स्वप्न मेरे: स्व ...

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

स्व ...

मेरी प्रवृति

भागने की नही

पर कृष्ण को देवत्व मिला

सिद्धार्थ को बुद्धत्व मिला

कभी तो मैं भी पा लूँगा

अपना

"स्व"

82 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहन ... जिस दिन प्राप्त हो जायेगा "मैं " सार्थक होगा जीना

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  2. बहुत ही गहरे उतरते शब्‍द ।

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  3. बेहद गहराई मे उतर कर लिखा है और यही वो सत्य है जिसकी खोज मे हम सभी लगे हैं।

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  4. हम सब खुद को ही तो तलाश रहे हैं...वाह...कैसे कम शब्द खर्च करके बहुत बड़ी बात करें ये कोई आप से सीखे...बेहतरीन दिगंबर भाई...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  5. मनुष्य यदि स्वयं को खोज ले या पा ले तो यह एक उपलब्धि है .
    लेकिन मैं शब्द अहंकार का प्रतीक माना जाता है .
    कृपया प्रकाश डालें नासवा जी .

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  6. जात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
    लिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |

    लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
    सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |

    पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
    चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||

    AAPKI SUNDAR RACHNA
    CHARCHA-MANCH PAR ||

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  7. डाक्टर साहब आपका कहना उचित हिया शायद मुझे स्व लिखना चाहिए था यहाँ पर ... सोच कर तो यही लिखा था ... पर शब्द का चयन गलत हो गया ... गलती ठीक करना उचित रहेगा ... आपका बहुत बहुत शुक्रिया ...

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  8. आज तक की आपनी सबसे उत्कृष्ट रचना. इस 'मैं' को पी जाना मनुष्य को महापुरुषों से पृथक करता है. शेक्सपियर की एक ट्रेजडी है "हेलमेट" ..एम ए के दौरान एक प्रश्न के उत्तर में मैंने लिखा था कि हेलमेट के दुखद अंत का सबसे बड़ा कारण उसका अनिर्णय की स्थिति में होना और 'मैं' के प्रति आशक्त होना था. उस नाटक में हेमलेट के अधिकांश संवाद "आई" से शुरू होते हैं. बहुत बढ़िया कविता...

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  9. इस "स्व" को पा लेना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है ......! जीवन की सार्थकता इस स्व को पहचाने में ही है ....आपका आभार

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  10. इसी स्व की खोज में ज़िन्दगी गुजर जाती है ..बेहतरीन लिखा है आपने ..स्व में स्व की खोज ..बहुत ही दिल को आकर्षित कर जाती है ..

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  11. स्व की खोज में अच्छे सवालों को उठाती यह रचना.... दिलो-दिमाग को छू गयी. बेहतरीन लिखा है आपने ....लाजवाब रचना......!!!!

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  12. मिल भी गया गर तुम्हारा स्व तुमको
    क्या कृष्ण और बुद्ध तुम बन पाओगे
    और बन भी गये
    तो भी क्या पाओगे
    ये स्व बहुत भागता हैं
    जब मिलता हैं
    पाने वाला विलोम हो जाता हैं

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  13. टिप्पणियाँ पढ़ कर लगा !आप तो बधाई के पात्र हैं बधाई स्वीकार करें .....
    खुश रहें ,खुश रखें !
    शुभकामनायें !

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  14. ओह बहुत मुश्किल काम है. देवत्व और बुद्धत्व इसके मुकाबले में आसान हैं शायद.

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  15. बहुत बढ़िया नासवा जी ।
    अब भाव और प्रस्तुति में पूर्ण सामंजस्य हो गया है ।
    बेहतरीन ।

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  16. यह स्व ही तो है जो समझता है ... इस पहलू से देखता है

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  17. स्व मिले ना मिले स्व की तलाश में समर्पित यह जीवन हो।

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  18. बेहतरीन लिखा है आपने ....लाजवाब रचना......!!!!

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  19. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  20. चोटी मगर गहन विचारों से परिपूर्ण अभिवयक्ति रचना जी बात से सहमत हूँ,
    कभी समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  21. विचारणीय प्रश्न छोड़ा है आपने ,नासवा जी.

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  22. अतयंत उत्कॄष्ट रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  23. प्रवृत्ति और निर्वृत्ति के बीच की दशा।

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  24. चंद पंक्तियों में गहन चिंतन
    गागर में सागर.

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  25. इस स्व की खोज में इन्सान अपना सारा जीवन बिता देता है ... शुभकामनायें है आपके लिए आप इसे पा सकें... गहन चिंतन....

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  26. इसी स्व की खोज में सब लगे हैं...आपके लिए इतना ही कहूंगी..आमीन !!

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  27. बुध्द और कृष्ण बनना सब के लिये संभव ना हो शायद, पर स्व की खोज में अपनत्व पा लिया तो भी बहुत होगा ।
    बेहद खूबसूरत रचना ।

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  28. मगर दोनों को स्व बिना भागे नहीं मिला -आपको भी इसके लिए भागना पड़ेगा त्यागना पड़ेगा ...गृहत्यागी बुद्ध और रणछोड़ कृष्ण की तरह -हां मुला ब्लागिंग से मत फूट लीजियेगा -काहें कि पहले लोग बाग़ यही से भाग लेते हैं ! :)

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  29. स्वत्व को पाने के लिए एक कदम उठा है तो मंजिल भी मिल ही जायेगी

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  30. अपनी कविता की पंक्ति ही लिख दूं ...
    जिंदगी उस दम ही लगी सबसे भली , जब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली !

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  31. 'त्व' की अपेक्षा 'स्व' को पा लेना कहीं बेहतर है.

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  32. प्रयास जारी रखें नासवा साहब , मिलेगा, जरूर मिलेगा !

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  33. स्व की खोज में अच्छे सवालों को उठाती यह रचना
    उम्दा सोच
    भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार नासवा जी ।

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  34. बड़ा मुश्किल है मेरे लिए टिप्पड़ी करना! इस 'स्व' को पाने की तलाश में बहुत से लोग है सर जी!

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  35. कुछ शब्दों में गहन अभिव्यक्ति। बहुत उत्क्रष्ट प्रस्तुति।

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  36. बहुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति ....

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  37. स्व ...
    मेरी प्रवृति

    भागने की नही

    पर कृष्ण को देवत्व मिला

    सिद्धार्थ को बुद्धत्व मिला

    कभी तो मैं भी पा लूँगा

    अपना

    "स्व"स्थित प्रग्य ,दृढ निश्चय भाव लिए है रचना .सुन्दर !सार्थक मनोहर .

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  38. इसी स्व की खोज में ज़िन्दगी गुजर जाती है .पर हिम्मत न हारना..कोशिश करने पर मंजिल मिल ही जाती है..

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  39. भाग कर कहाँ,स्व में रमकर ही तो देवत्व मिलता है...

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  40. 'स्व' तो आपके पास है पर 'तत्व' मिले, ऐसी कामना है !

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  41. जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  42. मैं तो इतना ही कहूंगा कि जिन खोजां तिन पाइयां..
    और हर किसी में गोता मारकर स्व पाने की हिम्मत नहीं होती.

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  43. आपको अपना स्व जरूर मिलेगा ।धन्यवाद ।

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  44. हिम्मत न हारना| कोशिश करने पर मंजिल मिल ही जाती है| धन्यवाद|

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  45. वाह वाह! गागर में सागर सामान हैं ये पंक्तियाँ!

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  46. इस स्व को पा लेना ही तो जीवन की सार्थकता है .... बहुत अच्छा सोचा है ....

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  47. इस स्व को पा लेना ही तो जीवन की सार्थकता है .... बहुत अच्छा सोचा है ....

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  48. jaroor pa lenge....lekin uske liye kon se vriksh ke neeche baithenge ya kya revolution layenge, ye sab to pahle se hi plan karna padega na ?

    :)

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  49. कवि नीरज के शब्दों में-
    ज़िंदगी भर होती रही, गुफ्तगू गैरों से मगर
    अब तलक अपनी न खुद से मुलाकात हुई.

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  50. खुद को पहचान लिया फिर तो बस उसकी पहचान हो गाई।

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  51. बहुत ही सुन्दर रचना.सव से ही तो सर्वस्व मिल जाता है.

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  52. उत्कृष्ट....
    लगभग मौन होकर सब कुछ कहती रचना...
    सादर साधुवाद....

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  53. 'स्व' को पाने की तलाश में.........मै भी इसी दौड़ में लगी हूँ. ..

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  54. ohh...waah waah...how beautiful...
    kitni khoobsurat baat hai :)

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  55. अपने स्व को पाना ही जीवन का लक्ष्य है।

    विचारपूर्ण कविता।

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  56. क्षमस्व परमेश्वर

    आप बहुत डूब के लिखते हैं दिगंबर भाई। बधाई स्वीकार करें।

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  57. मो को कहाँ ढूँढता रे बंदे, मैं तो तेरे पास में.
    आपकी 'स्व' की प्रस्तुती बहुत अच्छी लगी दिगंबर जी.
    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.नई पोस्ट जारी की है.

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  58. गहन विचार। बोध होते ही बुद्धत्व मिलेगा देते ही देवत्व!

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  59. जीवन को ऊर्ध्व गति देती ही ये रचना .बधाई !आपकी ब्लोगिया दस्तक हमारे लिए प्ररक है उत्प्रेरक है लेखन का .चिंतन का .

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  60. ऊर्जा से भरी दूसरों में ऊर्जा भरती बेहतरीन रचना ....... आभार

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  61. आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
    जय माता दी..

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  62. namaskar !'' swa '' hi aaj duniyaa me haavi hai . jaha dekho aaj har aur yahi nnazar aaya hai .
    sadar

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  63. सुन्दर .....शीघ्र पा लीजिये आप भी ....शुभ कामनाये .....हमारे सभी मित्रो को आप के साथ साथ विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएं -सौभाग्य से कुल्लू में प्रभु श्री राम के दर्शन हुए और मन में आया आप सब के बीच भी इस शुभ कार्य को बांटा जाए .--

    आभार आप का
    भ्रमर ५

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है