भूल गए जो खून खराबा करते हैं
खून के छींटे अपने पर भी गिरते हैं
दिन में गाली देते हैं जो सूरज को
रात गये वो जुगनू का दम भरते हैं
तेरी राहों में जो फूल बिछाते थे
लोग वो अक्सर मारे मारे फिरते हैं
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
कहने को तो आँखों से ही झरते हैं
उन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं
हाथों को पतवार बना कर निकले जो
सागर में जाने से कब वो डरते हैं
पूजा की थाली है पलकें झुकी हुईं
तुझ पे जाना मुद्दत से हम मरते हैं
अपने इर्द-गिर्द ही नहीं,भीतर के प्रति भी चौकस रहने को प्रेरित करती पंक्तियां। असहमति का कोई कारण नहीं।
जवाब देंहटाएंउन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जवाब देंहटाएंजिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं
गहरी बात!
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
जवाब देंहटाएंकहने को तो आँखों से ही झरते हैं
खुबसूरत अहसास को खुबसूरत अल्फ़ाज दिए है , बधाई
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
जवाब देंहटाएंकहने को तो आँखों से ही झरते हैं
वाह, दिल को छूती पंक्तियाँ।
वाह! बहुत खूब ग़ज़ल कही है
जवाब देंहटाएंआग लगा देते हैं दो आंसू पल में
कहने को तो आँखों से ही झरते हैं
क्या बात है!!!!!
भूल गए जो खून खराबा करते हैं
जवाब देंहटाएंखून के छींटे अपने पर भी गिरते हैं
वाह! दिगम्बर जी, कितना सच कहा आपने...सार्थक रचना.
हाथों को पतवार बना कर निकले जो
जवाब देंहटाएंसागर में जाने से कब वो डरते हैं
बहुत सही बात कही है सर!
सादर
उन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जवाब देंहटाएंजिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं
हकीकत तो यही है..
सुन्दर गज़ल
संदेशपरक कविता अच्छी है।
जवाब देंहटाएंआग लगा देते हैं दो आंसू पल में
जवाब देंहटाएंकहने को तो आँखों से ही झरते हैं
BEHAT SUNDAR PANKTIYAN..
भूल गए जो खून खराबा करते हैं
जवाब देंहटाएंखून के छींटे अपने पर भी गिरते हैं
...बहुत खूब! बहुत सच कहा है...हरेक शेर लाज़वाब..बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
हर शेर खास है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!
जवाब देंहटाएं'दिन में गाली देते हैं जो सूरज को
जवाब देंहटाएंरात गये वो जुगनू का दम भरते हैं'
सहिये कहा है !
हाथों को पतवार बना कर निकले जो
जवाब देंहटाएंसागर में जाने से कब वो डरते हैं।
हौसला अफज़ाई करती हुई शानदार ग़ज़ल ।
हाथों को पतवार बना कर निकले जो
जवाब देंहटाएंसागर में जाने से कब वो डरते है
जो डर गया समझो...गया...खूबसूरत ग़ज़ल...
पूजा की थाली है पलकें झुकी हुईं
जवाब देंहटाएंतुझ पे जाना मुद्दत से हम मरते हैं
क्या कहने और वह पूजा की थाली उसी का रिटर्न गिफ्ट है
उन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जवाब देंहटाएंजिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं |
सब कुछ बहुत खूबसूरत है ...गहरा है ..
हमेशा की तरह |
मुबारक हो !
खुश रहें !
खुबसूरत अहसास .. चौकस रहने को प्रेरित करती भावपूर्ण पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंहाथों को पतवार बना कर निकले जो
जवाब देंहटाएंसागर में जाने से कब वो डरते हैं
पूजा की थाली है पलकें झुकी हुईं
तुझ पे जाना मुद्दत से हम मरते हैं
kya khoob likha umda bahut sundar.
"तेरी राहों में जो फूल बिछाते थे
जवाब देंहटाएंलोग वो अक्सर मारे मारे फिरते हैं"
खूबसूरत अभिव्यक्ति.....!!
