स्वप्न मेरे: मेरा अस्तित्व ...

बुधवार, 25 जनवरी 2012

मेरा अस्तित्व ...

लम्हा लम्हा
तुम जलती रहीं
कतरा कतरा
मैं पिघलता रहा

बूँद बूँद टपकता मेरा अस्तित्व
धीरे धीरे समुन्दर सा होने लगा
मेरे होने का एहसास
कहीं गहरे में डूब गया

तुम अब भी जल रही हो

ये बात अलग है
तिल तिल ये समुन्दर अब सूखने लगा है
धुंवा धुंवा मेरा एहसास
अब खोने लगा है

गरमाने लगी है कायनात
सूख रहे हैं धरती के होठ

हाँ ... मुझे भी तो एक मूसलाधार बारिश की
सख्त जरूरत है

83 टिप्‍पणियां:

  1. आपके इस उत्‍कृष्‍ठ लेखन का आभार ...

    ।। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ।।

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  2. बहुत सुन्दर..
    हर शब्द में भीगे एहसास रचे बसे हुए...
    सादर.

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  3. सुन्दर कविता... मुसलाधार बारिश एक बिम्ब बन कर उभरा है इस कविता में... गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये...

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  4. गरमाने लगी है कायनात
    सूख रहे हैं धरती के होठ

    हाँ ... मुझे भी तो एक मूसलाधार बारिश की
    सख्त जरूरत है ………………

    आखिर कब तक रेगिस्तान की रेत फ़ांके कोई…………बरखा तो वहाँ भी बरसती है

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  5. Kya gazab kee rachana hai!
    Gantantr diwas kee anek shubh kamnayen!

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  6. मैं पिघलता रहा

    बूँद बूँद टपकता मेरा अस्तित्व
    इन पंक्तियों का सच ..बहुत ही गहरे उतर गया..नमन आपकी लेखनी को ...।

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  7. इस शीतलहर में भी इतनी आग? मामला गंभीर है।

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  8. हाँ ... मुझे भी तो एक मूसलाधार बारिश की
    सख्त जरूरत है

    और काश कि वह बारिश बिन बदरा गरजे, बिन तूफ़ान चले हो.....!

    बहुत सुन्दर नासवा साहब !

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  9. गैर रूमानी सिम्बलों से एक रूमानी नज़्म लिखने का हुनर कोइ आपसे सीखे!! भीग रहा हूँ उस बारिश में!!

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  10. हाँ ... मुझे भी तो एक मूसलाधार बारिश की
    सख्त जरूरत है

    bahut hi sundar !!

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  11. ’मुझे भी तो एक मूसलाधार बारिश की सख्त ज़रूरत है” भावों का सागर उमड-घुमड रहा है,आपकी इस प्रस्तुति में.-

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  12. भावों को क्या खूब बाँधा है आपने ....

    बहुत बहुत सुन्दर...

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  13. ओह हो...मूसलाधार बारिश की जरुरत..
    वाह बहुत खूब.

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  14. vah kya khoob likha hai apne ....Naswa ji badhai ....bhai ak photo to profile me laga dijiye shayad jindgi ke kisi mod pr mulakat ho to pahchan sakun.

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  15. बहुत गहरे भाव लिए रचना |
    आशा

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  16. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
    ----------------------------
    कल 26/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  17. बूँद बूँद टपकता मेरा अस्तित्व
    धीरे धीरे समुन्दर सा होने लगा
    मेरे होने का एहसास
    कहीं गहरे में डूब गया

    तुम अब भी जल रही हो
    aur main pighal raha hun

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  18. इसे ही निश्वार्थ प्रेम और त्याग कहते है ! जलती हुयी मोमबत्ती ! गहरे भाव ! बहुत - बहुत धन्यवाद

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  19. अंतिम पंक्तियाँ जान डाल गईं हो जैसे पूरी रचना में...गहराई है शब्दों में समंदर सी... आभार

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  20. हाँ - बारिश की ज़रुरत तो होती ही है ......
    लेकिन -
    बारिश न हो तो समंदर भी सूख जाय करते हैं क्या ?

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  21. बूँद बूँद टपकता मेरा अस्तित्व
    धीरे धीरे समुन्दर सा होने लगा
    मेरे होने का एहसास
    कहीं गहरे में डूब गया

    ....बहुत खूब! बेहतरीन प्रस्तुति..

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  22. खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |

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  23. दिगंबर जी सच कहूँ आपकी रचनाएँ मुझे हतप्रभ कर देती हैं...मुझे ये समझ नहीं आता कोई लगातार इतना अच्छा कैसे लिख सकता है ? कैसे आप अपने भावों को शब्द देते हैं ? कमाल है...आपकी इस रचना को पढ़ कर नि:शब्द हो गया हूँ...सहच अब शब्दों में प्रशंशा संभव नहीं लगती...जियो...भाई जियो

    नीरज

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  24. इस बारिश की ज़रूरत हम में से हरेक को होती है.

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  25. वाह बेहद उत्कृष्ट लेखन...बहतरीन अभिव्यक्ति

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  26. शब्द चयन और शिल्प के साथ यह रचना बेजोड़ है।

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  27. ओह!!.. गहरे अहसास से परिपूर्ण रचना

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  28. सुंदर प्रस्तुति,रूमानी भावपूर्ण अच्छी रचना,..
    WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....

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  29. लम्हा लम्हा
    तुम जलती रहीं
    कतरा कतरा
    मैं पिघलता रहा
    वाह...बेहद पसंद आई आप की यह रचना
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
    vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........

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  30. बेहतरीन भाव।
    सुंदर रचना।

    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....

    जय हिंद... वंदे मातरम्।

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  31. पहले समंदर सा विस्तार और फिर उसके सूखने का दर्द .....
    वाकई विचारणीय अहसास

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  32. बहुत सुन्दर, बारिश ज़रूर हो! दिगम्बर जी।

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  33. ऐसी बरसात की शायद सभी को आवश्‍यकता रहती है। शुभकामनाएं।

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  34. गरमाने लगी है कायनात
    सूख रहे हैं धरती के होठ

    हाँ ... मुझे भी तो एक मूसलाधार बारिश की
    सख्त जरूरत है
    बहुत खूब भाई साहब .कभी कभार स्पेम भी चेक किया करें आपकी फतवों पर महत्वपूर्ण टिपण्णी अभी अभी स्पेम में से निकाली है .शुक्रिया आपके ब्लॉग दर्शन का .

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  35. यही प्रेम है शायद. हम प्यार में जलने वालों को चैन कहाँ ...

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  36. तिल तिल समंदर का सूखना और कतरा कतरा पिघलना .. खूबसूरत नज़्म

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  37. .बढ़िया वृतांत... गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना

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  38. ऐ अबरे करम जरा थम के बरस को वो आ सके .

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  39. वाह बहुत खूब
    शब्द शब्द में गहराई छिपी हैं प्यार की

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  40. गहरे अहसास एवं सुंदर भाव लिये बेहतरीन रचना है

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  41. सुंदर प्रस्तुति..... आपको गणतन्त्र दिवस की शुभकामनायें.....

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  42. अगर ऎसी भावनाएं शब्दों में पिरोयी जाएँ तो मूसलाधार बारिश ज़रूर होती है.

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  43. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

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  44. भींगने को बेताब अस्तित्व.. सुन्दर लिखा है

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  45. राम राम जी,

    बहुत ही सुन्दर.... अति सुन्दर प्रस्तुति...


    कुँवर जी,

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  46. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  48. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  49. बहुप्रतीक्षित है यह बारिश, सबके लिये..
    अत्यन्त प्रेरक कविता..

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  50. हमेशा की तरह गहरी रचना ने नि:शब्द कर दिया....वाह !!!

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  51. वाह ..बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  52. गलती से सारी टिप्पणियां डिलीट हो गयीं...

    लाब्बोलाबाब कुछ इस प्रकार था कि...ये ग्लोबल वार्मिंग के लक्षण हैं...बारिश कभी भी हो सकती है...

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  53. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  54. होता है होता है नयी बारिशें कभी कभार ठूंठों में भी कोपलें उभार देती हैं :)

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  55. ये बात अलग है
    तिल तिल ये समुन्दर अब सूखने लगा है
    धुंवा धुंवा मेरा एहसास
    अब खोने लगा है

    सुंदर भाव, सुंदर सृजन।

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  56. अस्तित्व का ऐसा एहसास, अगर मौजूद हो, तो धरती हमेशा लहलहाती रहेगी। बिना बारिश के भी।

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  57. बूँद बूँद टपकता मेरा अस्तित्व
    धीरे धीरे समुन्दर सा होने लगा
    मेरे होने का एहसास
    कहीं गहरे में डूब गया
    अति सुन्दर......

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  58. बसंत पंचमी की शुभकामनायें

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  59. ये बात अलग है
    तिल तिल ये समुन्दर अब सूखने लगा है
    धुंवा धुंवा मेरा एहसास
    अब खोने लगा है
    vartmaan ke ye bhav neeras banaa sakte. ras varsha ka bhav nahin khona chahiye .Behtareen abhivyakti!

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  60. वाह! बहुत ख़ूबसूरत नज़्म! बहुत खूब लिखा है आपने!

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  61. गरमाने लगी है कायनात
    सूख रहे हैं धरती के होठ
    बारिश की सक्त जरुरत है .......
    बढ़िया रचना !

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  62. गौ वंश रक्षा मंच
    gauvanshrakshamanch.blogspot.com


    naye blog par aap saadr aamntrit hai....

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  63. आपकी रचनाएं आवाक कर देती हैं....
    अद्भुत संयोजन...
    सादर बधाई...

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  64. लम्हा लम्हा
    तुम जलती रहीं
    कतरा कतरा
    मैं पिघलता रहा

    बूँद बूँद टपकता मेरा अस्तित्व
    धीरे धीरे समुन्दर सा होने लगा
    मेरे होने का एहसास
    कहीं गहरे में डूब गया

    तुम अब भी जल रही हो
    .bahut hi khubsurat rachna .dil ko chu gayi . awasome . badhai .

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है