मेरे लिए खुशी का दिन
और तुम्हारे लिए ...
सालों बाद जब पहली बार घर
की देहरी से बाहर निकला
समझ नहीं पाया था तुम्हारी
उदासी का कारण
हालांकि तुम रोक लेतीं तो
शायद रुक भी जाता
या शायद नहीं भी रुकता ...
पर मुझे याद है तुमने रोका
नहीं था
(वैसे व्यक्तिगत अनुभव से देर
बाद समझ आया,
माँ बाप तरक्की में रोड़ा
नहीं डालते)
सच कहूं तो उस दिन के बाद
से
अचानक यादों का सैलाब सा
उमड़ आया था जेहन में
गुज़रे पल अनायास ही दस्तक
देने लगे थे
हर लम्हा फांस बनके अटकने
लगा था
जो अनजाने ही जिया था सबके और तेरे साथ
भविष्य के सपनों पर कब अतीत
की यादें हावी हो गयीं
पता नहीं चला
खुशी के साथ चुपके से उदासी
कैसे आ जाती है
तब ही समझ सका था मैं
जानता हूं वापस लौटना आसान
था
पर खुद-गर्जी ... या कुछ और ...
बहरहाल ... लौट नहीं पाया
उस दिन से ...
आज जब लौटना चाहता हूं
तो लगता है देर हो गई है ...
और अब तुम भी तो नहीं हो
वहां ... माँ ...
आज जब लौटना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतो लगता है देर हो गई है ...
ओर अब तुम भी तो नहीं हो वहां ... माँ ...
....बहुत देर बाद समझ आती है वे बातें जो कभी अपनों ने समझाई होती हैं फिर यूँ ही कब समय निकल गया और फिर कितनी देर हुयी..बार-बार जेहन में आता है ...और फिर वे बातें माँ ने कही तो वह कभी न भूलने वाली होती हैं ....गले में कुछ अटका-अटका सा लगता है ....बीतें यादों से निकली सार्थक प्रस्तुति ..आभार..
आज जब लौटना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतो लगता है देर हो गई है ...
ओर अब तुम भी तो नहीं हो वहां ... माँ ...
माँ के पास ना होने का गम ... मन को यूँ ही सालता रहता है
मन को छूते शब्द ...
सादर
एक बिछंडने का सा एहसास
जवाब देंहटाएंदिल को सताए,
शायद यही तो प्यार हैं !
बढ़िया,
जवाब देंहटाएंजारी रहिये,
बधाई !!
माँ जहाँ भी रहती है , वो ही घर है और बार बार घर आने का एक कारण भी होता है लेकिन वह एक बार जाती है तो वहां के सरे बहाने ख़त्म हो जाते हैं . जाएँ भी तो हर जगह उनके रहने उठाने बैठने की होती है बहुत याद दिलाती है। भाव बहुत गहरे से निकले हैं।
जवाब देंहटाएंदुनियां भर का सरमाया
जवाब देंहटाएंमाँ..इन दो शब्दों में समाया !!!
खुश रहें!
पता नहीं क्यों ,पर ऐसे एहसास बहुत देर से ही आते हैं ....
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव मन को छूते शब्द सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंपहली बार घर की देहरी से बहर(बाहर)निकला,,,,
recent post : समाधान समस्याओं का,
जब तक माँ बाप रहते हैं तब तक ही तो घर लौट जाने की चाह बनी रहती है .... देरी का एहसास भी जाने के बाद ही होता है ... भाव पूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं"आज जब लौटना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतो लगता है देर हो गई है ...
ओर अब तुम भी तो नहीं हो वहां ... माँ ..."
बहुत ही गहरा और दिल को छू जाने वाला लिखा है सर!
सादर
अतीत के सुखद प्रसंगों की याद से उभरी आनंद और विषाद की मिश्रित भावना अभिव्यक्त हुई है इस पोस्ट
जवाब देंहटाएंमें .यादों का गुबार कुछ ऐसा ही होता है खासकर जब वह माँ से जुड़ी हों .गृह आतुरता आई है रचना में
अतीत के झरोखे से . ये होता तो वह होता .कृपया शुद्ध रूप और ,बहरहाल लिख लें .शुक्रिया आपकी सद्य
टिप्पणियों का .
अतीत के सुखद प्रसंगों की याद से उभरी आनंद और विषाद की मिश्रित भावना अभिव्यक्त हुई है इस रचना में इसे ही कहतें हैं गृह आतुरता .कृपया बहरसूरत और और लिखें कविता में .आभार
जवाब देंहटाएंआपकी सद्य टिप्पणियों का .
अतीत के सुखद प्रसंगों की याद से उभरी आनंद और विषाद की मिश्रित भावना अभिव्यक्त हुई है इस रचना में इसे ही कहतें हैं गृह आतुरता .कृपया बहरसूरत और और लिखें कविता में .आभार
जवाब देंहटाएंआपकी सद्य टिप्पणियों का .