बहुत उम्दा ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने!
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील गज़ल हर पंक्ति दिल को छूती है.
जवाब देंहटाएंHarek pankti lajawaab hai!
जवाब देंहटाएंहाथों को पतवार बना कर निकले जो
जवाब देंहटाएंसागर में जाने से कब वो डरते हैं
बेमिसाल पंक्तियाँ हैं ! सम्पूर्ण गज़ल ही बेहद खूबसूरत है ! बहुत सारी शुभकामनायें आपको !
सुंदर पन्तियों और शब्दों से रची खुबशुरत रचना,अच्छी लगी बढ़िया पोस्ट...
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट में आपका स्वागत है ...
बेहतरीन गज़ल है आपकी. हर शेर कुछ कह रहा है.
जवाब देंहटाएंआग लगा देते हैं दो आंसू पल में
जवाब देंहटाएंकहने को तो आँखों से ही झरते हैं
उन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं
bahut khoob savedansheel prastuti
दिन में गाली देते हैं जो सूरज को
जवाब देंहटाएंरात गये वो जुगनू का दम भरते हैं
दिगंबर भाई...दीवाना बना देते हैं आप अपने अशआरों से...सुभान अल्लाह...क्या ग़ज़ल कही है...एक एक शेर कारीगरी से गढ़ा हुआ...आपके इस हुनर को सलाम
नीरज
हाथों को पतवार बना कर निकले जो
जवाब देंहटाएंसागर में जाने से कब वो डरते हैं
we darne ke liye nahi bane hote , pahadon se bhi raahen khinchna jante hain
दिन में गाली देते हैं जो सूरज को
जवाब देंहटाएंरात गये वो जुगनू का दम भरते हैं
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
कहने को तो आँखों से ही झरते हैं .
बहुत खूबसूरत गज़ल .. पूरी गज़ल ही कमाल की है ..
तेरी राहों में जो फूल बिछाते थे
जवाब देंहटाएंलोग वो अक्सर मारे मारे फिरते हैं
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
कहने को तो आँखों से ही झरते हैं
बहुत उम्दा मतले से ग़ज़ल का आग़ाज़ कर के आप ने ख़ूबसूरत अश’आर के ज़रिये बेहद नज़ाकत से इसे अंजाम दिया है
मुबारक हो !!
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
जवाब देंहटाएंकहने को तो आँखों से ही झरते हैं
बेहतरीन भाव लिए है हर पंक्ति ...
भूल गए जो खून खराबा करते हैं
जवाब देंहटाएंखून के छींटे अपने पर भी गिरते हैं
लाजवाब!
sundar evam saamyik bhaavabhivyakti !!
जवाब देंहटाएंदिन में गाली देते हैं जो सूरज को
जवाब देंहटाएंरात गये वो जुगनू का दम भरते हैं
एक खूबसूरत , नायब पैगाम से रु ब रु
करवाती हुई अनुपम रचना ...
बहुत खूब !!
खुबसूरत अहसास !
जवाब देंहटाएंभूल गए जो खून खराबा करते हैं
जवाब देंहटाएंखून के छींटे अपने पर भी गिरते हैं
बहुत सुन्दर खयालातों से लबरेज ग़ज़ल सर,
सादर बधाई...
अतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंअच्छी भावपूर्ण ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंउन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं
वाह क्या विम्ब रचा है..... पूरी ग़ज़ल अच्छी है. बधाई !
पूजा की थाली है पलकें झुकी हुईं
जवाब देंहटाएंतुझ पे जाना मुद्दत से हम मरते हैं वाह वाह बहुत ही शानदार हमेशा की तरह्…………एक संदेशपरक गज़ल दिल को छू गयी।
खून खराबा करने वाले ये जान ले तो स्वर्ग यही इस धरती पर ही ना मिल जाये !
जवाब देंहटाएंपूजा की थाली है पलकें झुकी हुईं
तुझ पे जाना मुद्दत से हम मरते हैं...
प्रेम , श्रद्धा और दुनियादारी सब एक साथ एक ही ग़ज़ल में !
Awesome!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंकल के चर्चा मंच पर, लिंको की है धूम।
जवाब देंहटाएंअपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।।
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
जवाब देंहटाएंकहने को तो आँखों से ही झरते हैं
waah! waah! bahut khoob!
दिन में गाली देते हैं जो सूरज को
जवाब देंहटाएंरात गये वो जुगनू का दम भरते हैं
बढ़िया है.
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
जवाब देंहटाएंकहने को तो आँखों से ही झरते हैं
बेहतरीन ग़ज़ल।
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
जवाब देंहटाएंकहने को तो आँखों से ही झरते हैं bahut samvedansheel gazal...
हाथों को पतवार बना कर निकले जो
जवाब देंहटाएंसागर में जाने से कब वो डरते है.. behtreen rachna...
तेरी राहों में जो फूल बिछाते थे
जवाब देंहटाएंलोग वो अक्सर मारे मारे फिरते हैं
उम्दा शेर है नासवा जी...
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
कहने को तो आँखों से ही झरते हैं
कितना ज्वलनशील होता है न ये आंखों का पानी भी...
हर शेर बेहतरीन...बधाई.
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
जवाब देंहटाएंकहने को तो आँखों से ही झरते हैं
...... बेहतरीन !
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंहाथों को पतवार बना कर निकले जो
जवाब देंहटाएंसागर में जाने से कब वो डरते हैं
लाजवाब शेर।
प्रेरणादायी पंक्तियां।
पूजा की थाली है पलकें झुकी हुईं
जवाब देंहटाएंतुझ पे जाना मुद्दत से हम मरते हैं.
सारे के सारे शेर ही काबिले गौर है.
बेहतरीन गज़ल.
वजनदार शेर ,बधाई
जवाब देंहटाएंअपना अलग अंदाज़ लिए हर शेर काफी मेहनत कर के तराशा है आपने। बधाई। गर्भनाल में आप की कविता पढ़ी, सुंदर कविता है।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं♥
आदरणीय दिगंबर नासवा जी
सस्नेहाभिवादन !
अच्छी ग़ज़ल के लिए शुक्रिया जनाब !
भूल गए जो खून खराबा करते हैं
खून के छींटे अपने पर भी गिरते हैं
एक अर्थपूर्ण मतले के साथ ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut achchhi ghazal, daad sweekaaren.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbehatreen gazal ....
जवाब देंहटाएंबेमिसाल गजल...
जवाब देंहटाएंमर बे हवा .सुभान अल्लाह !पूजा की थाली है पलकें झुकी हुईं
जवाब देंहटाएंतुझ पे जाना मुद्दत से हम मरते हैं/उन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं
पूजा की थाली है पलकें झुकी हुईं
जवाब देंहटाएंतुझ पे जाना मुद्दत से हम मरते हैं
बहुत खूबसूरत रचना |
आग लगा देते हैं दो आंसू पल में
जवाब देंहटाएंकहने को तो आँखों से ही झरते हैं
उन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं ...
ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने ! तारीफ़ के लिए अल्फाज़ कम पर गए! बधाई!
उन सड़कों की बात नहीं करता कोई
जवाब देंहटाएंजिनसे हो कर अक्सर लोग गुज़रते हैं
kya bat kya bat kya bat...
wahh..
जवाब देंहटाएंlajawab
लाजवाब दिगंबर भाई लाजवाब...वाह...
जवाब देंहटाएंहाय! यह तो बिन पढ़े छूटे जा रहा था!!
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति सुंदर ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना सर....बधाई.
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ..? लाजवाब , बेमिसाल , बेहतरीन..
जवाब देंहटाएंहाथों को पतवार बना कर निकले जो
जवाब देंहटाएंसागर में जाने से कब वो डरते हैं ....बेमिसाल, लाजवाब