स्वप्न मेरे: जिंदगी सिगरेट का धुंवा ...

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

जिंदगी सिगरेट का धुंवा ...


मुझे याद है 
धुंवे के छल्ले फूंक मार के तोड़ना तुम्हें अच्छा लगता था 

लंबी होती राख झटकना 
बुझी सिगरेट उंगलियों में दबा लंबे कश भरना 
फिर खांसने का बहाना और देर तक हंसना  

कितनी भोली लगतीं थीं तुम 

गर्मियों की दोपहर का ये सिलसिला 
मेरी आदत बन चुका था उन दिनों 
हाथों के फ्रेम बना जब तुम अलग अलग एंगल से मेरा चेहरा देखतीं     
तो मैं अपने आप को तुमसे अलग नहीं देख पाता था   

फिर कई दिन तुम नही आयीं 
सुलगती यादों की आग मेरे जिस्म में बहने लगी   
धुंवे के हर कश के साथ मैं तुम्हें पीने लगा   

सच कहूं तो सिगरेट की आदत इसलिए भी रास आने लगी थी   
क्योंकि उसके धुंवे में तुम्हारा अक्स झलकने लगा था 

अचानक उस शाम 
किसी खामोश बवंडर की तरह तुम मेरे कमरे मे आयीं    
हालांकि तन्हा रात के क़दमों की आहट के साथ तुम चली गयीं हमेशा हमेशा के लिए 
पर जाते जाते मेरे होठ से लगी सिगरेट 
अपनी हाई हील की एड़ी से बुझाते हुवे तुमने बस इतना कहा 
“प्लीज़ ... आज के बाद कभी सिगरेट मत पीना” 

और मैं .... पागल 

अब क्या कहूं 

काश तुमने ये न कहा होता 
कोइ तो बहाना छोड़ा होता मेरे जीने का 
अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ 
ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ 

लम्हों के “बट” तो अभी भी मिल जायंगे ... 
कुछ बुझे बुझे ... कुछ जलते हुवे धुंवा धुंवा ...   

93 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर अंदाज में प्यारी सी रचना..

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  2. वाह ... लेखन का यह बेहतरीन अंदाज ... उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति की रचना करना ...

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  3. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    एक कसक भरी सुन्दर रचना...

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  4. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    उफ़ ………मोहब्बत जीने के बहाने कब छोडती है ?

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  5. achha laga padh kar aapko....
    ji liye wo lamhe saare jo raakh ban kar jhad rahe hain.....

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  6. वाह क्या कहे ..लम्हे और सिगरेट का धुंआ और यादे ..एक अलग सी कशिश है आपकी इस रचना में ..आपकी लिखी रचनाओं में बेहतरीन रचना लगी मुझे यह ..

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  7. shayad ciggrette aise hi pee jati hai.aapko maha shivratri kee bahut bahut shubhkamnayen .nice presentation समझें हम.

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  8. उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।

    आइये-

    सादर ।।

    आदरणीय पाठक गण !!

    किसी भी लिंक पर टिप्पणी करें ।

    सम्बंधित पोस्ट पर ही उसे पेस्ट कर दिया जायेगा 11 AM पर-

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  9. अब क्या कहूँ... सोच रही हूँ, कितने अनूठे ख्याल होते हैं आपकी रचनाओं में सचमुच... लाजवाब प्रस्तुति

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  10. वाह.............
    बहुत सुन्दर रचना...

    सादर
    अनु

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  11. सच्चे आशिक़ बात कहाँ मानते हैं . :)

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  12. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    लम्हों के “बट” तो अभी भी मिल जायंगे ...
    कुछ बुझे बुझे ... कुछ जलते हुवे धुंवा धुंवा

    इन पंक्तियों ने तो ग़दर मचा दिया.बहुत बहुत बहुत जबरदस्त.

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  13. ज़िन्दगी एक जलती सिगरेट की तरह ही ह, एन्ज्वाय करो वरना सुलग तो रही ही है, खतम तो इसे वैसे भी होना ही है, चाहे किसी सैंडिल के हील के नीचे ही सही।

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  14. सचमुच! सिगरेट के एक छोर पर पीने वाला होता है...और दूसरे पर मौत...
    सुंदर अभिव्यक्ति !
    सादर!

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  15. बधाई एक अच्छी रचना के लिए ...

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  16. Cigarette ka kaho ya aur kisi cheez ka zindagee dhua to zaroor hai....bahut sundar rachana!

