स्वप्न मेरे: जीवन ...

मंगलवार, 15 मई 2012

जीवन ...


जीने के लिए ज़रूरी नही
प्रेम की ऊर्जा 
रौशनी भरे ख्वाब

कुछ अनकही मजबूरियां भी  
टूटने नहीं देतीं
साँसों की डोर

यूं ही चलता रहता है ये सफर 
साँसों का क़र्ज़ उठाये
मौत की इंतज़ार में

जीवन इसको भी तो कहते है ... 

68 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल सही कहा सर.....

    कभी कभी जिम्मेदारियों का एहसास ही कारण बनता है जीने का.....
    बहुत प्यारे एहसास.....

    सादर.

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  2. बहुत निराशावादी भावनाएं झलक रही हैं इस कविता से

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  3. परिभाषित जीवन किया, दृष्टिकोण में दर्द ।
    प्रेम तमन्ना कर्म पर, मजबूरी का गर्द ।

    मजबूरी का गर्द , हुआ जीवन पर हावी ।
    बंधी सांस की डोर, खींचता जीवन भावी ।

    हुए दिगंबर राम, फिरें भटकें वन-वासित ।
    मजबूरी का दंश, करे जीवन परिभाषित ।।

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  4. अनवरत चलते रहना ...हाँ यही तो जीवन है

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  5. जीने की लालसा कभी ख़त्म नहीं होती .

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  8. अनवरत चलते रहना ही जीवन है बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |
    आशा

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  10. कुछ अनकही मजबूरियां भी
    टूटने नहीं देतीं
    साँसों की डोर .... मजबूरियां कहो या ज़िम्मेदारी , जीना चाहते हैं ताकि कोई विघ्न न आए

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  11. हर सुबह शाम में ढल जाता है
    हर तिमिर धूप में गल जाता है
    ए मन हिम्मत न हार
    वक्त कैसा भी हो
    बदल जाता है ….......

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  12. कुछ अनकही मजबूरियां भी
    टूटने नहीं देतीं
    साँसों की डोर

    यह भी ज़िंदगी का फलसफा है ... सुंदर और गहन बात

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  13. अरे , इतनी निराशा , लेकिन सत्य . सुँदर कृति . आभार .

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  14. सिर्फ़ प्रेम ही तो जीवन नही
    उससे इतर भी जीवन होता है
    वो भी बिना मकसद नही होता है

    बहुत गहरी और सार्थक प्रस्तुति।

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  15. मौत के इंतजार में जीना भी कोई जीना है..यह तो मृत्यु से भी बदतर है..

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  16. थोड़ी निराशा झलक रही है..पर सच है ये भी जीवन ही है.

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  17. कभी - कभी ऐसे भी जीना पड़ता है, जिम्मेदारियां और मजबूरियां मरने की भी इजाजत नहीं देती... ये भी जीवन का एक रंग है...

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  18. यूं ही चलता रहता है ये सफर
    साँसों का कर्ज़ उठाये
    मौत की इंतजार में

    बहुत वजनदार कथ्य।
    सही है, जीवन इसे भी कहते हैं।

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  19. वाह ...बहुत खूब लिखा है आपने
    कल 16/05/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ...'' मातृ भाषा हमें सबसे प्यारी होती है '' ...

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  20. ..सबके लिए जीवन यकसा नहीं होता !

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  21. जीवन के प्रति एक गंभीर सोंच.........अच्छी रचना....

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  22. कुछ अनकही मजबूरियां भी
    टूटने नहीं देतीं
    साँसों की डोर....

    अलग ही दृष्टिकोण में ले जाती खुबसूरत रचना सर.
    सादर.

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  23. जीवन इसको भी तो कहते है ...
    या शायद जीवन इसी को कहते हैं

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  24. त्वरित टिप्पणी से सजा, मित्रों चर्चा-मंच |
    छल-छंदी रविकर करे, फिर से नया प्रपंच ||

    बुधवारीय चर्चा-मंच
    charchamanch.blogspot.in

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  25. जीवन जीने के लिए....

    बस हंसो और हँसाओ......
    न फँसो...न फंसाओ.....

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  26. हम्म...ये भी एक सच है जिंदगी का

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  27. दिगम्बर जी, कितना कड़वा सच आपने कितनी ख़ूबसूरती से बयां कर दिया....

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  28. .बहुत सुन्दर यथार्थ मूलक .

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  29. बेशक कुछ अनकही मजबूरियां भी
    टूटने नहीं देतीं
    सांसों की डोर

    शहीद हो चुके सैनिक के बच्चों की परवरिश की चिंता में जी रहे सैनिक के बूढ़े बाप-मां के सामने ,
    या आतंकवाद अथवा दुर्धटना के शिकार हो चुके दम्पति के बूढ़े बाप-मां के सामने ,
    या तलाक हो'कर पीहर आ बैठी बेटी और उसके बच्चों के पालन-पोषण की बूढ़े कंधों पर आ पड़ी
    अनापेक्षित जिम्मेवारियां ऐसी ही अनकही मजबूरियां ही तो होती हैं ,
    जो मरणासन्न वयोवृद्धों की सांसों की डोर भी टूटने नहीं देतीं …

    होता है जीवन ऐसा भी !!
    आदरणीय दिगम्बर नासवा जी
    नमस्कार !

    है निराशाजनक , लेकिन कविता में जीवन का वीभत्स सत्य समाहित है

    मंगलकामनाओं सहित…
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  30. हो सकता है यह भी एक कटु सत्य हो ,
    पर जीवन कहाँ है ? जीने के लिये जरुरी है प्रेम की उर्जा !

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  31. हो सकता है यह भी एक कटु सत्य हो ,
    पर जीवन कहाँ है ? जीने के लिये जरुरी है प्रेम की उर्जा !

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  32. बहुतायत मे लोग इसी तरह का जीवन जीते है

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  33. जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए जीवन जीने का भी एक आनंद है,एक सुकून है...जो मिले उसी में खुशियाँ ढूँढनी चाहिए.

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  34. गहरी बात, न जाने कितनी मजबूरियों से जुड़ी है जीवन की डोर।

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  35. हाँ दिगम्बर भाई, जीवन इसको भी कहते हैं .
    मैं सहमत हूँ .

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  36. जीने के लिए ज़रूरी नही
    प्रेम की ऊर्जा
    रौशनी भरे ख्वाब

    क्योंकि जीवन एक पैकेज है .यहाँ कडवा मीठा सब है .और इसीलिए मैं भी -

    जिंदा हूँ बिना एहसास के ,इसलिए की जब कभी एहसास लौटें ,
    खैर मकदम कर सकूं .
    बढ़िया भाव विरेचक कविता .साधारंनिकरण के नज़दीक लाती रचना पाठक को .

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  37. बहुत बड़ी जीवन की सच्चाई छुपी हुई है इन शब्दों में हर कोई अपने हिस्से की मजबूरियों की गठरी को ढोता है अपने अंतिम सफ़र तक यही उसके जीने का सबब भी बन जाती हैं बहुत अच्छी रचना बधाई

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  38. जीने के लिए ज़रूरी नही
    प्रेम की ऊर्जा
    रौशनी भरे ख्वाब

    कुछ अनकही मजबूरियां भी
    टूटने नहीं देतीं
    साँसों की डोर

    यूं ही चलता रहता है ये सफर
    साँसों का क़र्ज़ उठाये
    मौत की इंतज़ार में

    जीवन इसको भी तो कहते है ...


    bahut kam shabdo me bahut kuchh kah diya aapne !
    aabhar

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  39. जी... इसीको जीवन कहते है...

    कुँवर जी,

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  40. अनकही मजबूरियाँ भी जीवन को चलाए रखती हैं. बहुत खूब बात कहती है कविता.

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  41. बहुत खूब कहा है आपने सच ही तो है जीवन यदि एक सुंदर सपना है तो कभी-कभी एक कड़वा सच भी जिसे अक्सर दूसरों की खातिर या यूं कहने की अपनों की खातिर पीना ही पड़ता है जैसे वो गीत है।

    "इस दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन है जहर तो पीना ही पड़ेगा"

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  42. ज़िन्दगी की चुनौतियों को बहुत सहज ढंग से अभिव्यक्त किया है...ये साँसों का क़र्ज़ ही है जो हमें जिलाए रखता है...

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  43. हाँ यह भी जीवन ही है पर वैसा ही जैसा तेज धूप में एक लम्बा रास्ता । अच्छी कविता । सजीव कविता भी प्रभावित करती है ।

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  44. यूं ही चलता रहता है ये सफर
    साँसों का क़र्ज़ उठाये
    मौत की इंतज़ार में

    जीवन इसको भी तो कहते है

    सच है, यह भी जीवन है... न जाने कितने भाव छुपे हैं इस जीवन में. सुन्दर प्रस्तुति

    आभार
    फणि राज

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  45. यह बात तो सौ टके सटीक है कि कई लोग तो चाह कर भी मौत को गले नहीं लगा सकते.. कुछ अनकही-अनसोची बात ज़हन में दिन-रात आती रहती हैं.. यही तो है एक अलग ज़िंदगी!
    बढ़िया लगी..

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  46. यूं ही चलता रहता है ये सफर
    साँसों का क़र्ज़ उठाये
    मौत की इंतज़ार में

    ....सच कहा है ज़िंदगी का एक रूप यह भी है...बहुत भावमयी प्रस्तुति....

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  47. ACHCHHEE KAVITA KE LIYE AAPKO BAHUT-
    BAHUT BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .

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  48. यूं ही चलता रहता है ये सफर
    साँसों का क़र्ज़ उठाये
    मौत की इंतज़ार में..... सच है !

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  49. जीवन चुम्बक से कम नहीं है ! सुन्दर भावपूर्ण

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  50. मेरे ब्लॉग'मधुर गुंजन' पर एक कविता है-एकांत डे
    अवलोकन करने की कृरा करें.
    आभार

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  51. जीवन इसको भी तो कहते है ...

    सहमत हूँ सर!


    सादर

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  52. बहुत ही गहरी बात कही है..
    कुछ अनकही मजबूरियां भी
    टूटने नहीं देतीं
    साँसों की डोर
    कम शब्दों में जीवन के सत्य को व्यक्त करती
    उत्कृष्ट रचना...

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  53. उदास मन जीवन की गहराई मँ डूब कर कटु सत्य खोज लया है ....!!......
    उदासी दूर हो आपकी शुभकामनायॅ .....!!

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  54. कहने को शब्द नहीं है....अंतर्मन को छूती कविता

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  55. bahut hi sundar prastuti...kam shabdon me sarbhut rachna.....

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  56. मौत का एक पल मुऐयन है नींद क्यों रात भर नहीं आती है .जीवन को जीना ही नदी पार करना.यहाँ कभी सूखा तो कभी अतिवर्षण ,कभी तुषार कभी पाला ...बढ़िया प्रस्तुति .

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  57. .बढिया विचार कविता सर . कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    मंगलवार, 22 मई 2012
    :रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का जोखिम बढ़ाओ
    http://veerubhai1947.blogspot.in/
    और यहाँ भी -
    स्वागत बिधान बरुआ :आमंत्रित करता है लोकमान्य तिलक महापालिका सर्व -साधारण रुग्णालय शीयन ,मुंबई ,बिधान बरुआ साहब को जो अपनी सेक्स चेंज सर्जरी के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहें हैं .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

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  58. बहुत ही बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग

    विचार बोध
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  59. कुछ अनकही मजबूरियां भी
    टूटने नहीं देतीं
    साँसों की डोर

    kyaa baat hai !!
    bahut sundar !!

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  60. :) हाँ सही लिखा है पर....यह क्षणिक सोच भर है. हमारी मूल प्रवृति हंसने मुस्कराने की ही रची है इश्वर ने. निराशा,उदासी अवसाद के क्षण जीवन में आते हैं पर........ उन्हें गुजर जाने देना चाहिए. हमारा जीवन मात्र हमारे लिए ही तो नही न?? कितने जीवन जुड़े हैं हमसे और वो हमें जीने को प्रेरित करते हैं.यही जीवन है. सच के कितने करीब होती है तुम्हारी रचनाये अनुराग! जिंदगी को दर्पण के सामने लाकर खड़ा कर देते हो. इसी दर्पण को मैं तुम्हारी कविता के रूप में जानती हूँ. :)

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  61. अनकही मजबूरियाँ भी, हैं किसी के वास्ते
    और खुलते हैं वहीं से , ज़िंदगी के रास्ते

    सटीक परिभाषा..............

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है