ग़ज़लों का दौर से अलग हट के प्रस्तुत है आज एक रचना ... आशा है आपको पसंद आएगी ...
मेरे तमाम जानने वालों के ख्यालों में पली
गुज़रे हुवे अनगिनत सालों की वेलेंटाइन
मेरी अंजान हसीना
समर्पित है गुलाब का वो सूखा फूल
जो बरसों क़ैद रहा
डायरी के बंद पन्नों में
न तुझसे मिला
न तुझे देखा
तू कायनात में तब आई
मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
डायरी से मिला
मेरी तन्हाई की हमसफ़र
अंजान क़िस्सों की अंजान महबूबा
ख्यालों की आडी तिरछी रेखाओं में
जब कभी तेरा अक्स बनता हूँ
अनायास
तेरे माथे पे बिंदी
हाथों में पूजा की थाली दे देता हूँ
फिर पलकें झुकाए
सादगी भरे उस रूप को निहारता हूँ
ओ मेरी जानी सी अंजान प्रेमिका
तु बरसों पहले क्यों नही मिली
अनजान प्रेम के प्रति इतना समर्पण... फिर अनजान कहाँ ! आपका ह्रदय तो जानता है उसे.. बहुत खूबसूरत कविता...
जवाब देंहटाएंउसे याद कर न दिल दुखा जो गुजर गया सो गुजर गया
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआह यही प्रेमिका ही तो जीवन को महकाती है ……………बेहद उम्दा भाव सौन्दर्य्।
जवाब देंहटाएंइतना सब कुछ फिर भी अनजानी ? कवि के हृदय में बसने वाली प्रेमिका के प्रति कवि के सुन्दर भावोद्दगार .
जवाब देंहटाएंप्रेमिल भाव की इतनी खूबसूरत अभिव्यक्ति ..... बस नमन करने को जी चाह रहा है !
जवाब देंहटाएंओ मेरी जानी सी अंजान प्रेमिका
जवाब देंहटाएंतु बरसों पहले क्यों नही मिली
agar vo barso pahle mil jati to ye abhivyakti kahan se aati digambar ji.bahut khoob.
ये जानी सी अंजान प्रेमिका ही हमेशा दिल के करीब रहेगी क्यूंकि वो कभी बदलेगी नहीं..
जवाब देंहटाएंप्यारी सी कविता
सच्ची प्रेमिका से हमेशा यह शिकायत रहती है कि वह देरी से जीवन में क्यों आई. बहुत सुंदर कहा है आपने.
जवाब देंहटाएंख्यालों की आडी तिरछी रेखाओं में
जवाब देंहटाएंजब कभी तेरा अक्स बनता हूँ
अनायास
तेरे माथे पे बिंदी
हाथों में पूजा की थाली दे देता हूँ
फिर पलकें झुकाए
सादगी भरे उस रूप को निहारता हूँ ...
वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, कितनी सादगी, कितना प्यार भरा समर्पण वो भी एक अंजान अनदेखी प्रेमिका के लिए जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत.......
प्रेम कि वो मूरत अमूर्त रहती तो अच्छा रहता .
जवाब देंहटाएंदिगंबर भाई नज़्म हो या ग़ज़ल आपकी कलम से निकली हर रचना मोहक होती है.शब्द और भाव पाठक को अपने साथ बहा ले जाते हैं. प्रेम की कोमल तंतुओं से बुनी इस रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंनीरज
न तुझसे मिला
जवाब देंहटाएंन तुझे देखा
तू कायनात में तब आई
मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
डायरी से मिला ... waah , kitne pyaare ehsaas hain dayree me
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच
नज़्म के लिहाज से...गज़ब के भाव और बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंअब नज़्म से बाहर...खैर, अभी जाने दो!!! :)
अमूर्त प्रेम का मूर्तन ,मानवीकरण ,प्रेमिकाकरण .वाह क्या बात है .दिल की बात जुबां पे आ ही जाती है .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नज़्म।
जवाब देंहटाएंप्यारए भाव।
दिगम्बर भाई, आपका जवाब नहीं।
जवाब देंहटाएं---------
हॉट मॉडल केली ब्रुक...
