गज़लों के दौर से निकल कर हाजिर हूँ आज कविता के साथ ... आशा है आपको पसंद आएगी ...
अब जबकि हमारे बीच कुछ नही
पता नहीं क्यों तेरी मोहिनी
अब भी मुझे बांधे रखती है
ठुकरा नहीं पाता
तेरी आँखों का मौन आमंत्रण
उन्मादी पहलू का मुक्त निमंत्रण
जबकि कई बार
तेरी धूप की तपिश
अपनी पीठ पे महसूस करने के बावजूद
जेब में नहीं भर सका
तेरे बादलों की बरसात
मुझे भिगोती तो है
पर हर बार उफनती नदी सी तुम
किनारे पे पटक
गंतव्य को निकल जाती हो
मुट्ठी में बंद करने के बावजूद
हाथों की झिर्री से हर बार
चुप-चाप फिसल जाती हो
तेरी मरीचिका में बंधा मेरा वजूद
करीब होकर भी तुझे छू नहीं पाता
तेरी कस्तूरी की तलाश में
कुलांचें मारता हूँ
थकता हूँ गिरता हूँ उठता हूँ
फिर कुलांचें मारता हूँ
हाँ मुझे मालुम है
हमारे बीच कुछ नहीं
पर लगता है ... समझना नहीं चाहता
और वैसे भी क्या पता
साँसों का सिलसिला कब तक रहेगा
जबकि कई बार
जवाब देंहटाएंतेरी धूप की तपिश
अपनी पीठ पे महसूस करने के बावजूद
जेब में नहीं भर सका
सिर्फ़ यही कह सकती हूँ ………
एक अनजाना चेहरा
अनजाना अहसास
है यहीं कहीं आस पास्…………
बताओ कैसे कहूँ
दूर हो तुम मुझसे…………
वजूद ही तो मोहब्बत का प्रमाण नही होता ना।
कविता में प्यारे एहसासों के साथ एक निराशा का भी भाव है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
तेरी मरीचिका में बंधा मेरा वजूद
जवाब देंहटाएंकरीब होकर भी तुझे छू नहीं पाता
तेरी कस्तूरी की तलाश में
कुचालें मारता हूँ
....आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना नासवा जी
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंपढकर मन मग्न हो गया है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आपके शब्द बहुत प्रभावित करते है....नासवा जी
जवाब देंहटाएंनासवा जी ,बधाई
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह अहसासों से भरी सुंदर कविता ...
मुट्ठी में बंद करने के बावजूद
हाथों की झिर्री से हर बार
चुप-चाप फिसल जाती हो |
आप का इंतज़ार है यहाँ !
http://ashokakela.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html
कविता में प्यार में आने वाले उतार चढ़ाव के भावों का सुंदर समावेश है ....
जवाब देंहटाएंGazal ki tarah hi aapki kavita bhi bemisaal.
जवाब देंहटाएंKhoobsurat rachna. . .
Aabhaar....!!
भावों की गाँठ विचित्र बँधी होती है, खुलने पर भी निशान रह जाते हैं।
जवाब देंहटाएंनासवा जी, उत्कृष्ट रचना है ये कशमकश.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही खुबसूरत बेहतरीन रचना ..
जवाब देंहटाएंतेरी मरीचिका में बंधा मेरा वजूद
जवाब देंहटाएंकरीब होकर भी तुझे छू नहीं पाता
तेरी कस्तूरी की तलाश में
कुचालें* मारता हूँ
थकता हूँ गिरता हूँ उठता हूँ
फिर कुचालें मारता हूँ
सर!बहुत ही अच्छी लगी कविता।
"कुचालें* मारता हूँ"
यह कुलाचें होगा न सर!
सादर
मन के कशमकश को दर्शाती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंतेरी मरीचिका में बंधा मेरा वजूद
जवाब देंहटाएंकरीब होकर भी तुझे छू नहीं पाता
तेरी कस्तूरी की तलाश में
कुचालें मारता हूँ
थकता हूँ गिरता हूँ उठता हूँ
फिर कुचालें मारता हूँ .... बहुत ही सारगर्भित रचना , जिसमें हार के भी मनोबल नहीं टूटता , खुद पर विश्वास है
एक बंधन, जिससे छोटने का प्रयास उसे और बंधने को मजबूर करता है..जितना उसके सम्मोहन से मुक्त होने की चेष्टा करें, उतना ही बाँध लेता है सम्मोहन.. गज़ल की तरह कविता भी भावों का नयापन लिए..
