुभकामना
'pata nahi kyon un balon ki chubhan sah nahi pata..........
जवाब देंहटाएंgahri anubhootiyon ka ehsas...
dil ka dard utar aya hai rachna me....
bahut achchhi rachna.
one of the best romantic post...
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा भावाव्यक्ति....आभार।
जवाब देंहटाएंये यादों के जंगल कभी ख़त्म नहीं होते भाई साहब.... बहुत ही शानदार कविता....
जवाब देंहटाएंसंवेदना के स्वर वाला सवाल अपना भी :)
जवाब देंहटाएंबहुत ऊष्मा है इसमें।
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए यह दिल को छु गयी ..........लाजवाब
जवाब देंहटाएंभावप्रधान.....अच्छी लगी ये कविता.
जवाब देंहटाएंyaden ksi share ki mohtaj nhi
जवाब देंहटाएंvo to bs aati hai our aati hi chli jati hai .
koi drvaja , koi khidki , koi sankal koi hthkdi
inhe aane se na rok pai hai .
ye to bs aati hai our aati hi chli jati hai .
कुछ ऐसी यादें जो बिछड़ कर और भयावह लगाने लगती हैं लेकिन उनसे छुटकारा हम पाना भी चाहे तो मन बस उसी में भटका कर्ता है. जब की हकीकत ये होती है की उनसे दूर होना कौन चाहता है? उनसे जुड़ा रहना कहीं मन को सुकून देता है.
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसी यादें जो बिछड़ कर और भयावह लगाने लगती हैं लेकिन उनसे छुटकारा हम पाना भी चाहे तो मन बस उसी में भटका कर्ता है. जब की हकीकत ये होती है की उनसे दूर होना कौन चाहता है? उनसे जुड़ा रहना कहीं मन को सुकून देता है.
जवाब देंहटाएंबालों कि चुभन सह नही पाता
जवाब देंहटाएंदिन भर उन बालों को नोचता हूँ
उन्हें निकालने कि कोशिश में लहू-लुहान होता हूँ
पर रात होते होते
फिर से उग आता है तेरे बालों का जंगल...
कमाल की नज़्म है नासवा जी, बहुत गहराई लिए हुए.
नासवा साहब , यादें होती ही है कुछ ऐसी की आसानी से पीछा नहीं छोडती ..... बहुत ही भावपूर्ण कविता.
जवाब देंहटाएंकितना खिल रहा था मेरा नीला पुलोवर तुम्हारे ऊपर
जवाब देंहटाएंजैसे आसमानी चादर ने अपनी बाहों में समेट लिया हो
oh !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बहुत खुबसुरत जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
ग़ज़लों के बाद आयी यह नयी नज़्म भी बहुत खूब लिखी है आप ने . .मन के भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. आभार
जवाब देंहटाएंपता नही क्यों
जवाब देंहटाएंउन बालों कि चुभन सह नही पाता
दिन भर उन बालों को नोचता हूँ
उन्हें निकालने कि कोशिश में लहू-लुहान होता हूँ
पर रात होते होते
फिर से उग आता है तेरे बालों का जंगल ..
--- ............. वो आतश है .......... , कि लगाए न लगे और बुझाए न बने !
आपकी कविताओं को देखने के बाद कह सकता हूँ कि आपने अन्दर का प्रेमीमन शब्दों की दुनिया में सतत क्रीड़ा करता रहता है !
शिक्षाप्रद कविता। जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझने वालों को कभी बाल नहीं नोचने पडते।
जवाब देंहटाएंsir
जवाब देंहटाएंyaaden to insaan ke saath jnok ki tarah aisi chipki rahti hain ki bhale hi tasveer dhundhali pad jaaye par apna amit chhap vah chhod hi jaati hai jindagi bhar ke liye.chahe vo sukhad ho ya dukhad.aapki behatreen prastuti dono ka ek saath ahsaas kara gai.man ko kahi chhoo si gai.
poonam
सही है जनाब!!!
जवाब देंहटाएं"वो जाफरानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे..."
आपकी हर रचना एक से बढ़कर एक रहती है.
जवाब देंहटाएंइसपे तो बस "आह" ही निकली हमारी :)
कितना खिल रहा था मेरा नीला पुलोवर तुम्हारे ऊपर
जवाब देंहटाएंजैसे आसमानी चादर ने अपनी बाहों में समेट लिया हो
waah kitni masoom si nazm hai
bahut pasand aayi
roj ka ye silsila khatam nahi ho paata bahut gahri ..
uff nila sweater se to aapne kitna tana bana bun rakha hai.
जवाब देंहटाएंयादों के इस लिबास की गर्माहट का क्या कहना।
जवाब देंहटाएं---------
त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
bahut bhavuk abhivykti.........
जवाब देंहटाएंpar
:(.........
udaas kar gayee ye nazm.........
मैंने अपना पुराना ब्लॉग खो दिया है..
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे नए ब्लॉग को फोलो करें... मेरा नया बसेरा.......
और वो नीला पुलोवर
जवाब देंहटाएंचाह कर भी छोड़ा नही जाता
और यही सच है की यादों से पीछा छुड़ाना ही नहीं चाहते...
बहुत सुंदर शब्दों से अंतर्द्वंद को सजाया है.
बधाई.