नदी : एक चिंतन यात्रा।
bahut khoobsurat.... :)
जवाब देंहटाएंआपने हममें से कइयों की टीस को आवाज़ दी।
जवाब देंहटाएंकौन मिली, कब मिली, कैसे मिली ... सुन्दर भावनात्मक कविता !
जवाब देंहटाएं"न तुझसे मिला
जवाब देंहटाएंन तुझे देखा
तू कायनात में तब आई
मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
डायरी से मिला"
और डायरी में दबा
एक सूखा गुलाब
कितनी यादें संजो गया ...!
बहुत सुन्दर, बहुत खूबसूरत.
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव लिए प्रभावित करती रचना .....
जवाब देंहटाएंसच है सूखे हुए गुलाब कभी बहुत चुभन देते रहते हैं उम्र भर...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंअनजानी कहाँ .कवि मन तो देखिये पहचानता है उसे.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण कविता.
पहले ही मिल जाती तो इतनी सुन्दर कविता कहाँ से आती।
जवाब देंहटाएंयह अंदाज भी प्यारा है।
जवाब देंहटाएंप्यारे अंदाज में अंजान प्रेमिका के लिये लिखी गई रचना कमाल की है,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अब पछताये होत क्या ..............
जवाब देंहटाएंग़ज़ल और गीत के बाद ये कविता भी काफी प्रभावशाली लगी| एक से अधिक विधाओं में लिखने का शौक़ आप के हित में है मित्र|
न तुझसे मिला
जवाब देंहटाएंन तुझे देखा
तू कायनात में तब आई
मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
डायरी से मिला
बहुत खूब !!!!!!!
कहीं ये अंजाना व्यक्तित्व आप की कविता ही तो नहीं ?????
जय हो!
जवाब देंहटाएंजबरदस्त भाव ...
जवाब देंहटाएंचलो एक बार फिर से ...
हमारे एहसासों में साथ चलते हैं इसी तरह जाने अनजाने फिर भी पहचाने लोग !
जवाब देंहटाएंये अंदाज़ भी जुदा है आपका !
bahut pasnd aayi aapki ye rachna...
जवाब देंहटाएंअमूर्त रूप प्यार का .कविता के भाव अंजन प्रेमिका को मूर्त कर गए .
जवाब देंहटाएंये अंदाज़ भी प्यारा है.
जवाब देंहटाएंप्रेम को अभिव्यक्त करना तो कोई आपसे सीखे , गजब की अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंन तुझसे मिला
जवाब देंहटाएंन तुझे देखा
तू कायनात में तब आई
मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
डायरी से मिला ..
आपकी लेखनी में जादू है आपकी कविताएं मन को छूने में कामयाब रहती हैं | बधाई और शुभकामनाएं |
न तुझसे मिला
जवाब देंहटाएंन तुझे देखा
तू कायनात में तब आई
मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
डायरी से मिला
.........अच्छी लगी ये नज़्म...सूक्ष्म जगत के सूक्ष्म अहसासात
-----देवेंद्र गौतम
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंकल्पनायें भी जीने का सहारा होती हैं। भावमय रचना। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंभाई दिगम्बर जी सुंदर और गहन अभिव्यक्ति बधाई
जवाब देंहटाएंभाई दिगम्बर जी सुंदर और गहन अभिव्यक्ति बधाई
जवाब देंहटाएंbhootkaal ki parchhaiyon se bani ye tasveer premika ki
जवाब देंहटाएंjeevant kar rahi hai vartmaan aur bhavishya bhi
bahut hi sunder bhaav
aap bhi aaiye
जवाब देंहटाएंabhaar
अनायास
जवाब देंहटाएंतेरे माथे पे बिंदी
हाथों में पूजा की थाली दे देता हूँ
फिर पलकें झुकाए
सादगी भरे उस रूप को निहारता हूँ
बहुत ही प्यारी पंक्तियां...
