तमाम कोशिशों के बावजूद
उस दीवार पे
तेरी तस्वीर नहीं लगा पाया
तूने तो देखा था
चुपचाप खड़ी जो हो गई थीं
मेरे साथ
फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के
एक कील भी नहीं ठोक पाया था
सूनी सपाट दीवार पे
हालांकि हाथ चलने से मना
नहीं कर रहे थे
शायद दिमाग भी साथ दे रहा
था
पर मन ...
वो तो उतारू था विद्रोह पे
ओर मैं ...
मैं भी समझ नहीं पाया
कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट
को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में
तुम से बेहतर मन का द्वंद्व
कौन समझ सकता है माँ ...
माँ मुस्कुराती हुई हर जगह है ... तस्वीर में भी उससे परे भी ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसच है इस अंतरद्वन्द से बाहर आ पाना बहुत मुश्किल होता है.
जवाब देंहटाएंकिसी एक बेटे का समर्पण बहुत अच्छा लग रहा है।
जवाब देंहटाएंप्रभावी प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें बंधुवर ||
कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
जवाब देंहटाएंफ्रेम की चारदिवारी में
तुम से बेहतर मन का द्वंद
कौन समझ सकता है माँ ..
माँ ..तो हर कैद से आज़ाद है ... तभी तो पल-पल वो रहती साथ है
सादर
बस... आँखें नम हो जाती है...
जवाब देंहटाएंमाँ हर पल हमारे साथ होती है, हमारी ही आँखों से देखती और हमारी मुस्कराहट में मुस्कुराती है...
जवाब देंहटाएंमाँ ..... उसे कोई दीवार नहीं चाहिए अपनी उपस्थिति के लिए .... वह समयानुसार बच्चे के साथ होती है (उम्र कोई भी हो), उसके द्वन्द में मंथन कर निदान बनती है
जवाब देंहटाएंमैं भी समझ नहीं पाया
जवाब देंहटाएंकैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में
तुम से बेहतर मन का द्वंद
कौन समझ सकता है माँ ...
ये रिश्ता ही ऐसा होता है जितना समझो उतना ही अबूझा रहता है।
No words.
जवाब देंहटाएंमाँ कोई व्यक्तित्व नहीं, एक भावना है, जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है...
जवाब देंहटाएंआपकी यह बेहतरीन रचना शुकरवार यानी 04/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जाएगी…
जवाब देंहटाएंइस संदर्भ में आप के सुझाव का स्वागत है।
सूचनार्थ,
माँ तस्वीर में कैसे समां पाएगी ?
जवाब देंहटाएंवो हर संतान के दिल में जो रहती है ,
दीवार तो बहुत छोटी है उसके लिए ,
बस उसे दिल और दिमाग में ही सजा रहने दो।
....ओ माँ !
जवाब देंहटाएंकाश कि मैं
जवाब देंहटाएंअपने लिए तेरा दुलार
दीवार से चिपकी
तेरी तस्वीर में
कैद कर पाता माँ,
ताकि जब भी मुझे
उसकी जरूरत महसूस होती
अपने हिस्से का
थोड़ा-थोड़ा कर लपक लेता !
तुम से बेहतर मन का द्वंद
जवाब देंहटाएंकौन समझ सकता है माँ ...
हाँ कुछ चित्रों को दीवार पे टांगना बहुत मुश्किल होता है .हमारा बचपन होता है वह .हमारी परवरिश भी ,रची बसी रहती है एक माँ हमारे अन्दर
उसे एक दीवार समेट भी तो नहीं पाती वह तो संग साथ चलती है हिफाज़त करती आदेश देती -
फिर द्वंद्व कैसा .दुविधा कैसी ?
द्वंद्व !
मैं भी समझ नहीं पाया
जवाब देंहटाएंकैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में
सच है वो मुस्कराहट तो ताजिंदगी जिन्दा रहेगी
प्रभावी लेखनी,
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामना !!
आर्यावर्त
सही है। मैं इतनी तस्वीरें लगाता हूँ, खींचता हूँ लेकिन कभी मुझे भी यह खयाल नहीं आया।
जवाब देंहटाएंदिल दो टूक हो जाता है इस द्वंद से जूझते हुए
जवाब देंहटाएंअभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंतुम से बेहतर मन का द्वंद
जवाब देंहटाएंकौन समझ सकता है माँ ...
बिलकुल सच बात कही सर!
सादर
निशब्द...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंचुपचाप खड़ी जो हो गई थीं मेरे साथ
जवाब देंहटाएंफोटो-फ्रेम से बाहर निकल के
कृतज्ञ और संवेदनशील मन की कोमल अनुभूति !
सच है इस अंतरद्वन्द से बाहर आना मुशकिल होता है..सुकोमल भाव..
जवाब देंहटाएंद्वन्द में मैं सचमुच निशब्द हूँ -अति सुन्दर अभिव्यक्ति :
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट: "काश !हम सभ्य न होते "
बहुत ही प्रभावशाली...!
जवाब देंहटाएंशीर्षक में द्वन्द को द्वंद्व कर लें!!
माँ के प्रति श्रद्धा और सम्मान से सराबोर आपकी रचनाएँ बहुत प्रभावित करती रही है - उसी लड़ी की और नायब कड़ी है - सादर
जवाब देंहटाएंकितने सुंदर जज्बात
जवाब देंहटाएंsach bahut mushkil hota hai ...use frame men samet dena :(
जवाब देंहटाएंबिल्कुल बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति शुभकामना देती ”शालिनी”मंगलकारी हो जन जन को .-2013
जवाब देंहटाएंमन में बसी तस्वीर को दीवार पर कैसे लटकाएं...
जवाब देंहटाएंमाँ की कमी सदा खलती रहेगी...यादों का संबल रहेगा बस....
सादर
अनु
माँ से बच्चों के अन्तर्द्वंद कहाँ छिपते हैं...फ्रेम में माँ को नहीं बंधा जा सकता...
जवाब देंहटाएंमैं भी समझ नहीं पाया
जवाब देंहटाएंकैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में
तुम से बेहतर मन का द्वंद्व
कौन समझ सकता है माँ ...
आपने महादेवी वर्मा की कविता
*मैं लेटी थी वो लेटा था * की याद दिल दी
बहुत मुश्किल होता है ऐसे सच को स्वीकार करना. पर माँ की कामना रही होगी अपनी संतान के लिये कि वह हर दुख से उबर कर जीवन मे आगे बढ़े !
जवाब देंहटाएंतुम से बेहतर मन का द्वंद
जवाब देंहटाएंकौन समझ सकता है माँ ...
सही कहा मार्मिक ...
अबूझ होकर भी जाना पहचाना रिश्ता माँ का अपनी संतान से !
जवाब देंहटाएंदिगम्बर सर माँ के प्रति आपका यह समर्पण भाव दिल को छू जाता है, सत्य कहा है सर आपने
जवाब देंहटाएंतुम से बेहतर मन का द्वंद्व
कौन समझ सकता है माँ
बहुत सुंदरता के साथ आपने अपने अपने मन के द्वंद्व को उकेरा है ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव..दिल को छूते हुए से..जैसे चिड़िया का पंख हो या हवा का एक झोंका..माँ ऐसी ही होती है, होते हुए न होने का अहसास दिलाती और न होने पर होने का अहसास दिलाती..
जवाब देंहटाएंबहुत ही कोमल भावों से सजी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी ताज़ा टिप्पणियों का .आप रहें .भावनाओं का ज्वार अपनी दिशा खुद ब खुद ले लेगा भाई साहब .माँ को दीवार पे सीमित करना मुश्किल काम है तो एक भाव है ,अनु -भाव है जिसकी
जवाब देंहटाएंऊंगली पकडके चलना सीखा है हम सबने .सब की माँ एक जैसी होती है .
पूत कपूत सुने हैं ,लेकिन माता हुईं सुमाता .
रश्मि प्रभा जी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक पंक्तियां...
जवाब देंहटाएंमैं भी समझ नहीं पाया
जवाब देंहटाएंकैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में
तुम से बेहतर मन का द्वंद्व
कौन समझ सकता है माँ ...
Behatar--behatreen
Yes sir! You're right. Very impressive!
जवाब देंहटाएंI wish you a very happy new year!
खुबसूरत अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंज़ज्बातो से भरी लेखनी
जवाब देंहटाएंवह मुखमंडल भूल न पाऊँ..
जवाब देंहटाएंमाँ के न होने की कमी को एक बेटा ही समझ सकता है,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: किस्मत हिन्दुस्तान की,
भावुक कर दिया...
जवाब देंहटाएंकुछ द्वंद्व अन्दर तक झकझोर देते हैं...
जवाब देंहटाएंझकझोर देते हैं कविता के मार्मिक भाव. आखिर माँ तो माँ है.
जवाब देंहटाएंआप हमेशा रुला ही देते हैं..... :(((
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी सद्य टिप्पणियों का आभार .हमारे लेखन को आंच /ऊर्जा देती हैं आपकी कही .आभार
जवाब देंहटाएंहर घड़ी मातम यहाँ तैयार रहना .,
आज का अखबार है तैयार रहना ,
ये शहर है दोस्तों तैयार रहना
बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति .माँ से जुड़े ज़ज्बात .दुर्भाग्य देश का आज 65 -70 माँ समाना के साथ भी बलात्कार हो रहें हैं जैसे आधार कार्ड हो बलात्कार .
आपकी सद्य टिप्पणियों का आभार .हमारे लेखन को आंच /ऊर्जा देती हैं आपकी कही .आभार
जवाब देंहटाएंहर घड़ी मातम यहाँ तैयार रहना .,
आज का अखबार है तैयार रहना ,
ये शहर है दोस्तों तैयार रहना
बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति .माँ से जुड़े ज़ज्बात .दुर्भाग्य देश का आज 65 -70 माँ समाना के साथ भी बलात्कार हो रहें हैं जैसे आधार कार्ड हो बलात्कार .
आपकी सद्य टिप्पणियों का आभार .हमारे लेखन को आंच /ऊर्जा देती हैं आपकी कही .आभार
जवाब देंहटाएंहर घड़ी मातम यहाँ तैयार रहना .,
आज का अखबार है तैयार रहना ,
ये शहर है दोस्तों तैयार रहना
बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति .माँ से जुड़े ज़ज्बात .दुर्भाग्य देश का आज 65 -70 माँ समाना के साथ भी बलात्कार हो रहें हैं जैसे आधार कार्ड हो बलात्कार .
बहुत ही अच्छी कविता |भाई दिगम्बर जी नववर्ष मुबारक हो |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सशक्त भाव, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
जवाब देंहटाएंफ्रेम की चारदिवारी में
great thought.. a beautiful tribute to the mother..
loved it..
http://theoriginalpoetry.blogspot.in/
सुन्दर पक्तियां. कील ठोकें दीवार पर और वो उतरे ह्रदय पर..बहुत प्यारे भाव.
जवाब देंहटाएंतुम से बेहतर मन का द्वंद्व
जवाब देंहटाएंकौन समझ सकता है माँ ... शाश्वत सच ...बहुत प्रभावपूर्ण रचना
kammal ka likhe hain.....
जवाब देंहटाएंसर जी आप भी बहुत सटीक और भाव प्रधान लिखते हैं फिर वागीश जी तो शब्दोंके सारथि हैं विशेष काम है इनका .
जवाब देंहटाएंमैं भी समझ नहीं पाया
जवाब देंहटाएंकैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में
... मन को छू गयी नज़्म
sundar shbd
जवाब देंहटाएंवाह ...!
जवाब देंहटाएंमाँ पर इतने खूबसूरत ख्यालों की रचना ...
बहुत खूब ....!!
शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का जो सदैव ही हमारी धरोहर हैं .
जवाब देंहटाएंअति सुंदर कृति
जवाब देंहटाएं---
नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें
मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंमैं भी समझ नहीं पाया
जवाब देंहटाएंकैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में !
बहुत खूब....
bahut sunder prastuti.
जवाब देंहटाएं