“बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ” डॉ उर्मिला सिंह, (ब्लॉग: “मन
के-मनके”) के अपने शब्दों में “यह पुस्तक एक खोज है, उस स्वर्ग की जो हमारी मुट्ठी
में बंद है” वो आगे लिखती हैं “मैंने अपने स्वर्ग को स्वयं ढूँढा है, स्वयं रचा है
और उसे पाया है”.
और सच कहूं तो जब मैंने इस पुस्तक को पढ़ने की शुरुआत की तो
मुझे भी लगा की वाकई स्वर्ग तो हमारे आस पास ही बिखरा हुवा है छोटी छोटी खुशियों
में, पर हम उसे ढूंढते रहते हैं, खोजते रहते हैं मृग की तरह.
अपनी शुरूआती कविता में उर्मिला जी कहती हैं की स्वर्ग
खोजने बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है ये तो आस पास ही फैला है, देखिये ...
सूनी गोद में
किलकारियां भरते हुए
अनाथ बचपन को
आँचल से ढंकते हुए
बिखरे हैं, स्वर्ग
चारों.....तरफ
आगे आगे उनका कवी मन सचेत भी करता है, यहां तक की अपने आप
से भी प्रश्न खड़ा करता है और कहता है
अपने निज अस्तित्व की
खोज में
अपनत्व के खंडहरों पर
चलते रहे
बहुत देर हो जाएगी और
....
खंडहरों के भी
रेगिस्तान हो जाएंगे
ढहता हुवे टीला, रेत
का
दबी फुसफुसाहटों में
कहता रह जाएगा..
बिखरे...हैं स्वर्ग
चारों...तरफ
मुझे याद आता है जब पहली बार हमारे मोहल्ले में ब्लैक एंड
वाईट टी.वी. आया तो तो हम भी इतने खुश थे जैसे वो हमारे घर में आया हो. हफ्ते में
एक दिन आने वाला चित्रहार और कृषि दर्शन भी ऐसे देखते की बस इससे ज्यादा कोई खुशी
ही नहीं जीवन में. और आज जबकि सब कुछ है सब के पास फिर भी इतनी खुशी नहीं ... शायद
इस लिए ही उर्मिला जी ने कहा है की खुशी ढूंढनी है तो बाहर निकलो अपने आप से और
महसूस करो ...
पुस्तक की अधिकाँश कविताएं इन्ही बिखरे हुवे स्वर्ग की तलाश
है ... हर कविता आपको जागृत करती हुयी सी है की ये देखो स्वर्ग यहां है ... यहां
है ... और यहां भी है ... यहां उन सब कविताओं को लिख के आपका मज़ा खराब नहीं करना
चाहता ...
आपको एक किस्सा सुनाता हूँ जानकार आश्चर्य होगा किताब पढ़ने
के बाद ... मैंने बिल्डिंग के कुछ बच्चों से पूछा की मुझे अपने बचपन की कुछ यादें
बताओ जिनसे तुम्हे खुशी मिली हो और जो तुम्हें याद हो तो उनके पास कुछ जन्म दिन की
यादें, कुछ अपने स्कूल की बातें, और बहुत जोर डालने पे जहां जहां घूमने गए उन
जगहों की बाते ही याद थीं ... फिर जब उन्होंने मुझसे पूछा तो लगा मेरे पास तो जैसे
हजारों यादें हैं बचपन की ... छोटी छोटी बातें जिनमें जीवन का स्वर्ग सच में था
... छत पे बिस्तर लगा कर सोना, तारों और बादलों में शक्लें बनाना, गिल्ली डंडा और
लट्टू खेलना, छुट्टियों में मामा या बूआ के घर जाना, आम चूपना, गन्ने चूसना,
मधुमक्खी के छत्ते तोड़ना, बिजली जाने पे ऊधम मचाना, होली की टोलियाँ बनाना ... और
देखा ... बच्चे बोर हो के चले गए अपने अपने फेस बुक पे ...
असल बात तो ये है की स्वर्ग की पहचान भी नहीं हो पाती कभी
कभी और इसलिए उर्मिला जी कहती हैं ...
स्वर्ग पाने से पहले
पहचान उसकी है जरूरी
स्वर्ग के भेष में, छुपे हैं
चारों तरफ कितने बहरूपिए
अगर गौर से देखें तो स्वर्ग तो पहले भी हमारे पास था और आज
भी हमारे पास ही है बस हमें ढूँढना होगा छोटी छोटी खुशियों में.
इस पुस्तक के माध्यम से उर्मिला जी सचेत करना चाहती हैं की
जागो, देखो आस पास की वो सभी चीजें जिनमें स्वर्ग की आभा सिमिट आई है, वो दिखाना
चाहती हैं की कौन से पल हैं जीवन में जिनमें स्वर्ग पाया जा सकता है पर जाने
अनजाने उन लम्हों कों देख नहीं पाते.
