जंगल जाने की जो हिम्मत रखते हैं
काँटों की परवाह कहाँ वो करते हैं
पुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं
बच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
मोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं
दो आँसू तूफान खड़ा कर देते हैं
कहने को बस आँखों में ही पलते हैं
कलियों को इन पेड़ों पर ही रहने दो
गुलदस्ते में फूल कहाँ फिर खिलते हैं
तू तू मैं मैं होती है अब आपस में
गलियों में तंदूर कहाँ अब जलते हैं
बच्चों ने भी बचपन पीछे छोड़ दिया
कंप्यूटर की बातें करते रहते हैं
कहते हैं गुरु बिन गत नहीं ... उपरोक्त गज़ल में भी कुछ शेरों में दोष है और उसको गुरुदेव पंकज सुबीर जी की पारखी नज़र ने देख लिया ... उनका बहुत बहुत आभार गज़ल को इस नज़रिए से देखने का ... यहां मैं शेर के दोष और उनके सुझाव और विश्लेषण को लिख रहा हूँ जिससे की मेरे ब्लॉग को पढ़ने वालों को भी गज़ल की बारीकियां समझने का मौका मिलेगा ...
जंगल जाने की जो हिम्मत रखते हैं
काँटों की परवाह कहाँ वो करते हैं ( मतले में ईता का दोष बन रहा है किन्तु ये छोटी ईता है जिसे हिंदी में मान्य किया गया है । मतले के दोनों काफियों में रखते और करते में जो ‘ते’ है वो शब्द से हटने के बाद भी मुकम्मल शब्द ‘रख’ और ‘कर’ बच रहे हैं । इसका मतलब ‘ते’ रदीफ हो गया है । तो अब रदीफ केवल ‘हैं’ नहीं होकर ‘ते हैं’ हो गया है । बचे हुए ‘रख’ और ‘कर’ समान ध्वनि वाले शब्द अर्थात काफिया होने की शर्त पर पूरा नहीं उतर रहे हैं । खैर ये छोटी ईता है सो इसे हिंदी में माफ किया गया है । मगर वैसे ये है दोष ही । )
पुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं ( रदीफ और काफिये की ध्वनियों को मतले के अलावा किसी दूसरे शेर के मिसरा उला में नहीं आना चाहिये हुस्ने मतला को छोड़कर । तो इसको यूं किया जा सकता है ‘दूर कहां रह पाते हैं पुरखे हमसे’)
बच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
दो आँसू तूफान खड़ा कर देते हैं ( इसमें आाखिर में रदीफ का दोहराव और काफिये की ध्वनि का दोहराव है इसको यूं करना होगा ‘कर देते हैं दो आंसू तूफान खड़़ा )
कहने को बस आँखों में ही पलते हैं
तू तू मैं मैं होती है अब आपस में ( रदीफ की ध्वनि आ रही है इसको यूं करना होगा ‘आपस में होती है तू तू मैं मैं अब’ )
गलियों में तंदूर कहाँ अब जलते हैं
काँटों की परवाह कहाँ वो करते हैं
पुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं
बच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
मोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं
दो आँसू तूफान खड़ा कर देते हैं
कहने को बस आँखों में ही पलते हैं
कलियों को इन पेड़ों पर ही रहने दो
गुलदस्ते में फूल कहाँ फिर खिलते हैं
तू तू मैं मैं होती है अब आपस में
गलियों में तंदूर कहाँ अब जलते हैं
बच्चों ने भी बचपन पीछे छोड़ दिया
कंप्यूटर की बातें करते रहते हैं
कहते हैं गुरु बिन गत नहीं ... उपरोक्त गज़ल में भी कुछ शेरों में दोष है और उसको गुरुदेव पंकज सुबीर जी की पारखी नज़र ने देख लिया ... उनका बहुत बहुत आभार गज़ल को इस नज़रिए से देखने का ... यहां मैं शेर के दोष और उनके सुझाव और विश्लेषण को लिख रहा हूँ जिससे की मेरे ब्लॉग को पढ़ने वालों को भी गज़ल की बारीकियां समझने का मौका मिलेगा ...
