तुम्ही ने तो कहा था कितना काला हूँ
अँधेरे में नज़र नहीं आता
साक्षात अँधेरे की तरह
पर क्या तुम्हें एक पल भी
जीवन में अँधेरे का एहसास हुवा
मेरी खुश्क त्वचा ने
कब तुम्हारे अँधेरे को सोखना शुरू किया
मैं नहीं जानता
बढते शिखर के साथ
तुम्हारी जरूरत बढती गयी
मैं और तेजी से जलता रहा
यहाँ तक की आने वाले तमाम रास्तों पर
रौशनी ही रौशनी छितरा दी
अब जबकि तुम्हारी आँखें चुंधियाने लगीं हैं
बढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
तुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
हाँ ... अँधेरा जो हूँ
अँधेरा का विम्ब बढ़िया बना है...रिश्तों में जो अँधेरा छा रहा है उसपर रौशनी डालती कविता अच्छी बनी है.. बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंआदरणीय नासवा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
मेरी खुश्क त्वचा ने
कब तुम्हारे अँधेरे को सोखना शुरू किया
मैं नहीं जानता
.....गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
रचना सोच रहा हूं ...किसकी तारीफ करूं सुंदर कविता की ...आपकी सोच की ...या लेखनी की जिनसे ये शब्द जन्म लेते हैं ...बेमिसाल प्रस्तुति ********
बहुत गहनता के साथ भावों को प्रस्तुत किया है आपने .रिश्तों में बढती दूरियां आज की महत्वपूर्ण पारिवारिक व् सामाजिक समस्या है .अच्छी प्रस्तुति .आभार
जवाब देंहटाएंकोमल भावों के माध्यम से सशक्त प्रस्तुतीकरण....भाव युक्त शब्दों का अद्भुत संयोजन.....
जवाब देंहटाएंमेरी खुश्क त्वचा ने
जवाब देंहटाएंकब तुम्हारे अँधेरे को सोखना शुरू किया
मैं नहीं जानता
बेहद खूबसूरत...
अँधेरे के माध्यम से काफी कुछ कह दिया आपने.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति.
एकाकी पड़ते जीवन की तस्वीर.
जवाब देंहटाएंअँधेरा जीवन में सिर्फ अन्धकार ही नहीं,सुकून की परिभाषा भी है।
जवाब देंहटाएंभाव भरी प्रस्तुति।बहुत सुंदर...
mere saath hi to tumne roshni ko pehchana hogaa ...sach mein khoobsurat rachnaa
जवाब देंहटाएंबढते शिखर के साथ
जवाब देंहटाएंतुम्हारी जरूरत बढती गयी
मैं और तेजी से जलता रहा
यहाँ तक की आने वाले तमाम रास्तों पर
रौशनी ही रौशनी छितरा दी
सही कहा दिगम्बर जी,शिखर पर तो अकेले ही रहना होता है और वहां जा कर कोई नीव की ईंट नहीं देखता.बहुत शानदार अभिव्यक्ति.
बढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
जवाब देंहटाएंतुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
हाँ ... अँधेरा जो हूँ
गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
बेहतरीन अभिव्यक्ति बधाई नासवा जी।
जवाब देंहटाएंशायद प्रेम यूँ ही किया जाता है...अँधेरे को सोख कर..रौशनी दे कर ..
जवाब देंहटाएंदूसरों के ग़म अपनाकर ख़ुशी देना सबसे बड़ा परोपकार है .
जवाब देंहटाएंबढ़िया सन्देश देती रचना .
हाँ....अँधेरा जो हूँ
जवाब देंहटाएंजीवन के नए आयाम दिखाती ......
...'तिल-तिल गलन , पल-पल घुटन '....भावपूर्ण रचना
दिगंबर जी आपकी रचनाएँ ठिठक कर सोचने पर मजबूर कर देती हैं...शब्द और भाव का अद्भुत संगम होता है आपकी रचनाओं में...कितनी आसानी से इतनी गहरी बात कह जाते हैं आप...आपकी लेखनी पर कभी कभी रश्क होता है...यूँ ही लिखते रहें...
जवाब देंहटाएंनीरज
bahut hi sundar !
जवाब देंहटाएंनीरजजी की पूरी की पूरी टिप्पणी को मेरे मन की बात ही समझी जाए...
जवाब देंहटाएंवक़्त के साथ रिश्तों का अर्थ भी आज की आपाधापी और भौतिकतावादी ज़िन्दगी में बदलने लगा है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संदेश देती रचना।
रिश्तों को पुनः परिभाषित करती एक संवेदनशील रचना!!