जवाब देंहटाएंआँख से आँख मिलाता है कोई,
दिल को खेंचे लिए जाता है कोई!!
:-) sundar kavita
जवाब देंहटाएंतेरे बादलों की बरसात
जवाब देंहटाएंमुझे भिगोती तो है
पर हर बार उनफती नदी सी तुम
किनारे पे पटक
गंतव्य को निकल जाती हो
वाह ! बेहतरीन नासवा जी !!
जब पता चल ही गया कि वह मरीचिका है,फिर वहां कस्तूरी की खोज कैसे?
जवाब देंहटाएंमिश्रित सा भाव उठा दिया आपने..
जवाब देंहटाएंतेरे बादलों की बरसात
जवाब देंहटाएंमुझे भिगोती तो है
पर हर बार उनफती नदी सी तुम
किनारे पे पटक
गंतव्य को निकल जाती हो
कविता भी गज़ल जैसे ही सुंदर भाव. सुंदर प्रस्तुति.
शुभकामनायें.
तेरी मरीचिका में बंधा मेरा वजूद
जवाब देंहटाएंकरीब होकर भी तुझे छू नहीं पाता
तेरी कस्तूरी की तलाश में
कुचालें मारता हूँ
थकता हूँ गिरता हूँ उठता हूँ
फिर कुचालें मारता हूँ
Aah!
ठुकरा नहीं पाता
जवाब देंहटाएंतेरी आँखों का मौन आमंत्रण
उन्मादी पहलू का मुक्त निमंत्रण ...
Awesome !
.
BEHAD SUNDAR!
जवाब देंहटाएंबहुत सुमधुरु कविता...
जवाब देंहटाएंधूप की तपिश को मुट्ठी में कौन बाँध सका है..
मगर इस कविता ने बाँध लिया....
अन्त में जाते-जाते हथियार क्यों डाल दिए हैं आपने?
जवाब देंहटाएंयह अहसास प्रेमिका के लिये भी हो सकता है देश के लिये भी । सुंदर अति सुंदर । चाहे लगे कि कुछ नही पर कुछ ना कुच ते हमेशा रहता ही है ।
जवाब देंहटाएंउफनती होना चाहिये उनफती की जगह और कुलांचें कुचालें की जगह ।
आपकी प्रवि्ष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!
खुबसूरत एहसासों से भरी सुन्दर रचना सर....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
achchi lagi kavita ...
जवाब देंहटाएंकविता भी सुन्दर , आपकी ग़ज़लों की तरह ।
जवाब देंहटाएंप्यार में कुछ कुछ ऐसा ही होता है ।
क्या सभी प्रेमी अंत में निराश हो जाते हैं ?
ओह वियोग की कितनी गहनता !
जवाब देंहटाएंये तू और तुम का फासला क्यों रखा है। इसे भी मिटा डालिए।
जवाब देंहटाएंतेरे बादलों की बरसात
जवाब देंहटाएंमुझे भिगोती तो है
पर हर बार उफनती नदी सी तुम
किनारे पे पटक
गंतव्य को निकल जाती हो
सुंदर भाव अच्छे लगे !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआशा निराशा और प्यार के बीच में कुछ ऐसा ही होता है,...खुबशुरत प्रस्तुति,.....
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट में इंतजार है,...
कुछ तो है तेरे मेरे दरमयां
जवाब देंहटाएंजिसे हम कह नही पाते
और तुम समझ नही पाते
अगर समझ जाते तुम तो
मोह्हबत कि तासीर से बच नही पाते.
उम्दा रचना. आभार.
हाँ मुझे मालुम है
जवाब देंहटाएंहमारे बीच कुछ नहीं
पर लगता है ... समझना नहीं चाहता
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...
antas k gehre bhaavo ko sunder shabdo me dhaalti sunder abhivyakti.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत एहसास...वैसे एक पर्सनल राय है...