जवाब देंहटाएंभाई साहब टिपण्णी स्पेम में गईं हैं कई .निकालें .
जानता हूं वापस लौटना आसान था
जवाब देंहटाएंपर खुद-गर्जी ... या कुछ ओर ...
बारहाल ... लौट नहीं पाया उस दिन से ..
digambar ji vakai ye rachana dil ko chho gayee ....abhar.
आज जब लौटना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतो लगता है देर हो गई है ...
बहुत ही खुबसुरत भाव है.
सादर.
आज जब लौटना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतो लगता है देर हो गई है ...
द्विविधा और एक मुश्किल निर्णय जिसे लेने में जितनी देर होती है उतनी ही कठिनाई बढाती जाती है.
वैसे भी बेटे और माँ का रिश्ता बहुत भावनात्मक होता ऐसी ही है यह बेहद भावनात्मक प्रस्तुति.
आज जब लौटना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतो लगता है देर हो गई है ...
ओर अब तुम भी तो नहीं हो वहां ... माँ ...
....आँखें नम कर गयी भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
माँ नहीं रहीं तो सचमुच देर हो गई और हकीकत के धरातल पर उतरें तो लौटने का कोई औचित्य भी नहीं - भाव विह्वल करती रचना पढवाने के लिए आभार - सादर
जवाब देंहटाएंमाँ हमेशा बच्चों के साथ रहती है,वे भले दूर हो जाँय।
जवाब देंहटाएंजिंदगी की ज़रूरतें घर , गाँव और देश छुड़ा देती हैं। लेकिन वक्त कभी ठहरता नहीं।
जवाब देंहटाएंआपकी कविताओं में माँ के कितने सारे शेड हैं और हर शेड उनकी ऐसी कमी दिखा देता है जो कभी भरी नहीं जा सकती।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज जब लौटना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतो लगता है देर हो गई है ...
पश्चाताप कोई समाधान तो नहीं है नासवा जी,
हर मनुष्य हालात के आगे मजबूर होता है
इस दुःख की घडी को भी संपूर्णता में जीकर देखिये !
गया वक़्त कभी लौटकर नहीं आता... भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंस्मृतियाँ तो फिर भी वहाँ रहेंगी, संबल वही हैं।
जवाब देंहटाएंकई बातें तब तक समझ ही नहीं आती जब तक हम स्वयं उन अनुभवों से या उस उम्र से नहीं गुज़रते .अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंगुज़रा वक्त कभी लौटता नहीं ,अपने स्मृति-चिह्न छोड़ जाता है बस!
जवाब देंहटाएंआज जब लौटना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतो लगता है देर हो गई है ...
ओर अब तुम भी तो नहीं हो वहां ... माँ ...
बहुत ही भावपूर्ण...माँ वहाँ से सदा के लिए करीब आ गईं
बहरहाल ... लौट नहीं पाया उस दिन से ...
जवाब देंहटाएंये वो कच्चे धागे हैं जो वक़्त के साथ मजबूत और मजबूत होते चले जाते हैं
अपना देश छोड़कर गए प्रत्येक व्यक्ति को एक दिन यही आभास होगा कि अब देर हो गयी है। उसके पास पछतावे के अतिरिक्त और कुछ नहीं होगा। अच्छी अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंपरिंदों को ऊंची उडान के लिये बसेरा छोडना ही पडता है, बहुत गहन अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.\
जवाब देंहटाएंरामराम.
जो वक्त हाथ से निकल गया वो कब वापस आता है एक मलाल रह जाता है बस!
जवाब देंहटाएंअपनी मिट्टी से दूर रहते हुए भी माँ की याद और उनका आशीर्वाद हमेशा साथ रहा होगा और रहेगा.
गया हुआ वक़्त वापस नहीं आता ..बेहतरीन तरीके से व्यक्त हुई है यह रचना
जवाब देंहटाएंअगर रोकने पर कोई रुक जाता तो आज अकेले रहने वाले माँ-बाप ...अकेले नहीं होते
जवाब देंहटाएंबहुत गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं...रचना पढवाने के लिए आभार !!
ओह ,अब लौटना भी नसीब कहाँ?
जवाब देंहटाएंअतीत के सुखद प्रसंगों की याद से उभरी आनंद और विषाद की मिश्रित भावना अभिव्यक्त हुई है इस रचना में इसे ही कहतें हैं गृह आतुरता .कृपया बहरसूरत और 'ओर 'को और लिखें कविता में
जवाब देंहटाएं.आभार
आपकी सद्य टिप्पणियों का अतिरिक्त आभार .आपकी टिप्पणियाँ हमारी धरोहर हैं . कृपया ओर को और ज़रूर कर लें कविता में .
