मिट्टी का घर मेघ से यारी
गोया लुटने की तैयारी
जी भर के जी लो जीवन को
ना जाने कल किसकी बारी
सागर से गठजोड़ है उनका
कागज़ की है नाव उतारी
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
कल था बन्दर आज मदारी
बुद्धीजीवी बोल रहा है
शब्द हैं कितने भारी भारी
धूप ने दाना डाल दिया है
साये निकले बारी बारी
रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
ढूंढ रही है धूल बिचारी
जाते जाते रात ये बोली
देखो दिन की दुनियादारी
बहुत सुंदर...वाह!
जवाब देंहटाएंमिट्टी का घर मेघ से यारी
गोया लुटने की तैयारी
शुभकामनाएँ!
धूप ने दाना डाल दिया है
जवाब देंहटाएंसाये निकले बारी बारी
रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
ढूंढ रही है धूल बिचारी
बहुत ही बढ़िया सर!
सादर
धूप ने दाना डाल दिया है
जवाब देंहटाएंसाये निकले बारी बारी
रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
ढूंढ रही है धूल बिचारी
यह पंक्तियां बहुत ही बढि़या ..आभार ।
धूप ने दाना डाल दिया है
जवाब देंहटाएंसाये निकले बारी बारी
रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
ढूंढ रही है धूल बिचारी
दिगम्बर साब इन खूब सूरत शेरों के लिए आप को साधुवाद .पूरे ग़ज़ल में एक कटाक्ष किया है जो उम्दा शेरों में जीवंत कर दिया , बधाई .
सादर
अतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंबुद्धीजीवी बोल रहा है---
जवाब देंहटाएंशब्द हैं कितने भारी भारी
बढ़िया अंदाज ||
बहुत बहुत बधाई ||
neemnimbouri.blogspot.com
ला-जवाब कर दिया आपने………
जवाब देंहटाएंधूप ने दाना डाल दिया है
साये निकले बारी बारी
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
जवाब देंहटाएंकल था बन्दर आज मदारी
बुद्धीजीवी बोल रहा है
शब्द हैं कितने भारी भारी
...sach kaha aapne kal jo bandar the aaj wahi madari bankar apna khel dekha kar janta ko nacha rahe hai.. aur budhijivi kahalani wale mook ban tamashbeen ban baithe hai..
saarthak chintransheel prastuti hetu aabhar..
कौन सी एक पंक्ति ढूंढें वाह कहने के लिए ...
जवाब देंहटाएंबेहद मारक!
seedhi seedhi dil mein utri
जवाब देंहटाएंप्यारी गज़ल।
जवाब देंहटाएंमिट्टी का घर मेघ से यारी
गोया लुटने की तैयारी
..वाह!
जी भर के जी लो जीवन को
जवाब देंहटाएंना जाने कल किसकी बारी
लाज़वाब गज़ल..सभी शेर बहुत उम्दा..
bahut hi acchi rachana .kuch panktiyan to ekdam dil ko choo gai.
जवाब देंहटाएंमिट्टी का घर मेघ से यारी
जवाब देंहटाएंगोया लुटने की तैयारी
क्या खूब...वो शेर याद आ गया..
शायद कुछ ऐसा था...
"बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फ़राज़
कच्चा है तेरा मकान,कुछ तो ख्याल कर, "
जी भर के जी लो जीवन को
जवाब देंहटाएंना जाने कल किसकी बारी
लाज़वाब गज़ल..हर पंक्ति लाजवाब.....
वाह ...बहुत खूब उम्दा और लाजबाब
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
कोई एक शेर कैसे चुनूँ पूरी गज़ल ही शानदार दिल मे उतरने वाली है।
जवाब देंहटाएंलाजवाब ! हर पंक्ति अपने आप में बेजोड़ है..जीवन जिसने भी चाहा है
जवाब देंहटाएंकर ली मृत्यु की तैयारी
बुद्धीजीवी बोल रहा है
जवाब देंहटाएंशब्द हैं कितने भारी भारी
धूप ने दाना डाल दिया है
साये निकले बारी बारी
बेहतरीन ग़ज़ल...हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
जवाब देंहटाएंकल था बन्दर आज मदारी
जाते जाते रात ये बोली
देखो दिन की दुनियादारी
वाह , बेहतरीन शे'र कहे हैं ।
शानदार ग़ज़ल ।
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
जवाब देंहटाएंकल था बन्दर आज मदारी
क्या बात है?
