धूप मेरे हाथ से जब से फिसल गई
जिंदगी से रौशनी उस दिन निकल गई
नाव साहिल तक वही लौटी है आज तक
रुख हवा का देख जो रस्ता बदल गई
मुद्दतों के बाद जो बेटा मिला उन्हें
देखते ही देखते सेहत संभल गई
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
फिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
वो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
चाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
लिख तो लेता मैं भी कितने शैर क्या कहूं
काफिया अटका बहर भटकी गज़ल गई
लोग हैं मसरूफ अंदाजा नहीं रहा
चुटकले मस्ती ठिठोली फिर हजल गई
जीवन दर्शन भरा है इस गज़ल में.. बहुत सुद्नर.. हर शेर जानदार हैं खास तौर पर बच्चो के तबियत मचलने वाला शेर दिल को छू गया...
जवाब देंहटाएंkhub kaha aapne gajal me
जवाब देंहटाएंधूप मेरे हाथ से जब से फिसल गई
जवाब देंहटाएंजिंदगी से रौशनी उस दिन निकल गई
सुन्दर भावो को प्रस्तुत करती शानदार गज़ल
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
जवाब देंहटाएंफिर खिलौना देख के तबियत मचल गई
वाह!
बेहद सुन्दर ग़ज़ल!
सादर!
लिख तो लेता मैं भी कितने शेर क्या कहूं
जवाब देंहटाएंकाफिया अटका बहर भटकी गज़ल गई
अपने साथ तो हमेशा यही होता है :)
पर आपकी गज़ल शानदार है.
गज़ब का मतला कह डाला हा भाई दिगंबर नासवा जी. यह अपने आप में पूरी ग़ज़ल है. हमेशा की तरह लाजवाब ग़ज़ल....मुबारक हो...
जवाब देंहटाएंदाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
जवाब देंहटाएंफिर खिलौना देख के तबियत मचल गई
जिंदगी हर सुख की कीमत मांगती है...यहाँ कुछ भी ऐसे ही नहीं मिलता जो मिलता है उसकी लोगों के लिये कोई कीमत नहीं, बहुत सुंदर गजल!
bahut achchi ghazal har sher shaandar hai.bahut umda.
जवाब देंहटाएंवो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
जवाब देंहटाएंचाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
बहुत बढ़िया ,हर शेर लाजवाब है
नाव साहिल तक वही लौटी है आज तक
जवाब देंहटाएंरुख हवा का देख जो रसता बदल गई
लिख तो लेता मैं भी कितने शेर क्या कहूं
काफिया अटका बहर भटकी गज़ल गई
नासवा साहब रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं .साहिल तक नाव वाही लौटी जो रुख हवाओं का भांप गई बहत करीबी बात ज़िन्दगी के .
टंकड़ की अ - शुद्धि(यदि है तो ) रस्ता कर लें 'रसता' को ,और भाईसाहब शैर कर लें ,'शेर' छप गया है .आदाब .आपकी टिपण्णी स्पैम बोक्स से निकालता रहता हूँ एक आदि और भी साथ में निकल आती है .
खुबसूरत शेर है सारे .....शायद ये टाइपिंग की गलतियाँ हैं ।
जवाब देंहटाएंरसता - रास्ता / रस्ता
तबियत - तबीयत
जीवन के रंगों से सजी पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंलिख तो लेता मैं भी कितने शेर क्या कहूं
जवाब देंहटाएंकाफिया अटका बहर भटकी गज़ल गई
वाह ... बहुत खूब।
वो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
जवाब देंहटाएंचाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
बात का खूबसूरत अंदाज़. बहुत सुंदर ग़ज़ल.
बहुत सुन्दर गजल!....बहुत सुन्दर मनोभाव!
जवाब देंहटाएंधूप मेरे हाथ से जब से फिसल गई
जवाब देंहटाएंजिंदगी से रौशनी उस दिन निकल गई
...bahut sunder gajal .badhai
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
जवाब देंहटाएंफिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई ... बच्चे क्या बड़े भी कुछ ऐसे ही होते हैं ... :)
धूप मेरे हाथ से जब से फिसल गई
जिंदगी से रौशनी उस दिन निकल गई ... उम्दा ग़ज़ल ...
मुद्दतों के बाद जो बेटा मिला उन्हें
जवाब देंहटाएंदेखते ही देखते सेहत संभल गई
बहुत खूबसूरत अंदाज़... सुन्दर गजल नासवा जी
वाह! कहीं ऐसा तो नहीं कि आप जो बोलते हैं वही शेर हो जाता हो!!
जवाब देंहटाएंनाव साहिल तक वही लौटी है आज तक
जवाब देंहटाएंरुख हवा का देख जो रस्ता बदल गई
मुद्दतों के बाद जो बेटा मिला उन्हें
देखते ही देखते सेहत संभल गई
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
फिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
बहुत सुन्दर शेर ...शब्द नहीं मेरे पास .....
वाह बहुत खूब ......
जवाब देंहटाएंले रहे थे लोग जायजा हवाओं का
दिशाएँ अलग थी मगर तासीर नहीं बदली ||..अनु
वाह वाह...........
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गज़ल........
हर रंग का शेर....
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
फिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
वो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
चाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
लाजवाब!!!
अनु
वाह वाह...........
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गज़ल........
हर रंग का शेर....
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
फिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
वो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
चाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
लाजवाब!!!
अनु
वाह वाह...........
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गज़ल........
हर रंग का शेर....
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
फिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
वो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
चाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
लाजवाब!!!
अनु
वाह वाह...........
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गज़ल........
हर रंग का शेर....
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
फिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
वो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
चाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
लाजवाब!!!
अनु
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबुधवारीय चर्चा-मंच
पर है |
charchamanch.blogspot.com
नाव साहिल तक वही लौटी है आज तक
जवाब देंहटाएंरुख हवा का देख जो रस्ता बदल गई
वाह ! क्या बात कही है। बेहतरीन ग़ज़ल नासवा जी ।
bahut shandaar gajal....aabhar
जवाब देंहटाएंग़ज़ल का हर शेर लाजवाब है!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति!
बढ़िया गज़ल...लाजवाब शेर!!
जवाब देंहटाएंइस सुनहरी धूप में कुछ देर बैठा कीजिए ....
जवाब देंहटाएंलिख तो लेता मैं भी कितने शैर क्या कहूं
जवाब देंहटाएंकाफिया अटका बहर भटकी गज़ल गई.
फिर खूबसूरत अंदाज़ में बेहतरीन गज़ल.
मुद्दतों के बाद जो बेटा मिला उन्हें
जवाब देंहटाएंदेखते ही देखते सेहत संभल गई
Bahut Sunder...
जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!
जवाब देंहटाएंपहला शेर ही इतना लाजवाब है कि क्या कहें...
जवाब देंहटाएंहर शेर मुकम्मल....
बढ़िया गजल..॥
नाव साहिल तक वही लौटी है आज तक
जवाब देंहटाएंरुख हवा का देख जो रस्ता बदल गई
लाजवाब गजल ॥बहुत खूब
हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब है
सुन्दर!
जवाब देंहटाएं..कई अर्थ देती गज़ल !
जवाब देंहटाएंvakai, bahut-bahut sundar!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा.
जवाब देंहटाएंsundar hamesha ki tarah.....
जवाब देंहटाएंमुद्दतों में पढ़ा आपका मुद्दतों तक याद रहा :)
जवाब देंहटाएंक्या लिखते हैं भाई! सही शब्द नहीं मिलते प्रशंसा के...
घिसे पिटे शब्दों का इस्तेमाल करने का मन नहीं होता
har sher behad satik aur real si hai...bahut pasand aayi!!!
जवाब देंहटाएंउम्मीद की रौशनी का दामन थामे रहना चाहिए...वर्ना जिंदगी हाथ से पिसल सकती है...बहुत ही उम्दा ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी सुन्दर प्रस्तुति पढकर मन प्रसन्न हो गया है.
जवाब देंहटाएंउम्दा भाव पिरोयें हैं आपने.
bahut sundar...aabhar
जवाब देंहटाएंमत भेद न बने मन भेद - A post for all bloggers
मुद्दतों के बाद जो बेटा मिला उन्हें
जवाब देंहटाएंदेखते ही देखते सेहत संभल गई
जि़ंदगी के कई रूप, कई रंग।
बेहतरीन ग़ज़ल।
लिख तो लेता मैं भी कितने शैर क्या कहूं
जवाब देंहटाएंकाफिया अटका बहर भटकी गज़ल गई !
ग़ज़ल कहाँ भटकी , बल्कि और निखर गयी !
नासवा जी
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल कही..... इन शेरों को कई बार पढने का जी चाहा.....!
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
फिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
वो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
चाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
वाह वाह उम्दा.....
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
जवाब देंहटाएंफिर खिलौना देख के तबियत मचल गई
...सच दाम तो माँ बाप को पता होता है और वह अपना पर्स देखते है पर बच्चे ..कुछ ना पूछो ...
बहुत बढ़िया अपनी सी कविता ...
नाव साहिल तक वही लौटी है आज तक
जवाब देंहटाएंरुख हवा का देख जो रस्ता बदल गई......sahi kahe....
फिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
जवाब देंहटाएंप्यारी रचना के लिए आभार नासवा जी !
वो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
जवाब देंहटाएंचाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति // बेहतरीन गजल //
MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
हर शेर मर्म को छू अपने रंग में रंग जाती है...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल...वाह !!!!
बहुत खूब!...आभार!
जवाब देंहटाएंलिख तो लेता मैं भी कितने शैर क्या कहूं
जवाब देंहटाएंकाफिया अटका बहर भटकी गज़ल गई
theek kaha bhai!!
sir bahut bahut hi behtreen---
जवाब देंहटाएंpoonam
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
नाव साहिल तक वही लौटी है आज तक
जवाब देंहटाएंरुख हवा का देख जो रस्ता बदल गई
...गहन जीवन दर्शन को संजोये बेहतरीन गज़ल...
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति ,
जवाब देंहटाएंवो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
चाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
,एक और ग़ज़ल का इंतज़ार , . ..कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 5 मई 2012
चिकित्सा में विकल्प की आधारभूत आवश्यकता : भाग - १
चिकित्सा में विकल्प की आधारभूत आवश्यकता : भाग - १
नाव साहिल तक वही लौटी है आज तक
जवाब देंहटाएंरुख हवा का देख जो रस्ता बदल गई
........बेहतरीन !
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
जवाब देंहटाएंफिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
बहुत खूबसूरत गज़ल का बड़ा ही प्यारा शेर..
वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
जवाब देंहटाएंफिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
अनुभव का एक दायरा फलसफा -ए - ज़िन्दगी लिए रहतीं हैं आपकी ग़ज़लें .
दाम होते हैं किसी बच्चे को क्या पता
जवाब देंहटाएंफिर खिलौना देख के तबीयत मचल गई
अनुभव का एक दायरा फलसफा -ए - ज़िन्दगी लिए रहतीं हैं आपकी ग़ज़लें .
मुद्दतों के बाद जो बेटा मिला उन्हें
जवाब देंहटाएंदेखते ही देखते सेहत संभल गई
बहुआयामी गज़ल .. बहुत सुन्दर
धूप मेरे हाथ से जब से फिसल गई
जवाब देंहटाएंजिंदगी से रौशनी उस दिन निकल गई
sach kaha....dhoop ko pakad k kaida bhi karna chaaho to vo kaha rukegi..
sunder prastuti.
बस...लाजवाब ..
जवाब देंहटाएंvery nice.....
जवाब देंहटाएंवो मेरे पहलू में आए दिन निकल गया
जवाब देंहटाएंचाँद पहले फिर अचानक रात ढल गई
और फिर मुई सुबह हुयी ? क्यों शायर साहिब ?? :)