डाक्टर साहब आपका कहना उचित हिया शायद मुझे स्व लिखना चाहिए था यहाँ पर ... सोच कर तो यही लिखा था ... पर शब्द का चयन गलत हो गया ... गलती ठीक करना उचित रहेगा ... आपका बहुत बहुत शुक्रिया ...
आज तक की आपनी सबसे उत्कृष्ट रचना. इस 'मैं' को पी जाना मनुष्य को महापुरुषों से पृथक करता है. शेक्सपियर की एक ट्रेजडी है "हेलमेट" ..एम ए के दौरान एक प्रश्न के उत्तर में मैंने लिखा था कि हेलमेट के दुखद अंत का सबसे बड़ा कारण उसका अनिर्णय की स्थिति में होना और 'मैं' के प्रति आशक्त होना था. उस नाटक में हेमलेट के अधिकांश संवाद "आई" से शुरू होते हैं. बहुत बढ़िया कविता...
मिल भी गया गर तुम्हारा स्व तुमको क्या कृष्ण और बुद्ध तुम बन पाओगे और बन भी गये तो भी क्या पाओगे ये स्व बहुत भागता हैं जब मिलता हैं पाने वाला विलोम हो जाता हैं
चोटी मगर गहन विचारों से परिपूर्ण अभिवयक्ति रचना जी बात से सहमत हूँ, कभी समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
मगर दोनों को स्व बिना भागे नहीं मिला -आपको भी इसके लिए भागना पड़ेगा त्यागना पड़ेगा ...गृहत्यागी बुद्ध और रणछोड़ कृष्ण की तरह -हां मुला ब्लागिंग से मत फूट लीजियेगा -काहें कि पहले लोग बाग़ यही से भाग लेते हैं ! :)
सुन्दर .....शीघ्र पा लीजिये आप भी ....शुभ कामनाये .....हमारे सभी मित्रो को आप के साथ साथ विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएं -सौभाग्य से कुल्लू में प्रभु श्री राम के दर्शन हुए और मन में आया आप सब के बीच भी इस शुभ कार्य को बांटा जाए .--
बहुत गहन ... जिस दिन प्राप्त हो जायेगा "मैं " सार्थक होगा जीना
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में गूढ़ बात!
जवाब देंहटाएं--
बहुत उम्दा!
बहुत ही गहरे उतरते शब्द ।
जवाब देंहटाएंबेहद गहराई मे उतर कर लिखा है और यही वो सत्य है जिसकी खोज मे हम सभी लगे हैं।
जवाब देंहटाएंहम सब खुद को ही तो तलाश रहे हैं...वाह...कैसे कम शब्द खर्च करके बहुत बड़ी बात करें ये कोई आप से सीखे...बेहतरीन दिगंबर भाई...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
मनुष्य यदि स्वयं को खोज ले या पा ले तो यह एक उपलब्धि है .
जवाब देंहटाएंलेकिन मैं शब्द अहंकार का प्रतीक माना जाता है .
कृपया प्रकाश डालें नासवा जी .
जात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
जवाब देंहटाएंलिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |
लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |
पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||
AAPKI SUNDAR RACHNA
CHARCHA-MANCH PAR ||
डाक्टर साहब आपका कहना उचित हिया शायद मुझे स्व लिखना चाहिए था यहाँ पर ... सोच कर तो यही लिखा था ... पर शब्द का चयन गलत हो गया ... गलती ठीक करना उचित रहेगा ... आपका बहुत बहुत शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंआज तक की आपनी सबसे उत्कृष्ट रचना. इस 'मैं' को पी जाना मनुष्य को महापुरुषों से पृथक करता है. शेक्सपियर की एक ट्रेजडी है "हेलमेट" ..एम ए के दौरान एक प्रश्न के उत्तर में मैंने लिखा था कि हेलमेट के दुखद अंत का सबसे बड़ा कारण उसका अनिर्णय की स्थिति में होना और 'मैं' के प्रति आशक्त होना था. उस नाटक में हेमलेट के अधिकांश संवाद "आई" से शुरू होते हैं. बहुत बढ़िया कविता...
जवाब देंहटाएंइस "स्व" को पा लेना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है ......! जीवन की सार्थकता इस स्व को पहचाने में ही है ....आपका आभार
जवाब देंहटाएंइसी स्व की खोज में ज़िन्दगी गुजर जाती है ..बेहतरीन लिखा है आपने ..स्व में स्व की खोज ..बहुत ही दिल को आकर्षित कर जाती है ..
जवाब देंहटाएंस्व की खोज में अच्छे सवालों को उठाती यह रचना.... दिलो-दिमाग को छू गयी. बेहतरीन लिखा है आपने ....लाजवाब रचना......!!!!
जवाब देंहटाएंमिल भी गया गर तुम्हारा स्व तुमको
जवाब देंहटाएंक्या कृष्ण और बुद्ध तुम बन पाओगे
और बन भी गये
तो भी क्या पाओगे
ये स्व बहुत भागता हैं
जब मिलता हैं
पाने वाला विलोम हो जाता हैं
टिप्पणियाँ पढ़ कर लगा !आप तो बधाई के पात्र हैं बधाई स्वीकार करें .....
जवाब देंहटाएंखुश रहें ,खुश रखें !
शुभकामनायें !
ओह बहुत मुश्किल काम है. देवत्व और बुद्धत्व इसके मुकाबले में आसान हैं शायद.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंअब भाव और प्रस्तुति में पूर्ण सामंजस्य हो गया है ।
बेहतरीन ।
यह स्व ही तो है जो समझता है ... इस पहलू से देखता है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन....
जवाब देंहटाएंस्व मिले ना मिले स्व की तलाश में समर्पित यह जीवन हो।
जवाब देंहटाएंएक गुढ़ रचना , अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंbahut khoobsoorat , behtar chintan, thanks
जवाब देंहटाएंbahut khoob!
जवाब देंहटाएंsva ki prapti jab hogi chaon aor ujala hoga
जवाब देंहटाएंsunder bhav
rachana
गहरी सोच लिए पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिखा है आपने ....लाजवाब रचना......!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंचोटी मगर गहन विचारों से परिपूर्ण अभिवयक्ति रचना जी बात से सहमत हूँ,
जवाब देंहटाएंकभी समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
विचारणीय प्रश्न छोड़ा है आपने ,नासवा जी.
जवाब देंहटाएंअतयंत उत्कॄष्ट रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
प्रवृत्ति और निर्वृत्ति के बीच की दशा।
जवाब देंहटाएंचंद पंक्तियों में गहन चिंतन
जवाब देंहटाएंगागर में सागर.
द अल्टीमेट!!
जवाब देंहटाएंइस स्व की खोज में इन्सान अपना सारा जीवन बिता देता है ... शुभकामनायें है आपके लिए आप इसे पा सकें... गहन चिंतन....
जवाब देंहटाएंइसी स्व की खोज में सब लगे हैं...आपके लिए इतना ही कहूंगी..आमीन !!
जवाब देंहटाएंबुध्द और कृष्ण बनना सब के लिये संभव ना हो शायद, पर स्व की खोज में अपनत्व पा लिया तो भी बहुत होगा ।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना ।
मगर दोनों को स्व बिना भागे नहीं मिला -आपको भी इसके लिए भागना पड़ेगा त्यागना पड़ेगा ...गृहत्यागी बुद्ध और रणछोड़ कृष्ण की तरह -हां मुला ब्लागिंग से मत फूट लीजियेगा -काहें कि पहले लोग बाग़ यही से भाग लेते हैं ! :)
जवाब देंहटाएंस्वत्व को पाने के लिए एक कदम उठा है तो मंजिल भी मिल ही जायेगी
जवाब देंहटाएंअपनी कविता की पंक्ति ही लिख दूं ...
जवाब देंहटाएंजिंदगी उस दम ही लगी सबसे भली , जब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली !
'त्व' की अपेक्षा 'स्व' को पा लेना कहीं बेहतर है.
जवाब देंहटाएंप्रयास जारी रखें नासवा साहब , मिलेगा, जरूर मिलेगा !
जवाब देंहटाएंवाह! सर!
जवाब देंहटाएंसादर
ekdam gagar men sagar.........bhar diya aapne,
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंस्व की खोज में अच्छे सवालों को उठाती यह रचना
जवाब देंहटाएंउम्दा सोच
भावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार नासवा जी ।
बड़ा मुश्किल है मेरे लिए टिप्पड़ी करना! इस 'स्व' को पाने की तलाश में बहुत से लोग है सर जी!
जवाब देंहटाएंकुछ शब्दों में गहन अभिव्यक्ति। बहुत उत्क्रष्ट प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंस्व ...
जवाब देंहटाएंमेरी प्रवृति
भागने की नही
पर कृष्ण को देवत्व मिला
सिद्धार्थ को बुद्धत्व मिला
कभी तो मैं भी पा लूँगा
अपना
"स्व"स्थित प्रग्य ,दृढ निश्चय भाव लिए है रचना .सुन्दर !सार्थक मनोहर .
bahut sundar
जवाब देंहटाएंइसी स्व की खोज में ज़िन्दगी गुजर जाती है .पर हिम्मत न हारना..कोशिश करने पर मंजिल मिल ही जाती है..
जवाब देंहटाएंभाग कर कहाँ,स्व में रमकर ही तो देवत्व मिलता है...
जवाब देंहटाएं'स्व' तो आपके पास है पर 'तत्व' मिले, ऐसी कामना है !
जवाब देंहटाएंरणछोड़दास तो नहीं न बने :)
जवाब देंहटाएंजीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
जवाब देंहटाएंgahan abhivyakti..jis din vo mil jayega...jina safal ho jayega
जवाब देंहटाएंमैं तो इतना ही कहूंगा कि जिन खोजां तिन पाइयां..
जवाब देंहटाएंऔर हर किसी में गोता मारकर स्व पाने की हिम्मत नहीं होती.
अद्भुत , समझ गया .
जवाब देंहटाएंआपको अपना स्व जरूर मिलेगा ।धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंहिम्मत न हारना| कोशिश करने पर मंजिल मिल ही जाती है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंवाह वाह! गागर में सागर सामान हैं ये पंक्तियाँ!
जवाब देंहटाएंइस स्व को पा लेना ही तो जीवन की सार्थकता है .... बहुत अच्छा सोचा है ....
जवाब देंहटाएंइस स्व को पा लेना ही तो जीवन की सार्थकता है .... बहुत अच्छा सोचा है ....
जवाब देंहटाएंjaroor pa lenge....lekin uske liye kon se vriksh ke neeche baithenge ya kya revolution layenge, ye sab to pahle se hi plan karna padega na ?
जवाब देंहटाएं:)
कवि नीरज के शब्दों में-
जवाब देंहटाएंज़िंदगी भर होती रही, गुफ्तगू गैरों से मगर
अब तलक अपनी न खुद से मुलाकात हुई.
खुद को पहचान लिया फिर तो बस उसकी पहचान हो गाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना.सव से ही तो सर्वस्व मिल जाता है.
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट....
जवाब देंहटाएंलगभग मौन होकर सब कुछ कहती रचना...
सादर साधुवाद....
" स्व " - बहुत ही पूर्ण
जवाब देंहटाएंकाश... मिल जाता '''स्व'''
जवाब देंहटाएं'स्व' को पाने की तलाश में.........मै भी इसी दौड़ में लगी हूँ. ..
जवाब देंहटाएंohh...waah waah...how beautiful...
जवाब देंहटाएंkitni khoobsurat baat hai :)
अपने स्व को पाना ही जीवन का लक्ष्य है।
जवाब देंहटाएंविचारपूर्ण कविता।
कम लफ्जों में बडी बात, यही है कविता की सार्थकता।
जवाब देंहटाएं------
कब तक ढ़ोना है मम्मी, यह बस्ते का भार?
आओ लल्लू, आओ पलल्लू, सुनलो नई कहानी।
क्षमस्व परमेश्वर
जवाब देंहटाएंआप बहुत डूब के लिखते हैं दिगंबर भाई। बधाई स्वीकार करें।
मो को कहाँ ढूँढता रे बंदे, मैं तो तेरे पास में.
जवाब देंहटाएंआपकी 'स्व' की प्रस्तुती बहुत अच्छी लगी दिगंबर जी.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.नई पोस्ट जारी की है.
गहन विचार। बोध होते ही बुद्धत्व मिलेगा देते ही देवत्व!
जवाब देंहटाएंजीवन को ऊर्ध्व गति देती ही ये रचना .बधाई !आपकी ब्लोगिया दस्तक हमारे लिए प्ररक है उत्प्रेरक है लेखन का .चिंतन का .
जवाब देंहटाएंऊर्जा से भरी दूसरों में ऊर्जा भरती बेहतरीन रचना ....... आभार
जवाब देंहटाएंsrujan bhi to sva ko pane kahi tarika hai ....sunder.
जवाब देंहटाएंआपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
जवाब देंहटाएंजय माता दी..
namaskar !'' swa '' hi aaj duniyaa me haavi hai . jaha dekho aaj har aur yahi nnazar aaya hai .
जवाब देंहटाएंsadar
सुन्दर .....शीघ्र पा लीजिये आप भी ....शुभ कामनाये .....हमारे सभी मित्रो को आप के साथ साथ विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएं -सौभाग्य से कुल्लू में प्रभु श्री राम के दर्शन हुए और मन में आया आप सब के बीच भी इस शुभ कार्य को बांटा जाए .--
जवाब देंहटाएंआभार आप का
भ्रमर ५