रेगिस्तान में थोर ठिकाना
जवाब देंहटाएंढूंढ रही है धूल बिचारी
जाते जाते रात ये बोली
देखो दिन की दुनियादारी....
अति सुंदर भाव
समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
मिट्टी का घर मेघ से यारी
जवाब देंहटाएंगोया लुटने की तैयारी
क्या बात है.......
जो जितना लुटा उतना पाया भी.सुन्दर लिखा है.शुभकामना...
जवाब देंहटाएंमिट्टी का घर मेघ से यारी
जवाब देंहटाएंगोया लुटने की तैयारी
वाह क्या गजब का शेर कहा है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम
वाह ,मजा आ गया
जवाब देंहटाएंधूप ने दाना डाल दिया है
जवाब देंहटाएंसाये निकले बारी बारी... waah ....दशहरा की शुभकामनायें
सागर से गठजोड़ है उनका
जवाब देंहटाएंकागज़ की है नाव उतारी
Bahut hi Sunder...
sabhi panktiyan laajawab hain.
जवाब देंहटाएंjabardast rachna.
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
जवाब देंहटाएंकल था बन्दर आज मदारी
छोटी बहर की ग़ज़ल लिखने के आप उस्ताद हैं। एक-एक शे’र लाख-लाख शब्दों की बातें कह जाते हैं। बधाई आपको इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए।
वाह, हल्के हल्के गहरा रगड़ा है।
जवाब देंहटाएंमिट्टी का घर मेघ से यारी
जवाब देंहटाएंगोया लुटने की तैयारी
सागर से गठजोड़ है उनका
कागज़ की है नाव उतारी
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
कल था बन्दर आज मदारी
बुद्धीजीवी बोल रहा है
शब्द हैं कितने भारी भारी
बहुत उम्दा !!
वाह !!
ख़ूबसूरत अश’आर से सुसज्जित ग़ज़ल
मुबारक हो
जाते जाते रात ये बोली
जवाब देंहटाएंदेखो दिन की दुनियादारी
वाह बेहतरीन.
गोया लूट लेने की तैयारी है.. उम्दा लेखन से
जवाब देंहटाएंNICE.
जवाब देंहटाएं--
Happy Dushara.
VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
--
MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
Net nahi chal raha hai.
बुद्धीजीवी बोल रहा है
जवाब देंहटाएंशब्द हैं कितने भारी भारी
वाह .. अत्यंत प्रभावशाली ... सुन्दर
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
जवाब देंहटाएंकल था बन्दर आज मदारी.
बहुत खूब.
आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।
जवाब देंहटाएंवाह! हर दोहे एक से बढ़ कर एक..
जवाब देंहटाएंवर्त्तमान और चीर-काल तक रहने वाली बातों को खूब संजोया है इनमें..
आभार
आपकी उत्कृष्ट रचना है --
जवाब देंहटाएंशुक्रवार चर्चा-मंच पर |
शुभ विजया ||
http://charchamanch.blogspot.com/
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
जवाब देंहटाएंनवीन सी. चतुर्वेदी
जी भर के जी लो जीवन को
जवाब देंहटाएंना जाने कल किसकी बारी
गहरी बातें हैं...!
विजयादशमी की शुभकामनाएं!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है नासवा जी .गदगद हुआ मन पढके .बहुत उदास था मन ,हल्का हुआ आपकी बेहतरीन ग़ज़ल पढके ,सार्थक हुआ आजका दिन .
जवाब देंहटाएंBahut hi gahrai se rachi gai..
जवाब देंहटाएंAabhar..
Happy Durga Puja..
Bahut hi gahrai se rachi gai..
जवाब देंहटाएंAabhar..
Happy Durga Puja..
मिट्टी का घर मेघ से यारी
जवाब देंहटाएंगोया लुटने की तैयारी
हर बंद मुखर है ,मूल्यवान है, बधाईयाँ जी .
बेहतरीन शब्द संयोजन के साथ व्यवस्था को आईना दिखाता गजलों का खुबसूरत गुलदस्ता ।
जवाब देंहटाएंदशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ...
जी भर के जी लो जीवन को
जवाब देंहटाएंना जाने कल किसकी बारी
कमाल कर दिया ,नासवा जी !
जीवन का इतना बड़ा सत्य कहने के लिए इतने कम शब्दों को आपने राजी कैसे कर लिया ?
मिट्टी का घर मेघ से यारी
जवाब देंहटाएंगोया लुटने की तैयारी
दिगंबर जी...वाह...लाजवाब...क्या शेर कहा है...पहली बाल पर सीधा छक्का जड़ दिया आपने...
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
कल था बन्दर आज मदारी
आज की तल्ख़ सच्चाई को धारदार व्यंग से व्यक्त किया है आपने...बेजोड़...
धूप ने दाना डाल दिया है
साये निकले बारी बारी
ये ऐसा शेर है जिस पर टिपण्णी करना आसान नहीं...सीधा दिल में उतर गया है...ये उस्तादों वाला शेर है जनाब ...
रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
ढूंढ रही है धूल बिचारी
क्या मंज़र कशी की है,गहरी बात कहने का ये अंदाज़..ये हुनर...वाह.....सुभान अल्लाह...
भाई दिगंबर जी इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें...
नीरज
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच 659,चर्चाकार-दिलबाग विर्क
दशहरा पर्व की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंमिट्टी का घर मेघ से यारी
जवाब देंहटाएंगोया लुटने की तैयारी
नासवा जी, बहुत अच्छा मतला है...
सागर से गठजोड़ है उनका
कागज़ की है नाव उतारी
अच्छा शेर है...
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
कल था बन्दर आज मदारी
आज की राजनीति पर करारा तंज़.
संवाद मीडिया के लिए रचनाएं आमंत्रित हैं...
विवरण जज़्बात पर है
http://shahidmirza.blogspot.com/
kuch hatkar hai........nayapan hai!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
मिट्टी का घर मेघ से यारी
जवाब देंहटाएंगोया लुटने की तैयारी
जी भर के जी लो जीवन को
ना जाने कल किसकी बारी
सागर से गठजोड़ है उनका
कागज़ की है नाव उतारी
gazab ki soch
सिम्पली ब्रीलीएंट . कमाल है साहब .
जवाब देंहटाएंबेमिसाल है हर शेर ! बहुत बहुत बहुत ही खूबसूरत ! बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना दिगंबर जी निम्न पंक्तियाँ गजब की यथार्थ .....हमारे सभी मित्रो को आप के साथ साथ विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएं -सौभाग्य से कुल्लू में प्रभु श्री राम के दर्शन हुए और मन में आया आप सब के बीच भी इस शुभ कार्य को बांटा जाए .--
जवाब देंहटाएंआभार आप का
भ्रमर ५
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
कल था बन्दर आज मदारी
बुद्धीजीवी बोल रहा है
शब्द हैं कितने भारी भारी
वाह !!!
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल.....हर शेर बेहतरीन
लाजवाब मतला है। शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह...
जवाब देंहटाएंbehad khubsurat ghazal hai digambar jee khaskar ye do sher..
जवाब देंहटाएंधूप ने दाना डाल दिया है
साये निकले बारी बारी
रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
ढूंढ रही है धूल बिचारी
जाते जाते रात ये बोली
जवाब देंहटाएंदेखो दिन की दुनियादारी
bahut hi sundar rachna !