शुक्रिया वीरेंद्र जी ... आपकी प्रखर दृष्टि से हम लाभान्वित होते हैं.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत देर हो गई है
और अब तुम भी तो नही हो माँ ।
बहुत भावभीनी प्रस्तुति ।
यही एहसास तो हरदम कचोटता है, न बसने देता है न लौटने देता है.
जवाब देंहटाएंमाँ-बाप के रोकने से कोई रुक तो नहीं जाता...ज़िन्दगी की परिपाटी है जो हम अपने माँ-बाप से पाते हैं...उसे उन्हें तो नहीं पर अपने बच्चों को लौटाते हैं...खुदगर्जी का अपराधबोध उचित नहीं...
जवाब देंहटाएंजानता हूं वापस लौटना आसान था
जवाब देंहटाएंपर खुद-गर्जी ... या कुछ (ओर) ... या कुछ और ...........
शुक्रिया आपकी प्रखर टिपण्णी का .
माँ तो नहीं है पर माँ का आशीर्वाद अपने बच्चों पर
जवाब देंहटाएंहमेशा रहता है..
बेहद भावपूर्ण रचना...
’अहसास’ ज़िंदगी है—कुछ अहसास खुशी देते हैं तो कुछ अनंत पीडाओं को
जवाब देंहटाएंजन्म देते हैं. जीवन विरोधाभाषाओं से बुना एक इंद्रधनुष है—स्वीकार-भाव ही
हमें मुक्त करता है. कुछ खालीपन भरते नहीं हैं. आपके अहसासों से आहत हूं.
खुशी के साथ चुपके से उदासी कैसे आ जाती है
जवाब देंहटाएंतब ही समझ सका था मैं
हृदयस्पर्शी रचना ....
शुभकामनायें ...
जानता हूं वापस लौटना आसान था
जवाब देंहटाएंपर खुद-गर्जी ... या कुछ ओर ... और ........या कुछ और ,और ,और
ओर नहीं है यहाँ भाई साहब .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 खबरनामा सेहत का
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 दिमागी तौर पर ठस रह सकती गूगल पीढ़ी
स्पेम में गईं हैं टिप्पणियाँ भाई साहब .
आपकी कविता मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गई। मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंbahut hi gahre jajbat.... Behatarin abhivayakti.
जवाब देंहटाएंहमें तब ज्यादा समझ में आती है जब 'वो ' हमारे पास नहीं होता..माँ भी..
जवाब देंहटाएंआपकी सद्य टिप्पणियों का शुक्रिया .आदरणीय भाव रखेंगे सभी महिलामात्र के प्रति यही इस बरस का शुभ सामूहिक संकल्प होना चाहिए .आभार .
जवाब देंहटाएंगहरे अहसासों भरी प्रस्तुति।।।
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक बधाई।।।
आज जब लौटना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतो लगता है देर हो गई है
सार्थक पोस्ट
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
जवाब देंहटाएंब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
नववरश की शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंbhawbhini......
जवाब देंहटाएंनूतन वर्षाभिनंदन मंगलकामनाओं के साथ.
जवाब देंहटाएंमार्मिक, जीवन क्या है समझ ही नहीं आता ...
जवाब देंहटाएंदिन तीन सौ पैसठ साल के,
जवाब देंहटाएंयों ऐसे निकल गए,
मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
ज्यों कहीं फिसल गए।
कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
कुछ आकुल,विकल गए।
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए।।
शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
इस उम्मीद और आशा के साथ कि
ऐसा होवे नए साल में,
मिले न काला कहीं दाल में,
जंगलराज ख़त्म हो जाए,
गद्हे न घूमें शेर खाल में।
दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
ऐसा होवे नए साल में।
Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.
May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!
मंगलमय नव वर्ष हो, फैले धवल उजास ।
जवाब देंहटाएंआस पूर्ण होवें सभी, बढ़े आत्म-विश्वास ।
बढ़े आत्म-विश्वास, रास सन तेरह आये ।
शुभ शुभ हो हर घड़ी, जिन्दगी नित मुस्काये ।
रविकर की कामना, चतुर्दिक प्रेम हर्ष हो ।
सुख-शान्ति सौहार्द, मंगलमय नव वर्ष हो ।।
आज जब लौटना चाहता हूं
जवाब देंहटाएंतो लगता है देर हो गई है ...
और अब तुम भी तो नहीं हो वहां ... माँ ...
मन द्रवित कर गयीं ये पंक्तियाँ
माँ के प्रति आपकी ये अनवरत शब्दांजलि, आदर का भाव अनुकरणीय है, प्रशंसनीय है..
जवाब देंहटाएंजानता हूं वापस लौटना आसान था
जवाब देंहटाएंपर खुद-गर्जी ... या कुछ और ...
very thoughtful expression.. beautiful poetry..
speechless ......beautiful feelings in the poem in simple words.....!!!
जवाब देंहटाएंखुबसुरत अभिव्यक्ति पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएं