जब तक अपने खोखले पन का एहसास होता
तुम दीमक की तरह चाट गयीं
खाई हुई चोखट सा मेरा अस्तित्व
दीवारों से चिपक
सूखी लकड़ी की तरह चरमराता रहा
हरा भरा दिखने वाले तने सा मैं
कितना खोखला हूँ अंदर से
कोई जान न सका
अब जबकि आँखों में नमी नही
और तेरी सूखी यादें भी कम नही
गुज़रे लम्हों के गोखरू
मेरे जिस्म पे उगने लगे हैं
सन्नाटों के रेगिस्तान में
झरती हुयी रेत का शोर
मुझे जीने नही दे रहा
साँसों के साथ
हवा की सीलन पीते पीते
मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ
और... लम्हा लम्हा
भुर रहा हूँ
रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जल्दी ही तुमको लील लेगा
दुआ है…. तुम हजारों साल जियो
जाते जाते भी दुआ दे गए हजारो सालो की..
जवाब देंहटाएंएक शेर आ गया..
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊंगा ऐसी कहानी दे गया...
समर्पण का चरम
पहले की अपेक्षा आपनी कविता में विम्ब योजना मजबूत हुई है... आपकी कविता का फलक व्यापक हुआ है.... दीमक का विम्ब लेकर रची यह कविता प्रभावशाली बन गई है... बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसावन के महीने में ,इक आग सी सीने में...
जवाब देंहटाएंऐसे ही जलती है???
भाव-भीनी रचना !
शुभकामनायें !
साँसों के साथ
जवाब देंहटाएंहवा की सीलन पीते पीते
मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ
बहुत गहरे शब्द इन पंक्तियों में ।
दिगंबर जी ,बिम्बों का ऐसा प्रयोग अन्यंत्र देखना दुर्लभ है...आपकी लेखन शैली का कोई जवाब नहीं...लाजवाब करती रचना..बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
खाई हुई चोखट सा मेरा अस्तित्व
जवाब देंहटाएंदीवारों से चिपक
सूखी लकड़ी की तरह चरमराता रहा
हरा भरा दिखने वाले तने सा मैं
कितना खोखला हूँ अंदर से
कोई जान न सका
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी इस सार्थक रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
'हरा भरा दिखने वाले तने सा मैं
जवाब देंहटाएंकितना खोखला हूँ अंदर से
कोई जान न सका'
हताश मन ,घायल आत्मा लेकिन फिर भी दुआएँ हैं कि तुम जियों हजारों साल...बहुत खूब!
इस कविता में बहुत ही प्रभावी भाव- अभिव्यक्ति पढ़ने को मिली.
झुरते जीवन की त्रासद दास्तान. अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंखाई हुई चोखट सा मेरा अस्तित्व
जवाब देंहटाएंदीवारों से चिपक
सूखी लकड़ी की तरह चरमराता रहा
अनोखी कल्पना और नए प्रतीक !
कविता गहराई तक असर छोड़ती है
खालीपन और रिसते मन की वो यादे...जो सिर्फ यादे बन कर रह गई इस जीवन की ............बहुत अच्छी प्रस्तुति आपकी लेखनी की .........आभार
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत आभार ||
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सीखने को मिलता है आपसे ||
खूबसूरत भावों के लिए बधाई ||
साँसों के साथ
जवाब देंहटाएंहवा की सीलन पीते पीते
मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ
और... लम्हा लम्हा
भुर रहा हूँ
रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जल्दी ही तुमको लील लेगा
दुआ है…. तुम हजारों साल जियो
Aah!
नए बिम्बों के साथ रची हुई एक भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंअब जबकि आँखों में नमी नही
और तेरी सूखी यादें भी कम नही
गुज़रे लम्हों के गोखरू
मेरे जिस्म पे उगने लगे हैं .....सुन्दर!!
आदरणीय नासवा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
वाह बेहतरीन !!!!
बहुत ही प्रभावी भावों को सटीक प्रभावशाली अभिव्यक्ति दे पाने की आपकी दक्षता मंत्रमुग्ध कर लेती है...
