सब कह रहे हैं
तू इस लोक से
परलोक की यात्रा पर अग्रसर
है
कर्म-कांड भी इस निमित्त हो
रहे हैं
पिंड से पिंड का मिलान
साल भर रौशनी के लिए दीपक
तीन सो पैंसठ नीम के दातुन
और भी क्या क्या ...
भवसागर सहजता से पार हो
ऐसी प्रार्थना कर रहे हैं
सब
पर तू तो बैठी है कोने में
माँ
शांत, चुप-चाप, टकटकी
लगाये
समझ सकता हूं
तेरी उदासी का कारण
कदम कदम पे तुझसे
पूछ पूछ कर काम करने वाले
तेरे मन की नहीं सुन रहे
हो रहा है बंदोबस्त
जबरन तेरी यात्रा का
पर क्या तुझको भेजना संभव
होगा ...
असंभव को संभव करने का
प्रयास
अचानक हम दोनों मुस्कुरा
उठते हैं ...
marmik! maa to bas maa hai..
जवाब देंहटाएंये सोच कर ह्रदय भर आता है . आँखें भींग जाती है..
जवाब देंहटाएंबहुत दिल दुखता है... दिगम्बर जी, ऐसी बातें पढ़कर ! :((
जवाब देंहटाएंकैसे छोड़े कोई माँ का आँचल,
भले पास हो या दूर...
बसी तो है वो ..
दिल की धड़कन में हर पल...
~सादर !!!
सब कह रहे हैं
जवाब देंहटाएंतू इस लोक से
परलोक की यात्रा पर अग्रसर है
कर्म-कांड भी इस निमित् हो रहे हैं (निमित्त )
पिंड से पिंड का मिलान
साल भर रौशनी के लिए दीपक
तीन सो पैंसठ नीम के दातुन
ओर भी क्या क्या ... (और )
भाव का उद्दात्तिकरण करती सीधी सच्ची रचना .लिखो और लिखो ,बुनो स्मृतियों का ताना बाना .....
मां तो आखिर मां है.
जवाब देंहटाएंजाने वाले यादों में हमेशा रहते हैं।
जवाब देंहटाएंहालाँकि रोजाना की जिंदगी में भूलना भी पड़ता है।
इतनी गहरी संवेदनाओं को आपने जिस तरह यहाँ अपने शब्दों में उकेरा है, वो बस सीधा ह्रदय को स्पर्श करते हैं!!
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना....
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रति गहरी संवेदनाओं की बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति,,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post हमको रखवालो ने लूटा
माँ के प्यार में निस्वार्थ भाव को समेटती आपकी खुबसूरत रचना.....
जवाब देंहटाएंअमित स्मृतियाँ.
जवाब देंहटाएंमाँ तो ममता का पर्याय है। उसे कैसे भुलाया जा सकता है!
जवाब देंहटाएंसमझ सकता हूं
जवाब देंहटाएंतेरी उदासी का कारण
कदम कदम पे तुझसे
पूछ पूछ कर काम करने वाले
तेरे मन की नहीं सुन रहे....
बहुत अच्छे से महसूस कर सकती हूँ इन भावनाओं को...
बेहतर लेखन !!
जवाब देंहटाएंमर्म को छूती प्यारी रचना।
जवाब देंहटाएंकदम कदम पे तुझसे
जवाब देंहटाएंपूछ पूछ कर काम करने वाले
तेरे मन की नहीं सुन रहे
हो रहा है बंदोबस्त
जबरन तेरी यात्रा का
बहुत मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ ...
जाने वाले नही आते ...जाने वाले की याद आती है
जवाब देंहटाएंउन्ही यादों में ...याद आने वाला साथ रहता है ..
मर्म को छूती हैं ये पंक्तियाँ .
जवाब देंहटाएं...जो चल गया अब लौट कर आएगा नहीं, बस यहीं यादों में रह जायेगा.
माँ सांस सांस में मेरे
जवाब देंहटाएंअविरल बहती गंध-सी
गीता के पावन छंद-सी ...
मार्मिक रचना ..
आपके मन के भाव स्पष्ट छलक रहे है रचना में !
जवाब देंहटाएंaankhe bhigone wali rachna
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रति गहरी संवेदनाओं की बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति,बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक संवेदनशील रचना....
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओं से भरी ....सुन्दर ,भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंमन को छूते भावमय करते शब्दों का संगम
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक लिखे हैं सर!
जवाब देंहटाएंसादर
पर क्या तुझको भेजना संभव होगा ...
जवाब देंहटाएंअसंभव को संभव करने का प्रयास
अचानक हम दोनों मुस्कुरा उठते हैं
....बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...