मिट्टी का घर मेघ से यारी
जवाब देंहटाएंगोया लुटने की तैयारी
धूप ने दाना डाल दिया है
साये निकले बारी बारी
सब शेर पसंद आये, लाजवाब ग़ज़ल!
जी भर के जी लो जीवन को
जवाब देंहटाएंना जाने कल किसकी बारी
कितनी सही बात कही है सर आपने!! :)
आपके पोस्ट पर आना बहुत सार्थक लगता है । .बहुत सुंदर लगा । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंजी भर के जी लो जीवन को
जवाब देंहटाएंना जाने कल किसकी बारी
digambar ji aapka jabab nahi....har shabd bahut khoobsurat hain....aabhar
रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
जवाब देंहटाएंढूंढ रही है धूल बिचारी ....
लाजवाब ग़ज़ल!........
वाह! बहुत सुन्दर भाव, प्रभावी कविता!
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna .....
जवाब देंहटाएंएक एक शेर स्वतः तालियाँ बजवा गए...
जवाब देंहटाएंक्या लिखा है आपने...बस वाह...वाह...वाह....
दर पे आये हाथ जोड़कर
जवाब देंहटाएंगोया लूटने की तैयारी.
उनका खेल ह्मेशा जारी
लुटना अपनी भी लाचारी.
थोड़ी उनकी भी लाचारी
कुछ अपनी भी जिम्मेदारी.
हम चुपचाप नहीं सहते तो
कैसे निभती रिश्तेदारी.
अच्छी गज़ल पढ़ी,मैं बहका
भाई दिगम्बर VERY SORRY..
आपकी गज़ल ने तो कमाल कर दिया,बेमिसाल..
सागर से गठजोड़ है उनका
जवाब देंहटाएंकागज़ की है नाव उतारी
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
कल था बन्दर आज मदारी
वाह वाह, आम आदमी का जीवन भी, नेताओ की मजबूरी भी
लुटने की तैयारी बढ़िया लगी
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
इतने सरल शब्दों में इतनी गूढ़ बातें .... बेहतरीन !!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल ... हर शेर कुछ कहता हुआ सा ..
जवाब देंहटाएंआदरणीय नासवा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
मिट्टी का घर मेघ से यारी
गोया लुटने की तैयारी
..गजब का शेर
.....बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई आपको
जरूरी कार्यो के कारण करीब 15 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
जवाब देंहटाएंआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ...नासवा जी
behatarin...bahut hi umda gazal..bahut bahut badhai...
जवाब देंहटाएंजी भर के जी लो जीवन को
जवाब देंहटाएंना जाने कल किसकी बारी
जीवन का सही फलसफा ..
जी भर के जी लो जीवन को
जवाब देंहटाएंना जाने कल किसकी बारी
bhut khub.
sundar rachna nasvaji......
जवाब देंहटाएंभाई दिगम्बर जी बहुत ही उम्दा और लाजवाब गज़ल बधाई |
जवाब देंहटाएंभाई दिगम्बर जी बहुत ही उम्दा और लाजवाब गज़ल बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना....!
जवाब देंहटाएंआभार !
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब उम्दा और लाजबाब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...वाह!
जवाब देंहटाएंमिट्टी का घर मेघ से यारी
गोया लुटने की तैयारी
सारे शेर अच्छे हैं मगर ये मतला ख़ास है..... नया सा प्यारा सा ! अभिव्यक्ति पसंद आयी,....! अच्छी रचना का आभार !
लाजवाब....
जवाब देंहटाएंधूप ने दाना डाल दिया है
साये निकले बारी बारी
रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
ढूंढ रही है धूल बिचारी
...गज़ब की सोच है
प्रजातंत्र का खेल है कैसा
जवाब देंहटाएंकल था बन्दर आज मदारी
मदारी ने बनाया सब को बन्दर.
सब खेल खिला रहा है अंदर ही अंदर.
प्रजातंत्र पर लगा रहें हैं धब्बा
मेरी टिपण्णी का अंक है अब नब्बा.