जवाब देंहटाएंइस राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जायेगा...
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भुलाने की दुआ करो...
नदी बदल दो...डूबने के लिए...
उत्कृष्ट रचना...........
जवाब देंहटाएंतेरी मरीचिका में बंधा मेरा वजूद
जवाब देंहटाएंकरीब होकर भी तुझे छू नहीं पाता
मन की उलझन भरे भाव... नाज़ुक अहसास
तेरी मरीचिका में बंधा मेरा वजूद
जवाब देंहटाएंकरीब होकर भी तुझे छू नहीं पाता
मन की उलझन भरे भाव... नाज़ुक अहसास
Bahut hi Sunder Kavita....
जवाब देंहटाएंये वो राह है जिसमें मालूम है कि फिसलन है फिर भी चलने में मज़ा आता है।
जवाब देंहटाएंसुंदर बिंबों के सहारे मंत्र मुग्ध कर देने वाले अहसास जगाये हैं आपने। गज़ल न होकर भी यह कविता गज़ल की तरह तरंगित करती है मन को।
जवाब देंहटाएंएक अच्छा संदेश है इस कविता मे।
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों का संगम ...
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढि़या अभिव्यक्ति ।
प्रेम में मरीचिका सा आकर्षण और बींधने की कूवत होती है .और बस प्रेमी भागता रहता है मरीचिका को पकड़ने .एक राग लिए है उफान लिए है ज्वार लिए है भावना का अतृप्ति का पूरी कविता एक अधूरापन छोड़ जाती है .
जवाब देंहटाएंप्रेम की अटल गहराइयों से उपजी कविता...
जवाब देंहटाएंवजूद तेरा आज भी जज्ब है मेरे जर्रे जर्रे में ..बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंतेरे बादलों की बरसात
जवाब देंहटाएंमुझे भिगोती तो है
पर हर बार उफनती नदी सी तुम
किनारे पे पटक
गंतव्य को निकल जाती हो .
भावपूर्ण और प्रवाहमयी खूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ..!
जवाब देंहटाएंगज़लों की तरह यह मुक्तक भी अच्छा बन पड़ा है.
जवाब देंहटाएंआपको पढ़ना हमेशा सुखद रहता है ,पता नहीं बीच में फीड क्यों नहीं आई मेरे पास ?
आभार आपका !
कोमल भावनाओं में डूबी उत्कृष्ट रचना बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंkhubsurat ehsason se saji sundar rachana...
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 08 -12 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज... अजब पागल सी लडकी है .
खूबसूरत! मुश्क छिपती नहीं, मुहब्बत बन्धती नहीं!
जवाब देंहटाएंभावुक, मोहक, हृदयस्पर्शी प्रेमोद्गार....वाह !!!!!
जवाब देंहटाएंभावों से नाजुक शब्द......बेजोड़ भावाभियक्ति....
जवाब देंहटाएंnamaskar nasva ji
जवाब देंहटाएंअब जबकि हमारे बीच कुछ नही
पता नहीं क्यों तेरी मोहिनी
अब भी मुझे बांधे रखती है ........bahut hi sunder rachna . bhavo ka sunder chitran . badhai swikar karen
जबकि कई बार
जवाब देंहटाएंतेरी धूप की तपिश
अपनी पीठ पे महसूस करने के बावजूद
जेब में नहीं भर सका..
javaab nahi bahut gahan abhivykati...
आदरणीय
जवाब देंहटाएंग़ज़ल की दुनिया से बहार निकलकर कविता से जुड़ने का यह एहसास अच्छा है.... मगर हमें तो आपकी ग़ज़ल का ही इन्तिज़ार है
तेरे बादलों की बरसात
मुझे भिगोती तो है
पर हर बार उफनती नदी सी तुम
किनारे पे पटक
गंतव्य को निकल जाती हो
कविता का यह अंश बहुत सुन्दर है
बेहद गंभीर प्रेम की कविता... बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंजबकि कई बार
जवाब देंहटाएंतेरी धूप की तपिश
अपनी पीठ पे महसूस करने के बावजूद
जेब में नहीं भर सका
सुन्दर बिम्बों से सजी संवेदना को झकझोरती बेहतरीन कविता !
