स्वप्न मेरे: लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में ...

मंगलवार, 27 मार्च 2012

लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में ...

जिस्म काबू में नहीं और मौत भी मिलती नहीं
या खुदाया रहम कर अब जिंदगी कटती नहीं

वक्त कैसा आ गया तन्हाइयां हैं हम सफर
साथ में यादें हैं उनकी दिल से जो मिटती नहीं

लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं

हाथ में जुम्बिश नहीं है आँख में है मोतिया
उम्र के इस दौर में अपनों पे भी चलती नहीं

डूब के मर जाऊं जिसमें उम्र या वापस मिले
वो नदी अब तो हमारे शहर से बहती नहीं

टूट कर अपनी जड़ों से कब तलक रह पाओगे
खंडहरों की नीव लंबे वक्त तक रहती नहीं

धूप है बारिश कभी तो छाँव की बदली भी है
एक ही लम्हे पे आकर जिंदगी रूकती नहीं

67 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर ग़ज़ल। एक शेर का दुहराव हो गया है - लौटना बच्चों का...। आखिरी से पहले शेर में आकार को आकर कर लें।

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  2. किस शेर को छोडूँ और किसे पकडूँ …………शानदार गज़ल …………हर शेर ज़िन्दगी की परतें उधेड गया।

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  3. लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
    कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं .... सबसे प्रभावित करता शेर... बहुत सुन्दर...

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  4. बुजुर्ग भी शहरों में ही सारी सुविधाएं देखते हैं। बच्चे तो लौटना चाहते ही नहीं। गांव कहीं कहानियों में सिमट कर न रह जाएं।

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  5. बच्चे तो बस उड़ना जानते हैं और दर्द तो जड़ों को दे आते हैं..आह!

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  6. बहुत सुन्दर गजल है. सच्चाइयों को समेटे हुए.

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  7. बहुत बढ़िया ग़ज़ल है सर.... वाह!

    टूट कर अपनी जड़ों से कब तलक रह पाओगे
    खंडहरों की नीव लंबे वक्त तक रहती नहीं... सुन्दर सीख.

    सादर...

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  8. इश्वर भी इंसानों के बारे में ऐसा ही सोचता होगा जो दुनिया की उधेड़भुन में फंसे हुए हैं..

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  9. धूप है बारिश कभी तो छाँव की बदली भी है
    एक ही लम्हे पे आकर जिंदगी रूकती नहीं ...
    mind blowing....

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
    कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं
    गहरे उतरतीं पंक्तियाँ.

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  12. टूट कर अपनी जड़ों से कब तलक रह पाओगे
    खंडहरों की नीव लंबे वक्त तक रहती नहीं

    धूप है बारिश कभी तो छाँव की बदली भी है
    एक ही लम्हे पे आकर जिंदगी रूकती नहीं


    बहुत सुन्दर गजल.......

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  13. लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
    कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं
    गहन भाव लिए ... उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति

    कल 28/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ... मधुर- मधुर मेरे दीपक जल ...

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  14. धूप है बारिश कभी तो छाँव की बदली भी है
    एक ही लम्हे पे आकर जिंदगी रूकती नहीं

    शानदार ग़ज़ल हर शेर उम्दा....ये वाला खासकर।

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  15. हाथ में जुम्बिश नहीं है आँख में है मोतिया
    उम्र के इस दौर में अपनों पे भी चलती नहीं

    बुज़ुर्गों का दर्द कह गई ये पंक्तियाँ...

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  16. लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
    कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं

    ....बहुत मर्मस्पर्शी बेहतरीन गज़ल...हरेक शेर अंतस को भिगो गया..लाज़वाब

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  17. वक्त कैसा आ गया तन्हाइयां हैं हम सफर
    साथ में यादें हैं उनकी दिल से जो मिटती नहीं

    सारे ही शेर एक से बढ़कर एक हैं...

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  18. बुजुर्गों की जिंदगी की यही हकीक़त है, आखिरी वक़्त भी सुकून नहीं...फिर भी जिंदगी रूकती नहीं... लाजवाब शेर... आभार

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  19. अरवीला रविकर धरे, चर्चक रूप अनूप |
    प्यार और दुत्कार से, निखरे नया स्वरूप ||

    आपकी टिप्पणियों का स्वागत है ||

    बुधवारीय चर्चा-मंच

    charchamanch.blogspot.com

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  20. टूट कर अपनी जड़ों से कब तलक रह पाओगे
    खंडहरों की नीव लंबे वक्त तक रहती नहीं

    बेहतरीन गज़ल....हर शेर नगीना...

    सादर.
    अनु

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  21. वक्त कैसा आ गया तन्हाइयां हैं हम सफर
    साथ में यादें हैं उनकी दिल से जो मिटती नहीं

    लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
    कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं

    शानदार !

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  22. जिस्म काबू में नहीं और मौत भी मिलती नहीं
    या खुदाया रहम कर अब जिंदगी कटती नहीं
    Kuchh aisee hee halat ho rahee hai aaj kal meree!

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  23. टूट कर अपनी जड़ों से कब तलक रह पाओगे
    खंडहरों की नीव लंबे वक्त तक रहती नहीं ... एक गहरी सच्चाई

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  24. बहुत सुन्दर अश'आर से सुसज्जित बेहतरीन ग़ज़ल ।
    पलायन विकास में सहायक होता है लेकिन बुजुर्गों के लिए अनंत इंतजार ।

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  25. हर शेर गज़ब का है ... उम्र के इस पड़ाव में जो भी एक इंसान पर गुज़रती है .. अपने कह दिया .. बेहतरीन रचना !!

