स्वप्न मेरे: तन्हाई है ...

बुधवार, 19 सितंबर 2012

तन्हाई है ...


जो छाई है 
तन्हाई है 

घर की तुलसी 
मुरझाई है    

जो है टूटा  
अस्थाई है 

कल था पर्वत  
अब राई है 

अब शर्म नहीं  
चिकनाई है 

महका मौसम 
तू आई है 

दुल्हन देखो   
शरमाई है 

(गुरुदेव पंकज जी के सुझाव पे कुछ कमियों को दूर करने के बाद) 
  

77 टिप्‍पणियां:

  1. जो छाई है वह तन्हाई है ..हम्म सही ,,खूबसूरत

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  2. लो जी और छोटी हो गयी....अब क्या अगली बार एक ही शब्द मिलेगा :-)

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  3. क्या बात है ..अनोखा अंदाज .पसंद आया.

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  4. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 22/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  5. टूट गया जो
    अस्थाई है

    ...बहुत खूब!

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  6. बालों से टपकें बूँदें,
    लगता अभी नहाई है ।

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  7. बहुत बढ़िया !
    और अंत में ....
    नेताजी का
    लोभ तों देखो,
    यमराज
    खड़ा दर पर,
    फिर भी जोड़ता
    पाई-पाई है !

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  8. अजब गजब आपकी बातें सुन्दर ढंग से आपने लिख समझाई . बहुत खुबसूरत तरीका बुझाया आपने .

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  9. गजब यह तो
    भाई है ||
    सुन्दर प्रस्तुती भाई जी |
    बढ़िया भाव ||

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  10. महका मौसम
    तू आई है

    सुन्दर ..भावपूर्ण रचना.

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  11. अति सूक्षम बह्र
    मन भायी है .

    बेहतरीन प्रयोग .

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  12. महका मौसम
    तू आई है

    रात सुबह से
    शरमाई है ...सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  13. महका मौसम
    तू आई है

    रात सुबह से
    शरमाई है
    vaah kya baat hai
    sundar .....

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  14. कम शब्दों में दिल के भावों को उजागर करती सार्थक एवं सुंदर रचना...

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  15. वाह...वाह...वाह.....

    एक दम नया नवेला प्रयोग.....
    बहुत बढ़िया रचना...
    सादर
    अनु

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  16. शर्म नहीं अब
    चिकनाई है

    महका मौसम
    तू आई है

    yah rachna aap ga ke dekhen achchha lagega.

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  17. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    सभी शब्दचित्र बहुत उम्दा हैं!
    गणेशचतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  18. कैक्टस पे निखार आई है ,
    कल रहा हाथ
    अब काही है .

    फंगस सबपे
    उग आई है .

    ये भारत देश
    मेरे भाई है .

    महंगाई ही ,
    महंगाई है .

    सेहरा में घटा ,
    कब आई है .

    कविता हमसे ,
    लिखवाई है ,
    ये अपने दिगंबर ,
    भाई हैं .
    कानों में होने वाले रोग संक्रमण का समाधान भी है काइरोप्रेक्टिक में
    कानों में होने वाले रोग संक्रमण का समाधान भी है काइरोप्रेक्टिक में http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2012/09/blog-post_17.html

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  19. ..खुद में ही लिप्त...प्यारी सी कविता है

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  20. कौन गुनाह कर डाला रात ने शायर साहब! ?

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  21. बहुत सुंदर...छोटे छोटे भाव...!:)

    ~बरखा ने ये कैसी
    झड़ी लगाई है..
    चाँद ने भी देखो...
    छेड़ी लड़ाई है....~

    ~सादर!

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  22. महका मौसम
    तू आई है

    रात सुबह से
    शरमाई है
    bahut hi sunder
    kavita man par chhaii hai ...

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  23. घर की तुलसी
    मुरझाई है

    टूट गया जो
    अस्थाई है

    सच कहा आपने

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  24. जो छाई है
    तन्हाई है
    घर की तुलसी
    मुरझाई है
    ..सच यह आलम बड़ा दुःखदाई है ..
    ..बहुत बढ़िया रचना

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  25. बहुत बढ़िया सर जी...
    बेहतरीन रचना...
    :-)

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  26. आखिर में ....फिर तन्हाई है ???
    शुभकामनायें!

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  27. वाह बढ़िया सुन्दर और प्रभावी . कम शब्दों में समझाई .

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  28. ’अब शर्म नहीं चिकनाई है---’
    हर शब्द—अर्थ लिये हुए,बूंद में सागर.

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  29. JAADU BIKHER DIYA HAI AAPNE DIGAMBAR
    JI . MUBAARAQ .

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  30. तन्हाई है ...

    जो छाई है (जो छाई है ,ऍफ़ डी आई है )
    तन्हाई है

    घर की तुलसी
    मुरझाई है (बडकी बेटी, बिन ब्याही है )

    जो है टूटा
    अस्थाई है (भरोसा टूटा है सरकार का ,स्थाई है )

    कल था पर्वत (कल भी आज भी ,सिर्फ मंहगाई है )
    अब राई है

    अब शर्म नहीं
    चिकनाई है (अब शर्म नहीं ,कोयलाई है )

    महका मौसम
    तू आई है

    दुल्हन देखो
    शरमाई है

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  31. इतने छोटे छंदों में इतनी गहरी बातें...

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  32. छोटी बहर का अपना ही जादू है.
    "जो छाई है
    तन्हाई है"
    बहुत खूब लिखा है.

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  33. वाह!
    चंद शब्दों में कही बड़ी बातें !

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  34. छोटे बाहर की
    गज़ल खूब सजाई है ... बहुत खूब

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  35. काव्य की एक और विधा ...कुछ ख़ास नाम है इसका ?
    छाई वो तन्हाई
    पुरवाई घबराई !

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  36. जो छाई है
    तन्हाई है
    घर की तुलसी
    मुरझाई है

    छोटी छोटी खूबसूरत प्ंक्तियों में बडी बातें ।

    आप भी तो
    छा गये भाई हैं ।

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  37. बहुत ही बढ़िया । मेरे नए पोस्ट समय सरगम पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।

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  38. रात सुबह से
    शरमाई है ...सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  39. कम शब्दों में सुन्दर रचना

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  40. नासबा जी
    छोटी बहार पर बहुत सही ग़ज़ल.... ये शेर खास पसंद आया
    महका मौसम
    तू आई है
    वाह वाह

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  41. आप तो छोटी बहर की ग़ज़ल में कमाल करते हैं। अद्भुत!

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  42. ये दौर बड़ा हरजाई है ,

    बेटियाँ यहाँ कुम्हलाई हैं ,


    मुस्टंडों की बन आई है ,

    सरकार नहीं परछाईं हैं .

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  43. अति सुन्दर रचना। साधारण शब्दों
    में असाधारण बात कह देना ही
    तो कविता है। कवि-धर्म बखूबी
    निभाया है।
    साधुवाद।

    आनन्द विश्वास।

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  44. बहुत दिनो बाद ब्लोग जगत में आया हू.

    आपकी छोटी बहर कि ग़जल पढके मजा आ गया

    बहुत खुबसुरत !

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  45. जो है टूटा
    अस्थाई है.!!
    so very true :)

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  46. क्या बात है दिगंबर जी दिल खुश हो गया आपकी इस रचना को पढ़ कर !

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है