स्वप्न मेरे: मुक्ति ...

रविवार, 26 जून 2011

मुक्ति ...

स्थिर मन
एकाग्र चिंतन
शांत लहरें
शांत मंथन

आदि न मध्य
अनंत छोर
आत्मा की खोज
अनवरत भोर

श्वांस चक्र
जीवन डोर
अंतिम सफ़र
दक्षिण क्षोर

आत्मा की मुक्ति
निरंतर संग्राम
जीवन संध्या
अंतिम विश्राम

गर्भ से शून्य
शून्य से गर्भ
स्वयं ही बंधन
स्वयं ही मुक्त

77 टिप्‍पणियां:

  1. सोचने पर विवश करती सुन्दर रचना ।

    जीवन चक्र में मुक्ति तो बस शरीर को ही मिलती है । आत्मा की मुक्ति के लिए जो युक्ति लगानी पड़ती है वह सब के बस की बात नहीं । इसीलिए यह आवागमन लगा रहता है ।

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  2. अनंत का दर्शन है आपकी यह अद्भुत रचना....
    सादर....

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  3. गर्भ से शून्य
    शून्य से गर्भ
    स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्त

    -अद्भुत!!!...बहुत सुन्दर...

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  4. बहुत सुंदर !!

    आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    जीवन संध्या
    अंतिम विश्राम

    ये पंक्तियां जान हैं कविता की
    बधाई

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  5. मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने....... हार्दिक बधाई।

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  6. गहरा जीवन दर्शन... मुक्ति और बन्धन दोनो के लिए ही जीवन भर संघर्ष चलता रहता है...

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  7. दार्शनिक, आध्यात्मिक और रूहानी कविता!! प्रेरक!

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  8. आत्मा की खोज
    अनवरत भोर

    आध्यात्मिकता का अहसास जागृत करती हैं ये पंक्तियाँ.

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  9. गर्भ से शून्य
    शून्य से गर्भ
    स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्त
    bilkul sahi.yahi satya hai.

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  10. आपकी इस अद्भुत रचना का आंकलन करने के लिए या कुछ भी कह पाने लिए अपने को असमर्थ समझती हूँ........

    स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्त

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  11. आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    जीवन संध्या
    अंतिम विश्राम

    वाह, जीवन के यथार्थ का सुंदर चित्रण।
    बहुत अच्छी कविता।
    शुभकामनाएं, नासवा जी।

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  12. गहन जीवन दर्शन है इस कविता में...हर पैरे में अलग तरह का चिंतन... बहुत बढ़िया

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  13. एक छोटे छंद के माध्यम अर्थ पूर्ण अभिव्यक्ति काबी्ले तारीफ़ है।

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  14. गर्भ से शून्य
    शून्य से गर्भ
    स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्त
    Kya gazab kee baat kah dee aapne!

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  15. 'आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    जीवन संध्या
    अंतिम विश्राम '
    ...जीवन दर्शन युक्त कविता गंभीर चिंतन कराती हुई लगी.

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  16. इन पंक्तियों में,मानो पूरा जीवन-चक्र समाया हुआ है!

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  17. गर्भ से शून्य
    शून्य से गर्भ
    स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्त

    गहन जीवन दर्शन है आपकी इस रचना में....

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  18. अद्भुत कृति, शान्त परिवेश में मंदिर के घंटनाद जैसा।

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  19. आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    जीवन संध्या
    अंतिम विश्राम
    --
    थोड़े से शब्दों में
    जीवन का सार
    नाशवान देह से
    इतना प्यार
    --
    बहुत सुन्दर रचना!

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  20. जीवन के पथ पर शून्य से शून्य में मिल जाना ही इस माया से मुक्ति है। संक्षिप्त किंतु सटीक शब्दों में आपने इस चक्र को अभिव्यक्त किया है।

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  21. shabdo ke garbh me bahut hi gehrayi hai aur aadi se ant tak ka safar.

    snkshepan me pallavan.

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  22. शानदार..एकदम आध्यात्मिक कविता,

    आत्मा की मुक्ति.. :)

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  23. गर्भ से शून्य
    शून्य से गर्भ
    स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्त

    :)

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  24. आदि न मध्य
    अनंत छोर
    आत्मा की खोज
    अनवरत भोर
    .....mann ko shant karti rachna

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  25. आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    जीवन संध्या
    अंतिम विश्राम

    गहन चिंतन से जन्मी रचना.

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  26. सटीक...कम शब्दों में अपनी बात कह दी...
    आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    अंतिम विश्राम तक ये संघर्ष चलता रहेगा...

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  27. जीवन-मृत्यु का यह सिलसिला तो जारी रहेगा। सुंदर कविता के लिए बधाई

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  28. कुछ अलग सी रचना है दिगंबर भाई ! !
    शुभकामनायें आपको !

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  29. ब्रह्माण्ड भी शून्य से उपजा है बंधू और शून्य के भी कई स्तर हैं एक नहीं .गहरा गोता लगवाती है रचना चित्त को .सुन्दर .

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  30. वाह!!!!! क्या लाजवाब जीवन दर्शन और उसकी अभिव्यक्ति

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  31. aadarniy sir
    aapki yah rachna waqai me jivan -darshan ko parilakxhit karti hai.kitna yatharth chitran kiya hai aapne .ek ek shabd saty ka prateek lagta hai .
    bahut bahut badhai
    dhanyvad sahit
    poonam

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  32. आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    जीवन संध्या
    अंतिम विश्राम

    गहन भावों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  33. गहन भावों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ..बहुत सुन्दर रचना..

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  34. गहन भावों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति|

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  35. नमस्कार !
    मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने.
    हार्दिक बधाई।
    सादर

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  36. पूरा जीवन समां गया है आपकी इस अप्रतिम रचना में...शब्द भला इस की प्रशंशा क्या करेंगे...ह्रदय से बधाई स्वीकारें बस...

    नीरज

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  37. बहुत गहरी रूहानी नज़्म कही है आपने भाई दिगंबर नासवा साहब!

    स्थिर मन
    एकाग्र चिंतन
    शांत लहरें
    शांत मंथन

    आज के दौर में इस मनःस्थिति तक पहुंचना साधारण मनुष्य के वश की बात नहीं. कोई सूफी-संत ही यहां तक पहुंच सकता है. मन पर यह नियंत्रण कुछ लम्हों के लिए भी कायम हो तो बड़ी बात है. इस नज़्म के लिए बहुत-बहुत बधाई!

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  38. पुरी जिदंगी का मर्म समझा दिया। शानदार रचना। आभार।

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  39. गर्भ से शून्य
    शून्य से गर्भ
    स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्त

    सुंदर ...बहुत सुंदर

    निशब्द करते शब्द ....

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  40. वाह मुक्ति के लिए इतनी युक्ति ? सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  41. वाह मुक्ति के लिए इतनी युक्ति ? सुन्दर

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  42. बहुत ही उम्दा लिखते हैं आप| ब्लॉग पढकर बहुत अच्छा लगा..आप ये पंक्तियाँ मुझे बहुत अच्छी लगीं-
    "आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    जीवन संध्या
    अंतिम विश्राम
    --
    थोड़े से शब्दों में
    जीवन का सार
    नाशवान देह से
    इतना प्यार"

    जवाब देंहटाएं
  43. स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्ति ...

    दार्शनिक रचना ...
    आभार !

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  44. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  45. गर्भ से शून्य
    शून्य से गर्भ
    स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्त

    jivan ka satya..... :):):)

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  46. सुंदर चतुष्पदीय मुक्तक | सर्वज्ञात बातों को बखूबी शब्दांकित किया है आपने| बधाई|

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  47. ज़बरदस्त आध्यात्मिक अभिव्यक्ति.

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  48. वाह नासवा जी! आप तो दार्शनिक हैं।
    न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।
    यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥ (गीता)

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  49. आदरणीयनासवा जी
    नमस्कार !
    गहन जीवन दर्शन है इस कविता में
    बहुत अच्छी कविता ।

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  50. आदरणीयनासवा जी
    नमस्कार !
    गहन जीवन दर्शन है इस कविता में
    बहुत अच्छी कविता ।

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  51. करीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  52. भाव सुमनों की सुन्दर माला ..............
    गहन एवं सूक्ष्म भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.....

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  53. सुन्दर प्रस्तुति..जीवन दर्शन की झलक शुमार है इसमें

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  54. अंतिम विश्राम एक अज्ञात की उड़ान, कहाँ है विराम....? सूक्ष्म..सुन्दर ..

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  55. आज बिलकुल अलगसी रचना !
    दार्शनिक चिंतन बहुत बढ़िया !

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  56. गर्भ से शून्य
    शून्य से गर्भ
    स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्त..

    सारगर्भित और गहन चिंतन से पूर्ण सूत्र वाक्य सी लगी आपकी रचना. बहुत मननीय सुन्दर प्रस्तुति..

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  57. आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    जीवन संध्या
    अंतिम विश्राम
    " jivan ka antim sach...jisse muh nnahi moda ja skta....waah"
    regards

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  58. आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    जीवन संध्या
    अंतिम विश्राम
    लगता है आज कल खूब चिन्तन हो रहा है। ये स्वयं ही बन्धन और स्वयं ही मुक्त के कारण ही तो हम अस्तित्व मे हैं। प्रकृति का चक्कर यूँ ही चलता रहे। शुभकामनायें\

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  59. अदभुत ज्ञान दर्शन करा दिया है आपने इस अनुपम सरल शब्दों में व्यक्त शानदार अभिव्यक्ति से.

    देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.
    मेरे ब्लॉग पर दर्शन दें.नई पोस्ट जारी की है.

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  60. गर्भ से शून्य
    शून्य से गर्भ
    स्वयं ही बंधन
    स्वयं ही मुक्त

    सुंदर ...बहुत सुंदर शानदार अभिव्यक्ति.......

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  61. आत्मा की मुक्ति
    निरंतर संग्राम
    जीवन संध्या
    अंतिम विश्राम

    बहुत बहुत सुन्दर ......................

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  62. Unquestionably believe that which you stated. Your favorite justification seemed to be on the net the easiest thing to be aware of. I say to you, I definitely get annoyed while people think about worries that they plainly don't know about. You managed to hit the nail upon the top and also defined out the whole thing without having side effect , people could take a signal. Will probably be back to get more. Thanks

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है