मैं अपने आपको खुशकिस्मत समझता हूँ की मुझे उर्मिला जी की
ये किताब पढ़ने का मौका मिला, अपने बच्चों कों भी आग्रह कर के पढ़ने को कहा है जिससे
वो भी जान सकें की “बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ”
पुस्तक का प्रकाशन जाने माने प्रकाशन “शिवना प्रकाशन पी सी
लैब, सम्राट काम्प्लेक्स बेसमेंट, बस स्टैंड, सीहोर – ४६६००१ (म.प्र)” से हुवा है मूल्य
१२५ रूपये. आप इसे उर्मिला जी से भी प्राप्त कर सकते हैं. उनका ई मेल है ...
Mobile: +91-8958311465
“बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ”
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है ... बहुत ही सहज व सरल शब्दों में सशक्त समीक्षा ... उर्मिला जी को बधाई आपका इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार
बहुत बढ़िया ..बच्चे आज कल कहाँ जान पाते हैं इस तरह के स्वर्ग को .. बहुत अच्छी समीक्षा की आपने .उर्मिला जी को बधाई .पुस्तक पढने का दिल हो आया
जवाब देंहटाएंबढ़िया समीक्षा , सबको अपने स्वर्ग धुधना पड़ता है . बधाई उर्मिला जी को .
जवाब देंहटाएंउर्मिला जी की रचनाएँ .... आपकी समीक्षा .. ज्यों स्वर्ग उतर आया हो शब्दों में
जवाब देंहटाएंसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा की है ।
जवाब देंहटाएंपुस्तक में खुशियों पर विस्तार से चर्चा है , हमारे लिए तो यही ख़ुशी की बात है .
जवाब देंहटाएंइस तरह की सकारात्मक सोच हमें तो बहुत भाती है . उर्मिला जी को बधाई .
बहुत बढ़िया पुस्तक परिचय ... उर्मिला जी को और आपको बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा....
जवाब देंहटाएंसुंदर समीक्षा ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं.
बहुत ही गूढ़ समीक्षा...आभार
जवाब देंहटाएंमन के मनके की डाक्टर उर्मिला को
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई |
स्वर्ग सचमुच आस-पास है -
एहसास है या नहीं है-
अच्छी समीक्षा |
आभार भाई जी ||
सशक्त और सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंडॉ उर्मिला सिंह की “बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ” कृति से परिचय कराने का आभार
जवाब देंहटाएं“बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ" को सार्थक कर दिया उर्मिला जी ने और उस पर सोने पे सुहागा आपकी समीक्षा ने …………आप दोनो को बधाई।
जवाब देंहटाएं"बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ” कृति से परिचय कराने का आभार नासवा जी
जवाब देंहटाएंउर्मिला जी और आपको बहुत बहुत बधाई !!
@ संजय भास्कर
उर्मिला जी को "बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ" के लिए हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंआपने 'बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ' का बहुत ही अच्छा परिचय दिया है !
सशक्त समीक्षात्मक नज़र
जवाब देंहटाएंउर्मिला जी को बधाई
हम तो भाई साहब खरबूजा /तरबूजा मीठा निकल आए तो बहुत खुश हो जातें हैं ,बचपन में चूसे बाल्टी भरके 'टपके आम ' गाँव की छाँव ....गंग नहर (बुलंदशहर,उत्तर प्रदेश )पर चोरी छिपे जल के साथ अठखेली ,आम के कलमी बाग़ से चोरी चोरी आम तोड़ना .....सागर विश्वविद्यालय की पठारिया हिल्स की शामें बाहों में बाहें हाथों में हाथ डूबता सूरज और उनका साथ वह वायवीय दिन एक तरफ़ा प्रेम की पींगें ,हवा में उड़ना उड़ते उड़ते बहुत ऊपर उठ जाना सब कुछ तो याद है पर तब स्पर्श सिर्फ मन का होता था वह वायुवीय प्रेम था ,वायदों का ...बादलों के रंग का .....उदास शाम का .....बे तहाशा भागते कुलाचे भरते बादलों से बतियाने का ...गाने का बजाने का ....जा रे जा रे उड़ जा रे पंछी ,बहारों के देश प्यारे यहाँ क्या है मेरे प्यारे ....,और फिर जाइए आप कहाँ जायेंगें ये नजर लौट के फिर आयेगी ....जी हाँ आस पास ही बिखरा है सब कुछ हम अपने खोल से निकलें तो सही ....व्यतीत में ही लौटें ----
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट कवि मन करलें 'कवी मन को '
आगे आगे 'उनका कवी मन' सचेत भी करता है, यहां तक की अपने आप से भी प्रश्न खड़ा करता है और कहता है
अपने निज अस्तित्व की खोज में
अपनत्व के खंडहरों पर चलते रहे
बहुत देर हो जाएगी और ....
खंडहरों के भी रेगिस्तान हो जाएंगे
ढहता हुवे टीला, रेत का
दबी फुसफुसाहटों में
कहता रह जाएगा..
बिखरे...हैं स्वर्ग
चारों...तरफ
नए साल पे नए साल के कार्यक्रम देखते थे ब्लेक एंड वाईट टी वी पर मूंगफली रेबडी खाते खाते और बस ....नया साल मुबारक .तब नए साल का आना गोचर था ...अब सब कुछ अगम अगोचर ही बना रहता है ब्लेक एनर्जी सा ,डार्क मेटर सा ....स्वर्ग कहाँ बिला गए हामरे तुम्हारे ....?