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  17. जिंदगी कैसी पलटी खाती है कभी कभी कभी जिंदगी के लिए पीते हैं कभी मौत के लिए वक़्त वक़्त की बात है बहुत सुन्दर अंदाज में दिल के गुबारों को शब्दों में ढाला है वाह

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  18. ऊँगली में कुछ न भी हो तो जिन्दगी की राख यूँ ही झरती रहती है..अहसास करा दिया...सुन्दर लिखा है..

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  19. रचना प्रेमरस में डूबी .........अच्छी लगी

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  20. वाह! निशब्द करे दिया आपने....

    अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

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  21. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ
    alag si kasak rachi hai aapne..

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  22. लम्हों के 'बट'...


    क्या बात है!
    एक सुलगती नज़्म .

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  23. प्रेम और पीड़ा दोनों लिए है रचना.... सुंदर

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  24. फिर कई दिन तुम नही आयीं
    सुलगती यादों की आग मेरे जिस्म में बहने लगी
    धुंवे के हर काश के साथ मैं तुम्हें पीने लगा
    बहुत बढिया प्रयोग 'कश -दर-कश 'तुम्हें पीने लगा पीते रहा ,

    और तुम आईं जाम हटाके चली गईं मेरे ओठों से ....

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  25. सुलगती जिंदगी को सुँदर शब्द दिये आपने . कसक सी उठी है तो कविता तो निकलनी ही थी . सुँदर ..

    जवाब देंहटाएं
  26. सुलगती जिंदगी को सुँदर शब्द दिये आपने . कसक सी उठी है तो कविता तो निकलनी ही थी . सुँदर ..

    जवाब देंहटाएं
  27. भाई दिगंबर नासवा जी!
    बहुत ही अच्छी लगी यह नज़्म....मज़ा आ गया.

    धुआं को रदीफ़ बनाकर मैंने भी एक ग़ज़ल कही थी. लिंक भेज रहा हूँ. उम्मीद है पसंद आएगी.

    ग़ज़लगंगा.dg: हरेक सांस में......:

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  28. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

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  29. jindgi ke beete dino ki kitni dharoharen hoti hain na insan k paas...sabke pas hoti hain...lekin un dharoharon, unehsason ko u shabd de pana har kisi k bas ki baat nahi hoti. aap ko khud par fakr hona chaahiye ki dabi chingariyon ki jalan ko aap kagaz par utar pate hai. kuch to sukoon milta hi hoga na ? for zindgi ko u sulga sulga kar kyu bitana. (Manoj ji ki baat se sehmat) ye zindgi rait ki tarah hath se har haal me fisalni hi hai fir kyu na iski nami ka lutf uthate hue ise fisalne diya jaye.....!

    hamesha ki tarah lajawab prastuti.

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  30. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ ...
    सिगरेट के साथ ख्वाहिशें जलती तो बेहतर था वरना तो जिंदगी झड रही है राख सी ...
    आह! कहूँ या वाह !

    जवाब देंहटाएं
  31. पुराने जमाने की सी रचना, जब प्रेम में विरह का प्रतीक सिगरेट हुआ करती थी।

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  32. वाह क्या अंदाज है
    सिगरेट है धुआँ है
    सैंडिल है बट है
    बस वो नहीं है
    बस धुआँ है
    पता भी नहीं
    चलता है अब
    कहाँ कहाँ है !

    जवाब देंहटाएं
  33. धुआँ-धुआँ जीवन किया, तम्बाकू ने आज।
    जकड़ा इसके जाल में, अपना सर्व समाज।।

    जवाब देंहटाएं
  34. वाह क्या कसक है...मान गये नासवा जी आपको. आपकी आज तक की अनेकों बेहतरीन रचनाओं में से एक. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  35. ye ciggrett ka dhuaan mujhe bhi pyara lagta hai deekhne me.... apne ahsaaso ko koi bhi roop dekar usme dekh sakte ho:)

    bahut behtareen!

    जवाब देंहटाएं
  36. गर्मियों की दोपहर का ये सिलसिला
    मेरी आदत बन चुका था उन दिनों
    हाथों के फेम बना जब तुम अलग अलग एंगल से मेरा चेहरा देखतीं
    तो मैं अपने आप को तुमसे अलग नहीं देख पाता था

    Wah,क्या अहसास जगाये !

    जवाब देंहटाएं
  37. अपनी हाई हील की एड़ी से बुझाते हुवे तुमने बस इतना कहा
    “प्लीज़ ... आज के बाद कभी सिगरेट मत पीना”

    मैं सुनता..
    "प्लीज... आज के बाद जीने के लिये साँस मत लेना"

    जवाब देंहटाएं
  38. सिगरेट की आदत इसलिए भी रास आने लगी थी
    क्योंकि उसके धुंवे में तुम्हारा अक्स झलकने लगा था ...

    अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ .... ज़िन्दगी यूँ ही हो जाती है ... न धुंआ न राख

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  39. कोमल अहसास नाजुक से भाव व्यक्त करती
    बेहतरी रचना.....

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  40. बढ़िया रचना एक अलग अंदाज में,
    सुंदर लगी !

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  41. काश तुमने ये न कहा होता
    कोइ तो बहाना छोड़ा होता मेरे जीने का
    अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ


    सुन्दर है बहुत .रचना .एक एहसास को लेकर ज़िंदा था .और वह एहसास जाता रहा .सिगरेट का धुंआ चिढाता रहा ता -उम्र .

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  42. और मैं .... पागल

    अब क्या कहूं

    काश तुमने ये न कहा होता
    कोइ तो बहाना छोड़ा होता मेरे जीने का
    अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    लम्हों के “बट” तो अभी भी मिल जायंगे ...
    कुछ बुझे बुझे ... कुछ जलते हुवे धुंवा धुंवा ...
    आदरणीय दिगंबर जी अभिवादन ..गजब के भाव उभरे ,,प्रेम उपजा उनसे जुड़ा यादों से जुडी चीजों से मुहब्बत हाई हील की एडियों से ..मसल देना ...फिर सब कुछ बुझा बुझा ..ऐसा भी होता है जिन्दगी को पहचानना ..काट लेना इतना सहज कहाँ
    भ्रमर 5

    जवाब देंहटाएं
  43. सही है वह बट का तिनका सहारा भी ले गयी वह दर्दे दिल

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  44. दिगम्बर जी, सलाम कबूलो.. और कुछ तो कह नहीं पाउँगा इस रचना पर... अद्भुत

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  45. कई कवियों ने सिगरेट के बिंब का प्रयोग किया है. लेकिन इस कविता में इस बिंब की कई छवियों का बहुत अर्थपूर्ण प्रयोग हुआ है. इस दृष्टि से भी यह रचना बहुत ही खूबसूरत है. बधाई आपको.

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  46. वाह क्या बात है, अति सुन्दर
    (अरुन शर्मा = arunsblog.in)

    जवाब देंहटाएं
  47. चली गयी तभी तो प्रेम अब भी बाकी है...सुंदर अहसास !

    जवाब देंहटाएं
  48. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    लम्हों के “बट” तो अभी भी मिल जायंगे ...
    कुछ बुझे बुझे ... कुछ जलते हुवे धुंवा धुंवा ...


    ये कुछ बुझे बुझे से और धुआँ धुआँ से लम्हे ... सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  49. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    अविस्मर्णीय वेदना से भरपूर रचना...

    जवाब देंहटाएं
  50. काश तुमने ये न कहा होता
    कोइ तो बहाना छोड़ा होता मेरे जीने का
    अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    लम्हों के “बट” तो अभी भी मिल जायंगे ...
    कुछ बुझे बुझे ... कुछ जलते हुवे धुंवा धुंवा ...
    JINDAGI KI KAHANI JINDAGI KI KAHANI

    जवाब देंहटाएं
  51. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूं
    एश ट्रे में जिंदगी की राख झाडता हूं—
    गहरे भावों को समेटे पंक्तियां.

    जवाब देंहटाएं
  52. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूं
    एश ट्रे में जिंदगी की राख झाडता हूं—
    गहरे भावों को समेटे पंक्तियां.

    जवाब देंहटाएं
  53. काश तुमने ये न कहा होता
    कोइ तो बहाना छोड़ा होता मेरे जीने का
    अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    क्या कहूँ, बस खो गया सिगरेट के धुएं में ....
    लाजवाब पंक्तियाँ ...
    अभिवादन !

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  54. वाह...आज तो गजब का लिखा है आपने अनुपम भाव संयोजन मुझे तो सारी के सारी रचना ही बहुत बेहतरीन लगी किसी एक पंक्ति को चुन पाना बहुत मुश्किल है अति उतम प्रभावशाली रचना जो दिल छू गयी।

    जवाब देंहटाएं
  55. काश तुमने ये न कहा होता
    कोइ तो बहाना छोड़ा होता मेरे जीने का
    अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    लम्हों के “बट” तो अभी भी मिल जायंगे ...
    कुछ बुझे बुझे ... कुछ जलते हुवे धुंवा धुंवा ...
    ...............
    समय -समय की बात है ..
    धीरे-धीरे क्या कुछ और कितना बदल जाता है बहुत देर बाद पता चल पाता है
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  56. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    ...बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना..

