कई बार
निकाल बाहर किया तेरी यादों को
पर पता नहीं
कौन सा रोशनदान खुला रह जाता है
सुबह की धूप के साथ
झाँकने लगती हो तुम कमरे के अंदर
हवा के ठन्डे झोंके के साथ
सिरहन की तरह दौड़ने लगती हो पूरे जिस्म में
चाय के हर घूँट के साथ
तेरा नशा बढ़ता जाता है
घर की तमाम सीडियों में बजने वाले गीत
तेरी यादों से अटे पड़े हैं
तेज़ संगीत के शोर में भी तुम
मेरे कानों में गुनगुनाने लगती हो
न चाहते हुवे भी एक ही सीडी बजाने लगता हूँ हर बार
तुम्हें याद है न वो गीत
अभी न जाओ छोड़कर .... के दिल अभी भरा नहीं ...
फिल्म हम दोनों ... देव आनंद और साधना ...
उलाहना देती रफ़ी की दिलकश आवाज़ ....
जाने कब नींद आ जाती है रोज की तरह
सो जाता हूँ तेरे एहसास का कम्बल लपेटे ...
हमेशा की तरह ...
वाह सर वाह....बहुत ही सुन्दर कविता...गहरे उतर गयी..
जवाब देंहटाएं'पर पता नहीं
जवाब देंहटाएंकौन सा रोशनदान खुला रह जाता है'
प्यारे एहसासों की बात करती कविता की सबसे प्यारी पंक्ति...!
यादों का रोशनदान ही जो बंद नहीं होता .. सुन्दर और भावमयी रचना ..
जवाब देंहटाएंशब्दों में सिमटे भावों के बेहतरीन फूलों ने यादों के गुलदस्ते को बहुत ही खूबसूरत बना दिया है !
जवाब देंहटाएंआभार !
'पर पता नहीं
जवाब देंहटाएंकौन सा रोशनदान खुला रह जाता है'
वाह ..बहुत खूब ।
बहुत खूब बहुत सुन्दर कोई रोशनदान हमेशा ही यादों का खुला रह जाता है ....
जवाब देंहटाएंपर पता नहीं
जवाब देंहटाएंकौन सा रोशनदान खुला रह जाता है
Bahut khub...
bade apne se vichare lage....
www.poeticprakash.com
कमाल की नज़्म है नासवा जी, बहुत गहराई लिए हुए.
जवाब देंहटाएंकहाँ कहीं रुक पाती यादें,
जवाब देंहटाएंकहाँ छोड़कर जाती यादें।
वाह नासवा जी . सुन्दर प्रेममयी काविता .
जवाब देंहटाएंदिल तो चीज़ ही ऐसी है --कभी भरता ही नहीं .
जाने कितनी यादें समेटे रहता है .
ऐसे व्यक्ति का रास्ता यदि बदला जाए,तो वह अध्यात्म के शीर्ष पर पहुंच सकता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...यादों का रौशनदान... बहुत सुन्दर अहसास...
जवाब देंहटाएंसो जाता हूँ तेरे एहसास का कम्बल लपेटे ...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह ..
बेहद ख़ूबसूरत कविता....
जाने कब नींद आ जाती है रोज की तरह
जवाब देंहटाएंसो जाता हूँ तेरे एहसास का कम्बल लपेटे ...
हमेशा की तरह ...
गजब का लिखे हैं सर!
सादर
घर की तमाम सीडियों में बजने वाले गीत
जवाब देंहटाएंतेरी यादों से अटे पड़े हैं
तेज़ संगीत के शोर में भी तुम
मेरे कानों में गुनगुनाने लगती हो
न चाहते हुवे भी एक ही सीडी बजाने लगता हूँ हर बार
Waah !
नासवा साहब, बुरा न माने तो आपकी इस बहुत सुन्दर कविता की शुरू की चंद लाईने कुछ परिवर्तन की गुंजाइश रखती है ! क्योंकि कविता का शुरुआती थीम यह है कि मैंने तो तुम्हारी यादों को कई बार दिल से या फिर घर से निकाल बाहर किया मगर कोई न कोई रोशन दान खुला रह जाता है और तुम्हारी यादें फिर से अन्दर आ जाती है ! नीचे ब्रेकेट में सुझाव यदि उचित लगे तो
कई बार चाहा (कई बार )
तेरी यादें निकाल बाहर करूं (निकाल बाहर किया तेरी यादों को )
पर पता नहीं
कौन सा रोशनदान खुला रह जाता है
यादों को शायद रोशनदान की भी जरुरत नहीं.कमबख्त कहाँ कहाँ से चली आती हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता.
अति सुन्दर |
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं ||
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सो जाता हूँ तेरे एहसास का कम्बल लपेटे ...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह ...
अहसासो के कम्बल मे ही तो
उनका बसेरा है
फिर कहो कैसे
जुदा हुआ जा सकता है
अहसास कब किसी
याद के पिंजर मे कैद हुये हैं ………
अहसास तो बस
सांसों की सरगम पर
धडकनो सा धड्कते हैं …………
अब चाहे रौशनदान कोई
कितना भी बंद कर ले
क्या फ़र्क पडता है ………
रूह मे पैबस्त अहसास कब जुदा हुये हैं
अब इसके बाद और क्या कहूँ नासवा जी
एक तो याद और उसका रोशनदान से आना... बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएं"अहसासों का कम्बल लपेटे...."
जवाब देंहटाएंवाह! अलहदा ख्यालों से सजी, शादाब घांस सी मुलायम और सुबह की धुप सी गुनगुनी रचना है सर....
सादर बधाई...
ये यादें ना होती तो ये सपने ना होते,ये सपने ना होते तो ये गीत भी ना होते,सर जी,आपकी भावभीनी प्रस्तुति ने कुछ और नज़्म ताज़ा कर दिये.सादर आभार.
जवाब देंहटाएंये यादें ना होती तो ये सपने ना होते,ये सपने ना होते तो ये गीत भी ना होते,सर जी,आपकी भावभीनी प्रस्तुति ने कुछ और नज़्म ताज़ा कर दिये.सादर आभार.
जवाब देंहटाएंbahut sundar...
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता !!
जवाब देंहटाएंयादें होती ही हैं ऐसी
सो जाता हूँ तेरे एहसास का कम्बल लपेटे ...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह ...
वाह!!! बहुत ही सुंदर भावों से रची बेहद खूबसूरत भावम्यी रचना http://mhare-anubhav.blogspot.com/
http://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_13.html
समय मिले कभी तो आयेगा मेरे दूसरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है
आपकी प्रवि्ष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!
bahut khoob...
जवाब देंहटाएंदेवानंद को याद करने का यह तरीका पसंद आया।
जवाब देंहटाएंस्मृतियाँ मार्ग तलाश ही लेती हैं.... बहुत बढ़िया लगी रचना
जवाब देंहटाएंyaaden khud-b-khud aa jaati hain, unse door kaise raha ja sakta hai..
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti..
बहुत सुंदर रचना ,बढ़िया पोस्ट .....
जवाब देंहटाएंwaaaah...totally awesome post!!!shaandar :) :)
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है खूबसूरत रचना ,
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंसुबह की धूप के साथ
जवाब देंहटाएंझाँकने लगती हो तुम कमरे के अंदर
हवा के ठन्डे झोंके के साथ
सिरहन की तरह दौड़ने लगती हो पूरे जिस्म में
चाय के हर घूँट के साथ
तेरा नशा बढ़ता जाता है
kya nahin ho tum !
कई बार चाहा
जवाब देंहटाएंतेरी यादें निकाल बाहर करूं
पर पता नहीं
कौन सा रोशनदान खुला रह जाता है
कोमल -कोमल प्यारा सा एहसास ..कुछ गुदगुदाता सा .....!!
सो जाता हूँ तेरे एहसास का कम्बल लपेटे ... क्या बात है...........खूबसूरत एहसास .
जवाब देंहटाएंआहा...दिल के नरम अहसासों के साथ ...खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर...
जवाब देंहटाएंयादें... हीं तो बचे जीवन का सहारा हैं!
अपना तो नासवा जी ...
शुभकामनाएँ! आपको ...आपकी अच्छी यादों के
लिए ....!
अहसासों का अलग करना इतना आसान है क्या ?
जवाब देंहटाएंभाई दिगम्बर जी बहुत ही सुंदर कविता है |बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी अविव्यक्ति...लीजिए इसी के साथ आपको फोल्लो भी कर लिया ताकि ये साथ हमेशा बना रहे.
जवाब देंहटाएंपास हो तो दुःख दूर हो तो भी तकलीफ !
जवाब देंहटाएंउफ्फ ये याद भी ना ? इतनी आसानीसे भुलाया नहीं जाता यादों को
सहेज कर रखे ! सुंदर है .....
pata hai yado ko ham hi apne ehsaso se zinda rakhte hain..to kaise band kar sakte hain un roshandano ko.
जवाब देंहटाएंsunder abhivyakti.
bahut sundar...
जवाब देंहटाएंप्रेम की भाव पूर्ण अभिव्यक्ति...वाह !!!
जवाब देंहटाएंमानव मन की कोमल यादों को बख़ूबी शब्द दिये हैं आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना और साथ ही सांकेतिक रूप से देव साहब को श्रद्धांजलि भी दे दी है आपने।
जवाब देंहटाएंयादों का सुन्दर गुलदस्ता..यादों से ही जीवन आगे बढ़ती है.. बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंयादों में खो जाने के लिए प्रेरित करती हुई सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंkisi achhi buri yaad ko bhulana aasan nahi.. .jab tab ye hamare saamne aa hi jaati hai...
जवाब देंहटाएंsundar jharokha prastut kar yaad ko jiwant bana diya aapne..
aabhar!
हाँ....कमबख्त यादें....
जवाब देंहटाएंना जीने देती हैं, ना मरने देती हैं
पहली बार आई हूँ आपके ब्लॉग पर
आना सुखद रहा....
आभार
joining ur blog...
नाज़
प्रेम की भाव पूर्ण अभिव्यक्ति| बधाई।
जवाब देंहटाएंकमबख्त यादें ...
जवाब देंहटाएंकई बार
निकाल बाहर किया तेरी यादों को
पर पता नहीं
कौन सा रोशनदान खुला रह जाता है
ehsaason ke samundar me gehre dubki lagvaati mohini rachnaa .
एहसासों के समुन्दर में अपने ही हमारे व्यतीत में गहरे डुबोती रचना .देव साहब का जाना हमारे अपने अतीत के नायक का हमारी अपनी अदा और हेयर स्टाइल की प्रेरणा का जाना है .हमारा हीरो -शून्य हो जाना है .
जवाब देंहटाएंअपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे,
जवाब देंहटाएंइश्क के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए!!
वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!! लाजवाब!!!
bhaut khubsurat.....
जवाब देंहटाएंसुबह की धूप के साथ
जवाब देंहटाएंझाँकने लगती हो तुम कमरे के अंदर
त्तब धूल के झिलमिल कणों में तुम्हारा
अक्स झलक जाता है।
बहुत अच्छी रचना।
पता नहीं किसको याद कर रहे हैं आप..!
जवाब देंहटाएंचाय के हर घूँट के साथ
जवाब देंहटाएंतेरा नशा बढ़ता जाता है
....न चाहते हुवे भी एक ही सीडी बजाने लगता हूँ हर बार .....सो जाता हूँ तेरे एहसास का कम्बल लपेटे ...
हमेशा की तरह ...सो जाता हूँ तेरे एहसास का कम्बल लपेटे ...
हमेशा की तरह ...behtarin is rachna kee in panktiyon ne mujhe behad prafullit kiya...ahasaason ko jaagati ek shandaar rachna,,,sadar pranam ke sath
बढ़िया रचना ...अभिव्यक्ति को सुंदर रूप दिया है नासवा जी !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
यादों और गीतों में रिश्ता गहरा है
जवाब देंहटाएंहर इक पृष्ठ पुराना अभी सुनहरा है
रोशनदान से आना-जाना ही बेहतर
इन राहों पर नहीं किसी का पहरा है.
आस अधूरी,प्यास अधूरी रहने दो
कौन मुसाफिर सारा जीवन ठहरा है.
नहीं बहाना करो चिरागों, तारों का
अभी न जाओ छोड़,राह में कोहरा है.
(अधूरी आस छोड़कर, अधूरी प्यास छोड़कर,
सितारे झिलमिला उठे, चराग जगमगा उठे)
से साभार
पता नहीं कौन सा रोशन दान खुला रह जाता है...
जवाब देंहटाएंमेरे मन स्थिति के जैसे कविता... मेरे ही क्या अधिकांश के मन स्थिति के जैसी कविता...
bahut bhaauk kavita, badhai.
जवाब देंहटाएंन जाओ हमें छोड़कर....फिर भी वो चले जाते है,याद बहुत आते हैं !
जवाब देंहटाएंBahut achchha likha hai aapne.
जवाब देंहटाएं"एहसासों का कम्बल" और "यादों के रौशनदान" ..... बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंयादों का रौशनदान यूँ ही खुला रहे..और हम भी मह्स्सोस करते रहे उससे आती गुनगुनी धूप को...:)
जवाब देंहटाएंखूबसरत एहसास को बेहद खूबसूरती के साथ शब्दों में ढाला है.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंहमारा मुकम्मल वजूद यही तो है .
जवाब देंहटाएंbahut hi gahare bhav ,gahare ahsas liye sundar abhivykti hai....
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar....
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