छू
लेती है
जब मुझको
तो अच्छा
हो जाता
हूँ
अम्मा से जब मिलता हूँ तो बच्चा हो जाता हूँ
करता हूँ अब्बा से छुप कर जब कोई शैतानी
चहरे को मासूम बना के सच्चा हो जाता हूँ
राखी या होली दीवाली या लोहडी बैसाखी
दीदी के पीहर आते ही अब्बा हो जाता हूँ
दस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
दीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
खाँसी
करता रहता
हूँ जब
बेटे की
बैठक में
उजली
सी दीवारों
का मैं
धब्बा हो
जाता हूँ
दस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
जवाब देंहटाएंदीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
alag alag saanche hain ... kabhi kuch kabhi kuch hota rahta hun . yahi jivan hai
यादोँ का सुहाना और सच्चा संगम ......
जवाब देंहटाएंमुबारक हो !
दस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
जवाब देंहटाएंदीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
खाँसी करता रहता हूँ जब बेटे की बैठक में
उजली सी दीवारों का मैं धब्बा हो जाता हूँ
उफ़ कितना मासूम सच कह दिया।
राखी या होली दीवाली या लोहडी बैसाखी
जवाब देंहटाएंदीदी के पीहर जाते ही अब्बा हो जाता हूँ
वाह...कितने रंग बदलती है जिंदगी..
बहुत ही सुन्दर रचना.
राखी या होली दीवाली या लोहडी बैसाखी
जवाब देंहटाएंदीदी के पीहर जाते ही अब्बा हो जाता हूँ
वाह...कितने रंग बदलती है जिंदगी..
बहुत ही सुन्दर रचना.
अंतिम शेर पढ़कर आँखे नम हो गईं.... बढ़िया ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंराखी या होली दीवाली या लोहडी बैसाखी
जवाब देंहटाएंदीदी के पीहर जाते ही अब्बा हो जाता हूँ
Aisa pyar sada bana rahe!
वाह क्या बात है बहुत ही बेहतरीन भाव संयोजन किया है आपने मज़ा आ गया पढ़कर...बहुत ही बढ़िया सार्थक अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंवाह........
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर....
सभी शेर एक से बढ़ कर एक............
दिल को छू लेने वाले............
बहुत खूब सर
सादर.
राखी या होली दीवाली या लोहडी बैसाखी
जवाब देंहटाएंदीदी के पीहर जाते ही अब्बा हो जाता हूँ
अनुपम भाव संयोजन है इन पंक्तियों में ...
जिन्दगी कई कई रंग दिखा दिये हैं आपने इस गजल में। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल है..
जवाब देंहटाएंएक शेर समझने में थोड़ी परेशानी हो रही है - दीदी के पीहर जाते ही अब्बा हो जाता हूँ.. दीदी के पीहर या ससुराल? शायद कुछ है जो मुझे समझ नहीं आ रहा।
भावनाओ के कुशल चितेरे हो आप . हर शेर खास है .
जवाब देंहटाएंएक अलग सी अनुभूति पिरोई हुई है...रचना में..
जवाब देंहटाएंराखी या होली दीवाली या लोहडी बैसाखी
जवाब देंहटाएंदीदी के पीहर जाते ही अब्बा हो जाता हूँ
in panktiyon ne man ko chhoo liya. vaakai bhai aur bahan ke beech ke rishte men chhipe pyaar ka dyotak hai.
बहुत ही सुंदर...
जवाब देंहटाएंबचपन से बुढ़ापा तक को व्यक्त कर दिया.
अन्तिम की सच्चाई...क़ाबिले तारीफ़ अभिव्यक्ति!
बहुत ही सुन्दर!
जवाब देंहटाएंwaah
जवाब देंहटाएंnatmastak..
सीधी सादी बात...
जवाब देंहटाएंभोले भाले लेकिन बेहद प्रभावी अशार सर....
सादर बधाई.
दस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
जवाब देंहटाएंदीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
बीतती यादों की दस्तक मन कच्चा ही कर देती है...
बहुत ही प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंसादर
यही जीवन है।
जवाब देंहटाएंबदलते रंग |
जवाब देंहटाएंजीवन का सच |
यही है जिंदगी |
सादर ||
बहुत ही सुन्दर...राखी या होली दीवाली या लोहडी बैसाखी
जवाब देंहटाएंदीदी के पीहर जाते ही अब्बा हो जाता हूँ
छूलेतीहैजबमुझकोतोअच्छाहोजाताहूँ
जवाब देंहटाएंअम्मासेजबमिलताहूँतोबच्चाहोजाताहूँ
@ सच है... मन को छू लिया इस सच ने.
@ जितना बुरा-बुरा बोले वो बेटा छोड़ बहु को.
फिर भी अम्मा से मिलकर हो बच्चा-सा जाता हूँ.
काश, प्रेम उतना ही बँटता जितना पुत्र-प्रेम में,
यही न्याय सासू से पाकर गच्चा खा जाता हूँ.
करताहूँअब्बासेछुपकरजबकोईशैतानी
चहरेकोमासूमबनाकेसच्चा होजाताहूँ
@ बहुत सुन्दर... बाल चपलता का एक पहलू यह भी है.
राखीयाहोलीदीवालीयालोहडीबैसाखी
दीदीकेपीहर आतेहीअब्बाहोजाताहूँ
@ स्वानुभूत नहीं... सच ही होगा.
दस्तकजबदेताहूँ बीतीयादोंकेकमरेमें
दीवारोंकीसीलनसेमैंकच्चाहोजाताहूँ
@ बहुत सुन्दर.... बहुत मार्मिक.
खाँसीकरतारहताहूँजबबेटेकीबैठकमें
उजलीसीदीवारोंकामैंधब्बाहोजाताहूँ
@ संवेदना का चरम...
मन की सच्ची और प्यारी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंकरता हूँ अब्बा से छुप कर जब कोई शैतानी
जवाब देंहटाएंचहरे को मासूम बना के सच्चा हो जाता हूँ
इस मासूमियत के क्या कहने ..
बहुत खूब
करता हूँ अब्बा से छुप कर जब कोई शैतानी
जवाब देंहटाएंचहरे को मासूम बना के सच्चा हो जाता हूँ '
aur..main us masoom bchche ko dekh rhi hun ha ha ha riyli jise dil ko chhu jane wali rchna kahte hain wo hai yh. aapke jaisi..hmare bchpn jaisee ekdmnishchhl aur pyari see
आखिरी पंक्ति ने भाव विभुर कर दिया ..
जवाब देंहटाएंकितने उतार चढ़ाव हैं ज़िन्दगी में ..
kalamdaan
बिलकुल नए अंदाज़ में...स्वाभाविक रचना !
जवाब देंहटाएंकरता हूँ अब्बा से छुप कर जब कोई शैतानी
जवाब देंहटाएंचहरे को मासूम बना के सच्चा हो जाता हूँ
bahut khoob...
व्यक्तित्त्व के विभिन्न रूपों की शानदार प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया ग़ज़ल ।
खाँसी करता रहता हूँ जब बेटे की बैठक में
जवाब देंहटाएंउजली सी दीवारों का मैं धब्बा हो जाता हूँ
सच्चाई शायद कड़वी होती है.
एक और बढ़िया गज़ल.
करता हूँ अब्बा से छुप कर जब कोई शैतानी
जवाब देंहटाएंचहरे को मासूम बना के सच्चा हो जाता हूँ
आपकी हर ग़ज़ल में कुछ खास होता है। इसकी बुनावट इतनी सरल होती है कि झट से जुबान पर चढ जाती है और भाव काफ़ी गहरे होते हैं।
छू लेती है जब मुझको तो अच्छा हो जाता हूँ
जवाब देंहटाएंअम्मा से जब मिलता हूँ तो बच्चा हो जाता हूँ
वाह....बहुत ही सुंदर
हमेशा की तरह बहुत ही शानदार. हर एक शेर खूबसूरत..
जवाब देंहटाएंhar ek sher behad hi khubsurat.
जवाब देंहटाएंराखी या होली दीवाली या लोहडी बैसाखी
जवाब देंहटाएंदीदी के पीहर आते ही अब्बा हो जाता हूँ
..कमाल का शेर दिया है इस बेहतरीन गज़ल ने !
बहुत ही खूबसूरत !
जवाब देंहटाएंवाह दिगम्बर जी.. क्या बेहतरीन कविता लिखी है यादों पर.. बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर..
जवाब देंहटाएंवाह!!! हर छंद दूजे पर भारी...बहुत सुन्दर, मार्मिक और ओजपूर्ण कविता !!!!! नमन आपको ....
जवाब देंहटाएंदस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
जवाब देंहटाएंदीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
यूँ तो हर पंक्ति मन को छूने वाली है, इन पंक्तियों में हरेक के जीवन का सच छिपा है...बधाई इस सुंदर रचना के लिये.
shbd nahi mil rahe hai .....
जवाब देंहटाएंराखी या होली दीवाली या लोहडी बैसाखी
दीदी के पीहर आते ही अब्बा हो जाता हूँ
mere saath bhi esa hee hota tha
ये पंक्तियां मानो जीवन का इन्द्रधनुषी रंग समेटे हैं।
जवाब देंहटाएंखाँसी करता रहता हूँ जब बेटे की बैठक में
जवाब देंहटाएंउजली सी दीवारों का मैं धब्बा हो जाता हूँ
कमाल का शेर
बहुत भापप्रणव गजल लिखी है आपने!
जवाब देंहटाएंखाँसी करता रहता हूँ जब बेटे की बैठक में
जवाब देंहटाएंउजली सी दीवारों का मैं धब्बा हो जाता हूँ
बुड्ढा खांसता रहता है ,सुनकर अपने ही घर में किसी और के घर के हो जातें हैं हम .
खाँसी करता रहता हूँ जब बेटे की बैठक में
जवाब देंहटाएंउजली सी दीवारों का मैं धब्बा हो जाता हूँ
बुड्ढा खांसता रहता है ,सुनकर अपने ही घर में किसी और के घर के हो जातें हैं हम .
बुड्ढा खांसता रहता है ,सुनकर अपने ही घर में किसी और के घर के हो जातें हैं हम .
जवाब देंहटाएंhar kadam achchi lagi.....
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना दिगंबर भाई ....
जवाब देंहटाएंजय हो ...
बहुत ही लाज़बाब ।
जवाब देंहटाएंबच्चे सी मासूमियत और वृद्ध सी पीर
जवाब देंहटाएंहृदय कैमरे से खिंची, यह अद्भुत तस्वीर.
वाह दिगम्बर जी, वाह !!!!!
बहुत ही उम्दा गज़ल |
जवाब देंहटाएंओह,
जवाब देंहटाएंकहाँ सोचा था ऐसे दिन भी होंगे
वहाँ होंगे सभी इक हम न होंगे
बहुत सहजता से लिखे मन के भाव ... बहुत सुंदर गजल
जवाब देंहटाएं"दीदी के पीहर आते ही अब्बा हो जाता हूँ "
जवाब देंहटाएं......इस के बाद तो और कुछ चाहत हो ही नहीं सकती !!!
BAHUT HEE PYAREE GAZAL .EK - EK
जवाब देंहटाएंSHER MAN KO BHARPOOR CHHOTA HAI .
BAHUT - BAHUT BADHAAEE .
rishton aur manobhavon ki bahut sundar abhivyakti.....
जवाब देंहटाएंखाँसी करता रहता हूँ जब बेटे की बैठक में
जवाब देंहटाएंउजली सी दीवारों का मैं धब्बा हो जाता हूँ
....रिश्तों और जीवन के विभिन्न रंगों की सशक्त अभिव्यक्ति...
waah moh liya aapki likhi is gajal ne ..bahtreen
जवाब देंहटाएंखाँसी करता रहता हूँ जब बेटे की बैठक में
जवाब देंहटाएंउजली सी दीवारों का मैं धब्बा हो जाता हूँ
मन को छू गई आप की यह रचना,
छू लेती है जब मुझको तो अच्छा हो जाता हूँ
जवाब देंहटाएंअम्मा से जब मिलता हूँ तो बच्चा हो जाता हूँ
करता हूँ अब्बा से छुप कर जब कोई शैतानी
चहरे को मासूम बना के सच्चा हो जाता हूँ
.......waah sabhi sher ek se badhkar ek kisi ek ko nahi chod sakte .......aur bitte yado ki silan se kaccha ho jata hoon .bahut khoob ....waah
क्या बात है!...अनेक रूपों में नजर आना आसान नहीं है!...सुन्दर प्रस्तुति!....आभार!
जवाब देंहटाएंदस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
जवाब देंहटाएंदीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
aap to hmesha hi rock krte h
दस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
जवाब देंहटाएंदीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
बेहतरीन प्रस्तुति
दस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
जवाब देंहटाएंदीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
वाह बहुत सुन्दर ... आभार
खाँसी करता रहता हूँ जब बेटे की बैठक में
जवाब देंहटाएंउजली सी दीवारों का मैं धब्बा हो जाता हूँ
WAH BHAI DIGAMBAR JI ...BILKUL LAJABAB GAJAL PAROSI HAI APNE.
अनूठे भाव... जीवन से सभी रंग सिमट आये हैं...सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंराखी या होली दीवाली या लोहडी बैसाखी
जवाब देंहटाएंदीदी के पीहर आते ही अब्बा हो जाता हूँ !!
अब भी रिश्तों की यह मिठास बची है !
बेहतरीन भाव !
wah Digambar ji Wah.....
जवाब देंहटाएंsaadhuwad
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
दीदी के पीहर आते ही अब्बा हो जाता हूँ
जवाब देंहटाएंखाँसी करता रहता हूँ जब बेटे की बैठक में
उजली सी दीवारों का मैं धब्बा हो जाता हूँ
गज़ब की पंक्तियाँ
सभी शेर लाजवाब हैं..
जवाब देंहटाएंलेकिन मेरी फेवरिट :
दस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
दीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
:)
दस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
जवाब देंहटाएंदीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
बहुत ही बेहतरीन रचना।
ऐसा लगा जैसे मेरे ही घर की बात हो।
छू लेती है जब मुझको तो अच्छा हो जाता हूँ
जवाब देंहटाएंअम्मा से जब मिलता हूँ तो बच्चा हो जाता हूँ
देर तक एहसासों को सहलाती रहती है ये ग़ज़ल . बारहा पढो हर बार लगे नै सी है .
जिंदगी के सब रंग पर हमारा रंग तो
जवाब देंहटाएंखाँसी करता रहता हूँ जब बेटे की बैठक में
उजली सी दीवारों का मैं धब्बा हो जाता हूँ ।
ये है ।
छू लेती है जब मुझको तो अच्छा हो जाता हूँ
जवाब देंहटाएंअम्मा से जब मिलता हूँ तो बच्चा हो जाता हूँ ..
.
बहुत ही बेहतरीन रचना....
कभी-कभी मैं क्रोधित हो जाती हूँ, जब मेरां बच्चा सहयोग नहीं देता......
गजब है सर जी......बहुत बढ़िया लिखा है। बधाई। आभार।
जवाब देंहटाएंदस्तक जब देता हूँ बीती यादों के कमरे में
जवाब देंहटाएंदीवारों की सीलन से मैं कच्चा हो जाता हूँ
wah kya bhav hai bahut hiiiiiiiiiii
sunder
rachana
दिल को छू गई रचना.. अंतिम शेर को पढ़ आँखें नम हो गईं...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कई बार और बार - बार पढ़ा !
जवाब देंहटाएंयादों और बातों में इस जीवन को जीना शुरू कर दिया हैं आपने ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह खूब .....
जवाब देंहटाएंबढ़िया ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंकरता हूँ अब्बा से छुप कर जब कोई शैतानी
जवाब देंहटाएंचहरे को मासूम बना के सच्चा हो जाता हूँ
bahut khoob!!