सच है स्वर्ग आसपास ही है हम खोजें तो सही.
जवाब देंहटाएंBadhiya samikshaa prastuti.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत शब्दों में उर्मिला जी की पुस्तक की समीक्षा ...आभार
जवाब देंहटाएंसमीक्षा पढ़ने की इच्छा जगा गयी..
जवाब देंहटाएंबढ़िया समीक्षा....उर्मिला जी को बधाई
जवाब देंहटाएंबिखरे हैं स्वर्ग चारो तरफ. उर्मिला जी को इस सुंदर पुस्तक प्रकाशन पर बधाई. सुंदर समीक्शा के लिये
जवाब देंहटाएंलिये आपको भी . जिन छोटी छोटी बातो में आनन्द
लेना हम भूल गये हैं स्वर्ग तो उनही में है.
एक कवि की नज़र से की गई समीक्षा अच्छी है !
जवाब देंहटाएंsach 1urmila ji ki rachnayen padh kar laga ki ham bhi apne bachpan me lou aaye hain .
जवाब देंहटाएंaur aaj ke bachcho ko dekhti hun to lagta hai ki kahan hai unka bachpan vahi peeth par bhari -bahri basto ka bojha ya fir mobile net ya t.v---
isi me unka bachpan simat gaya hai---
urmila ji ki rachnayen bilkul sateek aur sarthak hain aur aapki samikxh bhi bahut hi achhi lagi---
-ek prerak prabhavi prastuti
sadab dhanyvaad----sir
poonam
बढ़िया समीक्षा की है आपने..पुस्तक और उर्मिला जी से परिचय करवाने का आभार!
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर समीक्षा
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर समीक्षा ...उर्मिलाजी को ढेर सारी बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर पुस्तक से रु ब रु करवाया...आभार
जवाब देंहटाएंउर्मिला जी को बधाई..इतनी ख़ूबसूरत..सार्थक कविताओं की रचना के लिए
अच्छी समीक्षा.... वाकई स्वर्ग तो हमारे इर्द गिर्द ही है उसे खोजने की जरूरत है.उर्मिलाजी को बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.... आपके इस पोस्ट की चर्चा आज 29-6-2012 ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित है ..अपने बच्चों के लिए थोडा और बलिदान करें.... .धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
जवाब देंहटाएंपुस्तक समीक्षा से लेखिका का परिचय मिला. आभार. लेखिका को बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंउर्मिला जी की कृति ‘बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ‘ की बहुत अच्छी समीक्षा की है आपने।
जवाब देंहटाएंपढ़ने की इच्छा जगी है।
बहुत ही गूढ़ और सटीक समीक्षा..
जवाब देंहटाएंबधाई उर्मिला जी को ...
जवाब देंहटाएंअच्छी समीक्षा ...उर्मिला जी को बधाई !
जवाब देंहटाएंबढ़िया पुस्तक समीक्षा ....
जवाब देंहटाएंउर्मिला जी को बधाई !!
मैं तो बिखरे स्वर्ग को समेटने चला :)
साभार !!
behtreen samikhshatmak lekh ke liye badhai
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी समीक्षा सर....
जवाब देंहटाएंदिल चाहा पढ़ने का.....
चारों तरफ स्वर्ग पाने की इच्छा जो कुलबुलाने लगी.....
सादर
अनु
Badi hi acchee samiksha kii hai..
जवाब देंहटाएंkabhi avasr hua to main bhi padhna chahungee.
बिलकुल सच कहा आपने -कस्तूरी कुंडल बसे ,मृग ढूंढें वन माहिं....बढ़िया समीक्षा अपना आसपास भी खंगालना ज़रूरी स्वर्ग की पहचान भी ...
जवाब देंहटाएंस्वर्ग पाने से पहले
पहचान उसकी है जरूरी
स्वर्ग के भेष में, छुपे हैं
चारों तरफ कितने बहरूपिए
बढ़िया समीक्षात्मक पोस्ट .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
रविवार, 1 जुलाई 2012
कैसे होय भीति में प्रसव गोसाईं ?
डरा सो मरा
http://veerubhai1947.blogspot.com/
सूनी गोद में
जवाब देंहटाएंकिलकारियां भरते हुए
अनाथ बचपन को
आँचल से ढंकते हुए
बिखरे हैं, स्वर्ग
चारों.....तरफ
- लाजवाब! उर्मिला जी और पुस्तक की जानकारी के लिये धन्यवाद नासवा जी!
सुन्दर परिचय कराया है स्वर्ग की पहचान वाया उर्मिला जी से.. आप दोनों को शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंbilkul sahi parichay karwaya aapne aur urmilaji ne swarg se......jee lalacha gaya kitaab padhane ko....dukh hota h ki humare bacche mahrum h is swargiy sukh se
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंI was very encouraged to find this site. I wanted to thank you for this special read. I definitely savored every little bit of it and I have bookmarked you to check out new stuff you post.
जवाब देंहटाएंGood efforts. All the best for future posts. I have bookmarked you. Well done. I read and like this post. Thanks.
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