गुज़रे लम्हों के गोखरू
जवाब देंहटाएंमेरे जिस्म पे उगने लगे हैं
गोखरू ... सर्वथा नया बिम्ब ... खोखले होते हुए भी बस दुआ ही निकली ..बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना
very beautiful presentation of haunting thoughts !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता भाई दिगम्बर जी बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंसाँसों के साथ
जवाब देंहटाएंहवा की सीलन पीते पीते
मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ
और... लम्हा लम्हा
भुर रहा हूँ
रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जल्दी ही तुमको लील लेगा
वाह सर!
साँसों के साथ
जवाब देंहटाएंहवा की सीलन पीते पीते
मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ
और... लम्हा लम्हा
भुर रहा हूँ
रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जल्दी ही तुमको लील लेगा
वाह ! शब्द,शैली,बिम्ब और भाव का अदभुत समन्वय है !
आभार !
वह क्या बिम्ब प्रयोग किये हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर .
सन्नाटों के रेगिस्तान में
जवाब देंहटाएंझरती हुयी रेत का शोर
मुझे जीने नही दे रहा
bahut badhiyaa
रचना के बिम्ब देखते ही बनते है शब्द संयोजन बहुत खुबसूरत बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना,खुबसूरत बिम्ब
जवाब देंहटाएंकल 13/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
इस भविष्य की कविता में कविता का भविष्य उज्जवल नज़र आ रहा है .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना .
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंखुबसूरत बिम्ब संयोजन
सार्थक बिंब से वेदना का प्रकटिकरण!!
जवाब देंहटाएंसन्नाटों के रेगिस्तान में
झरती हुयी रेत का शोर
मुझे जीने नही दे रहा
गुज़रे समय के गोखरू मेरे जिस्म पे उगने लगें हैं -दीमक ,गोखरू और रेत ,भुर ...छूती झिंझोड़ ती आधुनिक भाव बोध बिम्ब विधान का पैरहन ओढ़े आपकी रचना पढ़े आदमी तो पढता ही रह जाए .सशक्त धार दार लेखन .
जवाब देंहटाएंएक बेअहतरीन रचना,
जवाब देंहटाएंआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
धारदार रचना ,सुंदर ,सराहनीय
जवाब देंहटाएंरचना और भाव दोनों ही सुन्दर हैं!
जवाब देंहटाएंसन्नाटों के रेगिस्तान में
जवाब देंहटाएंझरती हुयी रेत का शोर
मुझे जीने नही दे रहा
खूब ...एक बेमिसाल रचना
अब जबकि आँखों में नमी नही
जवाब देंहटाएंऔर तेरी सूखी यादें भी कम नही
गुज़रे लम्हों के गोखरू
मेरे जिस्म पे उगने लगे हैं
आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
व्यथित ह्रदय से निकलने वाली शुभेच्छा.. अद्भुत!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्द-निरूपण।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसाँसों के साथ
जवाब देंहटाएंहवा की सीलन पीते पीते
मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ
इस कविता की बिम्ब योजना प्रभावित करती है। मन के आहसासों को अभिव्यक्त करने में सफल हुई है।
दर्द को शब्दों के सांचे में ढाल दिया है ।
जवाब देंहटाएंदिल को छू कर निकल गई।
हर शब्द बोलता हुआ |मन को छूते भाव |बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंआशा
कविता के भाव गहरे अंतर्मन तक पैठ बना रहे हैं , स्तब्ध करते हुए !
जवाब देंहटाएंचाहत इतनी गहरी की फिर भी बद्दुआ नहीं निकली ...
गज़ब !
dard ki gahraaiyon se nikla hua ek ek shabd laajabab hai .Digamber ji aapko badhaai.
जवाब देंहटाएंचौखट का बिम्ब बिल्कुल ही अछूता -सा ,गुज़रे लम्हों के गोखरू
जवाब देंहटाएंमेरे जिस्म पे उगने लगे हैं
वाह ! क्या चमत्कारिक बिम्बों को लिया है.
अनुपम रचना.
गुज़रे लम्हों के गोखरू
जवाब देंहटाएंमेरे जिस्म पे उगने लगे हैं
सन्नाटों के रेगिस्तान में
झरती हुयी रेत का शोर
मुझे जीने नही दे रहा
ग़ज़ब के प्रतीक और बिम्बों का इस्तेमाल किया है.
