भोर ने आज
जब थपकी दे कर मुझे उठाया
जाने क्यों ऐसा लगा
सवेरा कुछ देर से आया
अलसाई सी सुबह थी
आँखों में कुछ अधखिले ख्वाब
खिड़की के सुराख से झाँक रहा था
अंधेरों का धुंधला साया
मैं दबे पाँव तेरे कमरे में आया
देखा ... तेरे बिस्तर के मुहाने
सुबह की पहली किरण तेरे होठों को चूम रही थी
सोए सोए तू करवट बदल होले से मुस्कुराइ
हवा के झोंके के साथ
कच्ची किरण ने ली अंगड़ाई
रात के घुप्प अंधेरे को चीर
वो कायनात में जा समाई
अगले ही पल
सवेरे ने दस्तक दी
अंधेरे की गठरी उठा
रात बिदा हुई
मुद्दतों बाद
मुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया ....
बहुस सुन्दर...एक-एक शब्द भावपूर्ण ....
मन को छू लेने वाले....
हार्दिक बधाई।
आह ! आज तो नासवा साहब, प्रेम की गगरी छलक रही है, बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ....
जवाब देंहटाएंप्रेम पगी सुन्दर रचना ...सिंदूरी आभा बिखेरती हुई सी ..
जवाब देंहटाएंवाह ....बहुत ही खूबसूरत शब्द ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
are waah, kitne khushnuma khyaal
बहुत ही प्यारी सी, ख़ूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंकोमल भावों की सुन्दरतम अभिव्यक्ति . ..
जवाब देंहटाएंप्रेम रस में सराबोर रचना ...
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया ....
गीत पढ़ते हुए कानों में मधुर घंटियों सी आवाज़ और जुबान पर शहद की मिठास सी घुल गयी गीत गुनगुनाती- सी कविता ...!
दिगंबर जी संयोग कहिये इसे कि मैं आज सुबह सुबह जयशंकर प्रसाद जी की कालजयी रचना 'प्रथम प्रभात' पढ़ रहा था ... और जब ऑनलाइन हुआ तो अभी अभी दोपहर में तो पाया कि आपकी एक सुन्दर कविता मौजूद है.. प्रसाद जी की तुकांत कविता और आपकी अतुकांत .. लेकिन भाव दोनों में एक सामान... उस कविता की कुछ पंक्तियाँ... आपके लिए...
जवाब देंहटाएं"वर्षा होने लगी कुसुम-मकरन्द की,
प्राण-पपीहा बोल उठा आनन्द में,
कैसी छवि ने बाल अरुण सी प्रकट हो,
शून्य हृदय को नवल राग-रंजित किया"....
waah sundartam khyaal ..bahut sundar.
जवाब देंहटाएंचलिए रहस्य खुला तो।
जवाब देंहटाएं*
अच्छी लगी कविता।
बेहद सुन्दर नज़्म ...सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
बहुत सुंदर कविता .....
सूरज के आने से पहले
जवाब देंहटाएंनीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
वाह क्या दिलकश अन्दाज़ है…………दिल मे उतर गये है भाव्…………बहुत पसन्द आयी ये कविता और इसके भाव्।
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
गज़ब का रहस्य खोला है आपने, नासवा जी.
क्या रूमानी टच दिया है आपने.
वाक़ई आप खूब लिखते हैं.
काव्य में डूब डूब लिखते हैं.
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया..
नासवा जी बहुत ही खूबसूरत रूमानी अंदाज है, आपकी रचना का, सुन्दर प्रस्तुति..
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
.........
बहुत भावमयी प्रस्तुति. शुभकामना.
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया ..bahut sunder....
अगले ही पल
जवाब देंहटाएंसवेरे ने दस्तक दी
अंधेरे की गठरी उठा
रात बिदा हुई
मुद्दतों बाद
मुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
kabhi kabhi aesa hi hota hai ,khyalo se pare kuchh naya kuchh adbhut ,bahut khoobsurat rachna badhai ho .
वाह वाह वाह और बस वाह
जवाब देंहटाएंइन खूबसूरत पक्तियो के लिए जितनी वाह की जाये कम है
शुभकामनाये
सूरज के आने से पहले
जवाब देंहटाएंनीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया....
वाह !! .. बहुत सुंदर भाव से सनी रचना ....
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
बहुत सुन्दर भाव हैं ।
लेकिन हमें तो शक सा हो रहा है कि कहीं रूठों को मनाने की कोशिश तो नहीं ! !
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
-वाह!! ये हुई न बात..बहुत खूब!!
बहुत भावमयी प्रस्तुति|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत भाव...
जवाब देंहटाएंकई दिनों से मैं कवितायें नहीं लिख रहा हूं.... बस ऐसे ही अच्छा पढ़ रहा हूँ...
बहुत ही खूबसूरत रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया..
लाज़वाब! बहुत सुन्दर प्रेममयी भावपूर्ण प्रस्तुति..
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
अगले ही पल
जवाब देंहटाएंसवेरे ने दस्तक दी
अंधेरे की गठरी उठा
रात बिदा हुई
कविता पढ़कर मन के अंधियारे ने भी अपनी गठरी बांध कर विदा ले ली।
सुंदर कविता।
मैं दबे पाँव तेरे कमरे में आया
जवाब देंहटाएंदेखा ... तेरे बिस्तर के मुहाने
सुबह की पहली किरण तेरे होठों को चूम रही थी
सोए सोए तू करवट बदल होले से मुस्कुराइ
हवा के झोंके के साथ
कच्ची किरण ने ली अंगड़ाई
रात के घुप्प अंधेरे को चीर
वो कायनात में जा समाई
इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति। दिल बाग बाग हो गया।
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
बेहतरीन रचना है नासवा जी आपकी .....
बहुत सुंदर .....!!
अंधेरे की गठरी उठा रात विदा हुई।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभ्व्यक्ति , बधाई नासवा जी बहुत बहुत बधाई।
दिगंबर जी,आज कल कार्य परिस्थितियाँ कुछ अनुकूल नही है सो बहुत दिन बाद आप की रचनाओं तक पहुँच पाया...आ कर एक बार फिर से पुरानी यादों में खो गया| वैसे ही बेहतरीन शब्द-चयन और वैसे ही सुंदर भाव...मैं पहले से कहता आ रहा हूँ छन्दमुक्त कविताओं में आपका कोई जोड़ नही...
जवाब देंहटाएंआज भी सुंदर प्रस्तुति...बधाई
प्रात, प्रकृति और प्रियतमा की सुंदरता का अप्रतिम मिश्रण!!
जवाब देंहटाएंBEHTAREEN RACHNA.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंएक एक शब्द मखमली है नज़्म का !बड़ा ठहराव सा प्रतीत होता है पूरी नज़्म में ! बहुत खूब ! कितनी कोमलता से मन के जज़्बात कलमबद्ध किये हैं ! बहुत ही सुन्दर ! सुबह सुबह इतनी खूबसूरत रचना पढ़ आनंद आ गया ! बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमौसम का जादू कविता में झलक रहा है।
जवाब देंहटाएंbahut sundar shabdon me ek sundar ahsaas.
जवाब देंहटाएं"मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया "-
बहुत सुन्दर भाव हैं आपके. बधाई स्वीकारें - अवनीश सिंह चौहान
"मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया "-
बहुत सुन्दर भाव हैं आपके. बधाई स्वीकारें - अवनीश सिंह चौहान
अलसाई सी सुबह थी
जवाब देंहटाएंआँखों में कुछ अधखिले ख्वाब
खिड़की के सुराख से झाँक रहा था
अंधेरों का धुंधला साया
"कितनी सहजता और अपनापन है इन पंक्तियों में , ऐसे पल हम रोज जीते हैं , मगर इतनी सहजता से इन नाजुक लम्हों को लफ्जो में कैद नहीं कर पाते..... नाजुक एहसास जैसे छलक रहे हैं इस नज्म में...खुबसूरत"
regards
अंधेरे की गठरी उठा
जवाब देंहटाएंरात बिदा हुई
खूबसूरत.
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
वाह जी, क्या बात है ... बहुत सुन्दर !
सिंदूरी रंग के आकाश का मतलब समझ गया मै . मस्त रचना .