माँ के लिए बहुत नाज़ुक विचार ...साथ ना हो कर भी साथ होने का अहसास ...सादर
जवाब देंहटाएंबड़े नाजुक से है ये एहसास , बहुत मुश्किल दिन होते है ये !
जवाब देंहटाएंमार्मिक !
जवाब देंहटाएंमाँ को साक्षी भाव से देखती बुनती महसूस करती संवाद करती रचना .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .आभार ,आदाब .
अत्यंत मार्मिक और भावुक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 18/12/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका इन्तजार है
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण...माँ की तस्वीर में माँ की मुस्कुराती छवि सदा साथ साथ रहेगी...बातें करेगी|
जवाब देंहटाएंसमझ सकता हूं
जवाब देंहटाएंतेरी उदासी का कारण
कदम कदम पे तुझसे
पूछ पूछ कर काम करने वाले
तेरे मन की नहीं सुन रहे
हो रहा है बंदोबस्त
जबरन तेरी यात्रा का
मार्मिक ....
जो संबंध अटूट है यात्रा पर निकल जाने से कहाँ समाप्त हो सकता हैं !
जवाब देंहटाएंmaaa teri yahi kahani...!!
जवाब देंहटाएंमन को नम कर दिया आपने ....
जवाब देंहटाएंbahut hi marmsparshi kavita...
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक और सशक्त पोस्ट।
जवाब देंहटाएंये सारे कर्म काण्ड दीपक जलाना ,गंगा में बहाना विरेचन करते हैं भाव का अनुभाव का .व्यक्ति को मुक्त करते हैं मोह पाश से .कायिक प्रेम से आत्मा सूक्ष्म तत्व है वायुवीय प्रेम की तरह .
जवाब देंहटाएंहर दिन बच्चे के मन में यह आशंका होती है कि कहीं माँ न चली जाए, और जब यह क्षण आता है तो सचमुच कितना भावुक क्षण होता होगा लेकिन माँ क्या सचमुच अपने बच्चों के संसार के सिवा कहीं और किसी दुनिया में जा सकती है उसके लिए वहाँ रहना क्या संभव हो पाएगा, वो आ जाएगी छोटी सी गुड़िया बनकर, फिर से एक बार अपने घर में जो उसकी जन्नत है।
जवाब देंहटाएं’क्या तुझको भेजना सम्भव होगा....’
जवाब देंहटाएंहर जाने वाला छोड जाता है यही प्रश्न निरुत्तरित.
’क्या तुझको भेजना सम्भव होगा....’
जवाब देंहटाएंहर जाने वाला छोड जाता है यही प्रश्न निरुत्तरित.
जवाब देंहटाएंDIGAMBAR JI,
NAMASKAR
YOUR POST IS VERY TOUCHING SIR. कदम कदम पे तुझसे
पूछ पूछ कर काम करने वाले
तेरे मन की नहीं सुन रहे
हो रहा है बंदोबस्त
जबरन तेरी यात्रा का
These lines are just full of reality.
http://nriachievers.blogspot.in/
शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .हाँ महात्मा गाँधी बकरी का ही दूध पीते थे .दूध उनके लिए मांसाहार समान ही था .पशु उत्पाद होने की वजह से .कृपया यहाँ दस्तक दें .आभार .आपकी ताज़ा रचना प्रतीक्षित -
जवाब देंहटाएंतू भी तिनका तोड़ेगा
ram ram bhai
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बुधवार, 19 दिसम्बर 2012
खबरें ताज़ा सेहत की
http://veerubhai1947.blogspot.in/
सुंदर, संवेदनशील रचना।।।
जवाब देंहटाएंमार्मिक, दिल को छूती हुई ...
जवाब देंहटाएंसही में माँ तो आखिर माँ ही होती है ...
जवाब देंहटाएंआपकी सद्य टिप्पणियों के लिए शुक्रिया .आपकी टिपण्णी हमारी धरोहर हैं बेशकीमती ब्लॉग के लिए .आइन्दा के लिए .
जवाब देंहटाएंआपकी सद्य टिप्पणियों के लिए शुक्रिया .आपकी टिपण्णी हमारी धरोहर हैं बेशकीमती ब्लॉग के लिए .आइन्दा के लिए .
भवसागर सहजता से पार हो
जवाब देंहटाएंऐसी प्रार्थना कर रहे हैं सब
पर तू तो बैठी है कोने में माँ
शांत, चुप-चाप, टकटकी लगाये
बहुत ही बढ़िया और भावनाओं का विशाल प्रवाह ..माँ शब्द ऐसी है जिसकी तुलना दुनिया में कोई शब्द नहीं कर सकता ...इस रचना से पहले वाली रचना भी बहुत खुबसूरत थी और उससे एक कदम आगे यह।
दिगंबर जी, ममता की स्वरूप माँ पर लिखी एक बेहतरीन रचना। धन्यवाद और बधाई
आह..
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