बहुत मासूम-सी रचना...
बहुत खूब.
चाहत वही अब बदले हुए रुप में...
जवाब देंहटाएंयह अन्दाज़ तो एकदम जुदा सा लगा...वैसे यही जानी अंजानी प्रेमिका ताउम्र दिल की किताब में सूखे फूल सी रहती है..
जवाब देंहटाएंये कविता बहू को सुनाई या पढवाई क्या...?
जवाब देंहटाएंपढवाना...अच्छी है...
साधुवाद .......
उन तमाम गजलोंसे एकदम न्यारी -सी
जवाब देंहटाएंप्यारी रचना ! सुंदर .....
बहुत सुन्द..र दिल कोछूती पंक्तियां.....
जवाब देंहटाएंन तुझसे मिला
जवाब देंहटाएंन तुझे देखा
तू कायनात में तब आई
मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
डायरी से मिला ...
Wow these lines a so lovely and fun to read !!!
just want to say
Waah Excellent.
यह प्रेम तो गहरा जान पड़ता है.. अनजान नहीं.. सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है जी ऐसे ही लिखते रहे
जवाब देंहटाएंहमारे कुटिया पर भी दर्शन दे श्री मान
मुझे इतनी अच्छी लगी आपकी ये नज़्म कि देखिये नासवा जी, मैं दुबारा आ गई इसे गुनगुनाने.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण रचना ! कभी कभी कल्पना में उकेरी गयी तस्वीर से ही इतना प्यार हो जाता है कि उसमे सामने यथाथ का प्यार भी बेमानी सा हो जाता है ! नाज़ुक सी कोमल सी बेहद प्यारी रचना ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंजानबूझकर अंजान तो नहीं बना जा रहा है ?
जवाब देंहटाएंअब देखिये इसमें एक वाक्यांश आया है "जानी सी अन्जान "
जवाब देंहटाएंजानी सी --अर्थात वो खयालों में पली है, डायरी से जब फूल मिला तब आभास हुआ । तनहाइयों की साथी भी रही । तेरा चित्र भी बनाया , तेरे माथे पर चांद जैसे मुखडे पर बिंदिया सितारा भी लगाया । और गाया भी ओ हो तेरी बिंदिया रे । पूजा का थाल भी तुझे दिया और तुझे निहारा भी।
अब अनजान -- भले ही खयालो में पली मगर थी तो अन्जान ही । जिससे मिले नहीं देखा नहीं अन्जान तो होगी ही । भलेही हमसफर रहीे हो मगर थी तो अंजान किस्सों की अंजान ही । जो चित्र बनाया वह भी काल्पनिक ही था।
कल्पना में यह रूप तो शायद हर कोई गढ़ता है..पर उसे ऐसे कोमल भावांजलि हर कोई नहीं दे पाता...
जवाब देंहटाएंमोहक भावपूर्ण बहुत बहुत सुन्दर...
'पूजा की थाली..माथे पर बिंदी'... आप की कविताओं की नायिका की पहचान है इसलिए यह जानी -अनजानी ..पहचानी सी ही लगी .
जवाब देंहटाएंग़ज़लों से हटकर अभिव्यक्ति का यह रूप भी अच्छा लगा..
"न तुझसे मिला
जवाब देंहटाएंन तुझे देखा
तू कायनात में तब आई
मुद्दतों बाद जब सूखा गुलाब
डायरी से मिला"
और डायरी में दबा
एक सूखा गुलाब
कितनी यादें संजो गया ...!
एक शब्द में अद्भुत. ऐसा लगा कि हवा का एक झोंका दिल के तारों को झनझना के चला गया.
बहुत प्यारी नज़्म रची है सर!
जवाब देंहटाएं--------------------------
कल 17/06/2011 को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है.
आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है .
धन्यवाद!
नयी-पुरानी हलचल
प्रेम निहायत ह्रदय से होती है,हम करते हैं,करते रहना चाहते है चाहे मूरत जैसी भी हो ..बहुत अच्छा लगा ये प्रयास .
जवाब देंहटाएंमोहक भावपूर्ण बहुत बहुत सुन्दर|
जवाब देंहटाएंaadarniy sir
जवाब देंहटाएंkya likhun ,sabne to sab kuchh kah diya.
itni-itni pyari vo bhi anjaani premika ke liye itna samrpan ---bahut khoob.
bahut hi sundarta ke saath hriday ke mano bhavo ko atyant hikhoob surat shbdon se sanjoya hai aapne ---Wah
bahut bahut badhai
vivek ji ki bhi hardik badhai itni sundar rachna ko padhvane ke liye
dhanyvaad sahit--------
poonam
आज दुबारा पढी कविता, और फिर जी चाहा कि कमेंट लिखूं। लेकिन क्या लिखूं, यह समझ नहीं आ रहा। बस इतना कहूंगा कि मन को छू गये भाव।
जवाब देंहटाएं---------
ब्लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
आई साइबोर्ग, नैतिकता की धज्जियाँ...
बड़ी अच्छी नज़्म है..मेरे एक मित्र की सुधांशू फिरदौस की "महानायिका" श्रृंखला की रचनाएँ याद आ गयीं..जल्दी ही कोना एक रुबाई का पर पोस्ट करूँगा...
जवाब देंहटाएंअपनी स्वप्न सुंदरी की अद्भुत और प्रेमपूरित तस्वीर खींची है ......आपने अपनी प्यारी रचना में
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, बहुत खूबसूरत....
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
दिगम्बर जी,
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अहसास को किसी खूबसूरती से एक नज़्म में ढाला है......
लेकिन समीरलाल जी ने जो कहा है कि "फिर....." उस बारे में फिर कभी कहियेगा हो सकता है कि कोई बेहतरीन गज़ल बने या कोई नज़्म।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अभिव्यक्ति का आपका यह अंदाज़ बहुत खूबसूरत है।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं।
कविता से सलवार तक का यह व्यंगात्मक सफ़र रोचक रहा |
जवाब देंहटाएंsache prem ko samarpit rachna... bahut hi khoob
जवाब देंहटाएंआप के एहसास महसूस कर सकता हूँ ! पर बयाँ नही ...
जवाब देंहटाएंखुश रहिये!
bahut ....bahut sundar
जवाब देंहटाएंकोमल और सुन्दर अहसास वाली कविता बहुत पसंद आई !
जवाब देंहटाएंइसीलिए आपको बधाई !
sooooooo romantic..
जवाब देंहटाएंexcellent..
यादे-माज़ी अज़ाब है यारब ...
जवाब देंहटाएंगुज़रे हुए यादगार पलों की सुहानी यादों को
बरबस ही याद दिलाती
यादगार रचना ... वाह !
awesome :)
जवाब देंहटाएंह्म्म्म खतरनाक खयालात नही है ये ?
जवाब देंहटाएं'ओ मेरी जानी सी अंजान प्रेमिका
तु बरसों पहले क्यों नही मिली'
अरे ! हमारी बहु से भी ज्यादा हसीन थी क्या 'वो' हा हा हा इस अजानी को उतार लो 'इनमे' फिर कोई शिकायत नही रहेगी जिंदगी से और 'उसे' खो देने का दुःख भी न् होगा.
सर , इस नज़्म के लिये मेरे पास कोई शब्द नहीं है .. क्या कहूँ , पढकर अपनी सी लगी ,,, कुछ भीगी हुई सी आँखे है .. मन में बस गए है आपके शब्द ,, कुछ तलाशने लगा है ह्रदय.....बस भाई. अब और नहीं लिखा जायेंगा
जवाब देंहटाएंआभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html