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  57. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ

    लम्हों के “बट” तो अभी भी मिल जायंगे ...
    कुछ बुझे बुझे ... कुछ जलते हुवे धुंवा धुंवा ...

    आह!

    जवाब देंहटाएं
  58. सच कहूं तो सिगरेट की आदत इसलिए भी रास आने लगी थी
    क्योंकि उसके धुंवे में तुम्हारा अक्स झलकने लगा था
    बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना..

    जवाब देंहटाएं
  59. बीजिंग में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) तंबाकू, स्वास्थ्य सहयोग केन्द्र के निदेशक वांग चेन ने कहा कि धूम्रपान यौन संबंधी दिक्कतों का कारण बन सकता है लेकिन इस संबंध के बारे में अमेरिका या यूरोप की तुलना में चीन में ज्यादा चर्चा नहीं हुई है।

    वांग ने तंबाकू नियंत्रण कार्यशाला के दौरान कहा, हमें इस बारे में जोरशोर से बात करनी चाहिए और ठोस वैज्ञानिक आंकड़ों के साथ दावे का समर्थन करना चाहिए। पिछले साल 15 से 60 साल के 12743 चीनी पुरूषों पर किये गये सर्वेक्षण में पाया गया कि 17.1 प्रतिशत पुरूष नपुंसक थे। वांग ने कहा कि धूम्रपान से मोटापा और मधुमेह सहित कई बीमारियों का खतरा होता है.....

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  60. काश तुमने ये न कहा होता
    कोइ तो बहाना छोड़ा होता मेरे जीने का
    अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ ....
    बहुत सुन्दर....

    जवाब देंहटाएं
  61. गर्मियों की दोपहर का ये सिलसिला
    मेरी आदत बन चुका था उन दिनों
    हाथों के फेम बना जब तुम अलग अलग एंगल से मेरा चेहरा देखतीं
    तो मैं अपने आप को तुमसे अलग नहीं देख पाता था

    फिर कई दिन तुम नही आयीं
    सुलगती यादों की आग मेरे जिस्म में बहने लगी
    धुंवे के हर काश के साथ मैं तुम्हें पीने लगा
    भाई साहब अब सीधा ही कहना पड़ेगा आप "काश "कश कर लें .,फेम को "फ्रेम "
    कर लें जी हाँ हाथों के फ्रेम बनाके चेहरे को अलग अलग कोणों से निहारना आपका ही प्रयोग है ..फिर भले धुएं के साथ प्रेयसी को पियो या कार्सिनोजन हैं दोनों यकसां ,एक करे दिल को छलनी दूसरी फेफड़ों को ...शुक्रिया आपकी निरन्तर ब्लॉग दस्तक का उत्साह वर्धन का .

    जवाब देंहटाएं
  62. शुक्रिया भाई साहब ब्लॉग पे पधारने का हमारा उत्साह बढाने सिगरेट में प्रेयसी को भोगने उड़ाने का ...

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  63. बहुत बडी बातों को बहुत आसान लफ्जों में बयां कर दिया आपने।

    ............
    International Bloggers Conference!

    जवाब देंहटाएं
  64. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ
    ऐश ट्रे में जिंदगी की राख झाड़ता हूँ ।दिल को छू गयी ये पँक्तियां। दर्द को धूँयें मे उदाते तो कई बार पढा है मगर इस तरह से बिम्ब बनाना तो ये कमाल आप ही कर सकते हैं। शुभकामनायें।

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  65. खाली उँगलियों के बीच उम्र को पीना.... !!!
    अद्भुत ख़याल...
    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  66. दिगंबर जी, बहुत ही उम्दा रचना है ये.. बहुत ही बेहतरीन..

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  67. बुकमार्क कर के रख लिया है...दुबारा और तिबारा पढ़े जाने वाली कविता है ये.....
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  73. होय पेट में रेचना, चना काबुली खाय ।

    उत्तम रचना देख के, चर्चा मंच चुराय ।

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  74. अब तो खाली उंगलियों के बीच अपनी उम्र पीता हूँ ....बेहतरीन अंदाज है लेखनी का..उम्‍दा..याद रह जाने लायक

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  76. bahut sunder hai kavita. pura bimb aankhon ke samne dikh raha hai. cigarette par bhi aisi sunder kavita likhi ja sakti hai. socha nahi tha

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  77. bahut sunder hai kavita. pura bimb aankhon ke samne dikh raha hai. cigarette par bhi aisi sunder kavita likhi ja sakti hai. socha nahi tha

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