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  26. एक एक शेर आकर्षित करता है.. खींचता है और बुलाता है .. दाद के काबिल हैं सारे अशार!! एक बेहतरीन गज़ल!!

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  27. यूँ तो पूरी गज़ल बेहतरीन है...पर यह दो शेर बहुत अच्छे वक्त कैसा आ गया तन्हाइयां हैं हम सफर
    साथ में यादें हैं उनकी दिल से जो मिटती नहीं



    टूट कर अपनी जड़ों से कब तलक रह पाओगे
    खंडहरों की नीव लंबे वक्त तक रहती नहीं लगे

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  28. टूट कर अपनी जड़ों से कब तलक रह पाओगे
    खंडहरों की नीव लंबे वक्त तक रहती नहीं
    Wah ...Bahut Sunder

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  29. लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
    कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं

    हाथ में जुम्बिश नहीं है आँख में है मोतिया
    उम्र के इस दौर में अपनों पे भी चलती नहीं

    बहुत खूबसूरत गजल ... बुजुर्ग बच्चों का इंतज़ार ही कराते रह जाते हैं ॥चाहे वो गाँव हो या शहर

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  30. डूब के मर जाऊं जिसमें उम्र या वापस मिले
    वो नदी अब तो हमारे शहर से बहती नहीं

    मन छू गयी ये पंक्तियाँ।

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  31. Willingly I accept. In my opinion, it is an interesting question, I will take part in discussion. Together we can come to a right answer.

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  32. वक्त कैसा आ गया तन्हाइयां हैं हम सफर
    साथ में यादें हैं उनकी दिल से जो मिटती नहीं

    लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
    कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं

    हाथ में जुम्बिश नहीं है आँख में है मोतिया
    उम्र के इस दौर में अपनों पे भी चलती नहीं

    डूब के मर जाऊं जिसमें उम्र या वापस मिले
    वो नदी अब तो हमारे शहर से बहती नहीं
    ............waah bahut sunder gajal aapki post par aana hamesha sarthak hota hai diggambar ji ,

    hardik badhai sunder gajal ke liye , har line umda .:))))

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  33. टूट कर अपनी जड़ों से कब तलक रह पाओगे
    खंडहरों की नीव लंबे वक्त तक रहती नहीं
    वाह!
    यह सत्य महसूस कर लेने पर सारी समस्याएं हल हो जायेंगी शायद!

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  34. नासवा जी,बस ये ही सच है !
    एक ही लम्हे पे आकर जिंदगी रूकती नहीं
    चलती रहती है हमेशा,जिन्दगी झुकती नही||

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  35. लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
    कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं....
    इस शेर से अपने गाँव की याद ताजा हो गयी... अब गाँव में बाकी बच्चे नहीं रहे....उजाड़ लगता है गाँव

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  36. हर शेर बेहद खूबसूरती से लिखा गया ...बहुत खूब

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  37. वाह...हर शेर के लिए दाद कबूल करो मेरे शेर!!! जिन्दाबाद!!

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  38. और हाँ, शेरनी को भी प्रणाम...हा हा!!

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  39. BAHUT SUNDAR V SARTHAK PRASTUTI .BADHAI
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  40. नई पोस्ट पर आपका स्वागत है नासवा जी
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in/2012/03/blog-post_29.html

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  41. शानदार ग़ज़ल हर शेर उम्दा...नासवा जी

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  42. लौटना बच्चों का बाकी है अभी तक गाँव में
    कुछ बुजुर्गों की नज़र इस राह से हटती नहीं
    दिगंबर नासवा साहब ,ग़ज़ल को आपने नए तेवर नए आयाम ज़िन्दगी का दर्द दिया है .

    हाथ में जुम्बिश नहीं है आँख में है मोतिया
    उम्र के इस दौर में अपनों पे भी चलती नहीं

    ज़िन्दगी के विविध अक्स समेटे है यह ग़ज़ल बुजुर्गीयत का संत्रास .

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  43. कितनी वेदना छिपी है बुजुर्गो के ह्रदय में . काश कोई समझ पता . बेहतरीन भाव पन्नो पर .

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  44. टूट कर अपनी जड़ों से कब तलक रह पाओगे
    खंडहरों की नीव लंबे वक्त तक रहती नहीं
    bahut sunder
    rachana

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  45. हमेशा की तरह बेहद उम्दा रचना! सभी शेर बेहद पसंद आए।

    आपको श्रीरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ....

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  46. डूब के मर जाऊं जिसमें उम्र या वापस मिले
    वो नदी अब तो हमारे शहर से बहती नहीं

    लाजवाब करती अच्छी ग़ज़ल।

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  47. ग़ज़ल खूब बन पड़ी है जो वृद्धावस्था के एकाकीपन को संजीदगी के साथ उकेरती है. सुंदर.

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  48. हाथ में जुम्बिश नहीं है आँख में है मोतिया
    उम्र के इस दौर में अपनों पे भी चलती नहीं
    bilkul sahi kaha Bhai!

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  49. हृदय को स्पर्श करती हुई गजल....

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  50. बढती उम्र की व्यथा को उकेरते इससे अच्छे भाव इससे पहले नहीं पढ़े ....एक एक शब्द रो रहा है .....बहुत ही सुन्दर !!!!

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  51. मानवीय संवेदना को झकझोर दिया,दिगंबर कर दिया भाई !

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  52. आपका लिखा पढ़ती हूँ तो लगता है बस पढ़ती ही रहूँ....कितना सरल, सहज ओर दिल को छू लेने वाला

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  53. शीर्षक वाला शेर संजीदा है...बधाई !!!

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है