खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
जमीं पे है किसने उतारी मुहब्बत
उमड़ती घटाएं महकती फिजायें
किसी की तो है चित्रकारी मुहब्बत
तेरी सादगी गुनगुनाती है हर सू
मुहब्बत मुहब्बत हमारी मुहब्बत
तेरे गीत नगमें तेरी याद लेकर
तेरा नाम लेकर संवारी मुहबत
पनपने लगेंगे कई ख्वाब मिल के
जो पलकों में तूने उतारी मुहब्बत
मुहब्बत है सौदा दिलों का दिलों से
न मैं जीत पाया न हारी मुहब्बत
सुनाते हैं जो लैला मजनू के किस्से
वो कहते हैं कितनी हे प्यारी मुहब्बत
चली है जुबां पर मेरा नाम लेकर
वो नाज़ुक सी अल्हड कुंवारी मुहब्बत
है बदली हुई वादियों की फिजायें
पहाड़ों पे हे बर्फ़बारी मुहब्बत
अमीरों को मिलती है ये बेतहाशा
गरीबों को है रेजगारी मुहब्बत
ज़माने के झूठे रिवाजों में फंस कर
लुटी बस मुहब्बत बिचारी मुहब्बत
है दस्तूर कैसा ज़माने का देखो
सदा ही है पैसे से हारी मुहब्बत
फटेहाल जेबों ने धीरे से बोला
चलो आज कर लो उधारी मुहब्बत
बुधवार, 19 जनवरी 2011
मंगलवार, 4 जनवरी 2011
थाल पूजा का लिए सूनी निगाहें
आप ख़्वाबों में नहीं आते हो जब तक
मैं हकीकत से जुड़ा रहता हुं तब तक
जिन्दगी की राह में चलना हे तन्हा
थाम कर रक्खोगे मेरा हाथ कब तक
प्यार सबको बांटता चल इस सफ़र में
बस इसी रस्ते से सब जाते हें रब तक
तुम चमकती रौशनी से दूर रहना
जुगनुओं का साथ बस होता हे शब तक
गीत नगमें नज्म कविता शेर तेरे
बस तेरी ही बात तेरा नाम लब तक
थाल पूजा का लिए सूनी निगाहें
पूछती हैं क्यों नहीं लौटे वो अब तक
मैं हकीकत से जुड़ा रहता हुं तब तक
जिन्दगी की राह में चलना हे तन्हा
थाम कर रक्खोगे मेरा हाथ कब तक
प्यार सबको बांटता चल इस सफ़र में
बस इसी रस्ते से सब जाते हें रब तक
तुम चमकती रौशनी से दूर रहना
जुगनुओं का साथ बस होता हे शब तक
गीत नगमें नज्म कविता शेर तेरे
बस तेरी ही बात तेरा नाम लब तक
थाल पूजा का लिए सूनी निगाहें
पूछती हैं क्यों नहीं लौटे वो अब तक
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