स्वप्न मेरे: द्वंद्व ...

बुधवार, 2 जनवरी 2013

द्वंद्व ...


तमाम कोशिशों के बावजूद  
उस दीवार पे 
तेरी तस्वीर नहीं लगा पाया 

तूने तो देखा था 

चुपचाप खड़ी जो हो गई थीं मेरे साथ 
फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के 

एक कील भी नहीं ठोक पाया था     
सूनी सपाट दीवार पे 

हालांकि हाथ चलने से मना नहीं कर रहे थे   
शायद दिमाग भी साथ दे रहा था 
पर मन ... 
वो तो उतारू था विद्रोह पे   

ओर मैं ... 

मैं भी समझ नहीं पाया 
कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं 
फ्रेम की चारदिवारी में    

तुम से बेहतर मन का द्वंद्व 
कौन समझ सकता है माँ ...  

75 टिप्‍पणियां:

  1. माँ मुस्कुराती हुई हर जगह है ... तस्वीर में भी उससे परे भी ...

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  3. सच है इस अंतरद्वन्द से बाहर आ पाना बहुत मुश्किल होता है.

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  4. किसी एक बेटे का समर्पण बहुत अच्‍छा लग रहा है।

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  5. प्रभावी प्रस्तुति |
    शुभकामनायें बंधुवर ||

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  6. कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
    फ्रेम की चारदिवारी में

    तुम से बेहतर मन का द्वंद
    कौन समझ सकता है माँ ..
    माँ ..तो हर कैद से आज़ाद है ... तभी तो पल-पल वो रहती साथ है
    सादर

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  7. माँ हर पल हमारे साथ होती है, हमारी ही आँखों से देखती और हमारी मुस्कराहट में मुस्कुराती है...

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  8. माँ ..... उसे कोई दीवार नहीं चाहिए अपनी उपस्थिति के लिए .... वह समयानुसार बच्चे के साथ होती है (उम्र कोई भी हो), उसके द्वन्द में मंथन कर निदान बनती है

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  9. मैं भी समझ नहीं पाया
    कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
    फ्रेम की चारदिवारी में

    तुम से बेहतर मन का द्वंद
    कौन समझ सकता है माँ ...


    ये रिश्ता ही ऐसा होता है जितना समझो उतना ही अबूझा रहता है।

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  10. माँ कोई व्यक्तित्व नहीं, एक भावना है, जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है...

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  11. आपकी यह बेहतरीन रचना शुकरवार यानी 04/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जाएगी…
    इस संदर्भ में आप के सुझाव का स्वागत है।

    सूचनार्थ,

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  12. माँ तस्वीर में कैसे समां पाएगी ?
    वो हर संतान के दिल में जो रहती है ,
    दीवार तो बहुत छोटी है उसके लिए ,
    बस उसे दिल और दिमाग में ही सजा रहने दो।

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  13. काश कि मैं
    अपने लिए तेरा दुलार
    दीवार से चिपकी
    तेरी तस्वीर में
    कैद कर पाता माँ,
    ताकि जब भी मुझे
    उसकी जरूरत महसूस होती
    अपने हिस्से का
    थोड़ा-थोड़ा कर लपक लेता !

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  14. तुम से बेहतर मन का द्वंद
    कौन समझ सकता है माँ ...

    हाँ कुछ चित्रों को दीवार पे टांगना बहुत मुश्किल होता है .हमारा बचपन होता है वह .हमारी परवरिश भी ,रची बसी रहती है एक माँ हमारे अन्दर

    उसे एक दीवार समेट भी तो नहीं पाती वह तो संग साथ चलती है हिफाज़त करती आदेश देती -

    फिर द्वंद्व कैसा .दुविधा कैसी ?

    द्वंद्व !

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  15. मैं भी समझ नहीं पाया
    कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
    फ्रेम की चारदिवारी में

    सच है वो मुस्कराहट तो ताजिंदगी जिन्दा रहेगी

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  16. सही है। मैं इतनी तस्वीरें लगाता हूँ, खींचता हूँ लेकिन कभी मुझे भी यह खयाल नहीं आया।

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  17. दिल दो टूक हो जाता है इस द्वंद से जूझते हुए

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  18. तुम से बेहतर मन का द्वंद
    कौन समझ सकता है माँ ...

    बिलकुल सच बात कही सर!


    सादर

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  19. निशब्द...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

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  20. चुपचाप खड़ी जो हो गई थीं मेरे साथ
    फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के

    कृतज्ञ और संवेदनशील मन की कोमल अनुभूति !

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  21. सच है इस अंतरद्वन्द से बाहर आना मुशकिल होता है..सुकोमल भाव..

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  22. द्वन्द में मैं सचमुच निशब्द हूँ -अति सुन्दर अभिव्यक्ति :
    नई पोस्ट: "काश !हम सभ्य न होते "

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  23. बहुत ही प्रभावशाली...!
    शीर्षक में द्वन्द को द्वंद्व कर लें!!

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  24. माँ के प्रति श्रद्धा और सम्मान से सराबोर आपकी रचनाएँ बहुत प्रभावित करती रही है - उसी लड़ी की और नायब कड़ी है - सादर

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  25. बिल्कुल बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति शुभकामना देती ”शालिनी”मंगलकारी हो जन जन को .-2013

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  26. मन में बसी तस्वीर को दीवार पर कैसे लटकाएं...
    माँ की कमी सदा खलती रहेगी...यादों का संबल रहेगा बस....

    सादर
    अनु

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  27. माँ से बच्चों के अन्तर्द्वंद कहाँ छिपते हैं...फ्रेम में माँ को नहीं बंधा जा सकता...

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  28. मैं भी समझ नहीं पाया
    कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
    फ्रेम की चारदिवारी में

    तुम से बेहतर मन का द्वंद्व
    कौन समझ सकता है माँ ...

    आपने महादेवी वर्मा की कविता
    *मैं लेटी थी वो लेटा था * की याद दिल दी

    जवाब देंहटाएं
  29. बहुत मुश्किल होता है ऐसे सच को स्वीकार करना. पर माँ की कामना रही होगी अपनी संतान के लिये कि वह हर दुख से उबर कर जीवन मे आगे बढ़े !

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  30. तुम से बेहतर मन का द्वंद
    कौन समझ सकता है माँ ...
    सही कहा मार्मिक ...

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  31. अबूझ होकर भी जाना पहचाना रिश्ता माँ का अपनी संतान से !

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  32. दिगम्बर सर माँ के प्रति आपका यह समर्पण भाव दिल को छू जाता है, सत्य कहा है सर आपने
    तुम से बेहतर मन का द्वंद्व
    कौन समझ सकता है माँ

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  33. बहुत सुंदरता के साथ आपने अपने अपने मन के द्वंद्व को उकेरा है ..

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  34. बहुत सुंदर भाव..दिल को छूते हुए से..जैसे चिड़िया का पंख हो या हवा का एक झोंका..माँ ऐसी ही होती है, होते हुए न होने का अहसास दिलाती और न होने पर होने का अहसास दिलाती..

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  35. बहुत ही कोमल भावों से सजी पोस्ट।

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  36. शुक्रिया आपकी ताज़ा टिप्पणियों का .आप रहें .भावनाओं का ज्वार अपनी दिशा खुद ब खुद ले लेगा भाई साहब .माँ को दीवार पे सीमित करना मुश्किल काम है तो एक भाव है ,अनु -भाव है जिसकी

    ऊंगली पकडके चलना सीखा है हम सबने .सब की माँ एक जैसी होती है .

    पूत कपूत सुने हैं ,लेकिन माता हुईं सुमाता .

    जवाब देंहटाएं
  37. रश्मि प्रभा जी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....

    जवाब देंहटाएं
  38. मैं भी समझ नहीं पाया
    कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
    फ्रेम की चारदिवारी में

    तुम से बेहतर मन का द्वंद्व
    कौन समझ सकता है माँ ...


    Behatar--behatreen

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  39. कुछ द्वंद्व अन्दर तक झकझोर देते हैं...

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  40. झकझोर देते हैं कविता के मार्मिक भाव. आखिर माँ तो माँ है.

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  41. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  42. आपकी सद्य टिप्पणियों का आभार .हमारे लेखन को आंच /ऊर्जा देती हैं आपकी कही .आभार
    हर घड़ी मातम यहाँ तैयार रहना .,

    आज का अखबार है तैयार रहना ,

    ये शहर है दोस्तों तैयार रहना

    बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति .माँ से जुड़े ज़ज्बात .दुर्भाग्य देश का आज 65 -70 माँ समाना के साथ भी बलात्कार हो रहें हैं जैसे आधार कार्ड हो बलात्कार .

    जवाब देंहटाएं
  43. आपकी सद्य टिप्पणियों का आभार .हमारे लेखन को आंच /ऊर्जा देती हैं आपकी कही .आभार
    हर घड़ी मातम यहाँ तैयार रहना .,

    आज का अखबार है तैयार रहना ,

    ये शहर है दोस्तों तैयार रहना

    बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति .माँ से जुड़े ज़ज्बात .दुर्भाग्य देश का आज 65 -70 माँ समाना के साथ भी बलात्कार हो रहें हैं जैसे आधार कार्ड हो बलात्कार .

    जवाब देंहटाएं
  44. आपकी सद्य टिप्पणियों का आभार .हमारे लेखन को आंच /ऊर्जा देती हैं आपकी कही .आभार
    हर घड़ी मातम यहाँ तैयार रहना .,

    आज का अखबार है तैयार रहना ,

    ये शहर है दोस्तों तैयार रहना

    बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति .माँ से जुड़े ज़ज्बात .दुर्भाग्य देश का आज 65 -70 माँ समाना के साथ भी बलात्कार हो रहें हैं जैसे आधार कार्ड हो बलात्कार .

    जवाब देंहटाएं
  45. बहुत ही अच्छी कविता |भाई दिगम्बर जी नववर्ष मुबारक हो |

    जवाब देंहटाएं
  46. बहुत सुंदर और सशक्त भाव, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  47. कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
    फ्रेम की चारदिवारी में

    great thought.. a beautiful tribute to the mother..

    loved it..

    http://theoriginalpoetry.blogspot.in/

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  48. सुन्दर पक्तियां. कील ठोकें दीवार पर और वो उतरे ह्रदय पर..बहुत प्यारे भाव.

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  49. तुम से बेहतर मन का द्वंद्व
    कौन समझ सकता है माँ ... शाश्वत सच ...बहुत प्रभावपूर्ण रचना

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  50. सर जी आप भी बहुत सटीक और भाव प्रधान लिखते हैं फिर वागीश जी तो शब्दोंके सारथि हैं विशेष काम है इनका .

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  51. मैं भी समझ नहीं पाया
    कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
    फ्रेम की चारदिवारी में
    ... मन को छू गयी नज़्म

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  52. वाह ...!
    माँ पर इतने खूबसूरत ख्यालों की रचना ...
    बहुत खूब ....!!

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  53. शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का जो सदैव ही हमारी धरोहर हैं .

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  54. अति सुंदर कृति
    ---
    नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें

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  55. मैं भी समझ नहीं पाया
    कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
    फ्रेम की चारदिवारी में !

    बहुत खूब....

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है