छोटी बहर की गज़लों के दौर में प्रस्तुत है एक और गज़ल, आशा है पसंद आयगी ...
आवाम हाहाकार है
सब ओर भ्रष्टाचार है
प्रतिपक्ष है ऐंठा हुवा
सकते में ये सरकार है
सेवक हैं जनता के मगर
राजाओं सा व्यवहार है
घेराव की न सोचना
मुस्तैद पहरेदार है
रोटी नहीं इस देश में
मंहगी से मंहगी कार है
मिल बाँट कर खाते हैं पर
इन्कार है इन्कार है
आज के हालात ऐसे ही हैं सर!
जवाब देंहटाएंसादर
अब यहाँ किसकी सुने ...
जवाब देंहटाएंजनता बड़ी लाचार है !
.... बढ़िया !!
बहुत खूब, यथार्थ बयां करती कविता !
जवाब देंहटाएंआदतन दो lines मैं भे जोड़ रहा हूँ :)
और जिन्होंने इन्हें
गद्दी पर बिठाया,
उनके लिए धिक्कार है !
छोटे बहर की ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार है !!
एक कोशिश मेरी भी...
वोट आ जाएँ झोली में
बाकी बातें बेकार हैं
छोटे बहर की बड़ी ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंगई बहुत जियादा मचल
भाई इसे लिये जा रही हूँ
सपताहान्त नई-पुरानी हलचल में
इसी शनिवार..15-9 को
आप भी आइयेगा..नई-पुरानी हलचल में
इसी शनिवार..15-9 को
सादर
इतने छोटे बहर में इतनी अर्थपूर्ण गजल। बढिया लगी।
जवाब देंहटाएंरोटी नहीं इस देश में
जवाब देंहटाएंमंहगी से मंहगी कार है ......बहुत सही ..सुन्दर गजल .
वाह आज के हालातों को खूब बयां किया है आपने , बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंसुन्दर समसामयिक पर ये छोटी बहार की ग़ज़ल कमाल की है .....पहले शेर में 'आवाम में' होना चाहिए था ....मुझे ऐसा लगा ।
जवाब देंहटाएंहालात बद् से बद्दतर हुए जा रहे हैं..सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंआज की परिस्थिति को उजागर करने में सफल रचना | सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंगमगीन बहुत है अब ये बात
क्युकी चरों तरफ है भ्रष्टाचार |
समसामायिक रचना..बहुत उम्दा गजल..
जवाब देंहटाएंरोटी नहीं इस देश में
जवाब देंहटाएंमंहगी से मंहगी कार है ...yahi hai aaj ka sach aur khasiyat
आज के हालत का सही चित्रण ...
जवाब देंहटाएंमोहक रचना
जवाब देंहटाएं----
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बहुत बेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंआज के हालात पर सटीक बैठती हुई...
:-)
जनता लाचार है, हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं... सटीक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंbahut khoob..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंbadtar halat ko darshati rachna..
जवाब देंहटाएंaapne sach ko bahut hi khubsurati se likha hai
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में बड़े भाव समेटना आपके हस्ताक्षर हैं।
जवाब देंहटाएंघेराव की न सोचना
जवाब देंहटाएंमुस्तैद पहरेदार है
रोटी नहीं इस देश में
मंहगी से मंहगी कार है
मिल बाँट कर खाते हैं पर
इन्कार है इन्कार है
the truth of life and TODAY
सामयिक,सटीक रचना .अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .
आज के हालातों को खूब बयां किया है आपने नासवा जी
जवाब देंहटाएं'जनता का, जनता के लिये, जनता द्वारा ',
जवाब देंहटाएंऔर फिर भी लाचार जनता?
जन का ही विवेक गया है मारा ! !
बहुत पसंद आई..
जवाब देंहटाएंgazal ke madhyam se itna gahra kataksh aap hi kar sakte hain bas!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब अशआर हुए हैं भाई. छोटी बहर की बात ही और है.
जवाब देंहटाएंhttp://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_13.html
जवाब देंहटाएंरोटी नहीं इस देश में
जवाब देंहटाएंमंहगी से मंहगी कार है ....
बेहद सशक्त पंक्तियां ... आभार इस प्रस्तुति के लिए
beshak vipaksh baitha ho magar bhrsht to aachaar hain.
जवाब देंहटाएंaaj par chot karti gazal.
आज के हालात ऐसे ही हैं .क्या करे..
जवाब देंहटाएंsolah aane sach!
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिवेश को बयां करती सुंदर कविता..
जवाब देंहटाएंसही और मन को कचोटती अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कह डाला आपने आज का सत्य.
जवाब देंहटाएं'मिल बाँट कर खाते हैं पर
इन्कार है इन्कार है'
भाई वाह ...
जवाब देंहटाएंरोटी नहीं इस देश में
मंहगी से मंहगी कार है
आसमान से बातें करती बिल्डिंगों के बगल..
झोपड़ी डाले ... नग्न इंसान हैं.
जवाब देंहटाएंप्रतिपक्ष है ऐंठा हुवा
सकते में ये सरकार है ,खाने लगी है कोयला ,हगने लगी अंगार है .इसका विस्तार जल्दी वागीश मेहता जी के संसर्ग संपर्क दूर ध्वनी से किया जाएगा .ये तो मेरा अनर्गल प्रलाप है .भेड़ों ने ओढ़ी ,शेर की खाल है ,धिक्कार है धिक्कार है ,सरकार को धिक्कार ,ये हिंद की सरकार है .
बहुत बढ़िया छोटी बहर का अंदाज़ है ,बेहद का असरदार है ,.इक बे -असर सरदार है
जवाब देंहटाएंप्रतिपक्ष है ऐंठा हुवा
सकते में ये सरकार है ,खाने लगी है कोयला ,हगने लगी अंगार है .इसका विस्तार जल्दी वागीश मेहता जी के संसर्ग संपर्क दूर ध्वनी से किया जाएगा .ये तो मेरा अनर्गल प्रलाप है .भेड़ों ने ओढ़ी ,शेर की खाल है ,धिक्कार है धिक्कार है ,सरकार को धिक्कार ,ये हिंद की सरकार है .
बहुत बढ़िया छोटी बहर का अंदाज़ है ,बेहद का असरदार है ,.इक बे -असर सरदार है
काश रोटी भी मिल बांटकर खाते |
जवाब देंहटाएंआज का सत्य |
sachchhi1 hakikat pr1astut ki hai aapne desh ki.... sunde1r prastuti.
जवाब देंहटाएंबढिया गजल
जवाब देंहटाएंइस शायरी को क्या कहें,
जवाब देंहटाएंहर ओर जयजयकार है!!
वाह!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
आज के हालात का
जवाब देंहटाएंबयान ये साकार है ।
जनता की हालत है कि
लाचार है लाचार है ।
छोटी बहर में ये गज़ब!!
जवाब देंहटाएंवाह ..आज की परिस्थिति में जो कहना चाहते हैं वो बयान करा है ..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग कलमदान पर पधारने के लिए आभार ..
सेवक हैं जनता के मगर
जवाब देंहटाएंराजाओं सा व्यवहार है
छोटी बहर में मारक ग़ज़ल है भाई...दाद कबूल करें...
नीरज
आज के हालात का एकदम सही वर्णन किया आपने...सच में यही हाल है..बढ़िया ग़ज़ल ..बधाई दिगंबर जी
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंघेराव की न सोचना
मुस्तैद पहरेदार है
बहुत सही कहा आपने। बधाई!
रोटी नहीं इस देश में
जवाब देंहटाएंमंहगी से मंहगी कार है ............बहुत खूब
और ऐसा करने वाली अपनी ही सरकार है ....
आज के हालात का सजीव चित्रण.
जवाब देंहटाएंसशक्त पंक्तियां, समसामयिक भाव......
जवाब देंहटाएंबहुत सही और तीखा कटाक्ष ....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen " की नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .
जवाब देंहटाएंइस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.
कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen " की नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .
खोटी खरी बात ! बहुत बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंकम शब्दों मे बहुत कुछ कह डाला
जवाब देंहटाएंaaj ke halato par sundar sarthak post
जवाब देंहटाएंमिल बाँट कर खाते हैं पर
जवाब देंहटाएंइन्कार है इन्कार है
satya vachan ...
ajkal bura haal hai ...!!
यथार्थ ज़ाहिर करती कविता
जवाब देंहटाएंकरने होंगे खुद के हौंसले बुलंद
जवाब देंहटाएंजो करनी कामिल हर दरकार है
जो उठ कर भी जागे नहीं
तो हर सुबह उठना बेकार है
कह गए है हमारे दिग्गज नेता
स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है
भ्रष्टाचार की कैद के आगे,
न होना हम को लाचार है
मिल कर सब को जगाना होगा
जो करते इन्कार इन्कार है !
जवाब देंहटाएंघेराव की न सोचना
मुस्तैद पहरेदार है
चारों तरफ है शोर ये ,
अपराध ही सरकार है .
आपकी टिपण्णी हमारा हौसला बढा गई .शुक्रिया .
मिल बाँट कर खाते हैं पर
जवाब देंहटाएंइन्कार है इन्कार है
यथार्थ ज़ाहिर करती कविता
सारी बहरें ग़र ऐसे ही, मिल कर एक संदेश दें,तो बहरों को भी सुनाई दे!
जवाब देंहटाएंआपकी रचना से पूरी तरह सहमत |
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंरोटी नहीं इस देश में
जवाब देंहटाएंमंहगी से मंहगी कार है
मिल बाँट कर खाते हैं पर
इन्कार है इन्कार है .....wah,behad samyik....
देश के हालत से व्यथित ह्रदय कि हृदयस्पर्शी रचना!
जवाब देंहटाएंआपकी गज़ल जानदार है ।
जवाब देंहटाएंwah bahut acche sher
जवाब देंहटाएंनपे तुले धारदार शब्दों में विसंगतियों का सटीक निरूपण..
जवाब देंहटाएंबेजोड़ कृति...
रोटी नहीं इस देश में
जवाब देंहटाएंमंहगी से मंहगी कार है
..बहुत खूब! बहुत सटीक और बेहतरीन प्रस्तुति..
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआशा
है दिख रही छोटी मगर
जवाब देंहटाएंरचना बड़ी दमदार है
छूकर जरा देखें इसे
उफ् तेज ये तलवार है
जय हो दिगम्बर नासवा
आभार है,आभार है
छोटी बहर की ये गज़ल
स्वीकार है,स्वीकार है |
रोटी नहीं इस देश में
जवाब देंहटाएंमंहगी से मंहगी कार है
मिल बाँट कर खाते हैं पर
इन्कार है इन्कार है
.vartmaan halaton ka sateek chitran..