जंगल जाने की जो हिम्मत रखते हैं
काँटों की परवाह कहाँ वो करते हैं ( मतले में ईता का दोष बन रहा है किन्तु ये छोटी ईता है जिसे हिंदी में मान्य किया गया है । मतले के दोनों काफियों में रखते और करते में जो ‘ते’ है वो शब्द से हटने के बाद भी मुकम्मल शब्द ‘रख’ और ‘कर’ बच रहे हैं । इसका मतलब ‘ते’ रदीफ हो गया है । तो अब रदीफ केवल ‘हैं’ नहीं होकर ‘ते हैं’ हो गया है । बचे हुए ‘रख’ और ‘कर’ समान ध्वनि वाले शब्द अर्थात काफिया होने की शर्त पर पूरा नहीं उतर रहे हैं । खैर ये छोटी ईता है सो इसे हिंदी में माफ किया गया है । मगर वैसे ये है दोष ही । )
पुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं ( रदीफ और काफिये की ध्वनियों को मतले के अलावा किसी दूसरे शेर के मिसरा उला में नहीं आना चाहिये हुस्ने मतला को छोड़कर । तो इसको यूं किया जा सकता है ‘दूर कहां रह पाते हैं पुरखे हमसे’)
बच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
दो आँसू तूफान खड़ा कर देते हैं ( इसमें आाखिर में रदीफ का दोहराव और काफिये की ध्वनि का दोहराव है इसको यूं करना होगा ‘कर देते हैं दो आंसू तूफान खड़़ा )
कहने को बस आँखों में ही पलते हैं
तू तू मैं मैं होती है अब आपस में ( रदीफ की ध्वनि आ रही है इसको यूं करना होगा ‘आपस में होती है तू तू मैं मैं अब’ )
गलियों में तंदूर कहाँ अब जलते हैं
बच्चों ने भी बचपन पीछे छोड़ दिया
जवाब देंहटाएंकंप्यूटर की बातें करते रहते हैं
बहुत बढ़िया रचना,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
बच्चे समय से पहले युवा हो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना सर.............
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति कोमल भाव से सजी........
पुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं
बच्चों की परछाई में ही दिखते हैं...
बहुत सुन्दर.
सादर
अनु
सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंसाहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
जवाब देंहटाएंमोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं
दो आँसू तूफान खड़ा कर देते हैं
कहने को बस आँखों में ही पलते हैं
बहुत उम्दा प्रस्तुति ।
तू तू मैं मैं होती है अब आपस में
जवाब देंहटाएंगलियों
में तंदूर कहाँ अब जलते हैं
सामाजिक परिवर्तन की टोह लेती ग़ज़ल .
waah बहुत सही लिखा है सुन्दर गजल बहुत पसंद आई यह ..
जवाब देंहटाएंकलियों को इन पेड़ों पर ही रहने दो
जवाब देंहटाएंगुलदस्ते में फूल कहाँ फिर खिलते हैं
bahut khub
पुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं
जवाब देंहटाएंबच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
अच्छी लगीं ये पंक्तियाँ.
सुन्दर गज़ल.
दो आँसू तूफान खड़ा कर देते हैं
जवाब देंहटाएंकहने को बस आँखों में ही पलते हैं -- बहुत गहरी पैठ ! बधाई
SACH KAHA HAI AAPNE ...AJ BACHCHON ME BHOLAPAN KAHIN KHO GAYA HAI ...SARTHAK RACHNA .AABHAR
जवाब देंहटाएंYE HAI MISSION LONDON OLYMPIC-LIKE THIS PAGE AND SHOW YOUR PASSION OF INDIAN HOCKEY -NO CRICKET ..NO FOOTBALL ..NOW ONLY GOAL !
पुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं
जवाब देंहटाएंबच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
सुन्दर गजल...
सादर.
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
जवाब देंहटाएंमोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं
खूबसूरत तरीके से सारी बातें कही है आपने
तू तू मैं मैं होती है अब आपस में
जवाब देंहटाएंगलियों में तंदूर कहाँ अब जलते हैं
...बहुत खूब! हरेक शेर जीवन की सच्चाई दर्शाता...बेहतरीन गज़ल
वाह ...बहुत ही खूब लिखा है आपने ..हर शब्द गहरे उतरते हुए
जवाब देंहटाएंकल 04/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... अच्छे लोग मेरा पीछा करते हैं .... ...
पुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं
जवाब देंहटाएंबच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
मोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं... bahut badhiya
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल.....हर शेर उम्दा।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंकलियों को इन पेड़ों पर ही रहने दो
गुलदस्ते में फूल कहाँ फिर खिलते हैं... waah .. !!
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
मोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं... bahut khoob ... !!
बुधवारीय चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंआप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
charchamanch.blogspot.com
कलियों को इन पेड़ों पर ही रहने दो
जवाब देंहटाएंगुलदस्ते में फूल कहाँ फिर खिलते हैं mere dil ki bat kah di ho jaise....
सुन्दर गजल बहुत ही लाजवाब
जवाब देंहटाएंगहरे जा कर निकाली गयी -- मोती सरीखी नज़्म..
जवाब देंहटाएंजिंदगी की हर छोटी बात को आप सहजता से रेखांकित कर देते है. सुँदर .
जवाब देंहटाएंपुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं
जवाब देंहटाएंबच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
बहुत सुंदर बात कही और सच भी है. बधाई इस सुंदर गज़ल के लिये.
पुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं
जवाब देंहटाएंबच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
बहुत ही सुन्दर बात कही है आपने .....
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
जवाब देंहटाएंमोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं
बहुत सुन्दर बात कही है ,लेकिन
मोती चुनने का साहस बहुत कम करते हैं ।
bahut hi sundar aur dil chhoo lene wali gazlein . behtareen prastuti
जवाब देंहटाएंतू तू मैं मैं होती है अब आपस में
जवाब देंहटाएंगलियों में तंदूर कहाँ अब जलते हैं
Sajha jeevan kahan dikhta hai ab..... sunder panktiyan
जंगल जाने की जो हिम्मत रखते हैं
जवाब देंहटाएंकाँटों की परवाह कहाँ वो करते हैं
कलियों को इन पेड़ों पर ही रहने दो
गुलदस्ते में फूल कहाँ फिर खिलते हैं
जीवन की सच्चाई...
सुंदर गज़ल....!
वाह बहुत उम्दा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंअब शायद 3-4 दिन किसी भी ब्लॉग पर आना न हो पाये!
उत्तराखण्ड सरकार में दायित्व पाने के लिए भाग-दौड़ में लगा हूँ!
बृहस्पतिवार-शुक्रवार को दिल्ली में ही रहूँगा!
बच्चों ने भी बचपन पीछे छोड़ दिया
जवाब देंहटाएंकंप्यूटर की बातें करते रहते हैं
-बात सही है...बचपना जल्दी छूट रहा है आजकल!!
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
जवाब देंहटाएंमोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं
vaah kya khubsurat hai !
बहुत खूब कही...मज़ा आ गया...
जवाब देंहटाएंबच्चों के छोटे हांथों को चाँद सितारे छूने दो...
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे...
हम तो बचपन में बहुत कम में ही प्रसन्न हो जाते थे।
जवाब देंहटाएंबदलते हुए समय में हम कित्ता पीछे रह गए हैं...!
जवाब देंहटाएंभाई दिगंबर नासवा जी!
जवाब देंहटाएंये अशआर हैं या समंदर की गहराई से चुने हुए नायब मोती...?....ये ग़ज़ल है या मोतियों की माला..?
दो आँसू तूफान खड़ा कर देते हैं
जवाब देंहटाएंकहने को बस आँखों में ही पलते हैं
सच्ची बात और अच्छी बात ...!
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
जवाब देंहटाएंमोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं
दो आँसू तूफान खड़ा कर देते हैं
कहने को बस आँखों में ही पलते हैं
कलियों को इन पेड़ों पर ही रहने दो
गुलदस्ते में फूल कहाँ फिर खिलते हैं....बेहद खूबसूरत!!
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
जवाब देंहटाएंमोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं
सुन्दर रचना मनोभावों का प्रतिरूप बनकर बहती हुयी
बच्चों ने भी बचपन पीछे छोड़ दिया
जवाब देंहटाएंकंप्यूटर की बातें करते रहते हैं
हा...हा....हा....
सही कहा....
हर बार की तरह एक उम्दा गजल ....
guldaste me phool kahan khilte hain....vaah
जवाब देंहटाएंbachche computer ki baate karte hain
.....vaah
sabhi sher lajabaab.
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
जवाब देंहटाएंमोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं
बहुत गहन अभिव्यक्ति है ..
एक एक शब्द ...चुन-चुन कर भाव से भरा ...
बहुत सुंदर लगी रचना ...!!
शुभकामनायें ...!!
बहुत से परिवर्तन आ गए हैं आम जीवन में लेकिन ये भी सच है...
जवाब देंहटाएंपुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं
बच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
बहुत सुन्दर भाव... आभार
इन अशार की बातें अब हम क्या बोलें
जवाब देंहटाएंतन्हाई में जुगनू लगते हैं!
कलियों को इन पेड़ों पर ही रहने दो
जवाब देंहटाएंगुलदस्ते में फूल कहाँ फिर खिलते हैं.
साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
मोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं.
बेहद खूबसूरत...
बहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर ग़ज़ल... हर शेर नई बात कह रही है... बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंबच्चों ने भी बचपन पीछे छोड़ दिया
जवाब देंहटाएंकंप्यूटर की बातें करते रहते हैं
..mere ghar mein yahi haal hai.. computer kya khola ko bachhe pahle taiyar baithne ke liye...
..computer aur cartoon uff puchho nahi....
bahut badiya chintan karati prastuti..
बच्चों ने भी बचपन पीछे छोड़ दिया
जवाब देंहटाएंकंप्यूटर की बातें करते रहते हैं .....वाह बहुत खूब
और हम अब भी अपने बचपन को याद करते हैं
बच्चों ने भी बचपन पीछे छोड़ दिया
जवाब देंहटाएंकंप्यूटर की बातें करते रहते हैं
वाह अति सुन्दर
तू तू मैं मैं होती है अब आपस में
जवाब देंहटाएंगलियों में तंदूर कहाँ अब जलते हैं
अब वो अपनापन ही कहाँ रहा ... बहुत खूबसूरत गजल
बच्चे अब बच्चे रहे कहाँ ... ???
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कब तक अस्तिनो में सांप पालते रहेंगे ?? - ब्लॉग बुलेटिन
जीवन से समाप्त होती जा रही स्वाभाविकता और उसकी जगह लेती जा रही कृत्रिम व्यस्तता !
जवाब देंहटाएंकम्प्यूटर की ही बाते करते रहते हैं के स्थान पर यदि यह होता - कम्प्यूटर में ही बातें करते रहते हैं तो ज्यादा सार्थक हो जाता। अच्छी रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसामाजिक सरोकार युक्त रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
sach bachpan ab bachpan nahi raha..
जवाब देंहटाएंwelcome to my new post: बलि
दिगंबर जी प्रणाम !
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचारों के साथ-साथ हम नौसिखियों बहुत कुछ सीखने को मिला ... धन्यवाद ...
आगे भी छंद रचना से सम्बन्धित जानकारियाँ साँझा करते रहिएगा ...
प्रदीप
Rachna sachmuch man ko bhayi hai.badhai!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना, समीक्षा भी बहुत अच्छी. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंपुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं
जवाब देंहटाएंबच्चों की परछाई में ही दिखते हैं...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
इतनी सारी बारिकिया फिर भी मेरी समझ से बाहर है !
जवाब देंहटाएंमै तो गजल लिखने की बात भी सोच नहीं सकती !
गुरु और चेला दोनों ही दीक्षित लगते हैं .अच्छी रचना .शिष्य भाव से जीना जीवन की सबसे बड़ी ख़ुशी है उपलब्धि भी है ..
जवाब देंहटाएंaapki ye post maine bookmark kar li hai ... bahut waqt se gazal likhna seekhne ki koshish kar rahi hoon ... magar kamyaabi haasil nahi hui hai ... appki post madadgaar hogi ... shukriya ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भाव हैं अंदाज़ और भी प्यारा लगा !
जवाब देंहटाएंपंकज सुबीर को सादर
आपकी यह पोस्ट खूबसूरत तो है ही गज़ल का व्याकरण भी समझा रही है ।
जवाब देंहटाएंइसकी बारीकियां नकल करके लो जा रही हूँ ।
आपने अपनी ग़ज़ल की कमियों और उनके दूर करने के तरीकों का ज़िक्र करके अपनी इस पोस्ट को यादगार बना दिया है........!!!
जवाब देंहटाएंदो आँसू तूफान खड़ा कर देते हैं
जवाब देंहटाएंकहने को बस आँखों में ही पलते हैं
sach........
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/04/3.html#comments
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विचारावली और साथ में गुरु जी की टिप्पणी ...कुछ सीखने को मिला ..आभार
जवाब देंहटाएंसाहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
जवाब देंहटाएंमोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं
बहुत खूब, नासवा साहब, बहुत खूब..!
दमदार ग़ज़ल लिखी है आपने।
बहुत खूबसूरत भाव हैं ....सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंगजल भी अधिक खू्बसूरत गजल के भाव....
जवाब देंहटाएंकुछ कुछ चीज़ें समझ में आई आपकी ये पोस्ट पढ़ने के बाद..मुझे तो गज़ल लिखना आता ही नहीं, लेकिन बहुत ख्वाहिश होती है गज़ल लिखने की, जब आप जैसे शायर के लाजवाब शेर पढता हूँ तो...
जवाब देंहटाएंnamaskar nasva ji
जवाब देंहटाएंbahut sunder gajal , waah hardik badhai . shabdo ka her pher aapki batayi gajal ka roop hi badal deta hai . sunder gajal ke liye aapko hardik badhai .
aapka bahut -bahut abhar aapne matra dosh , latif ke bare me yahan jankari di , bahut kaam ki hai . sach mai jab hum antas me gungunate hai to kai baar wah sahi lagta hai par takniki drusti se bahut si barikio par dhyan dena jaroori hai . aajkal mai bhi gajal likhne ka prayas kar rahi hoon , par abhi tak geet hi likh rahi hoon , aaj bahut se concept clear ho gaya . aapse anirodh hai ki isi tarah aage bhi is tarah ki jankai hamare liye uplabdh karaye .
mera geet -harsingar -2 nayi post hai .
"साहिल पर कितने पत्थर मिल जाएँगे
जवाब देंहटाएंमोती तो गहरे जा कर ही मिलते हैं"...
सुन्दर गजल...
कलियों को इन पेड़ों पर ही रहने दो
जवाब देंहटाएंगुलदस्ते में फूल कहाँ फिर खिलते हैं
सुन्दर गजल
‘दूर कहां रह पाते हैं पुरखे हमसे’)
जवाब देंहटाएंबच्चों की परछाई में ही दिखते हैं
कर देते हैं दो आंसू तूफ़ान खडा ,
पलने को तो आँखों में ही पलते हैं .
लाज़वाब है यह संशोधन वैसे भी सांगीतिकता यहाँ ज्यादा है .