वाह नासवा जी वाह.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 14-07- 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएंनयी पुरानी हल चल में आज- दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा -
साँसों के साथ
जवाब देंहटाएंहवा की सीलन पीते पीते
मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ
और... लम्हा लम्हा
भुर रहा हूँ
रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जल्दी ही तुमको लील लेगा
achhi pantiyaan......
shubhkamnaye.....
दिगंबर भाई यह कविता एक अद्भुत शब्द चित्र है| आपने 'दीमक' 'गोखरू' 'रेत का शोर' और 'सीलन' जैसे शब्दों को उन की सही जगह पर रख कर एक कालजयी कृति का निर्माण किया है| ऐसी कवितायें कभी कभी ही सृजित हो पाती हैं| आशा करता हूँ, आप मुझ से सहमत होंगे| आप की लेखनी को नमन और आप से ऐसी और भी काव्यात्मक प्रस्तुतियों की अपेक्षा|
जवाब देंहटाएंरचना के बिम्ब बहुत रोचक है शब्द संयोजन बहुत कमाल का खुबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंaapka lekhan sada hi vastviktao ko chhuta hua hota hai. sunder probhavotpadak abhivyakti.
जवाब देंहटाएंजब तक अपने खोखले पन का एहसास होता
जवाब देंहटाएंतुम दीमक की तरह चाट गयीं
खाई हुई चोखट सा मेरा अस्तित्व
दीवारों से चिपक
सूखी लकड़ी की तरह चरमराता रहा
गज़ब का बिंब सृजित किया है आपने भाई दिगंबर नासवा साहब! इस नज़्म को पढ़कर तबीयत फड़क उठी. मन तड़प उठा, जी मचल उठा.
रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जवाब देंहटाएंजल्दी ही तुमको लील लेगा
दुआ है…. तुम हजारों साल जियो
मन उद्वेलित कर गयी आपकी रचना ..
bahut sunder.
बहुत बढ़िया लगा ! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सुन्दर कविता, विशेषकर उपमायें।
जवाब देंहटाएंकातिल को दुआएं। भला हो आपका।
जवाब देंहटाएंवाह ...बहत ही अच्छा लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंक्या लाजवाब बिम्ब प्रयुक्त किये हैं आपने...
जवाब देंहटाएंमनमोहक ,बहुत ही सुन्दर रचना...वाह!!!!
खाई हुई चोखट सा मेरा अस्तित्व
जवाब देंहटाएंदीवारों से चिपक
सूखी लकड़ी की तरह चरमराता रहा
digambar saab
namaskar !
behad sunder prayog kiyaa . badhai .
sadhuwad
नासवां जी, एक लंबे अंतराल बाद "स्वप्न मेरे... ' पर आया हूं। देखता हूं क्या कि बहुत-सी भावनाएं यहां से होकर बह गयी हैं। अनुपस्थिति की जो यादें-भावनाएं, ऊर्जा की तलाश कर रही थीं, वे अब "दंश' की पीड़ा झेल रही हैं। इससे पहले की आपके भाव-सिपाही निर्मम हो जायें, कृपया उन्हें रोकें। दंश पढ़कर रचनात्मक सुख तो मिला पर दर्द भी उभर आया। सा कला वा विमुकत्ये...
जवाब देंहटाएं"रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जवाब देंहटाएंजल्दी ही तुमको लील लेगा"
हा-हा, नासवा साहब,
कविता को पढ़कर तो लगता है कि
रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जल्दी ही (मुझको) लील लेगा :)
अब जबकि आँखों में नमी नही
जवाब देंहटाएंऔर तेरी सूखी यादें भी कम नही
गुज़रे लम्हों के गोखरू
मेरे जिस्म पे उगने लगे हैं
...विम्बों का उत्कृष्ट प्रयोग..बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..
बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना|
जवाब देंहटाएंसन्नाटों के रेगिस्तान में
जवाब देंहटाएंझरती हुयी रेत का शोर
मुझे जीने नही दे रहा...
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ..और आना सार्थक हो गया...बहुत गहरा लिखते है आप...शुभकामनाएं
साँसों के साथ
जवाब देंहटाएंहवा की सीलन पीते पीते
मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ
और... लम्हा लम्हा
भुर रहा हूँ
रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जल्दी ही तुमको लील लेगा
दुआ है…. तुम हजारों साल जियो
आपने प्रतीक और बिम्बों का प्रयोग बहुत ही सटीकता से किया है..बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना...