जवाब देंहटाएंआपकी प्रवि्ष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!
कभी कभी किसी को सबकुछ दे कर इन्सान खुद को लुटा हुआ ही महसूस करता है.
जवाब देंहटाएंरोशनी के साथ अंधेरा और अंधेरे के साथ रोशनी तय ही है. मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंतम सो मा ज्योतिर्गमय पर आधारित हर जश्न क्यूँ |
जवाब देंहटाएंक्यों अँधेरे का नहीं सम्मान है
भाग्य में उसके बड़ा अपमान है
क्यों सदा ही रौशनी की जय कहें
सर्वदा हम क्यूँ हमारा क्षय सहें
आंकते क्यूँ लोग हैं बदतर हमें
न समझ आया कभी चक्कर मुझे
मिथ्या जगत में है बराबर योग
पर पक्ष में तेरे खड़े हैं लोग
सब रात दिन का देखते संयोग--
फिर मानसिकता रुग्न क्यूँ ??
तम सो मा ज्योतिर्गमय पर आधारित हर जश्न क्यूँ |
अब जबकि तुम्हारी आँखें चुंधियाने लगीं हैं
जवाब देंहटाएंबढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
तुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
हाँ ... अँधेरा जो हूँ
Bahut dard simat aayaa hai!
सुंदरतम रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
andhiyare ke dharshan bakhubi karvaye aapne...sundar..
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए खुबसुरत रचना। आभार।
जवाब देंहटाएंअँधेरे को कविता में ढाल कर रोशनी कर दी आपने...
जवाब देंहटाएंजितनी भी तारीफ़ की जाये कम है, सच है की हमारे सभी गुण महत्वपूर्ण होते हैं, अंधेरे की तरह, चाहे कोई पसंद करे या ना करे,
जवाब देंहटाएंसाभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
मेरी खुश्क त्वचा ने
जवाब देंहटाएंकब तुम्हारे अँधेरे को सोखना शुरू किया
मैं नहीं जानता
अंधेरे को प्रतीक बनाकर इतनी गहरी बात भी कही जा सकती है, ये आपने साबित कर दिया है नासवा जी...बधाई.
बढते शिखर के साथ
जवाब देंहटाएंतुम्हारी जरूरत बढती गयी
मैं और तेजी से जलता रहा
यहाँ तक की आने वाले तमाम रास्तों पर
रौशनी ही रौशनी छितरा दी
मन की गहन बातों को उकेरा है ..सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति, सोख लेना हम सीख चुके हैं अब तो।
जवाब देंहटाएंnice poem
जवाब देंहटाएंआपके शब्द बहुत प्रभावित करते है..... अँधेरे उजाले को ले के इस तरह नहीं सोचा था कभी.....अभी सोच रही हूँ तो सब एकदम सटीक -सा लग रहा है.....उजाले की परिधि बढ़ने पर दुरी तो स्वत: बढ़ने लगती है...
जवाब देंहटाएंओह!!!!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंकितना करारा झटका दे जाते हो
एक दम से
यकायक
यही बनती जा रही है तुम्हारी विशेषता| खुशी होती है ऐसी रचनाओं को पढ़ कर| आप से और बेहतर और बेहतर की उम्मीद होने लगी है|
कभी कभी अँधेरे बहुत अच्छे लगते है | जब तन्हाई की दरकार हो अच्छी रचना आभार
जवाब देंहटाएंअब जबकि तुम्हारी आँखें चुंधियाने लगीं हैं
जवाब देंहटाएंबढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
तुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
हाँ ... अँधेरा जो हूँ
..bahut badiya gahan katu anubhuti preshan ke liye aabhar!
bahut gahan bhaavon ko apne andar me samete hui rachna...lajabaab.
जवाब देंहटाएंबेहद गहन और गम्भीर दार्शनिक सोच ... बहुत ही प्रभावशाली अभिव्यक्ति ......
जवाब देंहटाएंजीवन के यथार्थ को दिखाती बहुत गहन चिंतन से उपजी कविता ! बधाई !
जवाब देंहटाएंसुँदर कविता , अँधेरे में उजाला फैलाती कविता . आभार .
जवाब देंहटाएंकमाल की भावपूर्ण प्रस्तुति की है आपने.
जवाब देंहटाएंदिल को कचोटती हुई सी.
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
नई पोस्ट जारी की है.
बेहद खूबसूरत ....अँधेरे कि अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअद्भुत कविता भाई दिगम्बर नासवा जी बधाई ब्लॉग पर आपका आना काफी सुखद लगता है |
जवाब देंहटाएंwaah... kitna kuchh, kitne saare bhaav, itni gaharaiyaan... waah... bahut hi sundar, anokhi pratuti...
जवाब देंहटाएंwaah
khoob nazme'n kah rahe hai'n bhai digambar naswa ji!
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna ...
जवाब देंहटाएंवह कितना उज्जवल कार्य है ..खुद जलना उसको रौशनी देना...बिलकुल रसखान के कहने पर अमल करना..खुद को जला कर तेरी राह को रोशन करता हु...फिर भी तेरे मरकज़ के काबिल नहीं बनता हु......
जवाब देंहटाएंबढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
जवाब देंहटाएंतुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
बहुत सुन्दर! सूरज तू जलते रहना ...
अब जबकि तुम्हारी आँखें चुंधियाने लगीं हैं
जवाब देंहटाएंबढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
तुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
हाँ ... अँधेरा जो हूँ
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति. बधाई स्वीकारें
aadarniy sir
जवाब देंहटाएंbahut bahut hi utkrishht lagi aapki yah kriti.sach andhere ke bina bhi to ujaale ka koi astitv nahi hai .
bahut hi achha vikalp andhere ke rup me dhundha hai aapne
bahut bahut badhai
hardik naman
poonam
अंधेरे का मानवीकरण करके उसका पक्ष बहुत अच्छी तरह रखा है आपने अपनी कविता में।
जवाब देंहटाएंमेरी खुश्क त्वचा ने
जवाब देंहटाएंकब तुम्हारे अँधेरे को सोखना शुरू किया
मैं नहीं जानता
--एक कवि का हृदय कितना संवेदनशील होता है ये कविता उसका एक उदाहरण है ..वेदना को पीते हुए कैसे कोई अंधकार को खुद में समेट लेता है कि खुद उसका पर्याय बन जाता है ...अति भावपूर्ण अभिव्यक्ति
बढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
जवाब देंहटाएंतुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
वाह....
जवाब देंहटाएंकैसे समेटा आपने drishyon को.....
बस, वाह वाह वाह...
कितना तीखा संकेत...
जवाब देंहटाएंकैसा खुबसूरत अंदाज़...
सादर...
anhdhere ko baya karne ka ek alag andaz... bhaut hi sunder...
जवाब देंहटाएंएक अँधेरा रौशनी को लिए हुए.. बहुत सुंदर अभिवयक्ति...
जवाब देंहटाएंadhik prakash me aankho ka achanak band ho jana chundhiya jana bhee andhakar kee paida kar deta hai kuch samay ke liye.........
जवाब देंहटाएंsunder abhivykti.
पर क्या तुम्हें एक पल भी
जवाब देंहटाएंजीवन में अँधेरे का एहसास हुवा
क्या बात है , वाह.
पर क्या तुम्हें एक पल भी
जवाब देंहटाएंजीवन में अँधेरे का एहसास हुवा
मेरी खुश्क त्वचा ने
कब तुम्हारे अँधेरे को सोखना शुरू किया
मैं नहीं जानता
वाह... धन्य है आपकी सोच आपकी लेखनी जिनसे ये शब्द जन्मे...बेमिसाल प्रस्तुति.....
बढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
जवाब देंहटाएंतुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
हाँ ... अँधेरा जो हूँ
दिल में एक कसक सी उठाती हुई...बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता....
बढते शिखर के साथ
जवाब देंहटाएंतुम्हारी जरूरत बढती गयी
मैं और तेजी से जलता रहा
यहाँ तक की आने वाले तमाम रास्तों पर
रौशनी ही रौशनी छितरा दी
अब जबकि तुम्हारी आँखें चुंधियाने लगीं हैं
बढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
तुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
हाँ ... अँधेरा जो हूँ
कितना सच कहा है । यही है आज का चलन ।
रिश्तों पर सशक्त रचना ,भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंअब जबकि तुम्हारी आँखें चुंधियाने लगीं हैं
जवाब देंहटाएंबढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
तुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
अंधियारे के साथ भला कौन रहना चाहता है ?
उत्तम रचना।
किसी को हो न हो,हमें तो अँधेरे से मोहब्बत है !बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंअँधेरे पर मेरी एक रचना 'अँधेरा कित्ता अच्छा है' कुछ समय पहले आ चुकी है !
मेरी खुश्क त्वचा ने
जवाब देंहटाएंकब तुम्हारे अँधेरे को सोखना शुरू किया
मैं नहीं जानता ...
कमाल का अहसास..बहुत उत्कृष्ट सार्थक प्रस्तुति..
देखिए उस तरफ उजाला है ,
जवाब देंहटाएंजिस जगह रोशनी नहीं जाती ।
तुम्हें ज़िन्दगी के उजाले मुबारक ,अँधेरे हमने रास आने लगें हैं ।
पूर्ण समर्पण भाव की रचना ,दूसरोको उजाला बांटता है अन्धेरा .उजाले का महत्व भी तो अँधेरे से है .चार दिन की चांदनी फेर अँधेरी रात .अँधेरे मेरे प्रेरक उत्प्रेरक हैं .अच्छी रचना ,अंतस का स्पर्श बोध कराती .
it is glittering black diamond .best writing.
जवाब देंहटाएंबेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
अब जबकि तुम्हारी आँखें चुंधियाने लगीं हैं
जवाब देंहटाएंबढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
तुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
हाँ ... अँधेरा जो हूँ
aakhri ke shabdo me gahri chhap hai ,jo aasaani se nahi bhoolegi .aabhari hoon aap aaye ,rachna wakai bahut hi achchhi hai .
सबसे पहले तो ब्लाग पर आने का शुक्रिया क्योंकि इसी कारण आपकी इतनी उत्कृष्ट रचनाएं पढने मिल गईं । अम्मा वाली कविता ने तो अभिभूत कर दिया ।इसी तरह अनजानी प्रेमिका सहित और भी ...।
जवाब देंहटाएंभाई दिगम्बर नासवा जी बहुत ही सुन्दर कविता आपके द्वारा लिखी गयी है |बधाई और उत्साहवर्धन के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंभाई दिगम्बर नासवा जी बहुत ही सुन्दर कविता आपके द्वारा लिखी गयी है |बधाई और उत्साहवर्धन के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना बढ़िया अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें भाई जी ...
draawani si hain...
जवाब देंहटाएंदेखो मैंने तुम्हारा ब्लॉग ढूंढ लिया. यहाँ आई देखती हूँ मेरे ही शब्द...मेरे ही भाव...मेरी फीलिंग्स.....मेरे अनुभव.....और....मेरे आंसू नही रुक रहे.खुद को इसी तरह मिटा दिया मैंने हा हा हा अँधेरे हमे अब रास आगये हैं.और अब लगता है सबके रहते लगता है जैसे कोई नही है मेरा हा हा हा नही दुखी नही मैं बस पढते ही दुखी हो उठी हूँ.क्या करू ऐसिच हूँ मैं तो
जवाब देंहटाएंअँधेरा और काला रंग कभी किसी को नहीं भाता हालांकि ये शास्वत सत्य का अभिन्न अंग हैं, आधा हिस्सा हैं
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना है.
मेरे ब्लॉग पर आपकी उत्साहजनक टिप्पणियों के लिए मेरा धन्यवाद स्वीकार करें
आभार
फणि राज
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंगहरे भावोँ से परिपूर्ण सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंदिगंबर नासवा जी हार्दिक अभिवादन -गंभीर भाव सशक्त रचना -काले गोरे से परहेज हटाती -गुण बखानती और बाद में आँखें जब उसकी चुन्धियाने लगी तो ...दूरी ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना -सुन्दर भाव -बधाई
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
अब जबकि तुम्हारी आँखें चुंधियाने लगीं हैं
जवाब देंहटाएंबढ़ता हुवा रौशनी का दायरा
तुम्हारे साथ चलने लगा है
मैं तुमसे दूर हो रहा हूँ
हाँ ... अँधेरा जो हूँ ....
ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना.....
गज़ब....दो तीन बार पढ़ गये खुद को खोजते//
जवाब देंहटाएंमैं अपने साथ
जवाब देंहटाएंदो गज़ ज़मीन भी रखता था
जाने कब
तुम्हारी बातों का ज़हर
जीते जी मुझे मार दे ....
Great imagination !
Very appealing .
.
ये रात चाहें कितनी ही काली क्यूँ ना हो देती सुकून ही है...
जवाब देंहटाएंअक्षय-मन "!!कुछ मुक्तक कुछ क्षणिकाएं!!" से
dard avum tyag bhare samarpan ka bhaav liye ek bahut hi sunder rachna, hriday ko chhoo gayi.
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen