छुपा कर बेटे बहु से
वो आज भी सहेजती है
बासी अखबार
संभाल कर रखती है
पुरानी साडियां
जोड़ती रहती है
घर का टूटा सामान
सब से आँखों बचा कर
रोज देखती है खिडकी के बाहर
कान लगाये सुनती है
कुछ जानी पहचानी
कुछ अन्जानी सी आवाजें
पर नहीं आती वो आवाज
जिसका रहता है इंतज़ार माँ को
“पुराने कपडे, पुराना सामान, रद्दी-अखबार दे दो
बदले में बर्तन ले लो”
इलाका तो वही है बरसों से
कुछ पडोसी भी वही हैं
बस अम्मां समझ नहीं पाई
कब मोहल्ला शहर में तब्दील हो गया
गुज़रती उम्र के साथ
अम्मा की आदत भी तो नहीं छूटती ...
बहुत सही विवरण दिया है आपने इस रचना में |
जवाब देंहटाएंआशा
उम्दा है जी!
जवाब देंहटाएंसमय-समय की बात है अब बहुत कुछ बदलता जारहा है..बस पुरानी यादें पुरानी बातें ही रह गई है..
जवाब देंहटाएंइलाका तो वही है बरसों से
जवाब देंहटाएंकुछ पडोसी भी वही हैं
बस अम्मां समझ नहीं पाई
कब मोहल्ला शहर में तब्दील हो गया ......
kya khoob kaha hai sir....
pyaari rachanaa
इलाका तो वही है बरसों से
जवाब देंहटाएंकुछ पडोसी भी वही हैं
बस अम्मां समझ नहीं पाई
कब मोहल्ला शहर में तब्दील हो गया
गुज़रती उम्र के साथ
अम्मा की आदत भी तो नहीं छूटती ...
सुंदर रचना व भावाभिव्यक्ति !!
बहुत ही सुन्दर कल्पना ....और कोमल भावनाएं...वास्तव में ...परिवेश बदल जाते हैं ....आदतें नहीं .....!
जवाब देंहटाएंगुज़रती उम्र के साथ माँ की यादे हमेशा आती रहेगी,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,,
RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंउन्हीं के साथ बचा हुआ है थोड़ा पुरनपन और चीजों से लगाव !!
जवाब देंहटाएंसमय के साथ सब कुछ बदल गया है लेकिन यादों में वह अब भी बाकी है...बहुत प्यारी रचना...
जवाब देंहटाएंएक एक चीज सहेजने की आदत तो वक्त सिखा जाता है।
जवाब देंहटाएंआदते कहाँ बदल पाती हैं ...बस माहौल बदल जाता है ..सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंachchhi abhivyakti
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना सर....
जवाब देंहटाएंसादर
bahut hi bhawpoorna wa umda prastuti
जवाब देंहटाएंसमय के साथ कितना कुछ बदल जाता है भाई साहब !
जवाब देंहटाएंरह जाती हैं तो बस यादें . लेकिन अम्मा तो समय के साथ बदल भी नहीं सकती .
बदल गया परिवेश... नहीं बदली कुछ बातें!
जवाब देंहटाएंमाँ के ममतामयी भोलेपन का सचित्र चित्रण !
जवाब देंहटाएंअक्सर ऐसा होता है ....समय बदल जाता है नहीं बदलता तो वो समय जिसे बदलने में किसी की दुनिया ही बदल जाती है !
जवाब देंहटाएंगुज़रती उम्र के साथ
जवाब देंहटाएंकब मोहल्ला शहर में तब्दील हो गया ......
पता ही नहीं चलता कैसे कब ज़िन्दगी गुजर जाती है ,एक लत ,एक आदत इन्सान को बूढ़ा नहीं होने देती,
बहुत कुछ वक्त बदलने पर भी नही बदलता।
जवाब देंहटाएंपर नहीं आती वो आवाज
जवाब देंहटाएंजिसका रहता है इंतज़ार माँ को
“पुराने कपडे, पुराना सामान, रद्दी-अखबार दे दो
बदले में बर्तन ले लो”....... जाने क्यूँ आँखें डबडबा गयीं , कहाँ भटक गया सारा शहर !
"छुपा कर बेटे बहु से
जवाब देंहटाएंवो आज भी सहेजती है
बासी अखबार
संभाल कर रखती है
पुरानी साडियां
जोड़ती रहती है
घर का टूटा सामान
गुज़रती उम्र के साथ
अम्मा की आदत भी तो नहीं छूटती ..."
बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती रचना...बहुत बहुत बधाई...
बहुत सुदर
जवाब देंहटाएंवो जो याद है अम्मी को
जवाब देंहटाएंयाद करोगे कभी तुम भी!
सब कुछ बदल जाए पर अम्मा तो अम्मा ही रहेगी
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया! एक जीवन में कितना कुछ बदल जाता है, बस हम नहीं बदल पाते।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
भावुक कर देने वाली अभिव्यक्ति !!!
जवाब देंहटाएंअम्मा अम्मा है इसलिए वह तो सदियों से एक सी है। बाक़ी वे ... उनकी मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले ।
जवाब देंहटाएंअम्मा अम्मा है इसलिए वह तो सदियों से एक सी है। बाक़ी वे ... उनकी मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले ।
जवाब देंहटाएंअम्मा अम्मा है इसलिए वह तो सदियों से एक सी है। बाक़ी वे ... उनकी मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले ।
जवाब देंहटाएंदेखा जाना सा..... हम भी यूँ ही सहेजना सीख जाते हैं वक़्त के साथ
जवाब देंहटाएंनाजुक एहसास को अभिव्यक्त करने की कला कोई आपसे सीखे।...वाह!
जवाब देंहटाएंसच में सब बदल गया मगर अम्मा नहीं बदलीं...हमारी भी ऐसी ही हैं अब तक.....
जवाब देंहटाएंसादर.
बेहद उम्दा रचना !
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कहीं छुट्टियाँ ... छुट्टी न कर दें ... ज़रा गौर करें - ब्लॉग बुलेटिन
अम्मा का बार्टर सिस्टम शहर में है तो लेकिन रूपाकृति बदल के है .यहाँ ज़िंदा जिस्मों की अदला बदली होती है .पुराने जींस , कपडे पुराने सोफ्ट टॉय फुटपाथ पे बिक्तें हैं सोम बाज़ार में मिलतें हैं .बढ़िया बिम्ब अम्मा आज भी सहेजना चाहती है घर को दो पैसे का जुगाड़ हो घर के लिए .अम्मा हर दम घर का ही तो सोचती है .बढ़िया शब्द चीते भाव चित्र अम्मा का .
जवाब देंहटाएंये तो आज भाभी की फेस बुक पर देखकर कमेंट कर आये थे....मिलजुल कर लिख रहे हो क्या आजकल....:)
जवाब देंहटाएंvahi aadat to amma ko amma banaye hue hai ...!!
जवाब देंहटाएंsundar bhaav ...
shubhkamnayen .
इलाका तो वही है बरसों से
जवाब देंहटाएंकुछ पडोसी भी वही हैं
बस अम्मां समझ नहीं पाई
कब मोहल्ला शहर में तब्दील हो गया
गुज़रती उम्र के साथ
अम्मा की आदत भी तो नहीं छूटती ...
bahut sundar rachna ....
पर नहीं आती वो आवाज
जवाब देंहटाएंजिसका रहता है इंतज़ार माँ को
बहुत बेह्तरीन अक्कासी की है आप ने माँ की
बहुत उम्दा!!
:-) sach kaha aapne
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया... ये बदलाव हमारे भीतर के रस को भी सोख लेते हैं.. अम्मा की चाह सिर्फ पुरानी चीजों से बरतन बदलने की नहीं, बल्कि बरतन वाली से दो चार दुख सुख की बातें करने की भी होती हैं.. वह संवेदना ही खो गई है अब।
जवाब देंहटाएंबस अम्मां समझ नहीं पाई
जवाब देंहटाएंकब मोहल्ला शहर में तब्दील हो गया.....yahi to sach hai.....kho gaya muhalla.
बदलाव के साथ यादें और कुछ आदतें नहीं बदलती या यूँ कहिये जीवन का हिस्सा बन जाती हैं जिन्हें हम बदलना भी नहीं चाहते... सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंमन को छूते हुए रचना के भाव ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंपुरानी यादों का ही तो सहारा होता है...महल्ले भले ही शहर बन जाएँ..पर यादें कहाँ जायेंगी..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति... आभार
जवाब देंहटाएंगुज़रती उम्र के साथ
जवाब देंहटाएंअम्मा की आदत भी तो नहीं छूटती ...
जब यही सीखा है कि कोई चीज़ फालतू नही होती।
सही कहा पुरानी आदतें कहां जाती हैं आसानी से ।
dil ko chhoo jane wali nazm...badhai.
जवाब देंहटाएंकोमल भावो की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है सर जी....रचना के भाव पसंद आए!
जवाब देंहटाएंअम्मा के अपने सुख हैं ...कौन ध्यान देता है !
जवाब देंहटाएंसादर
कुछ तो है जो समय से परे है..जैसे अम्मा ..सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंअपने बहुत ही अच्छी तरह से और सयुक्त सब्दो को सजोया है मन पर्फुलित होगया यहाँ आके
जवाब देंहटाएंhttp://dineshpareek19.blogspot.in/2012/06/blog-post_04.html
आप मेरे ब्लॉग पर आकर आपने प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद., आशा करता हूँ की आप आगे भी निरंतर आते रहेंगे
आपका बहुत बहुत धयवाद
दिनेश पारीक
अपने बहुत ही अच्छी तरह से और सयुक्त सब्दो को सजोया है मन पर्फुलित होगया यहाँ आके
जवाब देंहटाएंhttp://dineshpareek19.blogspot.in/2012/06/blog-post_04.html
आप मेरे ब्लॉग पर आकर आपने प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद., आशा करता हूँ की आप आगे भी निरंतर आते रहेंगे
आपका बहुत बहुत धयवाद
दिनेश पारीक
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंGood commentary on changing times.
जवाब देंहटाएंगुज़रती उम्र के साथ.....
जवाब देंहटाएंअम्मा के प्यार करने की आदत तो और पक्की हो जाती है ...बदलती तो औलाद है |
नमन ऐसी माँ को ...
शुभकामनाएँ!
भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंअम्मा तो अम्मा है , उनकी आदतें कहाँ छूटती हैं !
जवाब देंहटाएंलगता है हमारा शहर अभी महानगर नहीं बना , जब तक रद्दी वाले ,पुराने कपड़े के बदले बर्तन लेने वाले नजर आ जाते हैं अभी भी :)
बेहतरीन सुन्दर
जवाब देंहटाएं(अरुन =arunsblog.in)
शानदार भावों से सजी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंइलाका तो वही है बरसों से
जवाब देंहटाएंकुछ पडोसी भी वही हैं
बस अम्मां समझ नहीं पाई
कब मोहल्ला शहर में तब्दील हो गया
और नासवा साहब अब तो शहर भी 'माल " हो रहें हैं अपनी पहचान खोके .शहर अपना होता था माल में वो बात कहाँ .अम्मा वही पुराना टूटे फूटे कांच के बदले नमक ढूंढती है . सिस्टम आज भी ढूंढती है .पुराने कपडे सहेज कर बेच आये उसका बस चले तो और दो पैसा घर ले आये .बढ़िया पोस्ट भाई साहब .शहर होना अपनी पहचान खोना है अपनापन खोना है एक के बाद एक शहरों का चेरा सपाट होने लगा है .
देखते देखते शहर माल हो गए ,
कुछ लोग बेहद मालामाल हो गए .
झोपण सब बे हाल हो गए ......
शनिवार 09/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंbahut maarmik rachna hai ek katu satya ke samete huye...
जवाब देंहटाएंbahut maarmik rachna hai ek katu satya ke samete huye...
जवाब देंहटाएंsir
जवाब देंहटाएंmaa apni dhroharon ko sadaiv sahej kar rakhti hai-----maato to maa hai na vo kaise bhul sakti hai apni in
yaadon ko bahut bahut hi achhi abhivykti---shandaar
poonam
इस नादान सी जिंदगी में बहुत सी बाते और यादे कभी पीछा नहीं छोड़ सकती .....
जवाब देंहटाएंDiganmbar sahib,
जवाब देंहटाएंvery nice touching representing true sentiments of a mother.
अम्मा कहाँ बदलने वाली हैं .....ज़माना बदल गया पर ...... बहुत मर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंबहूत सुंदर मार्मिक अभिव्यक्ती....
जवाब देंहटाएंएक छोटी सी बात को आपने कितने सुन्दर तरीके से कहा है.
जवाब देंहटाएंsahi bat hai...
जवाब देंहटाएंइलाका तो वही है बरसों से
जवाब देंहटाएंकुछ पडोसी भी वही हैं
बस अम्मां समझ नहीं पाई
कब मोहल्ला शहर में तब्दी
ल हो गया
भाई साहब दुखद लेकिन सत्य ,अम्मा बाबूजी आज खुद रद्दी अखबार हो गएँ हैं ,पुराने केलेंडर की तरह दीवार पर टंगे नै तारीक बतलाने में असमर्थ .नासवा साहब आपकी ब्लॉग दस्तक अतिरिक्त उत्साह से भर भर जाती है .लेखन की आंच बन बन आती है .
vaah........bahut sundar rachna ---abhar
जवाब देंहटाएंसर जी...क्या लिखूं..? दिल को झकझोर कर रख दिया आपने....आपको हार्दिक शुभकामनाएँ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.... यादो से बचना मुश्किल है !
जवाब देंहटाएंकस्बे शहर जाएँ फिर भी....अम्मा सब जानती है. सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएं’गुज़रती उम्र के साथ
जवाब देंहटाएंअम्मा की आदत भी तो नहीं छूटती’
यादों के लम्हें जी लिये,आपके साथ,सादर आभार.
बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंअम्मा बेचारी
आदत से मजबूर.