'हमने ज़फा न सीखी,तुमको वफ़ा न आई ' बेहतरीन अनुभव !
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता.... नवीन विम्ब
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर -विम्बों का उत्कृष्ट प्रयोग..aabhar
जवाब देंहटाएंहरा भरा दिखने वाले तने सा मैं
जवाब देंहटाएंकितना खोखला हूँ अंदर से
कोई जान न सका
आज का ये अंदाज़ कुछ अलग ही है ।
गुज़रे लम्हों के गोखरू
जवाब देंहटाएंमेरे जिस्म पे उगने लगे हैं ..
Beautiful expression !
.
सन्नाटों के रेगिस्तान में
जवाब देंहटाएंझरती हुयी रेत का शोर
bahut khoob....
अनुभूति की सघन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएं------
जीवन का सूत्र...
लोग चमत्कारों पर विश्वास क्यों करते हैं?
दीमक को दुआएं कोई बड़े दिल वाला ही दे सकता है...
जवाब देंहटाएंसाँसों के साथ
जवाब देंहटाएंहवा की सीलन पीते पीते
मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ
और... लम्हा लम्हा
भुर रहा हूँ
रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जल्दी ही तुमको लील लेगा
bahut hi khoobsoorat likhaa hai aapne, waah!! in panktiyon ko padhte huye Gulzaar sahab ki nazm yaad aa gayee
tumhaare gham ki dali utha kar
zubaan pe rakh li hai dekho main
ye katra katra pighal rahi hai
main katra katra hi ji rahaa hoon
bahut khoob...mann se nikli aah..
जवाब देंहटाएंबहुत ही दर्द से त्रस्त भाव ..जिनको आपने बहुत सुन्दर विस्तार दिया ... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंहरा भरा दिखने वाले तने सा मैं
जवाब देंहटाएंकितना खोखला हूँ अंदर से
कोई जान न सका
.....
अब जबकि आँखों में नमी नही
और तेरी सूखी यादें भी कम नही
.....
सन्नाटों के रेगिस्तान में
झरती हुयी रेत का शोर
मुझे जीने नही दे रहा
.....
नासवा जी, ये उम्दा रचना की नायाब पंक्तियां हैं.
अब जबकि आँखों में नमी नही
जवाब देंहटाएंऔर तेरी सूखी यादें भी कम नही
गुज़रे लम्हों के गोखरू
मेरे जिस्म पे उगने लगे हैं
गुजरे लम्हों के गोखरू...वाह,यह प्रतीक बहुत अच्छा लगा, एकदम मौलिक प्रयोग है यह।
बेहद प्रभावशाली कविता।
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
जवाब देंहटाएंhttp://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
टीस और दर्द का अनुभव करता है मन आपकी इस
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति को पढकर.
यह टीस आपने दिल से निचोड़ी है.
आभार.
गुज़रे लम्हों के गोखरू
जवाब देंहटाएंमेरे जिस्म पे उगने लगे हैं' तुम्हारी कल्पना शक्ति,कवि-मन और संवेदनशीलता को दर्षाता है.
बाबु! शब्दों से खेलते हो?ये किसके अनुभव किसके सत्य को लिखते हो? जब भी पढती हूँ ..........................................
...................................
..........................................
......................................... जियो खुशियाँ, सफलताए तुम्हारे कदम चूमे.
क्या जबरदस्त रच रहे हो आजकल...वाह!!!
जवाब देंहटाएंनासवा जी
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना
आभार.
रेत के इस समुन्दर का विस्तार
जवाब देंहटाएंजल्दी ही तुमको लील लेगा
दुआ है…. तुम हजारों साल जियो
virodhabhaas.... ant dua ke saath, dua hi falibhoot ho.
achhi rachna, padhna bhaya.
shubhkamnayen
खाई हुई चोखट सा मेरा अस्तित्व
जवाब देंहटाएंदीवारों से चिपक
सूखी लकड़ी की तरह चरमराता रहा
"kmaal ki rachna hai, dil me kuch khaas assar karti hu"
regards