आभार !
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जवाब देंहटाएंFrom Great talent
मार ही डालोगे क्या प्रभु....वाई दिस केलावरी.................
जवाब देंहटाएंप्रिय दिगम्बर जी सुन्दर रचना --भावपूर्ण प्रस्तुति ...सच कहा आप ने .....साँसों का सिलसिला कब तक रहेगा
जवाब देंहटाएंआभार
भ्रमर ५ ....
तेरी मरीचिका में बंधा मेरा वजूद
करीब होकर भी तुझे छू नहीं पाता
तेरी कस्तूरी की तलाश में
कुलांचें मारता हूँ
थकता हूँ गिरता हूँ उठता हूँ
फिर कुलांचें मारता हूँ
बेमिसाल कविता...बहुत कुछ कह गई।
जवाब देंहटाएंखूब सूरत रचना ,लिखी आपने भोगा हमने भी है यह यथार्थ भाव .
जवाब देंहटाएंतेरी मरीचिका में बंधा मेरा वजूद
करीब होकर भी तुझे छू नहीं पाता
तेरी कस्तूरी की तलाश में
कुलांचें मारता हूँ
थकता हूँ गिरता हूँ उठता हूँ
फिर कुलांचें मारता हूँ
हाँ मुझे मालुम है
हमारे बीच कुछ नहीं
पर लगता है ... समझना नहीं चाहता
और वैसे भी क्या पता
साँसों का सिलसिला कब तक रहेगा .
भाई साहब आपकी कई टिपण्णी स्पेम में पड़ी थीं अभी रिलीज़ करवाएँ हैं .शुक्रिया आपकी खूबसूरत आवा जाही का प्रोत्साहन का .
खूब सूरत रचना ,लिखी आपने भोगा हमने भी है यह यथार्थ भाव .
जवाब देंहटाएंतेरी मरीचिका में बंधा मेरा वजूद
करीब होकर भी तुझे छू नहीं पाता
तेरी कस्तूरी की तलाश में
कुलांचें मारता हूँ
थकता हूँ गिरता हूँ उठता हूँ
फिर कुलांचें मारता हूँ
हाँ मुझे मालुम है
हमारे बीच कुछ नहीं
पर लगता है ... समझना नहीं चाहता
और वैसे भी क्या पता
साँसों का सिलसिला कब तक रहेगा .
भाई साहब आपकी कई टिपण्णी स्पेम में पड़ी थीं अभी रिलीज़ करवाएँ हैं .शुक्रिया आपकी खूबसूरत आवा जाही का प्रोत्साहन का .
मैं जानता हूँ कि तू गैर है मगर यूँ ही.....
जवाब देंहटाएंकविता को बखूबी अंजाम दिया है.
ghazal...shaayri aur kavitayen...gazab ki hoti hain aapki..
जवाब देंहटाएंekdam awesome types :)
तेरे बादलों की बरसात
जवाब देंहटाएंमुझे भिगोती तो है
पर हर बार उफनती नदी सी तुम
किनारे पे पटक
गंतव्य को निकल जाती हो
......लाज़वाब....उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति..
अद्भुत सुन्दर ग़ज़ल! ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंजबकि कई बार
जवाब देंहटाएंतेरी धूप की तपिश
अपनी पीठ पे महसूस करने के बावजूद
जेब में नहीं भर सका
loved d way u express
regards
Naaz
behtarin rachana
जवाब देंहटाएंsundar bhavabhivykti....
ग़ज़लों की तरह कविता भी बेहतरीन
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयहाँ क्लिक करके आज ज़रूर डालें एक नज़र
जवाब देंहटाएंहाँ मुझे मालुम है
जवाब देंहटाएंहमारे बीच कुछ नहीं
पर लगता है ... समझना नहीं चाहता
...क्योंकि एक आस ही रह जाती है जीवित .....जो तिनका बन जाती है ....! सुन्दर !!!!!