जवाब देंहटाएंदिगंबर नासवा भाई बहुत ही रोचक और सार्थक रचना| बधाई स्वीकार करें बन्धुवर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन, सिंदूरी रंग का उद्भव भावों को छू गया, नीला आकाश भी लालायित रहता है।
जवाब देंहटाएंbhut sundar rachna...
जवाब देंहटाएंbahut hi achchi aur sundar rachna ! muddaton baad ye samajh men aaya ..sindoori rang ..bahut khoob ! Shubhkamnaen
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंअगले ही पल
जवाब देंहटाएंसवेरे ने दस्तक दी
अंधेरे की गठरी उठा
रात बिदा हुई
बहुत सुन्दर अंधेरे की गठरी उठा रात विदा हुयी--- लाजवाब। नीले आसमान पर सिन्दूरी रंग। तभी तो कविता की सुन्दरता मे चार चाँद लगे हैं। बधाई।
सरल शब्दों सें बेहतरीन कविता।
जवाब देंहटाएंमुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
bahut sunder rachna -
khushnuma subah si khili khili .
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया
bahut sunder rachna -
khushnuma subah si khili khili .
कविता और भावाभिव्यक्ति अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंमुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया ....
वाह..क्या खूब लिखा है आपने। लाजवाब है.....
bahut sunder
जवाब देंहटाएंहवा के झोंके के साथ
जवाब देंहटाएंकच्ची किरण ने ली अंगड़ाई
रात के घुप्प अंधेरे को चीर
वो कायनात में जा समाई.
बहुत खूब लिखा है लाजवाब. सुंदर बिम्ब प्रयोग.
अंतिम के तीन लाइनों ने कमाल कर दिया..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन खूबसूरत नज़्म...
mann ko choo lene vali rachna...
जवाब देंहटाएंbahut sundar...
शानदार नासवाजी। सूरज के आने से पहले का जो सिन्दूरी रंग आपकी नज़रों से देखा तो कह उठा-वाह।
जवाब देंहटाएंMan ko chhu gaye bhaav.
जवाब देंहटाएं---------
पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
मुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया ....
दिगम्बर जी ये पंक्तियाँ को ह्रदय को छू गईं.....
और हाँ भाई आपको बधाई हो... भड़ास4 मीडिया पर आपके सम्मान कि खबर पढ़ी....
its cool
जवाब देंहटाएंlast wali do teen lines me to kya baat- kya baat- kya baat...
जवाब देंहटाएंमैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
श्री दिगम्बर नासवा जी आपका ब्लाग
जवाब देंहटाएंतीसरी पंक्ति में जुङ गया है । आपकी
कवितायें गजलें अच्छी लगीं । आप
कृपया अपने प्रोफ़ायल में अपना फ़ोटो
लगा लें । ब्लाग वर्ल्ड में किसी दिन
आपका भी परिचय प्रकाशित होगा ।
इस हेतु । धन्यवाद ।
अच्छे भावों को समेटे सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं आपको।
अरे ये तो प्रेम का रंग छे । बहुत सुंदर है नासवा जी ये वसंत का खूबसूरत असर ।
जवाब देंहटाएंआह...बला की रूमानियत है !
जवाब देंहटाएंवाह...वाह...वाह....
जवाब देंहटाएंइससे अधिक कुछ कहने के लिए तो कमर तोड़ मेहनत करनी होगी...
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
वाह बहुत सुन्दर ! मन को छूती हुई !
जवाब देंहटाएंमुद्दतों बाद
जवाब देंहटाएंमुझे भी समझ आया
सूरज के आने से पहले
नीले आसमान पर
सिंदूरी रंग कहाँ से आया ...
Lovely expression !
.
मैं दबे पाँव तेरे कमरे में आया
जवाब देंहटाएंदेखा ... तेरे बिस्तर के मुहाने
सुबह की पहली किरण तेरे होठों को चूम रही थी
सोए सोए तू करवट बदल होले से मुस्कुराइ
हवा के झोंके के साथ
कच्ची किरण ने ली अंगड़ाई
रात के घुप्प अंधेरे को चीर
वो कायनात में जा समाई
different but b'ful.....
बहुत खूब लिखा है लाजवाब.
जवाब देंहटाएंनासवा जी बहुत ही खूबसूरत ..... सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता..ख़ासतौर से अंतिम पंक्तियाँ बहुत प्यारी हैं...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएं