कब तक शब्दों को
विप्लव की रचनाओं में उतारोगे
शब्द से रचना
रचना से संग्रह
संग्रह से किताब
किताब से संग्रहालय
आंत्र-जाल
या कोई अखबार
दम घोंटू
जंग खाई अलमारियों में
फर्नेल की बदबू से जूझती
सीलन लगी किताबें
फफूंद लगे शब्द
अब सड़ने लगे हैं
मकड-जाल में फंसे मायनों की
साँस उखड़ने लगी है
इससे पहले की
दीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो
क्या हुवा जो कुछ समय के लिए
काव्य सृजन न हुवा
इतिहास की वीथियों में
संगृहीत शब्दों की आवाजें
गूंजती रहेंगी सदियों तक
संवेदनशील कविता.... बहुत गंभीर विषय पर एक सशक्त अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएं"इससे पहले की
दीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें"
..... ये पंक्तियाँ बेहद प्रभावित कर रही हैं...
इससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
बहुत सुंदर शब्द संयोजन क्या बात कही आपने इससे ज्यादा कहने को शब्द नहीं है
इससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो
क्या खूब अंदाज़ है.......... क्रांति ज़रूरी है....... parivartan भी नितांत आवश्य !!!!
बेहतरीन कविता !!!
इन्हें बाहर लाओ
जवाब देंहटाएंचमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो '
सही लिखा वो समय आ गया है 'वो सुबहा कभी तो आएगी' गाने का नही ऐसे गीतों को जीने का समय आ गया है.अब भी चुप रहे तो कई और साल तक भारत .....कुचला जाता रहेगा भ्रष्टाचार के पैरों तले.
समय की नब्ज पकड़ने में माहिर हो गए हो बाबु! या.........देश से दूर ये भावनाएं ज्यादा उबाल पर है?
देश को जगाने वालो का मनोबल बढाना भी देश भक्ति है.इतनी दूर बैठे वही कर रहे हो.जियो
इन्हें बाहर लाओ
जवाब देंहटाएंचमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो '
सही लिखा वो समय आ गया है 'वो सुबहा कभी तो आएगी' गाने का नही ऐसे गीतों को जीने का समय आ गया है.अब भी चुप रहे तो कई और साल तक भारत .....कुचला जाता रहेगा भ्रष्टाचार के पैरों तले.
समय की नब्ज पकड़ने में माहिर हो गए हो बाबु! या.........देश से दूर ये भावनाएं ज्यादा उबाल पर है?
देश को जगाने वालो का मनोबल बढाना भी देश भक्ति है.इतनी दूर बैठे वही कर रहे हो.जियो
सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंक्या हुवा जो कुछ समय के लिए
जवाब देंहटाएंकाव्य सृजन न हुवा
इतिहास की वीथियों में
संगृहीत शब्दों की आवाजें
गूंजती रहेंगी सदियों तक ...निशब्द करती पंक्तिया....
क्या हुवा जो कुछ समय के लिए
जवाब देंहटाएंकाव्य सृजन न हुवा
इतिहास की वीथियों में
संगृहीत शब्दों की आवाजें
गूंजती रहेंगी सदियों तक
very inspiring and motivating creation.
.
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......
जवाब देंहटाएंदम घोंटू
जवाब देंहटाएंजंग खाई अलमारियों में
फर्नेल की बदबू से जूझती
सीलन लगी किताबें
फफूंद लगे शब्द
अब सड़ने लगे हैं
मकड-जाल में फंसे मायनों की
साँस उखड़ने लगी है
Kahaan tak pahunch jaate ho sir ji !
चमकती धूप दिखाओ
जवाब देंहटाएंयुग परिवर्तन की हवा चलाओ
beautiful gazal
गुलज़ार साहब ने भी कहा है कि मेरी आवाज़ ही पहचान है.. वो आवाज़ जो शब्दों से पैदा हुई है.. इन्क़लाब जिंदाबाद, वंदे मातरम ये शब्द ही तो थे, जिन्होंने क्रान्ति या विप्लव को जन्म दिया!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही संवेदनशील कविता!!
aaj aisi hi aahwan ki jarurat hai.
जवाब देंहटाएंशब्द तो हमारी हर सांस में हैं...कभी मर ही नहीं सकते। हम एक बार सांस लेते और छोड़ते हैं तो भी शब्द की गूँज अपने आप सुनाई देती है। अर्थ समझना ही बड़ी बात है। अर्थ पर चलना बड़ी बात है। शब्द ही हैं जो क्रांति के वाहक बनते हैं।
जवाब देंहटाएंshabdo ki gahraayi ko batati rachna...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना अभिव्यक्ति....आभार
जवाब देंहटाएंदम घोंटू
जवाब देंहटाएंजंग खाई अलमारियों में
फर्नेल की बदबू से जूझती
सीलन लगी किताबें
फफूंद लगे शब्द
अब सड़ने लगे हैं
मकड-जाल में फंसे मायनों की
साँस उखड़ने लगी है
भाई दिगम्बर जी बेहतरीन कविता के लिए आपको बहुत बहुत बधाई
दम घोंटू
जवाब देंहटाएंजंग खाई अलमारियों में
फर्नेल की बदबू से जूझती
सीलन लगी किताबें
फफूंद लगे शब्द
अब सड़ने लगे हैं
मकड-जाल में फंसे मायनों की
साँस उखड़ने लगी है
भाई दिगम्बर जी बेहतरीन कविता के लिए आपको बहुत बहुत बधाई
इससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो
Kya gazab kaa likha hai!
इससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
....सार्थक सन्देश देती बहुत संवेदनशील और प्रेरक अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर
ise sashakt rachana ke rachyita kee lekhanee soch ko naman .
जवाब देंहटाएंशब्द क्रान्ति
जवाब देंहटाएंहजारों मील दूर बैठे , अन्ना का यूँ समर्थन करना बढ़िया लगा ।
जवाब देंहटाएंसही है कुछ देर के लिए लेखन को छोड़ आवाज़ उठाने के लिए निकल पड़ो । वक्त की यही पुकार है ।
बढ़िया सन्देश देती रचना के लिए बधाई ।
क्या हुवा जो कुछ समय के लिए
जवाब देंहटाएंकाव्य सृजन न हुवा
इतिहास की वीथियों में
संगृहीत शब्दों की आवाजें
गूंजती रहेंगी सदियों तक ... beshak
बहुत सुन्दर भावप्रणव प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त कविता है ये
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई पेश है विनम्रता के साथ.
सार्थक आह्वान . .बधाई
जवाब देंहटाएंBHARTIY NARI
सोए हुए प्राणों को झझकोरती ओजस्वी रचना...
जवाब देंहटाएंस्वान्त:सुखाय से बेहतर है कि सर्वजन सुखाय हो..
जवाब देंहटाएंइससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
प्रेरित करने वाली रचना ..सटीक आह्वान
ek krantikari aahvan !
जवाब देंहटाएंबहुत चुप रहे अब आखिर कब तक!
जवाब देंहटाएंसोई आत्माओं को जगाने का सार्थक सन्देश!
भाई दिगंबर नासवा जी
जवाब देंहटाएंबहुत ओजमयी रचना के लिए आभार !
इससे पहले … कि
दीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो
निःसंदेह सशक्त-सार्थक रचना!
जबरदस्त!!!
जवाब देंहटाएंइससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
बहुत अच्छा आह्वान किया है सर।
सादर
वाह बहुत बहुत सुन्दर ..जबरदस्त अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआह्वान करते. संवेदनशील कविता.... बहुत गंभीर विषय पर एक सशक्त अभिव्यक्ति...धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं सटीक अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली और सशक्त कविता, आज सचमुच शब्दों को धूप में चमकाने की जरूरत है....बधाई!
जवाब देंहटाएंलाख टके की बात अब कलम से आग लगाने का समय आ चुका है युग परिवर्तन का काल है
जवाब देंहटाएंइससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो
प्रभावित करती पंक्तियाँ...क्रान्ति का आव्हान है आपकी रचना में...
क्या हुवा जो कुछ समय के लिए
जवाब देंहटाएंकाव्य सृजन न हुवा
इतिहास की वीथियों में
संगृहीत शब्दों की आवाजें
गूंजती रहेंगी सदियों तक
बेहतरीन संदेश के साथ सार्थक आह्वान्…………अति सुन्दर रचना।
संगृहीत शब्दों की आवाजें
जवाब देंहटाएंगूंजती रहेंगी सदियों तक! ham rahe yaa n rahe shabd sadaiv bane rahenge !
अलख जगाओ , प्रयाण गीत गाओ. जबरदस्त .
जवाब देंहटाएंअत्यंत सार्थक संदेश, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
क्या हुवा जो कुछ समय के लिए
जवाब देंहटाएंकाव्य सृजन न हुवा
इतिहास की वीथियों में
संगृहीत शब्दों की आवाजें
गूंजती रहेंगी सदियों तक
bilkul sahi kaha aur sundar bhi ,adbhut
चमकती धूप दिखाओ
जवाब देंहटाएंयुग परिवर्तन की हवा चलाओ
लाज़बाब अभिव्यक्ति
अब हवाओं ने बदल डाला है सुर
जवाब देंहटाएंHi I really liked your blog.
जवाब देंहटाएंI own a website. Which is a global platform for all the artists, whether they are poets, writers, or painters etc.
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बहुत ही सार्थक आह्वान ....... आभार !
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब लिखा है आपने! मन की गहराई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है!
जवाब देंहटाएंजन लोकपाल के पहले चरण की सफलता पर बधाई.
जवाब देंहटाएंaapki is chhoti c rachna me bahut kuchh chipa hai ......
जवाब देंहटाएंसंवेदना का जो ज्वार उठा है इस कविता के पढ़ने के बाद उसका वर्णन नहीं कर सकता।
जवाब देंहटाएं@ युग परिवर्तन की हवा चलाओ
जवाब देंहटाएंशब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो
सत्य वचन! अब जाग उठा इंसान, ज़माना देखेगा!
इससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
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जबर्दस्त कविता लिखी है।
..शब्दों से गिरकर अर्थ आत्महत्या कर लें...
वाह,यह प्रतीक अनुपम है।
बहुत अच्छी लगी कविता।
aajkal manushya sirf sahbd aur vichar mehi jine laga hai vasviktase koso dur....
जवाब देंहटाएंbadi sunder rachna mujhe bahut pasand aai hai ....
इससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो
वाह, सुंदर पंक्तियाँ ।
इससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
bahut khoob...!
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देती बहुत संवेदनशील और प्रेरक अभिव्यक्ति..
अरि आज तो बधाई गाओ रंग महल में ,अन्ना जी की आरती गाओ रंग महल में ,जन गण मन की आरती गाओ रंग महल में .
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही नासवा जी सारे शब्द खो चुके हैं अपना अर्थ ,यहाँ तक की व्याकरण भी अब सरकंडे के खेत को जलाने का वक्त .आगया है .मौसम भी यहाँ का अब बदलने लगा है ,बदली छटने लगी है ,बेहद अर्थ पूर्ण रचना रची है आपने ,..........Saturday, August 27, 2011
अन्ना हजारे ने समय को शीर्षासन करवा दिया है ,समय परास्त हुआ जन मन अन्ना विजयी . /
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
बेहतरीन रचना । आभार ...
जवाब देंहटाएंbahut achche......
जवाब देंहटाएंगहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने ! शानदार प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (६) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ /आप हिंदी के सेवा इसी तरह करते रहें ,यही कामना हैं /आज सोमबार को आपब्लोगर्स मीट वीकली
जवाब देंहटाएंके मंच पर आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /
आह्वाहन की गूंज प्रेरित कर रही है.अब क्रांति को कोई रोक ही नहीं सकता है.मानो धरध्रराती हुई पुकार अन्दर तक प्रवेश कर रही हो.
जवाब देंहटाएंजबरदस्त रचना...
जवाब देंहटाएंक्या बात , क्या बात , क्या बात ....जबरदस्त!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......
जवाब देंहटाएंaadarniy sir
जवाब देंहटाएंbahut dino baad aapke blog par der se pahunchne ke liye xhma chati hun.
bahut hi prabhavit kar gai aapki yah gahre avam sashkt shbdo se pripurit rachna.har panktiyan kuchh na kuchh sandesh deti hai
bahut hi lajwab gahan abhivykti se bhare aapke vicharo ko mai naman karti hun.
इससे पहले की
दीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो
man me joshh jagane wali ek udhelit
avam prena dene wali behad hi bhav prvan-prastuti ke liye
hardik abhinandan
poonam
इससे पहले की
जवाब देंहटाएंदीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने ! शानदार प्रस्तुती!
इन्हें बाहर लाओ
जवाब देंहटाएंचमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो
क्या हुवा जो कुछ समय के लिए
काव्य सृजन न हुवा
इतिहास की वीथियों में
संगृहीत शब्दों की आवाजें
गूंजती रहेंगी सदियों तक
सरल शब्दों में छिपे गहरे भाव.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
behad khubsoorat.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावशाली रचना...
जवाब देंहटाएंशब्द मैदान में उतरने को छटपटा रहे हैं !
फफूंद लगे शब्द
जवाब देंहटाएंअब सड़ने लगे हैं
मकड-जाल में फंसे मायनों की
साँस उखड़ने लगी है
इससे पहले की
दीमक शब्दों को चाट जाए
शब्दों से गिर के अर्थ
आत्महत्या कर लें
इन्हें बाहर लाओ
चमकती धूप दिखाओ
युग परिवर्तन की हवा चलाओ
शब्दों को ओज़स्वी आवाज़ में बदल डालो
क्रान्ति का इंधन बना दो!!
kuchh aisi hi zaroorat hai..
अंतिम पंक्तियों में कवि का आत्मविश्वास कबिलेतारीफ.
जवाब देंहटाएंbehatarin abhivyakti...bahut badhai..
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह.... यथार्थपरक!
जवाब देंहटाएंआशीष
--
मैंगो शेक!!!
बढ़िया
जवाब देंहटाएंकभी-कभी,कवि को भी कलम-रूपी तलवार उठानी पडती है,युग-परिवर्तन के लिए.देरी के लिये क्षमा करें.
जवाब देंहटाएंआपकी हर प्रस्तुति गहन अर्थ समेटे होती है.
जवाब देंहटाएंअनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.